रविवार, 5 सितंबर 2010

कौन कहाँ से कहाँ ? (6)

                  हम सब इलाहबाद वापस आ गए . मैं अपने मन पर एक बोझ  लिए था कि इन लोगों ने मुझसे ये सब कहने की   हिम्मत कैसे की? मेरा इनसे कोई वास्ता नहीं था. मैं कभी पापा के पास, इन लोगों के उनके जीवन में शामिल होने के बाद, गया ही नहीं , लेकिन पापा के जीवन में नई माँ के आने के पीछे कोई बड़ी साजिश  थी जिसका खुलासा आज मेरे सामने होने लगा था. नई माँ के भाई किसी गाँव के रहने वाले और कम पढ़े लिखे ही होंगे तभी तो उन लोगों की भाषा से अपराधीपन की  बू आ रही थी. कोई शरीफ और सभ्य इंसान क्या किसी के पिता की  मौत के बाद उसके ही बेटे से इस भाषा में और अपने अपराध को क़ुबूल करने वाले वक्तव्य के साथ इस तरह से पेश आया होता. ये बातें तो तब करनी चाहिए थी जब कि मैं ऐसा कुछ उनसे चाहता .
                              लेकिन मन पर ये बोझ कि पापा का एक्सीडेंट  नहीं हुआ है बल्कि ये एक्सीडेंट  करवाने की  एक सफल साजिश  थी और उसमें साजिशकर्ता सफल भी हो गए. नई माँ को उन लोगों ने मोहरा बना लिया था. वी आई पी  जिन्दगी के सारे सुख और अपने कारोबार के लिए पापा का  बैक-अप कोई बुरा तो नहीं था. मैंने ये बातें न नाना को और न दीदी को घर में किसी से नहीं कहीं. उन को सुनकर दुःख होता और फिर वे मुझे लेकर हर समय सशंकित रहते कि कहीं मेरे साथ भी कुछ गलत न हो जाय.
                            पापा के न रहने पर वे लोग मीना मौसी को अपने घर काम करने के लिए ले गए और मीना मौसी तो बाल विधवा थी उनको सहारा चाहिए था कि उनके लिए अपने खर्च के लिए कुछ काम बना रहे. लेकिन कुछ ही महीने के बाद मीना मौसी  वहाँ से छोड़ कर वापस अपनी माँ के घर आ गयीं. मीना मौसी का आना क्या हुआ?  नए रहस्यों का खुलना शुरू हो गया. मीना मौसी पहले तो मम्मी के साथ ही गयीं थी लेकिन फिर उन्हें पापा के लिए वहाँ रहना पड़ा. वह गंभीर प्रकृति की महिला हैं  या कहें कि वे जो १० साल में ब्याही गयीं और १२ साल में बिना गौना हुए विधवा भी करार दे दी गयीं थी. अपनी माँ के साथ काम करने आती और फिर मम्मी और मौसी के साथ खेला करतीं थीं.उनका सारा जीवन इसी तरह से गुजरना था सो मम्मी की शादी के बाद दीदी के होने पर नानी के कहने पर वे मम्मी को सहारा देने के लिए आ गयीं थी और फिर यहीं रहीं थीं.
                  मीना मौसी ने बताया कि -- 'दीदी के न रहने पर साहब बहुत दुखी रहते, ऑफिस से आकर बस कमरे में ही रहते थे. कुछ लोगों ने ऑफिस के काम से घर में आना शुरू कर दिया था. कुछ फरेबी लोग होते हैं जिन्हें हर कोई नहीं समझ पाता.साहब भी पढ़े लिखे तो थे लेकिन चालबाजी से बहुत दूर रहते थे सो उनको भी ऐसे लोगों की पहचान न थी.'
                  एक दो साल में उन लोगों ने साहब से अच्छी दोस्ती कर ली थी, उनका कुछ काम साहब के द्वारा ही हो सकता था सो वे चापलूसी करते रहते. कभी कभी तो रात का खाना भी मैं बना कर उनको खिलाती थी. वे ठेका जैसे काम की बात करते थे. फिर धीरे धीरे  उन्हें पता चला कि वे साहब बच्चों को बहुत चाहते हैं लेकिन बच्चे छोटे हैं इसलिए उनको अपने पास रख नहीं पाते हैं.हम लोग पापा की कमजोरी हैं इस बात का उन लोगों ने फायदा उठाया और पापा से चल खेल कर फंसने की साजिश रची, जिससे की पापा पूरी तरह से उनके काम को मना न कर सकें.
       'अरे साहब , दूसरी शादी कर लीजिये बच्चों को माँ मिल जाएगी और आप को साथीजिससे  कि आपके बच्चे आपके पास रह सकेंगे. मेरी बहन बहुत अच्छी लड़की है वह सब संभाल लेगी. आपके घर में फिर से खुशियाँ लौट आएँगी. '
            उन लोगों ने साहब को खूब सब्जबाग दिखाए और  मैं भी बहुत खुश थी कि नई मालकिन आ जाएँगी तो साहब खुश रहने लगेंगे और दीदी के बच्चे भी अपने पापा के पास आ जायेंगे. '
            फिर वे लोग रोज आने लगे और इसी विषय में बातें करते. एक दिन वह एक लड़की लेकर आ गए और साहब के आने का इन्तजार करने लगे. साहब के आने पर उस लड़की ने मेरे पास आकर पूछा कि साहब को कौन सा नाश्ता पसंद है और फिर मुझे हटा कर बनाया. बात मुझे कुछ बनती नजर आने लगी और फिर साहब ने कोर्ट में शादी कर ली.शादी की खबर उन लोगों ने यहाँ पर भी नहीं लगने दी. बाद में बताने के लिए कहा था.
             जैसा मैंने सोचा वैसा नहीं हुआ.शादी के बाद तो उन लोगों ने भी घर में डेरा जमाना शुरू कर दिया और साहब को ये बिल्कुल भी पसंद नहीं था.अधिक पास आने से उनको ये पता चल गया कि ये लोग अच्छे नहीं है लेकिन वे अब उनके रिश्तेदार बन चुके थे. कभी कभी उनका काम करवाना भी पड़ता था जिससे साहब पर लोगों ने उंगलियाँ उठना शुरू कर दिया .  साहब ने मेमसाहब से कहा कि उनके भाई यहाँ न रहा करें. इससे घर में क्लेश शुरू हो गया.  साहब न हों तो भाई आते और बहन को कुछ न कुछ कह जाते. फिर मालकिन खुश न रहती और साहब से बहस किया करती थीं. अक्सर साहब अकेले नाश्ता करके चले जाते, मैम साहब बाहर नहीं आती थीं. ये ढर्रा कई कई दिन तक चलता रहता.
                       आखिर साहब ने एक मकान खरीदकर उन लोगों को दे दिया जिसमें जाकर वे रहने लगे . इस घर में उनका आना जाना कम हो गया.
              फिर जब से बच्चा हुआ तो मैम साहब कम गुस्सा होती और भाई से भी लड़ जाती. साहब भी उनके काम में साथ न देते तो कहा सुनी होने लगी थी. उस दिन रात में मैम साहब के भाई किसी काम  को करवाने के लिए बहस कर रहे थे और साहब राजी न थे तो धमका कर चले गए . कई दिनों तक कोई नहीं आया गया और घर में भी शांति रही लेकिन मैं नहीं जानती थी कि शांति तो किसी बड़ी अशांति के लिए चल रही है और फिर ये हादसा  हो गया.'
         मीना मौसी से जो पता चला और जब हम लोगों ने सारे तार  जोड़े तो साफ हो गया कि नई माँ की शादी उनके भाइयों ने अपने ठेके के काम के लिए पापा को यूज करने के लिए करवाई थी. जब काम नहीं बना तो दूसरी तरह से उनका फायदा आजीवन उठाने का रास्ता खोज लिया. बहुत नहीं तो कुछ तो उनके रिश्तेदार होने का प्रेशर होता ही है और पापा भी इसमें फँस ही गए थे. जिससे निकल तो नहीं पाए हाँ हमें जरूर अनाथ कर दिया उन लोगों ने.

12 टिप्‍पणियां:

  1. जब आपको अंन्याय नहीं पसंद तो आपकी कहानी के एक पात्र के साथ अंन्याय क्यों हो और एक बेटे का कर्त्तव्य यही है कि अपने पिता को इंसाफ दिलवाए...पिता जिस तरह भी दूसरे के जाल में फंसे, इससे उनके पिता होने का अधिकार नहीं खत्म हो जाता या दोषियों की सजा खत्म नहीं हो जाती। बात इंसाफ की है...सजा तो अपराधी को मिलनी ही चाहिए...अगर हम किसी के प्रति अंन्याय होता देखते हैं तो हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम उस अंन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं तो फिर तो अपना दु:ख बयां करने वाला एक बेटा है, तो उसे तो अपने पिता को इंसाफ दिलवाना ही चाहिए और दोषियों को सजा...

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  2. कहानी कहानी होती है फिर भी वीणा जी की बात कुछ जच रही है.

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  3. वीणा जी के कथ्य से सहमत हूँ ....

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  4. वीना,

    तुम्हारा कहना बिल्कुल सही है, लेकिन क्या हमारे देश में न्याय पाना इतना आसन है वह भी उस वक्त जब की खोने वाले के पास कोई सबूत ही न हों. हमारा कानून सबूत चाहता है और इस आधार पर यहाँ पर निर्दोष भी दोषी बना कर जेल में सडा दिए जाते हैं. बस पैसे का खेल होता है. वह उस समय पराश्रित लड़का ही था तब वह क्या कर सकता था? ये कहानी निरी कहानी नहीं है यथार्थ से धरातल पर खड़ी एक इमारत है, अभी पूरी बनाने दीजिये फिर निर्णय होगा.

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  5. ये कहानी निरी कहानी नहीं है यथार्थ से धरातल पर खड़ी एक इमारत है, अभी पूरी बनाने दीजिये फिर निर्णय होगा.

    -बिल्कुल जी...

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  6. .
    यथार्थ को छूती हुई कहानी..

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  7. बहुत प्रभावशाली कहानी ....वीणा जी ने शायद पहली कड़ियाँ नहीं पढ़ीं हैं ..यह सब तो फ्लैशबैक में चल रहा है ....

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  8. कहानी कुछ और आगे बढ़ी है...राज़ खुल रहें हैं...अगली कड़ी का इंतज़ार

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कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है. कितना न्याय हुआ है ये आपको निर्णय करना है क्योंकि आपकी राय ही मुझे सही दिशा निर्देश ले सकती है.