बुधवार, 17 नवंबर 2010

कौन कहाँ से कहाँ! (१३)

      पूर्वकथा :                आशु एक डी एम का बेटा जो अपनी माँ की मौत के बाद नाना नानी के घर पला . पिता और सौतेली माँ के एक्सीडेंट में निधन के बाद उसने खुद पापा की तरह आई ए एस बनने का संकल्प लिया   पहली पोस्टिंग वाले बंगले में मिला उसे अपना सौतेला भाई,  ट्रान्सफर होने के बाद वह वहाँ आ पहुंचा जहाँ के पास के गाँव में उसकी सौतेली बहन की शादी हुई थी. ये शादी उसके ससुराल वालों ने पापा की संपत्ति के लालच में आकर की थी और फिर पापा की संपत्ति पर कब्जे के लिए उसके वैरिफिकेशन का दायित्व उस पर आया. उसने शामली के पति से उसको लाने के लिए कहा लेकिन वह आनाकानी करता रहा . आशु ने नितिन को शामली के वैरिफिकेशन के लिए उन्नाव से बुलवा लिया था. उसने शामली से सारी स्थिति जान ली. भाई को देखकर शामली बहुत खुश हुई. आशु ने बातों हइ बातों में ये जान लिया कि क्या शामली वह घर छोड़ सकती है................
गतांक से आगे...                   

                      शामली और संदीप के जाने के बाद नितिन ने भी जाना चाहा तो मैंने उसको अपने पास रुकने के लिए कहा. मुझे उससे कुछ बात करनी थी क्योंकि अब तो बाजी जब ईश्वर ने मेरे हाथ में दे ही दी है तो फिर उसके निर्णय के साथ मैं अन्याय क्यों होने दूं? ये बच्चे अभी जिन्दगी के अर्थ को नहीं समझते हैं और दोनों उस नाव की तरह बहे जा रहे  हैं जिसके कोई मांझी है ही नहीं. जिसके लिए जीना इस लिए जरूरी है क्योंकि ये जिन्दगी है , बाकी उन लोगों ने जीवन जिया कहाँ है? इस जीवन का भविष्य भी क्या है? इसका भी उनको नहीं पता है.
"नितिन, मुझे इस बारे में कुछ सोचना पड़ेगा, शामली की हालत तुमने देख ली है."
"पर क्या हो सकता है? मैं तो कुछ भी नहीं कर सकता हूँ." नितिन जो उम्र से छोटा तो था ही और उसका बचपन से इस उम्र तक इस तरह से बीता कि  शेष दुनियाँ क्या है इसके बारे में उसको कुछ भी पता नहीं है. सिर्फ सिर पर एक छत और खाने के लिए रोटी मुहैय्या हो ऐसा ही वह कर पा रहा है. अपने हक़ और शेष चीजो से वह वाकिफ ही कहाँ है?
"हो सकता है, तुम्हारे पापा का पैसा और उनके बदले कोई भी नौकरी तुमको मिल सकती हो ."
"अब इतने दिन बाद कौन देगा मुझे? फिर इसके बारे में कुछ भी नहीं जानता हूँ? कहाँ जाना होगा? कैसे क्या होता है? " उसने अपनी मजबूरी बता दी थी.
"ये मुझे पता है, लेकिन जब देख रहा हूँ कि तुम्हारे और तुम्हारी बहन के अधिकारों को कोई और छीनने के लिए तैयार है तो मैं जो भी कर सकता हूँ करूंगा." मैं उसको आश्वस्त कर देना चाहता था कि वह अकेला नहीं है.
"इसमें मुझे क्या करना है?" उसको लगा कि मेरा हाथ उसके भविष्य के प्रति कुछ कर सकता है.
"तुम्हें अपने हाई स्कूल के सर्टिफिकेट को लाना होगा."
"वह तो मैंने लिया ही नहीं, उसी स्कूल में पड़ा होगा."
"मार्कशीट तो होगी, वह ही लगा दो."
"हाँ , वह जरूर है. वह तो उन्नाव में है."
"ठीक है, तुम अगले सन्डे उसको लाकर मुझे दे दो , मैं कुछ करना चाहता हूँ."
"इससे दीदी के ऊपर कुछ तो नहीं होगा? वे लोग पैसे के लिए ही तो दीदी को घर में रखे हुए हैं." उसे इससे पहले अपनी बहन का ख्याल आया कि उसका क्या होगा?
"देखो, दीदी वहीं रहेगी, अगर पैसा उन लोगों ने ले लिया तब भी दीदी कि हालत में कोई सुधार नहीं होने वाला है. संदीप बहुत चालाक इंसान है."
"फिर?"
"फिर कुछ नहीं, आगे देखते हैं कि क्या हो सकता है? शामली को वहाँ से निकाला भी जा सकता है."
"फिर कहाँ जाएगी वह? मैं तो अपना ही गुजारा   नहीं कर पाता हूँ."
"इसकी चिंता मत करो, जब मैं शामली को वहाँ से निकालूँगा तो उसके लिए शेष चिंताएं भी कर लूँगा. पापा का पैसा उसके नाम करवा दूंगा तब तुम भाई बहन किसी के मुहताज नहीं रहोगे." मैंने अपने सोचे हुए का संक्षिप्त उसको बता दिया.
"और उसकी ससुराल वाले?"
"तुम उसको ससुराल कहते हो, पति शहर में दूसरी पत्नी के साथ रहता है और वह घर में नौकरानी बनी  हुई है और वह भी पैसे की मालिक है इसलिए रखा हुआ है उसको."
                    अच्छा अब तुम गेस्ट रूम में जाकर सो जाओ. कल सुबह निकल जाना.
             नितिन को सोने के लिए भेज दिया. मैंने भी सोने के लिए चला किन्तु आँखों में नीद कोसों दूर थी. ये नितिन और शामली दोनों ही मेरे सामने दया के पात्र  बने हुए थे. वे बिना माँ बाप के बच्चे जिनके सिर पर कोई भी हाथ नहीं है. बस जिए जा रहे हैं क्योंकि उनको ईश्वर ने इस हालत में जीने के लिए छोड़ दिया है. उनके अधिकारों पर कितने लोग ऐश कर रहे हैं. उनका अपने पापा का घर कोई और कब्ज़ा करके बैठा है और उनके पैसे पर किसी और की गिद्ध निगाह लगी हुई है. उनके भाग्य में तो कुछ भी नहीं है. फिर मुझे लगा कि इनका हक़ मैं दिलवा सकता हूँ और जो कष्ट उनके भाग्य में लिखा है उसको कम किया जा सकता है. अगर जरूरत पड़ी तो कभी उनको अपने होने का आश्वासन भी देना पड़ा तो दूंगा. मगर वह वक्त आने पर.
                    मैंने सोचा कि  दी से इस बारे में अब चर्चा की जा सकती है. और मैं दी को कॉल करने लगा.
"दी, मैंने नितिन और शामली के बारे में एक फैसला किया है."
"कैसा फैसला?"
"ये कि अब पापा के पैसों और संपत्ति के लिए शामली के पति ने अपना हक़ पेश किया है और वह भी नितिन को इग्नोर करके."
"फिर अब क्या करना है?"
"अब करना क्या है? इस पर एनओसी देने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है. बल्कि इस पर नितिन , मैं और आप सभी के ऑब्जेक्शन मैं भेजने वाला हूँ. "
"मेरा और अपना क्यों?"
"इस लिए कि हम भी इसके हक़दार हैं."
"क्या बात कर रहे हो आशु?"
"मैं ठीक कह रहा हूँ, मुझे और आपको कुछ चाहिए नहीं लेकिन शामली के पति को सबक देना जरूरी है."
"तुम शामली से मिले?"
"हाँ मिला और उसके हालात  भी देखे, उसको घर में नौकरानी बना कर रखा है और खुद पहली पत्नी के साथ शहर में रहता है."
"क्या?"
"हाँ , यही उसने सिर्फ संपत्ति के लालच में शादी की और उसको गाँव में अपने माँ बाप कि सेवा के लिए नौकरानी बना दिया."
"ये कैसे हो सकता है?"
"ऐसा ही है."
"फिर कैसे क्या करोगे?"
"आप एक पेपर पर साइन करके मुझे भेजिए मैं आपका और अपना ओब्जेक्शन एक साथ लगा दूंगा ."
"इससे क्या फायदा?"
"ये कि पापा के चार वारिस हैं और हम शामली और नितिन के हक़ में नो ऑब्जेक्शन दाखिल करेंगे."
"शामली के घर वाले ?"
"उनसे हमें और तरीके से निपटाना होगा. लेकिन ये काम अब मेरा नहीं बल्कि सरकारी कार्यवाही हो जाएगी कि बाकी वारिसों के होते हुए उन्होंने अकेले वारिस होने का दावा किया ये एक अपराध है."
"तब तो शामली पर मुसीबात आ सकती है."
"वो मैं देख लूँगा , मैंने सब सोच रखा है."
"अच्छा , अब आशु इतना बड़ा हो गया."
"जी, मैं ऐसे ही नहीं अपना काम संभाल रहा हूँ."
"अब समझी कि अब मेरा भाई सयाना हो गया है."
"दी, आप उतना काम करके मुझे भेजिए  क्योंकि मुझे इन कागजों के साथ ही सारे ऑब्जेक्शन भी लगाने हैं."
"ठीक है, मैं भेजती हूँ."
                  दी को बता कर दिल कुछ हल्का भी हुआ और यह भी तय कर लिया कि आगे क्या करना है? बगैर सामने आये हुए कुछ भी नहीं होगा और इन सब चीजों को सिर्फ ओफ्फिसिअल स्तर पर ही रखना है और नितिन या शामली को कुछ भी नहीं बताने का इरादा था. फिर पता नहीं कब सोचते सोचते सो गया.

सोमवार, 1 नवंबर 2010

कौन कहाँ से कहाँ ? (१२)

           
पिछला  कथा सारांश    --
                                           आशु एक डी एम का बेटा जो अपनी माँ की मौत के बाद नाना नानी के घर पला और फिर पिता की दूसरी शादी ने उससे उसके पिता को भी दूर कर दिया. पिता और सौतेली माँ के एक्सीडेंट में निधन के बाद उसने खुद पापा की तरह आई ए एस बनने का संकल्प लिया   और फिर उसकी पहली पोस्टिंग उसी जगह हुई जहाँ वह पैदा हुआ था. उसी बंगले में मिला उसे अपना सौतेला भाई,  ट्रान्सफर होने के बाद वह वहाँ आ पहुंचा जहाँ के पास के गाँव में उसकी सौतेली बहन की शादी हुई थी. ये शादी उसके ससुराल वालों ने पापा की संपत्ति के लालच में आकर की थी और फिर पापा की संपत्ति पर कब्जे के लिए उसके वैरिफिकेशन का दायित्व उस पर आया. उसने शामली के पति से उसको लाने के लिए कहा लेकिन वह आनाकानी करता रहा , जब आशु उस पर बिगड़ गया तो वह लाने के लिए मजबूर हो गया. आशु से उसके सामने ही पूछताछ करने के लिए कहने लगा. आशु ने नितिन को शामली के वैरिफिकेशन के लिए उन्नाव से बुलवा लिया था. और नहीं चाहता था की नितिन को उसका पति देखे . इसलिए उसने उसके पति को बाहर जाने को कहा और मजबूर होने पर वह वहाँ से गया. ................
गतांक से आगे...
                          .संदीप के बाहर जाते ही शा.मली भी उठ खड़ी हुई. उसके चेहरे पर भय की रेखाएं दिखाई दे रहीं थी. मैंने उससे  बहुत प्यार से बोला , "घबराओ मत , मुझे अपने भाई की तरह समझो. तुमको मालूम है कि तुम्हें यहाँ क्यों लाया गया है?"
"हाँ बताया था कि आप कह देंगे तो पापा की जायदाद हमें मिल जाएगी."
"और कुछ कहा गया ." मैं पहले खुद ही जानना चाहता था कि ये लड़की क्या सोचती है? कहीं मेरा विचार कि इसको सिर्फ संपत्ति के लिए ही लाया गया है या फिर इससे शादी की गयी है गलत तो नहीं है.
"हाँ कि मैं ज्यादा न बोलूं - जो मुझसे पूछें उसी का जबाव दूं जो उन्होंने मुझे बताया है."
"अच्छा क्या क्या बताया गया है तुमको?"
"मैं वो नहीं बताऊंगी नहीं तो ....."कहते कहते वह चुप हो गयी. मुझे लगा कि इसको बहुत दबा कर रखा गया है . यहाँ तक कि क्या बोलना है इसके लिए भी जबाव इसको बताये गए हैं.
"तुम अपने घर से कभी कहीं घूमने  जाती हो." मैं उसको विश्वास में लेने के लिए कुछ व्यक्तिगत प्रश्न पूछने लगा ताकि उसको ये न लगे कि मैं कुछ गलत कर सकता हूँ.
"नहीं, जब से शादी हुई है , पहली बार घर से बाहर निकली हूँ." कह कर वह चुप हो गयी.
"क्यों अपने घर नहीं जाती हो?"
"मेरे कोई नहीं है, नाना हैं उनने शादी करके दुबारा सुध नहीं ली." उसके स्वर में बेचारगी और अफसोस दोनों ही झलक रहा था.
"नितिन" मैंने नितिन को आवाज दी तो वह कुछ चौंकी , मैंने ये सोचा कि जब तक इसका कोई बहुत अपना नहीं होगा ये सही बात नहीं बताएगी और मेरे निर्णय इसके ऊपर निर्भर करते हैं. वह भयभीत तो थी ही क्योंकि उसका अब इस दुनियाँ में कोई कुशल जानने वाला नहीं है . नाना के लिए कहे शब्द उसकी बेबसी को उजागर कर रहे थे. लेकिन वह हकीकत से बिल्कुल ही अनजान थी. नितिन को भी उसके घर वालों ने मिलने नहीं दिया ये भी तो उसको पता नहीं था. पता नहीं कितने वर्षों के बाद वह नितिन को देखेगी.
          मेरी आवाज सुनकर नितिन बाहर आ गया और वह एकदम से उठकर खड़ी हो गयी. उसकी आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गयीं. नितिन उसके करीब आकर खड़ा हो गया. उसके मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे लेकिन उसने नितिन को अपने हाथ से पकड़ कर देखा और फिर दोनों हाथों से उसको पकड़ कर झकझोर दिया. "कहाँ चला गया था तू, इतने दिन ये भी नहीं सोचा कि मैं जिन्दा हूँ कि मर गयी." कह कर वह फूट फूट कर रोने लगी. नितिन ने उसको अपने सीने से लगा लिया और उसकी आँखों से भी आंसूं बहने लगे . नितिन उसके सिर पर हाथ फिरा रहा था, मानो वह छोटा सा लड़का बहुत सयाना हो गया हो . ये मार्मिक दृश्य मुझसे नहीं देखा गया और फिर मैं भी उस भावुकता ने अपने को बहता हुआ उन लोगो के सामने तो नहीं दिखा सकता था और मैं अन्दर चला गया.  उन दोनों के मिलन को देख कर लगा कि मेरे सिर से कोई भारी बोझ उतर गया है. मुझे आँखों के सामने पापा कि तस्वीर मुस्कराती हुई नजर आई मानो कह रही हो - 'बेटा तू अपने फर्ज को पूरा करना.' सोचा तो यही है कि अब सारी जिम्मेदारी भगवान को मेरे हाथ से ही पूरी करवानी है तो इनके लिए जो बन सकेगा करूगा और इनके हक़ के लिए मैं खुद लडूंगा. खुद को संयत करने के बाद मैं बाहर आ गया तो दोनों बैठे बात कर रहे थे. मुझे देख कर नितिन उठ कर खड़ा हो गया और बोला - "दीदी , ये मेरे साहब हैं, पहले उन्नाव में थे और अब यहाँ आ गए हैं. इन्हीं ने मुझे बुलवाया था. "
"नितिन तुम बैठो , मुझे शामली से कुछ बातें पूछनी है."
"जी पूछिए." शामली खुद ही बोल पड़ी.
"तुम रहती कहाँ हो?"
"जी गाँव में , अर्जुनपुरगढ़ा  नाम है. "
"तुम्हारा पति क्या करता है?"
"मुझे नहीं मालूम, बाहर ही रहते हैं."
"गाँव में नहीं ."
"नहीं, "
"ये तो बताता ही होगा कि उसका क्या काम है?"
"मुझे कुछ नहीं मालूम, गाँव में रहते ही कम है. जब पापा के जायदाद के लिए कुछ काम होता है तभी बात भी करते हैं नहीं तो कोई मतलब नहीं ."
"घर में कौन कौन है?"
"मेरी बीमार सास, अपाहिज ननद और मेरे ससुर."
"घर में नौकर तो होंगे ही."
"नहीं कोई नहीं है, एक औरत आती है, खेती के काम करने के लिए. उसी ने बताया था कि शहर में कोई और है जिसके साथ रहते हैं."
"तुमने खुद कभी नहीं पूछा ?"
"क्या पूछूं? कहाँ जाऊँगी ? मेरा कौन है? एक ये भाई इसने भी मुझे छोड़ दिया और नाना ने तो  शादी करके कुँए में डाल कर छुट्टी पा ली. मार मुझे इसलिए नहीं सकता क्योंकि घर में सेवा और काम कौन करेगा? फिर पापा की जायदाद के लालच में तो शादी की ही थी. " वह बताते बताते रुआंसी हो उठी.
"तुम्हें पता है की तुम्हारे नाना जी नहीं रहे, नितिन तुम्हारे पास गया था तो तुम्हारे घर वालों ने उसको मिलने नहीं दिया. तब से वह भी तो बेसहारा भटक रहा है "
"नहीं, मुझे कुछ भी नहीं पता है."
"पढ़ाई की है."
"हाँ, एर्थ तक ."
"इसमें तो हाई स्कूल का सर्टिफिकेट लगा है."
"हाँ, कहीं गाँव से नाना जी ने फार्म भरवा दिए थे और फिर बिना  एक्जाम दिए ही पास हो गयी और ये सर्टिफिकेट मिल गया."
"ओह - तो ये बात है."
"अब क्या होगा?"
"कुछ नहीं, तुम्हें पता है कि तुम्हारे पापा की संपत्ति में नितिन का भी हिस्सा है. तुम दो दावेदार हो."
"नहीं , दावेदार तो चार हैं."
"चार और कौन है?"
"मेरी पहली मम्मी थी , जिनके मेरे एक भाई और एक बहन और भी हैं." उसके मुँह से ये सुनकर लगा कि मेरा दिल एकदम से बैठने लगा था. ये जरा सी लड़की इस बात को स्वीकार कर रही है जिसको उसकी माँ ने कभी नहीं स्वीकारा.
"क्या? तुम जानती हो उन्हें?"
"नहीं, वे मम्मी पापा के न रहने पर आये थे, तब हम छोटे थे. मामाजी ने उनको पापा से दूर रहने के लिए कहा था. फिर वे कभी नहीं आये." उसका गला भर आया था.
"उसके बाद उनकी कोई खबर नहीं मिली."
"अब नहीं पता, पहले अपने नाना के पास इलाहबाद में रहते थे."
"तुम्हें ये सब किसने बताया?"
"मैंने मम्मी और पापा से ही सुना था. अब तो वे न तो  हमें जानते होंगे और न मैं उन्हें कि सब लोग कहाँ गए?"
"कोई बात नहीं, सारी संपत्ति तुम्हें अकेले नहीं मिल सकती , ये तुम्हें पता है न."
"जी, नितिन भी है न, मैं अकेले लेना भी नहीं चाहती हूँ."
"अच्छा ये बताओ कि , अगर तुम्हें पापा मिल जाएँ तो?"
"मैं उनके पास भाग कर चली जाऊँगी, मुझे वहाँ नहीं रहना है."
"अब अगर मैं इन कागजों पर आब्जेक्शन लगा कर भेज दूं तो तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं होगी."
"नहीं, पहले नितिन को भी मिलनी चाहिए."
"ठीक है - जरूरत पड़ी तो मैं फिर तुम्हें बुलाऊंगा और मैं खुद भी आ सकता हूँ पूछताछ करने के लिए."
"जी, ठीक है."
"अभी अपने पति को नितिन के मिलने के बारे में कुछ मत बताना, बहुत कार्यवाही होना बाकी है."
"ठीक है, मैं अपने भाई को फिर से नहीं खोना चाहती."
                 मैंने चपरासी को कहकर संदीप को बुलवाया और नितिन को वहाँ से हटा दिया. संदीप जब कमरे में घुसा तो उसके चेहरे पर तनाव झलक रहा था. फिर भी बहुत संयत होकर उसने पूछा -" साहब, सारी पूछताछ हो गयी."
"हाँ, अब इनको ले जा सकते हो."
"अब कितने दिन में कागज़ चला जाएगा."
"बहुत जल्दी और इसकी सूचना तुम्हारे पास पहुँच जायेगी."
              ठीक है साहब कहते हुए उसने शामली का हाथ पकड़ा और तेजी से बाहर निकल गया.
"