राशि समर की इस बात को समझना ही नहीं चाहती थी उसको तो सिर्फ अपने अधिकार ही समझ आते थे और इसके लिए उसने नैतिक मूल्यों से भी विमुख होना शुरू कर दिया था। समर तो सारे दिन बैंक में रहता और घर में रहती माँ और राशि। अब राशि ने माँ को उत्तर देना भी शुरू कर दिया था लेकिन माँ हमेशा चुप रहती क्योंकि वह नहीं चाहती थी की समर सारे दिन काम करने के बाद घर के इन छोटे मोटे विवादों में अपने को उलझाये। एक दिन तो राशि ने सारी हदें पार कर दीं , उस दिन समर बैंक से घर जल्दी आया और उसने राशि को अपनी माँ पर बिगड़ते हुए देखा - " अब देखती हूँ कि इस घर में कौन रहता है? आज से या तुम रहोगी या फिर मैं। बहुत तमाशा देख लिया माँ बेटे ने मिलकर मेरी जिन्दगी नरक बना कर रख दी है।"
समर से यह सब सुना नहीं गया और उसने कह दिया - 'राशि तुम्हे पता है कि तुम बोल क्या रही हो? "
"हाँ पता है, अब बहुत हो चुका। अब मैं इनके साथ नहीं रह सकती हूँ, कल ही दूसरा मकान देखो मैं कल ही ये घर छोड़ दूँगी।"
"मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाला हूँ, इसी घर में रहा हूँ और इसी में रहना होगा ."
रोज रोज की किचकिच से समर परेशान हो चुका था और उसके लिए यह सब सहना कठिन हो चला था। उस रात न उसने राशि को कुछ समझाने की कोशिश की और न माँ से कोई बात की। समर बिना खाए पिए सो गया और सुबह बिना किसी से बात किये बैंक के लिए निकल गया। बैंक में भी उसका मन नहीं लग रहा था लेकिन उस घर में जाकर खुद को जलाने से अच्छा है कि बैंक में ही खुद को उलझाये रखे। कुछ घंटों के लिए ही सही वह उस माहौल से दूर तो रहेगा। फिर क्या पता कि घर में पहुँच कर कुछ शांति हो गयी हो, लेकिन ये उसका सिर्फ एक भ्रम था। शाम जब वह घर पहुंचा तो पता चला की राशि दिव्यम को लेकर अपने पिता के घर चली गयी थी। माँ से पूछा तो वह कुछ बताने के बजाय खुद ही रो दी -" बेटा मैंने उसको बहुत मना किया उससे माफी भी मांगी लेकिन वह जरा सी भी न पिघली और मुन्ना को लेकर चली गयी कि अब वह इस घर में कभी वापस नहीं आएगी।"
समर ने बहुत धैर्य से काम लिया और दूसरे ही दिन राशि को मनाने के लिए उसके पिता के घर गया। लेकिन राशि किसी की बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं थी। उसको गुमान था कि उसके पिता उसके बोझ को उठाने में सक्षम है और वह समर के पास तभी जायेगी जब वह अपनी माँ से अलग रहने के लिए तैयार होगा। समर को उसकी शर्त मंजूर नहीं थी। वह वापस आ गया उसने एक दो बार उसके पिता से बात की कि शायद वे इस बात को सुलझाने में सहायता कर सकें लेकिन वे भी अपनी बेटी की जिद के आगे मजबूर नजर आये और बेटी को घर से भगा भी तो नहीं सकते थे। समर की जिन्दगी अपने ढंग से चलने लगी। उसे दिव्यम की कुछ दिनों बहुत याद आई लेकिन फिर धीरे धीरे वह अपनी उस एकाकी जिन्दगी का आदी हो गया। वह और माँ बस दो लोगों की दुनियां रह गयी थी। उसके लिए उसकी माँ एक महान इंसान थी क्योंकि अगर उनका त्याग और परिश्रम न होता तो शायद वह इस जिन्दगी के बारे में सोच भी नहीं सकता था.
राशि के पिता कभी कभी उसको फोन कर लेते थे क्योंकि वे इस सम्बन्ध को बिलकुल टूटने नहीं देना चाहते थे लेकिन उनके चाहने से कुछ नहीं हुआ। हाँ जब बेटा बड़ा हुआ और उसने माँ से अपने पिता के बारे में सवाल पूछने शुरू किये तो उसके नाना को लगा कि ये दम तोड़ता हुआ सम्बन्ध फिर से जीवित हो उठेगा। दिव्यम को लेकर उन्होंने समर से संपर्क साधा और फिर धीरे धीरे दोनों के मिलने में सेतु का काम किया। दिव्यम के जीवन में आने से उसको जीवन में फिर से बहार आने का अहसास होने लगा कि हो सकता है उसका ये उजड़ा हुआ घर फिर से बस जाए.
अचानक उसको पता चला कि राशि को कैंसर हो गया है। इस लम्बे अंतराल के बाद राशि कैसी हो गई होगी? यह सब उसके दिमाग में बराबर चल रहा था कि अचानक स्टेशन के शोर ने उसका ध्यान भंग कर दिया। जब वह दरवाजे पर आकर खड़ा हुआ तो दिव्यम उसे स्टेशन पर लेने आया था। वह उसको लेकर सीधे अस्पताल ही पहुँचा। बेड पर पड़ी राशि एक कंकाल मात्र रह गयी थी। समर पहचान ही नहीं पाया क्योंकि उसकी खूबसूरती पर तो वह लट्टू हो गया था। उसने इसी लिए तो उसको जीवनसाथी बनाने का निर्णय लिया था। राशि आँखें बंद किये पड़ी थी, शायद सो रही थी या फिर उसको चढाने वाली दवाओं के नशे में हो।
दिव्यम ने उसको झकझोर कर कहा - "मम्मा देखो कौन आया है?"
राशि ने आँखें खोलने का प्रयास किया और फिर पहचान ही लिया. इतने वर्षों के अंतराल ने जैसे राशि को बदल दिया था वैसे ही उसने समर को भी -- आँखों पर चश्मा चढ़ गया था , बालों से झांकती सफेदी और स्थूल होते शरीर से ने उम्र की कहानी बयान कर दी थी। राशि के मुंह से बोल नहीं फूटे बस उसने हाथ से बैठने का इशारा कर दिया। समर वहीँ बेंच पर बैठ गया। समर भी सोच रहा था कि ये वही राशि है जो बीस साल पहले उसको छोड़ कर चली आई थी।
राशि के मुँह से बोल नहीं फूटे लेकिन उसकी आँखों से बहते हुए आँसुओं ने सब कुछ कह दिया, फिर भी उसने बहुत कोशिश कर के पूछा - 'कैसे हो?'
"ठीक ही हूँ."
"मैंने तुम्हें माफी माँगने के लिए बुलाया था, कर सकोगे मुझे माफ?"
"तुमने किया क्या है? जिसकी माफी तुम्हें चाहिए। ये मेरी नियति थी कि मुझे अपनी जीवन नैया एक ही पतवार से खेनी पड़ी।"
"एक क्यों?"
"क्योंकि एक तुम थीं , सो चली आयीं मेरी पतवार छीन कर , दूसरी माँ जो अभी मेरा साथ दे रही है। "
"तो तुम मुझे माफ नहीं कर पाओगे। "
"नहीं ऐसा कुछ भी नहीं, मुझे तुमसे कभी कोई शिकायत नहीं थी। तुम जहाँ भी रहो खुश रहो मेरे लिए यही संतोष की बात थी। "
"मैंने तुम्हारी एक पतवार छीनी थी न, तो मैं तुम्हें तुम्हारी पतवार सौपती हूँ, बेटा तुम्हारी दूसरी पतवार बनेगा, अब ये तुम्हारे पास ही रहेगा।" राशि ने दिव्यम का हाथ लेकर समर के हाथ में थमा दिया। शायद राशि के पास समय नहीं था और हाथ पकड़े पकड़े ही उसने आँखें मूँद ली। फिर कभी न खोलने के लिए...........
(इति)