बुधवार, 27 मई 2020

जमीर जागेगा !



       गाँव में प्रवासी मजदूरों को गाँव के बाहर स्कूल में रखा गया था। वही स्कूल जहाँ वे पढ़े थे । ग्राम प्रधान अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर रहा था ।
  .        उस स्कूल के हैड मास्टर को पता चला तो वे दूसरे गाँव के थे लेकिन किसी की चिंता बगैर वे स्कूल आ गये । अचानक लॉकडाउन से मिड डे मील का सामान जो भी था । उन्होने रसोई चालू करवाई और बड़े बड़े घड़े निकलवा कर पानी भरवा कर रखवाया । ताकि इस भीषण गर्मी में ठंडा पानी तो मिल सके।
          शुभचिन्तकों ने कहा - " मास्साब काहे जान जोखिम में डारत हौ।  ग्राम प्रधान को करन देब।,"

"ये मेरे ही पढ़ाए बच्चे हैं और आज इनके घर वाले दूर भाग रहे हैं , लेकिन मैं नहीं भाग सकता ।"

"अरे अपनी उमर देखो , लग गवा कुरोना तो कौनो पास न जइहै। "

"कोई बात नहीं , मैं तो उम्र जी चुका , इन्हें अभी जीना है , ये कल हैं तो कोई भूख प्यास से न तड़पे ।"

   "फिर तो हम का कम हैं , मीठे कुआँ का पानी लावे का जिम्मा हमार ।" सरजू बोला।

"खाने खातिर पत्तल हम देब, पीबे को सकोरा बैनी देब।" राजू ने जिम्मेदारी ली।

"मास्साब हैंड पंप चला कर सबन के हाथ हम धुलाब।" कीरत भी साथ हो लिया ।

    अब गाँव की एक टोली मास्टर साहब के पीछे खड़ी थी, एक सार्थक पहल के लिए ...।

रविवार, 24 मई 2020

दया।

दया

        बीमारी के चलते सबने संध्या को काम पर जाने से मना कर दिया था ।  वह बाजार से सामान भी लाकर नहीं रख पाई थी ।
     .      छत के खोखे में बने घोंसले में मनु  चूजों के लिए रोज ही रोटी लेकर जाता था ।
  .          उस दिन माँ ने कहा - " मनु अब आटा खत्म होने वाला है , तो चूजों के लिए चिड़िया दाना ले ही आयेगी , तुम अपनी रोटी खा लेना।"

"ठीक है माँ ।" मनु ने सिर हिला दिया।

       खाना खाते समय मनु ने आधी रोटी जेब में रख ली।  माँ  के सोने के बाद रोटी के छोटे छोटे टुकड़े करके ऊपर चला गया । मनु को देख चूजे चूँ चूँ करने लगे । उसने आधी रोटी उनको खिला दी।रोज यही करता रहा।

           आज सिर्फ एक रोटी मनु के लिए थी । उसके लिए कुछ नहीं था । उसे नींद नहीं आई , करवट ली तो मनु को वहां न देख वह ऊपर गयी तो देखा मनु रोटी के टुकड़े  पानी में भिगो कर चूजों को खिला रहा  था।
          वह चुपचाप नीचे आ गई मनु के मन में जीवों के लिए दया देख उसकी आंखों में आंसू भर आए। 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

लॉक डाउन !

लॉक डाउन !


"माँ इस लॉक डाउन ने तो लोगों के जीवन को पंगु बना दिया है । ये निर्णय पूर्णतया गलत है , जहाँ पर कोई कोरोना वाला नहीं है , वहाँ पर तो ये जनता पर अत्याचार हो गया।"  किशोर बोला ।
   "नहीं बेटा ऐसा नहीं है, अगर इटली,चीन और अमेरिका जैसे विकसित देशों में इसकी जरूरत समय पर समझी होती तो इस मानव  क्षति पर अंकुश लगाया जा सकता था।" सुधा ने उसको समझाया।

         "पर माँ देश की इकॉनमी कहाँ जायेगी? हम बहुत पीछे चले जायेंगे, पढाई लिखाई बंद , काम बंद , बाजार बंद , उत्पादन बंद , कल हम एक एक चीज को तरस जाएंगे ।" किशोर अपनी उम्र के अनुसार सोच रहा था ।

     " किशोर अगर  देशवासी सुरक्षित और ठीक रहेंगे तो हम फिर सँभल जायेंगे । ये प्रकृति का एक कहर ही है और वह क्रोधित होती है तो सारी सृष्टि को तहस नहस कर देती है। लातूर का भूकंप , बद्रीनाथ की त्रासदी , सुनामी जैसे कहर हम भूल कैसे सकते हैं ? "

  "लेकिन माँ कितनी बोरिंग लाइफ हो गई है । पढ़ा भी कितना जाय ? न कहीं बाहर जा सकते हैं और न कोई मनोरंजन। "

 " ये सोचो संक्रमण फैलने से कितना बच रहा है। नहीं तो हमारे देश का ग्राफ भी इटली की तरह बढ़ गया होता देश की सरकार एक एक कदम फूँक फूँक कर रख रही है।"

" ये तो है माँ ।" किशोर समझने लगा था ।

    "और सबसे बड़ी बात उस वर्ग को अपने हाथ से काम करना आ गया , जो सिर्फ व्यक्तिगत कार्यों के लिए ही हाथ चलाता था।" माँ ने तिरछी निगाह से पापा की ओर देखा। किशोर मुस्कराने लगा ।

         "लेकिन लोग तब भी फॉलो नहीं कर रहे हैं और दूरी भी नहीं बना कर रख रहे हैं । विदेश से आने वाले भी क्वारंटाइन का पालन नहीं कर रहे हैं।" अब पापा की बारी थी ।

        "लॉक डाउन इसी लिए लागू किया गया है कि कोरोना के फैलने की आशंका कम हो । जिस त्रासदी को विश्व के अन्य देश झेल रहे है , हम समय से पहले सतर्क हो सकें । "

           "आज हमारे देश में अगर अन्य देशों से बीमारी का औसत कम है तो सिर्फ इसी लॉक डाउन के कारण । वायु प्रदूषण कितना कम हो गया है ? अंधाधुंध गाड़ियों की रफ़्तार से बढ़ता ध्वनि प्रदूषण भी अब नहीं रहा है। हाँ कुछ असुविधाओं का सामना कर रहे हैं, लेकिन जीवन की कीमत के लिए वह कुछ भी नहीं है ।"

  "हम कब मना कर रहे हैं कि लॉक डाउन गलत है बल्कि एक बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय है ।" किशोर और पापा एक साथ बोल पड़े । अब सुधा के मुस्कराने की बारी थी।