शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

पति का फर्ज़ !

                              

पति का फर्ज़ !

                            सरोज अकेले रहते रहते बुरी तरह त्रस्त हो चुकी थी, सिर्फ बेटियां ही उसकी आशा का केंद्र बिंदु थीं। आधी रात को उसने दर्द से तड़पते हुए शरीर छोड़ दिया।  उसके पास बेटी ही थी। 

                          पत्नी के न रहने की खबर सुनकर सोचा कि पति होने का फर्ज पूरा नहीं किया चलो अंतिम समय दुनिया के दिखावे के लिए ही चला जाय,  जब तक देव आया तैयारी हो चुकी थी। 

                       "ऋतु इनका पूरा श्रृंगार करवा दो, सधवा औरतों की अर्थी ऐसे नहीं उठाई जाती है। सिन्दूर लाओ मैं इसकी माँग भर दूँ। "

                       "रहने दीजिये , अब चली गयीं और माँग भरना तो उन्होंने वर्षों पहले छोड़ दिया था , फिर ये दिखावा क्यों ?"

                     "मेरे रहते तो ऐसे नहीं ही जायेगी।"

                      "वह जा कहाँ रहीं हैं ?"

                      "अंत्येष्टि के लिए, वह तो मेरे होते कोई नहीं कर सकता।"

                       "वह अपनी देह दान कर चुकी हैं , अभी मेडिकल कॉलेज की टीम आती ही होगी। "

                        "बगैर मेरे पूछे ये निर्णय लिया कैसे गया ?"

                        "जैसे आपने उनके रहते दूसरा घर बसने का लिया था।"

पैट !

          

         ऋषि ऑफिस से घर आया तो अंदर से डॉगी की आवाज आ रही थी। उसे कुछ आश्चर्य हुआ कि ये कहाँ से आवाज आ रही है। उसने डोरबेल बजाई और  ऋता ने आकर दरवाजा खोला। एक छोटा सा डॉगी उसके पीछे छिपा खड़ा था।  बस वह कूँ कूँ कर रहा था। 

"ऋता , ये क्या है ?"

"ऋषि ये मेरी फ्रेंड निवी हैं न उसके यहाँ दो डॉगी हुए तो एक मुझे दे गयी।  प्यारा है न।"

"ओह! ऋता मुझसे पूछा तो होता। "

"अंदर आइये न फिर बात करें। "

                        ऋता अपनी मैटरनिटी लीव पर थी, घर में वह बच्चे के साथ दिन भर उसकी देखभाल करती और खुश रहती थी। आज उसने सोचा था कि ऋषि इसको देख कर खुश हो जाएगा। 

                       ऋषि फ्रेश होकर आया तब तक ऋता कॉफी बनाकर ले आयी थी। ऋषि ने कॉफ़ी लेकर पत्नी की और मुखातिब होकर कहा - "ऋता , प्लीज मेरे घर में डॉगी नहीं , बिलकुल भी नहीं। "

"अरे ऋषि क्या हुआ ? थोड़े से दिन में वह तुम्हें भी मोह लेगा। ये पैट न बड़े लॉयल होते हैं।"

"हाँ होते हैं और रहेंगे भी, लेकिन मैं नहीं चाहता कि एक और ऋषि अपनी माँ की गोद और प्यार के लिए एक डॉगी के पीछे खड़ा अपनी बारी का इन्तजार करें। "

"क्या कह रहे हो ?"

"मुझे क्या इतना ही समझा है तुमने ? ये बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे ?"

"कैसे आई ? ऋता इसको मैंने जिया है तभी तो मुझे घर में पैट रहने से सख्त नफ़रत है। "

"क्या ?"

"हाँ ऋता , मेरे जन्म से पहले मेरे घर में एक पैट था। मेरी मॉम और डैड का बेटा। फिर दो साल बाद मैं आया , जब तक नहीं समझ सकता था तब तक कुछ भी चला हो लेकिन फिर मॉम ऑफिस से आती तो फ्लॉपी उनसे लिपट जाता और जब तक उसका मन न भरता मॉम से अलग न होता और फिर मॉम मेरे पास आती। मैं उनका बेटा अपनी बारी का इन्तजार कर रहा होता। "

"क्या?" ऋता ने आश्चर्य से लगभग चीखते हुए पूछा। 

"हाँ, यही सच है। "

"लेकिन मेरे बेटे के साथ ऐसा न हो तब मैं इसको वापस कर देती हूँ। " 

"सच!"



गुरुवार, 26 जनवरी 2023

अपने हिस्से का दुःख!

                          रेड लाइट पर गाड़ियाँ खड़ी थीं  कि शमिता की नजर बगल वाली गाड़ी पर चली गई और फिर दोनों की नज़रें एक साथ टकराईं।  एक गाड़ी में कुछ बड़े बच्चे को लेकर महिला बैठी थी और दूसरी गाड़ी में एक बच्चे को लिए पुरुष।  

         तभी ग्रीनलाइट हुई और दोनों ने अपनी अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी । 2 घंटे बाद शमिता के पास एक फोन आया - "क्या हम आज शाम साथ में कॉफी पी सकते हैं?"

"क्यों अभी भी कुछ शेष है?" शमिता ने झुँझलाकर कहा।

"हाँ कुछ बातें करनी है , जो आज तुम्हें देखकर करने का मन कर आया।" आशीष ने संयत स्वर में कहा।

" कुछ खास बात?" शमिता ने जानना चाहा।

        आशीष का 5 साल बाद इस तरह बात करना उसकी कुछ समझ नहीं आया, पर पता नहीं क्यों उस बच्चे का उसके साथ होना एक प्रश्न चिह्न तो खड़ा करता ही है।  लेकिन क्या? यह वह ना समझ सकी और फिर वह अपने अतीत में ही  डूबती चली गई । विवेक के आने के करीब 1 साल बाद उसको पता चला कि विवेक स्पेशल चाइल्ड है। बहुत मेहनत से खोज कर उसने ऐसे बच्चों के सेंटर के बारे में पता किया और उसमें उसको भेजने की सोची। फिर वहाँ से डे केयर में रखना शुरू कर दिया। बैंक से निकलने के बाद विवेक को ले कर घर आ जाती।  जब सुधार नहीं हुआ और शमिता को आशीष से ज्यादा विवेक को समय देना पड़ता था। एक और साल गुजरा कि आशीष ने दो टूक कह दिया - "मैं 1 साल का समय दे सकता हूँ चाहे तुम छुट्टी लो या फिर कुछ भी करो उसको ठीक होना चाहिए नहीं तो मैं इस मैरिड लाइफ को और नहीं झेल पाऊँगा।" 

     और फिर वही हुआ उन्होंने सहमति से तलाक ले लिया। सोचते सोचते उसके आँसू गालों पर लुढक गये। बीच में विवेक ने उठकर उसके आँसू पोंछे और बोला - " माँ क्या हुआ"

" कुछ नहीं।" कह कर उसने उसको अपने से चिपका लिया। यादें पीछा कब छोड़ती है, यादों के भँवर में डूबती तैरती हुई वह कब सो गई पता ही नहीं चला।  

         वीकेंड पर समय निश्चित किया गया कि वे कॉफी हाउस में मिल सकते हैं । उसका बेटा 8 साल की हो चुका था और आशीष का बेटा 3 साल का था। 

         आशीष पहले से ही कॉफी हाउस में आकर बैठा था, शमिता जैसे ही आई आशीष ने उठ कर वैलकम किया।  

"कहिए क्या बात है?" शमिता ने बैठते हुए सवाल किया।

" क्या  न हाल पूछा न चाल और  तुमने तो सीधे से सवाल दाग दिया।" आशीष ने विनम्र होते हुए कहा।

"क्या हमारे बीच ऐसा कुछ शेष है?" शमिता के स्वर में तल्खी थी। 

"यार, मैं चाहता था कि हम एक दूसरे के जीवन में झाँके।" आशीष सीधे बात पर आ गया।

शमिता ने कहा - "वैसा ही जैसा पहले था कुछ बदलने जैसा है ही नहीं।" 

"लेकिन मेरे कहने का या इस सवाल का मतलब है कि तुम विवेक को कैसे पढ़ा लिखा रही हो? वह तुम्हारे पीछे कहाँ रहता है और तुम्हारे काम के दौरान कहाँ रहता है?" आशीष ने स्पष्ट कर दिया। 

 "मैं नहीं समझती इन बातों का कोई मतलब है, यह बताओ तुमने मुझको बुलाया क्यों?"

    "क्या हम फिर से एक साथ नहीं रह सकते हैं?" 

"क्या कहा? विवेक अभी वैसा ही है।"

" जानता हूँ, लेकिन जब से हम अलग हुए हैं, उसके बाद की कहानी बहुत अलग है। मैंने अपनी कलीग से शादी कर ली हमारी लाइफ सही चल रही थी, इस बीच दिविक का हमारे जीवन में आना हुआ लेकिन होने से 1 साल बाद पता चला कि वह भी 'स्पेशल चाइल्ड' है और उसके बाद उसने मेरा साथ छोड़ दिया । यह कहकर कि तुम्हारे अंदर ही कुछ तो कमी है, पहला बच्चा भी स्पेशल चाइल्ड हुआ और दूसरा भी, जबकि माँएँ अलग-अलग है। मैं ऐसे नहीं रह सकती और तब से दिविक को मेरे पास छोड़ कर चली गई।" कहकर आशीष ने गहरी साँस ली।

" मुझसे क्या चाहते हैं?" शमिता ने जानना चाहा।

"मैंने तुमसे यही कहा था और शायद उसी का दंड मुझको मिला है।. क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि हम लोग से एक साथ रहने लगें। उससे दोनों बच्चे एक साथ रहेंगे तो उन्हें अच्छी कंपनी मिलेगी तो अच्छी तरह डेवलपमेंट हो सकेगा।" 

"नो, नेवर तुमने सोच कैसे लिया कि मैं इस बात के लिए राजी हो जाऊँगी । हमें अपने अपने हिस्से का जीवन जीना है, फिर मैं तुम्हारा दुख और तुम मेरे दुख क्यों जिओगे?  तुमने यही कहा था ना।" शमिता ने अपना पर्स उठाया और तेजी से बाहर निकल गई।

शनिवार, 21 जनवरी 2023

ये दोस्त और दोस्ती !

 विजय बहुत दिनों के बाद अपने कस्बे वापस आया था क्योंकि अब उसके पिता या और घर वाले यहाँ पर नहीं रह गए थे। बंचपन की गलियाँ, खेल के मैदान और स्कूल भी नहीं रह गये थे।  

            बस एक दोस्त था और उसकी माँ थी , जिसने अपनी माँ के बचपन में ही चले जाने पर उसे दीपक की तरह ही प्यार दिया था। स्टेशन पर लेने के लिए विजय को दीपक ही आया था क्योंकि उसे विजय से मिले हुए बहुत वर्ष बीत गए थे।

       अब दोनों ही रिटायर्ड हो चुके हैं। विजय ने ट्रेन से उतरते ही दोनों हाथ फैला दिए गले लगाने के लिए और यह भूल गया कि दीपक का एक हाथ कटे हुए तो वर्षों बीत चुके हैं। एक पल में दीपक की कमीज की झूलती हुई आस्तीन ने उसको जमीन कर लेकर खड़ा कर दिया।

       बीस साल से पहले की बात है दीपक ट्रेन से गिरा और उसका हाथ कट गया। तब छोटी जगह में बहुत अधिक सुविधाएँ नहीं हुआ करती थीं और न ही हर आदमी में इतनी जागरूकता थी। वह कई महीने अस्पताल में पड़ा रहा और उसका इलाज चलता रहा घाव भर नहीं रहा था । फिर पता चला कि सेप्टिक हो गया है। तब जाकर डॉक्टर सचेत हुए लेकिन उस कस्बे में वह इंजेक्शन नहीं मिल रहा था बल्कि कहो पास के शहर में भी उपलब्ध नहीं था। उस समय फ़ोन अधिक नहीं होते थे। विजय दूर कहीं चीफ इंजीनियर था , खबर उसके पास ट्रंक कॉल बुक करके भेजी गयी शायद वह वहाँ से कुछ कर सके। बस वही एक आशा बची थी।

            विजय ने खबर सुनते ही अपने एक मित्र को बम्बई में फ़ोन करके उस इंजेक्शन को हवाई जहाज से भेजने को कहा। जैसे ही उसे इंजेक्शन मिला वह अपनी गाड़ी और एक ड्राइवर लेकर निकल पड़ा। सफर बहुत लम्बा था इसलिए एक ड्राइवर साथ लिया था। १४ घंटे की सफर के बाद विजय दीपक के पास पहुंचा था।

            "डॉक्टर इसको कुछ नहीं होना चाहिए। अगर आप कुछ न कर सकें तो अभी बताएं मैं इसको बाहर ले जाता हूँ।"

         "नहीं, इस इंजेक्शन से हम कंट्रोल कर लेंगे। अगर ये अभी भी न मिलता तो हम नहीं बचा पाते।"

        दीपक बेहोशी में जा चुका था। दो दिन बाद वह होश में आया तब खतरे से बाहर घोषित किया गया। होश में आने पर उसने विजय को देखा - 

"अरे तू कब आया।"

'दो दिन पहले, तू अब ठीक है न?"

"अरे मैं तो तुझे आज ही देख रहा हूँ।"

"तूने इससे पहले आँखें कब खोली थीं।"  विजय उसका हाथ पकड़ कर बैठ गया था।

         विजय को दीपक की पत्नी , बच्चे और माँ ने दिल से दुआएं दी कि अगर उसने इतना न किया होता तो शायद दीपक????????।

       एक सच घटना है और कटु सत्य कि मित्र वही है, जो अपनी मित्रता को धन और स्तर से न आँके।

बुधवार, 24 अगस्त 2022

सामंजस्य!

 बेटा बहू विदेश से आ रहे थे तो मीनू ने पूरी व्यवस्था कर ली कि यहाँ परेशानी हुई तो पास के होटल में कमरा बुक भी रहेगा, आराम से रहेंगे।

             रचित और रचना के आने से रौनक आ जाती है। मीनू को भी बहुत इंतज़ार रहता है। बच्चे आ गये तो रचना ने अपना सामान अपने पुराने कमरे में जमा लिया। जब सब लोग नाश्ते के लिए बैठे तो मीनू ने ही कहा -

       "तुम लोगों को यहाँ जरा सी भी तकलीफ हो तो मैंने दूसरी व्यवस्था भी कर रखी है, पास के होटल में कमरा बुक है, वहाँ जाकर सो सकते हो।"

    "क्यों ऐसा क्यों?" बहू-बेटा एक साथ बोले।

"वैसे ही कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।"

"माँ हम यहीं वर्षों रहे हैं, कुछ भी बदला नहीं है।"

"ठीक ठीक है।"

            "माँ दीदी को भी बुला लें, कुछ दिन सब साथ रह लेंगे।"

"बुला ले, खुश हो जायेगी।"     

     एक हफ्ते सब साथ रहेंगे और पुराने दिन याद करते हुए मस्ती करेंगे।

"एक ही हफ्ते क्यों? तुम्हें एक महीने रहना है न इंडिया में।" माँ कुछ तीखे स्वर में बोली।

         रचना ने चौंक कर माँ को देखा और फिर रचित को।

    "एक हफ्ते बाद रचना अपनी मम्मी के पास जायेगी और अपने भाई, बहनों के साथ एंजॉय करेगी।" रचित ने स्पष्ट किया

" और तू ?"

"मैं यहीं आपके साथ रहने वाला हूँ और चाचा बुआ से भी मिल लूगाँ।"

"ये कब आने वाली है?"

"दो वीक वहाँ रह लेगी और मै एक वीक वहाँ जाकर रहूँगा फिर इसको लेकर वापस आ जाऊँगा।"

"ये मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"

"सीधी सी बात है, रचना दो वीक आपके साथ और दो वीक अपनी मम्मी के साथ रहेगी। मैं एक वीक रचना के घर और तीन वीक आपके साथ रहूँगा।"

"ये क्या बात हुई? ये बराबर दोनों जगह रहेगी , अपने घर में रहना चाहिए, मैं कितनी बेसब्री से इंतजार कर रही थी तुम लोगों के आने की और साथ कितना मिल रहा है।" माँ की आवाज़ के तीखेपन से उनकी गुस्सा समझ आ रही थी।

"बराबर मिल रहा है, उसे भी अपनी माँ के साथ रहने का समय चाहिए। मै तो तीन वीक आपके साथ रहूँगा न।"

  "नहीं ये एक वीक रहकर वापस आ जायेगी, बुआ वगैरह भी आ जायेंगी तो रह लेंगी।" मम्मी ने सुझाव रखा।

     "सारे रिश्ते उसके भी है और वह भी सबके साथ रहना चाहेगी, इसलिये यही सही है, जो मैंने कहा है।"

       रचित उठकर चला गया।

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

इंतजार!

 रचित छुट्टियाँ खत्म करके अपनी सेना की सेवा में वापस जा रहा था और रीमा उसको दरवाजे तक छोड़ने आई तो --

    "तुम अब अंदर जाओ रीमा, मेरे पैरों में हमारा अंश बेड़ियाँ बन रहा है।"   रचित तिरछी नजर से देखता हुआ मन ही मन सोच रहा था।

      रीमा मन ही मन आश्वासन दे रही थी - "जाओ रचित मैं तुम्हारी आने वाली पीढ़ी को सहेज कर रखूँगी और आने पर तुम्हें सौंप दूँगी।"

       "तुम नहीं जानती रीमा, सीमा पर जाना मेरे वश में है, लेकिन वहाँ से वापस आना तुम्हारे भाग्य से होगा।" मन में एक द्वन्द्व लिए रचित भारी कदमों से आगे बढ़ रहा था।

      "तुम बेफिक्र होकर जाओ, मेरी साधना और तुम्हारा राष्ट्र समर्पण सदैव कवच बन कर रहेगा।"

         एक मूक संवाद करते दोनों आपस में दूर विपरीत दिशाओं में बढ़ गये।


रेखा श्रीवास्तव

सावन के झूले!

 सावन के झूले!


        बगीचे में पड़ा झूला भी सावन का इंतजार करता है कि कब उस पर झूलने बच्चे आयेंगे पार्क खिलखिलाहटों से गूँजने लगेगा। 

      हरियाली तीज को तो झूला खाली नहीं रहता है। 

       पर ये क्या सारा दिन गुजरा जा रहा है, बच्चियाँ न आईं झूलने। सारे पेड़ प्रश्नवाचक दृष्टि से एक दूसरे को देख रहे थे।

   "क्यों भाई सावन आधा निकल गया और झूले खाली पड़े है।" शीशम का पेड़ बोला।

    "क्यों भाई जमाने से बेखबर हो क्या?" नीम के पेड़ ने समझाया।

     झूला झूलने की ललक ललक ही रह जाती हैं, लेकिन माँ-बाप डर के मारे न भेजते है। समाज के वहशी दरिंदों का डर समाया है।"

    "बात तो सही है, पता नहीं क्यों भटक गया इंसान, न उम्र, न रिश्ते और न ही पास पड़ोस का लिहाज रह गया है।"

  "अब तो ऐसा ही होना है कि मेले, झूले सब सूने ही रहेंगे और वे जंगली कुत्ते ही मंडराया करेंगे।"

   "बस कर भाई अब सुना नहीं जाता है।"

   "देख और सुन सब रहे हैं, बस बच्चों का नैसर्गिक विकास छीन कर उन्हें नेट से बाँध दिया है।"

           अब इन झूलों के दिन गये, कहो कल म्यूजियम में दिखलाये जायें ।


-- रेखा श्रीवास्तव