पूर्व कथा :
सावित्री अपने मइके या ससुराल दोनों में दुलारी थी। घर में लक्ष्मी मानी जाती। उसका पति समझदार और जिम्मेदार युवक था। छोटे भाई की संगती के बिगड़ने से चिंतित रहता और उसके इसा बात के लिए रोकने पर उसके साथ कुछ ऐसा बुरा हुआ की कई जिन्दगी इसमें पिसने ला। शशिधर का दोस्त गिरीश ने अंतिम समय उसे वचन दिया की वह उसकी पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय नहीं होने देगा और इसके लिए उसने स्कूल में पूरी भूमिका बना दी।..........
गतांक से आगे :
गिरीश को अपना शशिधर को दिया गया वचन पूरी तरह याद था और वह उसके लिए प्रतिबद्ध था। स्कूल की तरफ से सावित्री को बुलाया गया ताकि शशिधर के पैसे और उसकी पेंशन के बारे में काम शुरू किया जा सके। सावित्री को लेकर उसका देवर आया और साथ में स्टाम्प पेपर लेकर गया था कि सावित्री से सबके सामने लिखवा लेगा कि आगे सभी काम के लिए उसको वह 'पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी ' देती है।
सावित्री अपने मइके या ससुराल दोनों में दुलारी थी। घर में लक्ष्मी मानी जाती। उसका पति समझदार और जिम्मेदार युवक था। छोटे भाई की संगती के बिगड़ने से चिंतित रहता और उसके इसा बात के लिए रोकने पर उसके साथ कुछ ऐसा बुरा हुआ की कई जिन्दगी इसमें पिसने ला। शशिधर का दोस्त गिरीश ने अंतिम समय उसे वचन दिया की वह उसकी पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय नहीं होने देगा और इसके लिए उसने स्कूल में पूरी भूमिका बना दी।..........
गतांक से आगे :
गिरीश को अपना शशिधर को दिया गया वचन पूरी तरह याद था और वह उसके लिए प्रतिबद्ध था। स्कूल की तरफ से सावित्री को बुलाया गया ताकि शशिधर के पैसे और उसकी पेंशन के बारे में काम शुरू किया जा सके। सावित्री को लेकर उसका देवर आया और साथ में स्टाम्प पेपर लेकर गया था कि सावित्री से सबके सामने लिखवा लेगा कि आगे सभी काम के लिए उसको वह 'पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी ' देती है।
वह पढ़ी लिखी कम थी लेकिन चतुर तो थी ही। उसने इस विषय में स्कूल के क्लर्क से कह कर गिरीश को बुलवाने के लिए कहा। गिरीश ने ये निर्देश पहले ही दे रखा था कि जब भी शशिधर के काम के लिए कोई आये उसको बुला लिया जाए। सावित्री के कहने पर उसके देवर ने उसको डाँट दिया। शशिधर के स्वभाव से सभी परिचित थे और गिरीश के निर्देश के अनुसार क्लर्क ने गिरीश को बुला लिया। जब गिरीश ने वह पेपर देखा तो सावित्री से उस पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया और यही से शुरू हो गयी घर में महाभारत। देवर ने उसको कहीं भी ले जाने से मना कर दिया। ससुर उसको कहाँ ले जाय? साथ ही अपनी बहू को किसी और के साथ कैसे भेज सकते थे?
स्कूल से कागजों पर हस्ताक्षर करने के लिए फिर से उसको बुलवाया गया लेकिन सावित्री नहीं पहुंची तो गिरीश का माथा ठनका कि जरूर घर में कोई साजिश चल रही होगी। वह दूसरे गाँव का था और शशिधर के साथ सिर्फ पढ़ाता ही तो था, उसको कोई अधिकार नहीं बनता था कि वह किसी के परिवार के बारे में बीच में बोले लेकिन शशिधर को दिया अपना वचन जरूर उसको बार बार बाध्य कर रहा था कि वह उससे बंधा हुआ है। उसने सारे कागज स्कूल से लेकर सावित्री के घर जाकर उस पर हस्ताक्षर करवा लिए और लाकर स्कूल में जमा भी कर दिया ताकि आगे की कार्यवाही शुरू हो सके।
गिरीश को समझ आने लगा कि सावित्री को कुछ आगे पढ़ना लिखना चाहिए , नहीं तो आगे बच्चों की पढाई और रुपये पैसे के मामले में बहुत कुछ खोना पड़ सकता है। उसके चालाक देवर उसका पैसा हड़प सकते हैं और इससे तो बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है। लेकिन सावित्री कैसे कर सकती है? उसके देवर के विवाह को दो साल हुए हैं, उसका गौना भी अभी नहीं हुआ है, घर में क्या कैसे होगा? ये सारी बाते गिरीश के दिमाग में चलती रहती थी लेकिन फिर भी वह ये नहीं समझ पा रहा था कि वह क्यों इतना परेशां रहता है? उस परिवार और उसके बच्चों से लगता था कि उसका कोई रिश्ता जरूर रहा होगा नहीं तो शशिधर के बच्चों की उसको इतनी फिक्र क्यों लगी रहती है?
गिरीश उसके घर जाने में संकोच करता था क्योंकि न तो वह सावित्री से मिला जुला था और न ही बच्चों को अधिक जानता था। लेकिन शशिधर की बातों से ही वह सब कुछ था और लगता था कि वह अच्छी तरह से सबसे परिचित है। एक दिन वह हिम्मत करके शशिधर के घर गया और उसके पिता से मिलकर उसने उन्हें सलाह दी कि शशि के बच्चों को पढाई के लिए कस्बे में रहना पड़ेगा क्योंकि गाँव में ऐसे कोई स्कूल भी नहीं है और इसके लिए सावित्री को भी वहाँ रहना पड़ेगा। ससुर तो राजी हो गए लेकिन देवर ने सिरे से मना कर दिया -- "बच्चे यहीं गाँव में पढेंगे , ये वहां जाकर क्या करेगी ? पढ़ी लिखी है नहीं - कौन इसके साथ रहेगा?"
गिरीश को समझ आने लगा कि सावित्री को कुछ आगे पढ़ना लिखना चाहिए , नहीं तो आगे बच्चों की पढाई और रुपये पैसे के मामले में बहुत कुछ खोना पड़ सकता है। उसके चालाक देवर उसका पैसा हड़प सकते हैं और इससे तो बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो सकता है। लेकिन सावित्री कैसे कर सकती है? उसके देवर के विवाह को दो साल हुए हैं, उसका गौना भी अभी नहीं हुआ है, घर में क्या कैसे होगा? ये सारी बाते गिरीश के दिमाग में चलती रहती थी लेकिन फिर भी वह ये नहीं समझ पा रहा था कि वह क्यों इतना परेशां रहता है? उस परिवार और उसके बच्चों से लगता था कि उसका कोई रिश्ता जरूर रहा होगा नहीं तो शशिधर के बच्चों की उसको इतनी फिक्र क्यों लगी रहती है?
गिरीश उसके घर जाने में संकोच करता था क्योंकि न तो वह सावित्री से मिला जुला था और न ही बच्चों को अधिक जानता था। लेकिन शशिधर की बातों से ही वह सब कुछ था और लगता था कि वह अच्छी तरह से सबसे परिचित है। एक दिन वह हिम्मत करके शशिधर के घर गया और उसके पिता से मिलकर उसने उन्हें सलाह दी कि शशि के बच्चों को पढाई के लिए कस्बे में रहना पड़ेगा क्योंकि गाँव में ऐसे कोई स्कूल भी नहीं है और इसके लिए सावित्री को भी वहाँ रहना पड़ेगा। ससुर तो राजी हो गए लेकिन देवर ने सिरे से मना कर दिया -- "बच्चे यहीं गाँव में पढेंगे , ये वहां जाकर क्या करेगी ? पढ़ी लिखी है नहीं - कौन इसके साथ रहेगा?"
"नहीं शशि के बच्चे कस्बे में ही पढेंगे चाहे फिर मैं उन्हें अपने पास ही रखकर क्यों न पढ़ाऊं?" गिरीश में दृढ स्वर में कहा।
"हमारे घर के बच्चे तेरे साथ क्यों रहेंगे? क्या हम सब घर वाले मर गए हैं ? हमें भी उनकी चिंता है। तू बड़ा शुभचिंतक न बन।" जैसे शशिधर ने बताया था, ठीक उसी स्वर में वह बात करने लगा था।
"नहीं तुम तो बिल्कुल नहीं, तुम अपनी चिंता ही कर लो वही बहुत है।" गिरीश को गुस्सा आ गया था।
"किस हक से रखोगे बच्चों को? कल को कहोगे कि उसकी घरवाली को भी वही रख लोगे। तुम्हारा तो ब्याह हुआ नहीं है, सो बनी रहेगी तुम्हारे लिए।" देवर अपनी हद पार करने लगा था।
गिरीश खून के घूँट पीकर रह गया और वापस आ गया। कई दिन तक उसने कोई खबर नहीं ली, उसने सोचा कि दूसरे के घर के मामले में बोलने का परिणाम यही होना था। अब जो शशि के पत्नी और बच्चों के भाग्य में बदा होगा वह तो होकर ही रहेगा। वह बेकार अपने सिर झूठी बदनामी का कलंक क्यों ले?
गिरीश कई दिन तक अपने कामों में इतना व्यस्त रहा कि उसको कुछ भी सोचने की फुरसत नहीं मिली और कई दिनों तक स्कूल ही नहीं गया। वह जब 4 दिन के बाद स्कूल से गाँव के लिए जा रहा था तो शशिधर का बड़ा बेटा उसे रास्ते में खड़ा मिला। गिरीश को देख कर वह रोने लगा - "चाचा आप अपने साथ ले चलिए। "
गिरीश कई दिन तक अपने कामों में इतना व्यस्त रहा कि उसको कुछ भी सोचने की फुरसत नहीं मिली और कई दिनों तक स्कूल ही नहीं गया। वह जब 4 दिन के बाद स्कूल से गाँव के लिए जा रहा था तो शशिधर का बड़ा बेटा उसे रास्ते में खड़ा मिला। गिरीश को देख कर वह रोने लगा - "चाचा आप अपने साथ ले चलिए। "
"लेकिन क्यों? हुआ क्या है?"
"हम यहाँ नहीं रहेंगे छोटे चाचा हमें बहुत मारते और अम्मा को गाली देते हैं।"
"ठीक है हम कल आयेंगे।"
गिरीश जानबूझ कर वहाँ नहीं गया क्योंकि वह हालत को अच्छे से समझना चाहता था। तभी सावित्री के नाम का चेक आ गया और उस चेक को लेकर जाने का उसको बहाना मिल गया क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसके जाने पर सवाल उठे और कोई कहे कि उसको यहाँ आने की जरूरत क्या है? चेक उसने सावित्री के नाम ही बनवाया था। उसे इस बात का पूरा ज्ञान था कि सावित्री का कोई भी बैंक खाता नहीं है और शशि के साथ उसका नाम भी नहीं पड़ा है। उसने चेक सावित्री को देने के लिए उसके ससुर से कहा और बताया कि इसको जमा करने के लिए सावित्री का बैंक में खाता खुलवाना पड़ेगा .उसके ससुर या देवर सावित्री का कोई भी खाता नहीं खुलवाना चाहते थे क्योंकि पैसा अगर उसके नाम पर जमा होगा तो इसके लिए हर बार उसकी जरूरत पड़ेगी और कितना पैसा निकला गया इस बात से वह वाकिफ रहेगी। वह चेक देकर चला आया। उसने उसके घर वालों की गतिविधि जानने की कोशिश नहीं की और सोचा कि अगर जरूरत होती तो सावित्री जरूर उसको बुलावा लेगी । फिर एक दिन सावित्री ने बेटे को भेज कर उसको आने के लिए कहलाया।
उसके घर पहुँचने पर घर में बवाल मच गया कि उसको क्यों और किससे बुलवाया गया?
"हमें बैंक में खाता खुलवाना है, पैसे कैसे मिलेंगे?' सावित्री ने पहली बार आकर अपना मुंह खोला था।
"क्या लगता है ये तेरा? जो बैंक में खाता खुलवाएगा।"
"पैसा कैसे मिलेगा?"
"यही पोस्ट ऑफिस में खुलवा देंगे।"
"नहीं कसबे में कल बच्चे बढ़ेंगे तो यहाँ से पैसा नहीं निकालने आयेंगे। वहां पर होगा तो वही से वही ले लेंगे।" गिरीश को बीच में बोलना पड़ा।
"तू कौन है बोलने वाला?" देवर के तेवर तीखे दिख रहे थे।
"मैं शशि का दोस्त हूँ और मैंने उसको अंतिम समय वचन दिया था कि उसके बच्चों के भविष्य के लिए जो बन पड़ेगा करूँगा और उन्हें पढाऊँगा। उनका भविष्य बरबाद नहीं होने दूँगा।"
"इसका मतलब है कि तुम इन बच्चों को कसबे ले जाओगे।"
"हाँ, अगर ये करना पड़ा तो ये भी करूंगा , लेकिन इन्हें तुम्हारी संगत में बर्बाद नहीं होने दूंगा।"
"अगर इन्हें मैं न भेजूं तो?"
"ये जायेंगे और मैं ले जाऊँगा।"
"इनका खर्च कौन उठाएगा?"
"इनके बाप का इतना पैसा मिलेगा कि ये किसी के मुंहताज नहीं होंगे . मेरी भी नहीं और तुम्हारे भी नहीं।"
"उस पैसे पर माय बाबू का अधिकार होगा - इनका नहीं।' देवर कुछ अधिक ही बोल रहाथा .
'सारे क़ानून तुम्हारी जेब में नहीं पड़े हैं, जैसे चाहोगे वैसे ही होगा।"
"हम देख लेंगे तुम्हें , क्या कर लोगे तुम?"
"ये धमकी तुम किसी और को देना , नहीं तो अन्दर करवा दूंगा। उस दिन शशि को मारने में किसका हाथ था? ये तुम्हारे साथियों को मैंने पहचान लिया है।" गिरीश इस बात को बोलना नहीं चाह रहा था, लेकिन उसके देवर की जो बात करने अंदाज और धमकाने वाली बात सुनी तो अपने को काबू नहीं कर पाया ।
(क्रमशः)