“साब, चाय लाऊँ क्या?" मिश्रा जी ने आकर पूछा।
"हाँ, थोड़ी देर में ले आना।"
"साब, नाश्ता कितने बजे?"
"आज मुझे जाना नहीं है, घर पर ही रहेंगे और यहाँ के और ऑफिस के लोगों से परिचय करूँगा।" मैंने बताया था कि मैं घर पर ही हूँ। अभी मुझे आये कुछ ही दिन हुए हैं, पहले तो गेस्ट हाउस में रह रहा था, जब बंगला खाली हो गया तो सामान सहित यहीं शिफ्ट हो गया। अभी मेरा सबसे ठीक से परिचय भी नहीं हुआ था, मिश्रा जी से जो रसोई देखते थे।
आज मैं सबसे परिचित होना चाहता हूँ, जो मेरे लिए काम करते हैं, वे कैसे हैं? उनके घर परिवार के लोग क्या हैं? कम से कम उन्हें उनके नाम से तो बुला सकूँ। यहाँ सभी के परिवार भी हैं। इस बंगले में रहने वालों के बच्चे यदा कदा बाहर से नजरें डालते हैं और फिर कोई उनको अलग खींच लेता कि साहब नाराज हो जाएंगे। यही सोचा कि सबसे पहचान हो जाए और सब मुझे भी पहचान लें।
शुरू में बड़ा आलस आ रहा था लेकिन मिश्राजी चाय लेकर आएं उससे पहले ही नहा धोकर तैयार हो जाना था। फिर नानी ने बचपन से आदत डाल रखी थी कि कोई भी बगैर नहाये धोये कुछ भी नहीं खायेगा-पियेगा। इसलिए सुबह जल्दी ही सारे काम से फ्री हो जाऊँ, फिर उसके बाद कुछ भी करूँ।
वह चाय लेकर आ चुका था और मैं बाहर आ रहा था। वह कुछ देर ठिठका कि शायद साहब कुछ कहें। यह भी बताएँ कि आज का सबसे परिचित होने का दिन है।
"गुप्ता जी, आज मैं लंच के बाद बाहर लॉन में बैठूँगा और इस हॉल में काम करने वाले सभी लोगों से मिलूँगा। सिर्फ लोगों से ही नहीं बल्कि उनके परिवार वालों से भी। मुझे यह पता लगना चाहिए कि यहाँ कौन कौन लोग हैं और कौन क्या करता है?"
“साहब कितने बजे तक?”
"मैं एक बजे तक तैयार हो जाऊँगा और आप सभी लोग एक ही समय पर आ जायें।"
"ठीक है साहब मैं नौकरों को बताता हूँ।" कह कर अर्दली चला गया।
"हाँ, थोड़ी देर में ले आना।"
"साब, नाश्ता कितने बजे?"
"आज मुझे जाना नहीं है, घर पर ही रहेंगे और यहाँ के और ऑफिस के लोगों से परिचय करूँगा।" मैंने बताया था कि मैं घर पर ही हूँ। अभी मुझे आये कुछ ही दिन हुए हैं, पहले तो गेस्ट हाउस में रह रहा था, जब बंगला खाली हो गया तो सामान सहित यहीं शिफ्ट हो गया। अभी मेरा सबसे ठीक से परिचय भी नहीं हुआ था, मिश्रा जी से जो रसोई देखते थे।
आज मैं सबसे परिचित होना चाहता हूँ, जो मेरे लिए काम करते हैं, वे कैसे हैं? उनके घर परिवार के लोग क्या हैं? कम से कम उन्हें उनके नाम से तो बुला सकूँ। यहाँ सभी के परिवार भी हैं। इस बंगले में रहने वालों के बच्चे यदा कदा बाहर से नजरें डालते हैं और फिर कोई उनको अलग खींच लेता कि साहब नाराज हो जाएंगे। यही सोचा कि सबसे पहचान हो जाए और सब मुझे भी पहचान लें।
शुरू में बड़ा आलस आ रहा था लेकिन मिश्राजी चाय लेकर आएं उससे पहले ही नहा धोकर तैयार हो जाना था। फिर नानी ने बचपन से आदत डाल रखी थी कि कोई भी बगैर नहाये धोये कुछ भी नहीं खायेगा-पियेगा। इसलिए सुबह जल्दी ही सारे काम से फ्री हो जाऊँ, फिर उसके बाद कुछ भी करूँ।
वह चाय लेकर आ चुका था और मैं बाहर आ रहा था। वह कुछ देर ठिठका कि शायद साहब कुछ कहें। यह भी बताएँ कि आज का सबसे परिचित होने का दिन है।
"गुप्ता जी, आज मैं लंच के बाद बाहर लॉन में बैठूँगा और इस हॉल में काम करने वाले सभी लोगों से मिलूँगा। सिर्फ लोगों से ही नहीं बल्कि उनके परिवार वालों से भी। मुझे यह पता लगना चाहिए कि यहाँ कौन कौन लोग हैं और कौन क्या करता है?"
“साहब कितने बजे तक?”
"मैं एक बजे तक तैयार हो जाऊँगा और आप सभी लोग एक ही समय पर आ जायें।"
"ठीक है साहब मैं नौकरों को बताता हूँ।" कह कर अर्दली चला गया।
1 बजे जब मैं बाहर आया तो सभी लोग वहीं थे और अपने-अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैठे थे। उन सब को लग रहा था कि इस बंगले के परिसर में कितने लोग रहते हैं? शायद ये एक कमरे में ही रहेगा या फिर कुछ और जगह होगी और मेरे लिए इतना बड़ा बंगला और रहने वाला सिर्फ मैं हूं? ये भी तो अपनी-अपनी किस्मत होती हैं। "गुप्ता जी, आप सबसे पहले आइए।" मैंने उनको को ही बुलाया।
"जी साब।" और वह अपने परिवार के साथ आ गए। उनकी पत्नी के साथ एक बड़ी बेटी जो करीब 15 साल की होगी और छोटीं लगभग सात साल की थीं ।
"हाँ सबसे हमारा परिचय तो कराइए।"
"साब, ये हमारी घरवाली मीना, ये बड़ी बिटिया शालू, और ये दोनों जुड़वाँ हैं कम्मो और निम्मो ।"
"बिटिया कहीं पढ़ रही है?"
"जी साहब, नगर पालिका के स्कूल में नवीं क्लास में पढ़ रही है।"
"ये तो अच्छी बात है, ये छोटी वालीं?"
"इनका अभी इनके दाखिला नहीं कराये हैं, बड़ी बहन ही घर में पढ़ाती है।"
"इन्हें भी जाना चाहिए, अब बड़ी हो गई, इसलिए इन्हें भी स्कूल भेजिए।"
ठीक है, अब और लोगों को भेज दीजिये। फिर अगला व्यक्ति आया उसके साथ उसकी पत्नी भर थी.
"साब मैं राम किशोर बंगले में माली का काम करता हूँ और ये मेरी पत्नी किशोरी।"
"अरे वाह राम किशोर जी की पत्नी किशोरी क्या संयोग मिला है।" मैं ये चाहता था कि इन सब के मन मैं मेरे प्रति कोई डर न रहे अपनी बात और तकलीफें ये मुझे खुल कर बता सकें। मुझे अपना अफसर समझने के साथ साथ एक हमदर्द भी समझें।
"साब मैं शम्भू और ये हमार घरवाली परबतिया. इ हमार बिटवा चैन और बिटिया राहत."
"अरे वाह शम्भू जी यहाँ तो बड़े अच्छे लोग हैं। शम्भू को मिली हैं पारवती जी और बेटे बेटी चैन और राहत।" मैंने सबके लिए कुछ न कुछ सोच रहा था और यहाँ अजीब संयोग भी देख रहा था।
फिर और भी कई लोगों से मेरा परिचय हुआ और अंत में आया एक सबसे काम उम्र का लड़का, उम्र उसकी होगी कोई बीस साल और उसका चेहरा देख कर तो मैं चौंक ही गया - वह माली का काम करता था। इस उम्र में माली का काम कुछ समझ भी नहीं आ रहा था और फिर ये उम्र तो पढ़ने लिखने कि होती है। क्या ये सारा जीवन इसी तरह से माली ही बना रहेगा।
वह अपना काम कर रहा था , जब सब लोग चले गए तो दयाल ने उसको ही बुलाया - "अरे नितिन , अब तुम भी आ जाओ, सब परिवार वाले तो मिल लिए साहब से अब तुम अकेले तो अकेले में ही मिलो. " दयाल जी अपने काम में लग गए।
वह मेरे सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया , वह देखने में किसी संभ्रांत परिवार का लग रहा था। उसका रहन सहन और पहनावा सबसे अलग किन्तु माली का काम कुछ मेरे समझ नहीं आया और सबसे अधिक समझ नहीं आया यह कि उसकी सूरत बिल्कुल पापा जैसे थी। पता नहीं मन में कितनी उथल पुथल मच गयी उसको देख कर।
"हाँ, बताओ अपने बारे में।" वह चुप खड़ा था तो मुझे ही उससे पूछना पड़ा।
"जी, मेरा नाम नितिन है और मैं यहाँ माली का काम करता हूँ।" यह कह कर वह चुप हो गया।
"पढ़ाई नहीं की, इस काम में क्यों लग गए?"
"पढ़ाई शुरू तो की थी , लेकिन फिर नहीं पढ़ सका।"
"कहाँ के रहने वाले हो?
"पहले लखनऊ में रहता था और पापा के न रहने पर पुरवा चला गया था नाना नानी के पास।"
"तुम्हारे पापा क्या करते थे?"
"जी, आई ए एस अफसर थे।" मुझे किसी ने ऊपर से नीचे लगा कर पटक दिया था. ये लड़का क्या कह रहा है? किसी आई ए एस का बच्चा माली का काम करेगा।
"क्या नाम था तुम्हारे पापा का नाम."
"स्व. प्रदीप कुमार माथुर." उसके मुँह से ये नाम निकला और मेरे पसीना छूट गया क्या ये नई माँ का बेटा है, लेकिन यहाँ कैसे ? क्या हुई सारी जायदाद , पापा की सारी प्रॉपर्टी कि ये माली का काम कर रहा है।
"तुम्हारे घर में और कौन है? तुम्हारी माँ भाई बहन?"
"माँ भी नहीं है, बहन है उसकी शादी हो गयी है।"
"अच्छा अब तुम जाओ।" यह कर कर मैं इलेक्ट्रॉनिक्स इलेक्ट्रॉनिक्स चला आया। मैं अपने को संयत नहीं कर पा रहा था। ये नई माँ का बेटा ऐसे कैसे हो सकता है? लेकिन मैं अभी भी उन्हें कुछ भी नहीं जानना चाहता था और पापा का नाम सुना था मेरे दिमाग की सारी नसें ग्लासगोड था। इतना अधिक तनाव हो रहा था कि कल से मैं कुछ सुखद और नमूना से खुद को मिला हुआ देख रहा था और उनके साथ सामंजस्य स्थापित कर खुद को सामान्य करने की कोशिश में लगा था कि फिर एक और विस्फोट हो गया। इस आवाज में किसी ने नहीं देखा और उसकी त्रासदी पर किसी ने गौर नहीं किया लेकिन ये मैंने जो देखा और सहा उसके लिए मैं क्या करूँ?
मैं यहां पर पापा के बेटे के साथ चैट पर हूं और दूसरे बेटे माली के साथ भी बात कर रही हूं, लेकिन मैंने उनके साथ एक दिन तो क्या एक पल भी नहीं गुज़ारा था तब हमें क्या लेना चाहिए। नई माँ ने जिस तरह से हमें पापा से अलग करके पापा को हमसे छीन लिया था फिर ईश्वर ने कुछ बुरा तो नहीं किया। हम कैसे रोये थे और कितने तड़पे थे उस दिन तो पापा भी बहुत रोये थे जब हमें वहाँ से भेज रहे थे। नई मां तो बाहर तक निकल कर नहीं आई थी।
'पर इससे क्या?' इन बच्चों का क्या दोष?'
'लेकिन वो मां तो नहीं है और इन बच्चों का क्या कुसूर है? '
' कुसूर हैं न कि ये ही वो हैं जिनसे मिलने पर पापा का प्यार हमसे कम हो गया था। और वह प्यार जिसपर हमारा भी थोड़ा सा हक था वह भी खाली हो गया था'
'सिर्फ ये बच्चे हैं, पापा भी नहीं थे तो अपने बड़े बच्चों के प्रति अपनी फर्ज को भूलाना नहीं चाहिए था।'
. फिर मैं क्या करूँ? किससे पूंछूं ? नाना नानी से, माँ मामी से या मौसी से? किसी से भी नहीं किसी का भी मन लोगों के लिए सहानुभूति नहीं है और मेरा मन - मुझे नहीं, इस लड़के का चेहरा देखा तो पापा का चेहरा ही सामने आ गया, बिल्कुल पापा की तरह से इसकी शक्ल है।
फिर मैं किससे पूंछूँ कि मैं क्या करूँ? इस तनाव से कैसे छुटकारा पाएं और कैसे इस लड़के को यहां देखें। हां दोस्त से बात कर सकते हैं, वह ही मुझे सही सलाह दे सकता है। पर दोस्त भी अभी घर पर ही होगी और वह खूबसूरत सारी बातें पूँछ लूँगा। दोस्तों को फोन मिलाने की कोशिश की जा रही है और फोन नहीं उठ रहा है। हो सकता है कि कहीं काम में लग जाए या फिर नौकर में।थोड़ी देर बाद फिर जाएगा। आज छुट्टी तो उसकी भी होगी।
(क्रमशः)
ठीक है, अब और लोगों को भेज दीजिये। फिर अगला व्यक्ति आया उसके साथ उसकी पत्नी भर थी.
"साब मैं राम किशोर बंगले में माली का काम करता हूँ और ये मेरी पत्नी किशोरी।"
"अरे वाह राम किशोर जी की पत्नी किशोरी क्या संयोग मिला है।" मैं ये चाहता था कि इन सब के मन मैं मेरे प्रति कोई डर न रहे अपनी बात और तकलीफें ये मुझे खुल कर बता सकें। मुझे अपना अफसर समझने के साथ साथ एक हमदर्द भी समझें।
"साब मैं शम्भू और ये हमार घरवाली परबतिया. इ हमार बिटवा चैन और बिटिया राहत."
"अरे वाह शम्भू जी यहाँ तो बड़े अच्छे लोग हैं। शम्भू को मिली हैं पारवती जी और बेटे बेटी चैन और राहत।" मैंने सबके लिए कुछ न कुछ सोच रहा था और यहाँ अजीब संयोग भी देख रहा था।
फिर और भी कई लोगों से मेरा परिचय हुआ और अंत में आया एक सबसे काम उम्र का लड़का, उम्र उसकी होगी कोई बीस साल और उसका चेहरा देख कर तो मैं चौंक ही गया - वह माली का काम करता था। इस उम्र में माली का काम कुछ समझ भी नहीं आ रहा था और फिर ये उम्र तो पढ़ने लिखने कि होती है। क्या ये सारा जीवन इसी तरह से माली ही बना रहेगा।
वह अपना काम कर रहा था , जब सब लोग चले गए तो दयाल ने उसको ही बुलाया - "अरे नितिन , अब तुम भी आ जाओ, सब परिवार वाले तो मिल लिए साहब से अब तुम अकेले तो अकेले में ही मिलो. " दयाल जी अपने काम में लग गए।
वह मेरे सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया , वह देखने में किसी संभ्रांत परिवार का लग रहा था। उसका रहन सहन और पहनावा सबसे अलग किन्तु माली का काम कुछ मेरे समझ नहीं आया और सबसे अधिक समझ नहीं आया यह कि उसकी सूरत बिल्कुल पापा जैसे थी। पता नहीं मन में कितनी उथल पुथल मच गयी उसको देख कर।
"हाँ, बताओ अपने बारे में।" वह चुप खड़ा था तो मुझे ही उससे पूछना पड़ा।
"जी, मेरा नाम नितिन है और मैं यहाँ माली का काम करता हूँ।" यह कह कर वह चुप हो गया।
"पढ़ाई नहीं की, इस काम में क्यों लग गए?"
"पढ़ाई शुरू तो की थी , लेकिन फिर नहीं पढ़ सका।"
"कहाँ के रहने वाले हो?
"पहले लखनऊ में रहता था और पापा के न रहने पर पुरवा चला गया था नाना नानी के पास।"
"तुम्हारे पापा क्या करते थे?"
"जी, आई ए एस अफसर थे।" मुझे किसी ने ऊपर से नीचे लगा कर पटक दिया था. ये लड़का क्या कह रहा है? किसी आई ए एस का बच्चा माली का काम करेगा।
"क्या नाम था तुम्हारे पापा का नाम."
"स्व. प्रदीप कुमार माथुर." उसके मुँह से ये नाम निकला और मेरे पसीना छूट गया क्या ये नई माँ का बेटा है, लेकिन यहाँ कैसे ? क्या हुई सारी जायदाद , पापा की सारी प्रॉपर्टी कि ये माली का काम कर रहा है।
"तुम्हारे घर में और कौन है? तुम्हारी माँ भाई बहन?"
"माँ भी नहीं है, बहन है उसकी शादी हो गयी है।"
"अच्छा अब तुम जाओ।" यह कर कर मैं इलेक्ट्रॉनिक्स इलेक्ट्रॉनिक्स चला आया। मैं अपने को संयत नहीं कर पा रहा था। ये नई माँ का बेटा ऐसे कैसे हो सकता है? लेकिन मैं अभी भी उन्हें कुछ भी नहीं जानना चाहता था और पापा का नाम सुना था मेरे दिमाग की सारी नसें ग्लासगोड था। इतना अधिक तनाव हो रहा था कि कल से मैं कुछ सुखद और नमूना से खुद को मिला हुआ देख रहा था और उनके साथ सामंजस्य स्थापित कर खुद को सामान्य करने की कोशिश में लगा था कि फिर एक और विस्फोट हो गया। इस आवाज में किसी ने नहीं देखा और उसकी त्रासदी पर किसी ने गौर नहीं किया लेकिन ये मैंने जो देखा और सहा उसके लिए मैं क्या करूँ?
मैं यहां पर पापा के बेटे के साथ चैट पर हूं और दूसरे बेटे माली के साथ भी बात कर रही हूं, लेकिन मैंने उनके साथ एक दिन तो क्या एक पल भी नहीं गुज़ारा था तब हमें क्या लेना चाहिए। नई माँ ने जिस तरह से हमें पापा से अलग करके पापा को हमसे छीन लिया था फिर ईश्वर ने कुछ बुरा तो नहीं किया। हम कैसे रोये थे और कितने तड़पे थे उस दिन तो पापा भी बहुत रोये थे जब हमें वहाँ से भेज रहे थे। नई मां तो बाहर तक निकल कर नहीं आई थी।
'पर इससे क्या?' इन बच्चों का क्या दोष?'
'लेकिन वो मां तो नहीं है और इन बच्चों का क्या कुसूर है? '
' कुसूर हैं न कि ये ही वो हैं जिनसे मिलने पर पापा का प्यार हमसे कम हो गया था। और वह प्यार जिसपर हमारा भी थोड़ा सा हक था वह भी खाली हो गया था'
'सिर्फ ये बच्चे हैं, पापा भी नहीं थे तो अपने बड़े बच्चों के प्रति अपनी फर्ज को भूलाना नहीं चाहिए था।'
. फिर मैं क्या करूँ? किससे पूंछूं ? नाना नानी से, माँ मामी से या मौसी से? किसी से भी नहीं किसी का भी मन लोगों के लिए सहानुभूति नहीं है और मेरा मन - मुझे नहीं, इस लड़के का चेहरा देखा तो पापा का चेहरा ही सामने आ गया, बिल्कुल पापा की तरह से इसकी शक्ल है।
फिर मैं किससे पूंछूँ कि मैं क्या करूँ? इस तनाव से कैसे छुटकारा पाएं और कैसे इस लड़के को यहां देखें। हां दोस्त से बात कर सकते हैं, वह ही मुझे सही सलाह दे सकता है। पर दोस्त भी अभी घर पर ही होगी और वह खूबसूरत सारी बातें पूँछ लूँगा। दोस्तों को फोन मिलाने की कोशिश की जा रही है और फोन नहीं उठ रहा है। हो सकता है कि कहीं काम में लग जाए या फिर नौकर में।थोड़ी देर बाद फिर जाएगा। आज छुट्टी तो उसकी भी होगी।
(क्रमशः)
अगली कड़ी की प्रतीक्षा...
जवाब देंहटाएं*** भारतीय एकता के लक्ष्य का साधन हिंदी भाषा का प्रचार है!
पढ़ते जा रहे हैं..जारी रहिये..अगली कड़ी का इन्तजार है.
जवाब देंहटाएंकथा बहुत ही प्रवाह में चल रही है!
जवाब देंहटाएंयह तो ज़बरदस्त मोड़ ले कर आ गयी कड़ी ...बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंकिशोर और किशोरी का अच्छा संगम! अब अगली कड़ी की प्रतीक्षा है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चल रही है कहानी.
जवाब देंहटाएंnahin thi yahan, aakar kram se padhaa ... kahani mein baandh liya hai aapne
जवाब देंहटाएंजबरदस्त मोड़ आ गया कहानी में
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