गुरुवार, 2 मई 2024

नाम का सवाल !

 

                                                      नाम का सवाल !

 

               सार्थक अपनी शादी का कार्ड लेकर अपने मित्र समर्थ के यहाँ गया और उसने अपनी शादी का कार्ड उसकी माँ को दिया। उसकी माँ ने जिज्ञासावश कार्ड खोलकर देखा और उसमें उसके पिता का नाम संजीव देखा।  संजीव तो सार्थक के चाचा थे, जो भाभी से शादी के बाद पिता बने। 
        
              उनको ये तो पता था कि सार्थक के पिता राजीव थे और उनकी आकस्मिक मौत के बाद दीक्षा की शादी देवर संजीव के साथ कर दी गई थी। उसने सार्थक को टोक दिया कि तुम्हारे पिता के नाम की जगह यह चाचा का नाम क्यों लिखा गया है क्योंकि तुम्हारे पिता का नाम तो राजीव था और इसमें संजीव लिखा हुआ है।
              
              सार्थक को अपनी आँखें खोलते ही पिता के रूप में संजीव ही मिला था, उसने पापा को बहुत संघर्ष करते हुए देखा और उसकी पढ़ाई के लिए हर संभव प्रयास किया ताकि उसका अच्छा भविष्य बन सके और वाकई उसका भविष्य उज्जवल हुआ। तब जाकर आज उसके घर में खुशी का यह मौका आया था । 
        
              सब बड़े खुश थे कि अचानक इस घर में उठाये गए प्रश्न से सार्थक के दिमाग में उथल-पुथल मच गई। उसने उन्हीं से पूछा कि यह बात आप कैसे कह सकती हैं? क्या कोई मुझे बता सकता हैं कि ऐसा क्यों है?"
 
             उन्होंने कहा - "हाँ अपने पापा की चाचीजी से पूछो, वही बता सकती हैं।"          
        
                सार्थक के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका था, वह दादी चाची के पास आया, जो कि एक डॉक्टर थी और उसने उनसे बगैर किसी भूमिका के पूछा - दादी जी क्या मेरे पापा मेरे पापा नहीं है मेरे पापा कोई और थे?" 
          
               चाची जी अकस्मात इस प्रश्न से चौंकी और बोली -  "यह बात तुमसे कही किसने?"
        
               उसने कहा -  "मैं कार्ड देने गया था तो मुझे एक आंटी ने बताया कि मैं राजीव का बेटा हूँ,  फिर यहाँ संजीव क्यों लिखा है? और उन्होंने ही कहा कि इसका कारण आप ही मुझे बता सकती हैं ।"
        
              "ठीक है अगर तुमको यह बात जाननी है तो एक बात मुझे बताओ कि तुमने अपने जीवन में कभी भी यह महसूस किया कि तुम्हारे पापा ने तुम्हारी परवरिश, तुम्हारी पढ़ाई लिखाई में, तुम्हारे प्यार में कभी कोई कमी की ? अगर नहीं तो फिर यह सवाल क्यों ?"
 
             "बस मैं जानना चाहता हूँ कि क्या वास्तव में ऐसा है।"
 
              "हां वास्तव में ऐसा ही है क्योंकि जब तुम 6 महीने के थे, तभी तुम्हारे पापा राजीव का एक एक्सीडेंट में निधन हो गया था। उस समय तुम्हारी माँ की उम्र 22 वर्ष थी , उनकी पूरी जिंदगी का और तुम्हारे भविष्य का सवाल था।  फिर तुम्हारी दादी ने यह निर्णय लिया कि माँ की शादी चाचा के साथ कर दी जाए ताकि दोनों का भविष्य सुरक्षित हो। उनकी सोच बहुत अच्छी थी और फिर माँ की शादी चाचा के साथ कर दी गई। उसके बाद तुम्हारी बहन का जन्म हुआ । जब तुमने स्कूल जाना शुरू किया तब यह प्रश्न उठा कि अगर तुम्हारे पिता के स्थान पर राजीव का नाम लिखा गया और बहन के पिता के स्थान पर संजीव का नाम लिखा जाएगा तो बड़े होने पर तुम्हारे मन में एक प्रश्न आएगा। सगे भाई बहन होने के बाद भी हमारे पिता के नाम अलग क्यों है? और उस समय तुम्हारे बाल मन पर क्या प्रभाव पड़ता यह कोई नहीं जानता था। इसीलिए यह निर्णय लिया गया कि जब परवरिश से लेकर हर चीज संजीव ही कर रहा है तो पिता के नाम पर भी संजीव का ही नाम होना चाहिए इसीलिए संजीव का नाम पिता की जगह पर है लेकिन एक वादा मैं तुमसे चाहूँगी कि तुम अब पूरी तरह मैच्योर हो और इस परिवर्तन से जीवन में तुम्हारी माँ ने भी बहुत संघर्ष और मानसिक यंत्रणा सहन की है तो तुम कभी इस बात को अपनी माँ से नहीं पूछोगे।"
 
                      " याद रखना कि तुम संजीव और दीक्षा के बेटे हो और वही रहोगे।"  


रेखा श्रीवास्तव

रविवार, 28 अप्रैल 2024

सीमायें अपनी अपनी !

          

                                 सीमायें अपनी अपनी !

          "अरे,अरे भाई वहाँ कहाँ जा रहे हो? वह अपना हिस्सा नहीं है वह तो दुश्मन का हिस्सा है।"

         "अरे यह दुश्मन का हिस्सा क्या होता है? हर तरफ एक ही जैसा तो है । क्या यह लकड़ी के बाड़ लगा देने से जमीन के टुकड़े हो जाते हैं, आकाश के टुकड़े हो जाते हैं, हवा के टुकड़े हो जाते हैं या फिर माँ के टुकड़े हो जाते हैं। सब तो अपने ही है।" 

"अरे नहीं भाई तुम नहीं समझोगे हमारे मन और इन इंसानों के मन में बड़ा अंतर है। इन्हें दिल को बाँटने में भी समय नहीं लगता यह तो दिल में भी पत्थर की दीवार खड़ी कर लेते हैं,  फिर यह तो जमीन है इस पर तो खड़ी कर ही सकते हैं।"

"कितनी ऊँची?" 

"अरे ऊँची क्या, यही बहुत है। इसी से हिस्से बाँट हो गए।"

"लेकिन हम लोग क्यों मानेंगे? पानी हम यहाँ पियेंगे और फल वहाँ है तो वहाँ खायेंगे। हम चहचहायेंगे  तो हमारी आवाज दोनों तरफ जाएगी।  कोई मारेगा क्या हमको?" 

"नहीं तुम्हें या हमें तो नहीं शायद, लेकिन अगर आदमी आने लगे तो जरूर मार दिए जाएंगे क्योंकि उनके दिमाग में भी हिस्से हो गए हैं। कोई लड़ाई में विश्वास रखता है और कोई शांति में।" 

"तो इस तरह तो दुनिया ना चलने वाली।" 

 "चल तो रही है मेरे भाई कौन सी कमी दिख रही है, जिनके घरवालों को मार देते हैं, वे रोकर  रह जाते हैं और यह कसाई खुश होते है, जश्न मनाते हैं।"
 
"तब तो भाई इस बाड़ से अंदर उड़ चलो क्योंकि इन्होंने तो पेड़ न बचने दिए, पानी न बचने दिया हम कहाँ जाएंगे?" 

"किस तरफ जाओगे।" 

"वहाँ चलो जहाँ सुख-शाँति हो, हँसी खुशी हो। वही हमारा जहाँ है।" 

"सच भाई हम उसके हैं, जिसे न नीचे बँटवारा चाहिए और न ऊपर बँटवारा चाहिए। हमारी दुनिया तो दरख्तों में बसी है हमें तो हरे भरे दरख़्तों का आशियाना चाहिए।"
 
रेखा श्रीवास्तव 

गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

कैसा रिश्ता !

 
                              कैसा रिश्ता !
 
"मैं जो कहता हूँ , तुम  सुनती क्यों नहीं?" पेड़ ने कहा।
 
"क्या सुनूँ?" चिड़िया ने बड़े शांत स्वर में कहा।
 
"उड़ जाओ यहाँ से, क्यों शहीद होना चाहती हो।"
 
"अपना घर छोड़ कौन जाता है?"
 
"आपातकाल में पहले परिवार बचाया जाता है, सो यहाँ से दूर उड़ जाओ।"
 
"कहाँ? बताओ न, कहाँ बचे हैं ऐसे पेड़, जहाँ सिर छिपा लूँ और लू, धूप न लगे।"
 
"जाओगी तो शरण भी मिल जायेगी। खोजना पड़ेगा।"
 
"बच्चों का जीवन तो देखो, उन्होंने अभी दुनिया नहीं देखी है।"
 
"उन्हें न रोकूँगी, सक्षम कर दिया जहाँ चाहे जा सकते है।"
 
"तो तुम मेरे साथ ही जलोगी। मेरे पास भागने का विकल्प होता भाग जाता, तुम तो जा सकती हो।"
 
"नहीं दादा, जब से इस पेड़ पर हूँ, कितने अण्डे दिये, बच्चे हुए अपनी छाँव में बचाकर रखा। इन्हीं डालियों और पत्तों पर विष्ठा करके मलिन किया। अब चली जाऊँ और आप जल जायें। नहीं अब तो साथ ही जलेंगे।"
 
"अरी मूर्ख समझती क्यों नहीं? उड़ जा।"
 
"नहीं, नहीं, नहीं। " चिड़िया अपने घोंसले में चुपचाप लेट गयी !

-- रेखा श्रीवास्तव