बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

कौन कहाँ से कहाँ (१६)

पूर्वकथा: आशु एक डी एम का बेटा , जो अपनी माँ के निधन के बाद नाना नानी के यहाँ रहा। अपनी पहली पोस्टिंग वाली जगह पर सौतेले भाई से मिला , खून के रिश्ते ने उसको मजबूर कर दिया कि वह उसके लिए कुछ करे , नितिन का भविष्य बनने के लिए अपनी ओर से प्रयास किये और अपनी दूसरी पोस्टिंग वाली जगह पर सौतेली बहन के दुर्भाग्य से भी अवगत हो गया। एक डी एम के बच्चों की इस छोटी उम्र में होती हुई दुर्गति और अपने पापा से जुड़े भावों एन उसको मजबूर कर दिया कि पापा की सभी चीजें वह उन दोनों के लिए वापस दिलवाए । और फिर उसी के लिए नितिन को पापा के ऑफिस में नौकरी और शामली को उस नरक से वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध आशु की आगे की कहानी.............।

सोचा तो ये है कि नितिन और शामली के जीवन को इस काबिल बना दूं कि वे फिर से एक नया जीवन जीसकें. उन्हें भाग्य ने धोखा तो दिया लेकिन उनके लिए इतना कुछ शेष है कि वे उसके सहारे ही एक बहुत अच्छाजीवन जी सकते हैं. इसके लिए मैं कहाँ से शुरू करूँ ये मुझको सोचना था. अभी एक महीने का समय था कि नितिनको नौकरी मिल जाएगी और मैं इतनी जल्दी सब कुछ करना चाह रहा हूँ कि वे अब और इस दल दल में जियें.
मेरा पहला पड़ाव पापा के घर पर ही हुआ, मुझे सबसे पहले उसको खाली करवा कर उसके हक़ कोदिलवाना था. यद्यपि यह काम इतना आसान था. जो लोग इस घर में वर्षों से रह रहे हों वे उसको छोड़ेंगे तो नहींबल्कि उसके लिए साम दाम दंड भेद सब अपना लेंगे. मैंने भी ठान लिया था कि इन लोगों ने जैसे पापा के रहने परमुझे डराया था उसका मजा तो उनको मिलना ही चाहिए. मुझे वहाँ से निकाल दिया था लेकिन कम से कम इन बच्चोंको तो वहाँ रहने दिया होता. लेकिन उनके लिए रिश्ते थे ही कहाँ? जो अपनी बहन को विधवा बना कर संपत्ति कोकब्ज़ा करने केलिए तैयार थे उससे अधिक नीचता और संवेदनहीनता और क्या हो सकती है? उन लोगों को बहन याउसके बच्चों के प्रति कोई भाव हो ही नहीं सकता है.
मैंने पापा के मकान के सारे कागजों के डुप्लीकेट लाने के लिए अपने सारे स्रोत प्रयोग किये क्योंकि मैंसारे प्रमाण के साथ सिर्फ और सिर्फ एक बार उनके सामने जाकर उस मकान को खाली करवाना चाहता था. 'भगवती ' नाम था उसका जिसने मुझे उस दिन फ़ोन किया था.
मैंने पुलिस का सहारा लेकर मकान खाली करने का नोटिस उस तक भेजा लेकिन वो लोग उनमें से तोथे नहीं कि इतनी आसानी से खाली कर देते और फिर कोर्ट का आदेश लेकर उस मकान पर कब्ज़ा करके ताला लगवादिया. लेकिन वे यह पता नहीं लगा सके कि ये काम किसने किया है? मुझे तो अब तक भूल भी चुके होंगे. नितिन केबारे में उनको कोई सूचना थी ही नहीं. शामली जिन्दा है या मुर्दा इससे उनको कोई मतलब नहीं था. मकान में तालालगाने साथ ही उसको तोड़ने पर कानूनी कार्यवाही का नोटिस भी वहाँ चस्पा करवा दिया था.
मेरे दिल में उस घर में रहकर पापा के अहसास को जीने का मन कर रहा था लेकिन उस घर में कैसे औरकब रह सकता हूँ. सारे अधिकार मेरे कब्जे में थे फिर भी मुझे लगा रहा था कि उस पर नितिन का ही हक़ है उसमें मैंकैसे रहूँगा.?
उस घर के हर कमरे में जाकर पापा पापा कह कर चिल्लाने का मन भी कर रहा था. एक बचपने जैसे ख्वाहिशपता नहीं क्यों मन में उमड़ने लगी थी. वो मेरे पापा का घर था शायद इसी लिए. मैं अपने आपको काबू नहीं रख सकाऔर फिर अगले ही सन्डे को मैं वहाँ जा पहुंचा. चाबी मेरे पास थी. माली को मैंने वहाँ से नहीं हटाया था. जैसे ही मैं वहाँपहुंचा और गाड़ी से उतरा तो माली दौड़ कर आया.
'साब , नमस्ते.' उसने पूरी तरह से झुक कर नमस्ते किया.
'कहो कैसे हो?' तुम्हारे मालिक कहाँ गए?'
'साब , एक दिन पुलिस आई थी तो सब को बाहर करके ताला डाल कर चली गयी.'
'फिर वो लोग नहीं आये क्या?'
'आए थे , लेकिन ये कागज पढ़ कर लौट गए , कह गए थे कि फिर आयेंगे.'
'अच्छा इस मकान की अच्छी तरह से सफाई करनी होगी तुम्हें, मैं शाम को फिर से आता हूँ. ' और मैंने उसको मकानकी चाबी पकड़ा दी.
दिन में मुझे और भी काम करने थे, मुझे पापा के बैंक के अकाउंट भी देखने थे. उनके लिए जरूरी कागजभी जुटाने थे. शामली का भविष्य शायद इससे सुरक्षित किया जा सके. शाम तक घर साफ हो चुका था और मैं उसकोबंद करके फिर से वापस फतेहपुर गया .

* * * * *
एक महीने के बाद नितिन को मैंने नौकरी दिलवा दी और अभी उसकी सुरक्षा की दृष्टि से उसको मकानकहीं और लेकर लेने के लिए बोला था. क्योंकि उसके मामा लोगों को उसके लखनऊ आने और नौकरी ले लेने के बारेमें प़ता चल चुका था . उस घर में रहने पर वे उसके लिए कुछ बुरा कर और करवा भी सकते थे. इस लिए मुझे उसकोफिलहाल उस घर से दूर ही रखना था. पापा के एकाउंट का काम होना इतना आसान नहीं था लेकिन मुझे करवाना तोथा ही और फिर वो सारा पैसा शामली के नाम भी कर देना था . जब मैं बैंक मेनेजर के सामने अधिकार के दावे कोलेकर पहुंचा तो उसने मुझे जलील करते हुए यही कहा - मि. माथुर की इस संपत्ति के कितने और दावेदार सामनेआयेंगे. अब तक मैंने दो दावेदारों से मिल चुका हूँ और उनमें से कोई भी दावेदारी के पुख्ता सबूत पेश नहीं कर सकाहै. अब आप एक नए दावेदार बन कर रहे हैं."
"मि. शुक्ल, मैं उन दावेदारों से नहीं हूँ और इसका दावेदार होते हुए भी मुझे इसमें से कुछ भी नहीं चाहिए है लेकिनइसके हक़दार होने के नाते आखिरी बार ये दावा आपके सामने आया है." मुझे कुछ गुस्सा तो आया लेकिन फिर यादआया कि वे भी गलत नहीं है . पहले नितिन के मामा आये होंगे और उसके बाद शामली का पति संदीप. मैंने अपनाविजिटिंग कार्ड मैनेजर को दिया तो वह मेरा चेहरा देखता रह गयाउसके बाद उसने मुझे इज्जत से बिठाया औरमेरी पूरी बात भी सुनीमैंने उसको स्पष्ट कर दिया की मुझे पापा की संपत्ति का क्या करना है? वह संतुष्ट हो गया औरउसने आगे की कार्यवाही देखने के लिए आश्वासन दिया
मुझे शामली के बारे में भी कुछ सोचना था लेकिन उससे पहले उसको उस विवाह से कानूनी रूप से मुक्त भीकरवाने कि प्रक्रिया शुरू करनी थी और उससे पहले उसको उस घर से भी निकलना था. उसको पुख्ता कानूनी तरीकेसे ही उस घर से निकलना होगा और फिर उस विवाह से मुक्ति
अब उसके लिए वह घर सिर्फ यातना घर बन चुका था. चारों तरफ से बंद मकान में वह कैसे रहती होगी? लेकिन उस घर के लिए एक बेपैसे कि नौकरानी भी तो बहुत जरूरी थी. अपने नाना के गैर जिम्मेदाराना निर्णय काखामियाजा वह भुगत रही थी या क्या कहा जा सकता है कि नाना ने अपने जीते जी उस लड़की को ये सोच कर शादीकी होगी कि वह एक एक दिन अपना अधिकार पा लेगी तो सुखी रहेगी क्या प़ता उसके बेटे उसके साथ कैसासलूक करें ? ऐसे लोगों का कोई भी ठिकाना नहीं होता है. जिनके लिए रिश्ते की कोई कीमत होती है और ही खूनका मोल.