पूर्वकथा :
सावित्री अपने मइके या ससुराल दोनों में दुलारी थी। घर में लक्ष्मी मानी जाती। उसका पति समझदार और जिम्मेदार युवक था। छोटे भाई की संगती के बिगड़ने से चिंतित रहता और उसके इस बात के लिए रोकने पर उसके साथ कुछ ऐसा बुरा हुआ कि कई जिन्दगी इसमें पिसने लगी । शशिधर का दोस्त गिरीश ने अंतिम समय उसे वचन दिया की वह उसकी पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय नहीं होने देगा. बच्चों को कसबे में के लिए ले जाने के सवाल पर गिरीश और शशि के घर वालों के बीच कहा सुनी हो गयी और उसी बीच गिरीश ने कह दिया कि शशि को मारने वाले उसके देवर के साथ ही थे . इसा बात से शशि के माता पिता अब अपने पोतों के विषय में चिंतित हुए और उन्हें कसबे भेजने के लिए तैयार हो गए . गिरीश उन्हें ले गया और उन्हें रखा भी लेकिन इतने छोटे बच्चे हरी बीमारी में माँ को ही बुलाते और वह परेशां होकर बच्चों के लिए सावित्री को भेजने का प्रस्ताव लेकर आया . जिसके लिए पंचायत बुलाई गयी और उसके मायके वालों से भी सलाह लेने की बात कही गयी.........
गतांक से आगे :
सावित्री के मायके वालों को इस विषय में कुछ भी पता नहीं था। वे आते जरूर और अपनी बहन का हालचाल लेकर चले जाते। कभी सावित्री ने अपने घर वालों को इस विषय में कुछ भी नहीं बताया। उसे ये बात अच्छी तरह से पता था कि अगर उसने अपने घर वालों से कोई भी शिकायत की तो उसके भाई उसको यहाँ पर नहीं रहने देंगे। इस बात को जानकार तो बिलकुल भी नहीं कि उसके देवर ही शशि की मौत के जिम्मेदार हैं, लेकिन वह अपने तीन बच्चों के साथ मायके में जाकर रहना नहीं चाहती थी क्योंकि उसको ये पता है कि उसके भाई तो उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहेंगे लेकिन उनके जाने के बाद बड़ी भाभी के तानों को कौन सुन पायेगा? उनके साथ रहने सेअच्छा है कि अपने घर में रहा जाय। वह समझदार और गंभीर दोनों ही थी। उसने ये भी सोचा कि अगर यहाँ से चली गयी तो फिर इस घर से अपने सारे अधिकार भी खो देगी . सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उसके कारण उसके सास ससुर को भी पता नहीं क्या क्या सहना पड़े? किस तरह से वह उनको रखे? नहीं वह अपने परिवार के साथ ही रहेगी।
सावित्री के भाइयों को बुलावा भेज दिया गया और वे भी बिना किसी देर के दूसरे दिन ही वहा आ पहुँचे। शशिधर के पिता ने उन लोगों से और अधिक छुपाना उचित नहीं समझा क्योंकि एक तो पड़ोस के गाँव की बात है और दूसरे आज नहीं तो कल ये सब बातें उनको पता चल ही जायेंगी। लेकिन अगर ये बातें कोई और उन्हें बताये तो इससे बेहतर है कि वह खुद ही बता कर समाधान खोज लें। सावित्री और बच्चों के बारे में जितना वे सोचते हैं उससे अधिक उसके मायके वाले भी सोचते होंगे लेकिन बेटी या बहन की ससुराल के मामले में बिना सलाह लिए बोलना उनको ठीक नहीं लगता होगा। अगर अब ये सारी बातें उन्हें खुद न बतायीं गयी तो कल को उन पर शशि और उसके परिवार के प्रति पक्षपाती होने का आरोप भी लग सकता है।
सावित्री के भाइयों ने आकर यही सलाह दी कि सावित्री को कस्बे भेजने से पहले गिरधर का गौना करा लिया जाय ताकि माय को कोई भी परेशानी न हो और उसके बाद सावित्री बच्चों के साथ चली जाय। गल्ला पानी घर से भेजा जाएगा और शशि की पेंशन से बाकी खर्च पूरे हो जायेंगे। संरक्षण के लिए सावित्री के भाई, ससुर और देवर वहाँ जाकर उसकी परेशानियों का ध्यान रखेंगे छुट्टियों में बच्चे गाँव में आकर रहेंगे। ताकि बाबा दादी को अपने पोतों से मिलने का और साथ रहने का मौका मिलता रहे।
आखिर वह दिन भी आ गया कि सावित्री अपना जरूरी सामान लेकर बच्चों के साथ जाने की तैयारी करने लगी। चलने से पहले सास उसे गले लगा कर खूब रोई और समझाया कि कोई भी परेशानी हो तो वह घर खबर भेज दे, उसके पास हम तुरंत पहुँच जायेंगे। कस्बे में संभाल कर रहने की हिदायत भी दी गयी। वह गाँव की रहने वाली थी और गाँव में ही रही। उसको दुनियांदारी की समझ अधिक न थी। लेकिन वक़्त इंसान को सब कुछ सिखा देता है।
गिरीश ने मकान की व्यवस्था पहले से ही कर रखी थी सो कोई परेशानी नहीं हुई। लेकिन गिरीश घर नहीं आता था वह बच्चों से सारा हाल ले लेता था और कोई समस्या होने पर उन्हें उसके बारे में सुझाव दे देता था। उसका अपना पहले की तरह से रूटीन शुरू हो गया। वह सिर्फ स्कूल पढ़ाने के लिए आता था और अपने गाँव वापस हो जाता। वह अपने वचन के मुताबिक हर चीज पर नजर रखता था।
एक दिन दोनों बच्चे स्कूल नहीं गए , इस बात को गिरीश ने ध्यान में रखा और दो अगले दिनों में भी उसे बच्चे नहीं दिखलाई दिए तो उसका माथा ठनका। वह छुट्टी के बाद सीधे बच्चों के हालचाल लेने के लिये उनके घर गया कि कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हो गयी। उन लोगों का वहाँ पर कोई नहीं था। किसी से उनकी कोई जान पहचान भी नहीं थी कि मुसीबत के समय वह किसी से सहायता माँग लेती .
जाकर उसने जैसे ही दरवाजा खटखटाया अन्दर डर के मारे सब दुबक गए और बड़ी देर तक उन लोगों ने कोई उत्तर नहीं दिया और न ही दरवाजा खोला। तब गिरीश को जरूर कुछ शक हुआ कि ऐसी क्या बात है कि कोई दरवाजा ही नहीं खोल रहा है। तब उसने बाहर से कहा कि मैं गिरीश हूँ और बच्चों की खैरियत जानने आया हूँ। तब सावित्री ने दरवाजा खोला। चेहरे से वह सहमी सहमी लग रही थी। गिरीश का उससे अधिक वास्ता तो पड़ा नहीं था तो बोलने और बात करने में भी वह झिझक रहा था। सामने गिरीश को देख कर दोनों बच्चे उससे आकर लिपट गए और रोने लगे - "चाचा हमें अपने साथ ले चलो , हम अकेले नहीं रहेंगे नहीं तो चाचा माँ को मार डालेंगे।"
गिरीश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है? वह तो समझ रहा था कि बच्चे माँ के साथ अच्छी तरह से होंगे। वह वही जमीन पर बैठ गया और बच्चों को चुप कराया फिर उनसे पूछा कि क्या बात है? सावित्री उसके सामने नहीं आई वह पीठ करके एक कोने में खड़ी रही।
गिरीश बच्चों के मुँह से नहीं बल्कि सावित्री के मुँह से सुनना चाह रहा था कि बात क्या हो गयी?
"देखिये आप इस तरह से अकेली रहेंगी और फिर बात भी नहीं करेंगी तो फिर मैं आपकी सहायता कैसे कर पाऊंगा ? आपको यहाँ पर्दा करके काम नहीं चलेगा , कल को आपको बाहर निकलना है और बच्चों केलिए सारे काम करने होंगे तो काम कैसे करेंगी?" गिरीश ने सावित्री से कहा।
"ये तो सही है लेकिन हम कभी इस तरह से रहे नहीं है तो हमारी हिम्मत नहीं पड़ती है।"
"ये मैं मानता हूँ लेकिन अब घर से बाहर निकल कर तो सब करना ही पड़ेगा। सब को बोलना और बताना भी पड़ेगा। बच्चों के स्कूल जाना पड़ेगा तब क्या करेंगी?"
"वह तो है? बात ये है कि बच्चे बहुत डर गए हैं , परसों इनके चाचा राशन डालने के लिए आये थे और वापस जाने के लिए उनने हमसे पैसे माँगे तो हमने कह दिया कि हमारे पास नहीं है। इस पर वह बिगड़ गए और गाली - गलौज करने लगे। बच्चे उसी से डर गए।"
"फिर वह चले गए या फिर आयेंगे?"
' हाँ कह कर गए हैं कि जल्दी ही आयेंगे और पैसे लेकर ही जायेंगे । उन्हें पेंशन से पैसे चाहिए। घर के ऊपरी खर्च के लिए पैसा कहाँ से आएगा?'
"बच्चे स्कूल क्यों नहीं जा रहे हैं"
"उसी दिन से डर गए और नहीं जा रहे हैं।"
"तुम लोगों को स्कूल आना है, यहाँ पर तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। हम हैं न, कल से स्कूल जरूर आना। पढाई का हर्ज होता है और फिर तुम लोग पीछे रह जाओगे तब कौन पूरा कराएगा?"
"अच्छा अब कल से ये लोग स्कूल आयेंगे।" सावित्री ने कहा।
"और हाँ अगर घर में कोई बात हो तो इनसे कहला दिया करो मैं देख लूँगा। मैं रोज घर चला जाता हूँ इसलिए आ नहीं सकता। आगे से इस बात का ध्यान रखना।" ये कह कर गिरीश चला गया।
(क्रमशः)