रात में अचानक जोर जोर से आवाज आने से उनकी नींद खुल गयी। अंदर से आवाजें आ रहीं थी। माँ के जेवरों के बंटवारे को लेकर बहस हो रही थी। बहुओं को ननद से शिकायत थी क्योंकि पापाजी ने मम्मीजी के भारी भारी गहने उन्हें पहले ही दे दिए थे और वह इनमें से भी चाह रही थी। इसी बात पर सब आक्रोशित थे।
निशांत बाबू के कानों में शब्द शीशे की तरह उतर रहे थे। कल तक भाई साहब तो थे लेकिन इनमें से कोई न था। रात में फ़ोन करके उन्होंने छोटे भाई को बुला लिया लेकिन बेटे को नहीं।
"आज रात मेरे पास रुको कुछ बातें करनी है।"
"जी भाई साहब।"
उनसे चुपचाप उन्होंने बड़े बेटे को फ़ोन किया - " पापा के पास आ जाओ।"
"चाचाजी अभी ही टूर से लौटा हूँ , सुबह आता हूँ , आप तो हैं ही। "
निशांत कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे। लौटकर आकर भाई साहब के पास बैठ गए। वह पता नहीं कितनी पुरानी बातें याद करते रहे और फिर बोले जाओ छोटे सो जाओ , मुझे भी नींद आ रही है। कुछ ही घंटे तो वे अकेले रहे सोते समय और जब वह सुबह उठ कर आये तो भाई साहब सोते ही रह गए। बहुत जगाया नहीं जागे। तब फिर बड़े बेटे को फ़ोन किया और बता दिया कि अब तो आ जाओ। उसने बाकी सब बहन और भाइयों को खबर दी।
शाम तक अंतिम संस्कार के बाद जब घर जाने को हुए तो बच्चों ने कहा चाचा जी हवन तक आप भी घर में रहें। वह भी मन नहीं कर सके , आखिर भाई साहब ने ही तो बुलाया था तो अभी हवन तक उनकी आत्मा यही बसी रहेगी। उनके सारे बच्चे उच्च पदों पर थे और दामाद भी, लेकिन भाभी के न रहने पर वह घर छोड़ कर कहीं बसना नहीं चाहते थे और उनके बच्चे इस मकान में नहीं आना चाहते थे। टिफिन लगा लिया था खाने के लिए , बाकी चाय वगैरह खुद कर लेते थे। जल्दी किसी के पास न गए।भाभी के न रहने पर वे अकेले हो गए थे तो कभी कभी भाई को बुला लेते थे। उस दिन भी उन्होंने भाई को फ़ोन किया कि मुझे अपनी तबियत ठीक नहीं लगती है , क्या तुम आ सकते हो ? शायद उनको अहसास हो गया था या कुछ और लगा था।
नीद आ नहीं रही थी , करवटें बदलते रहे और जब शोर सहन नहीं हुआ तो उनसे रहा नहीं गया। वे आखिर उस कमरे में आ ही गये और गुस्से से बोले - " अरे मूर्खो तुम लोग करोड़ों के मालिक हो फिर भी इस तरह लड़ रहे हो। उनकी चिता की राख तो ठंडी हो जाने देते। " और वह बाहर निकल गए।