tag:blogger.com,1999:blog-53612266345892833412024-03-09T18:47:24.105-08:00कथा-सागरजीवन के सफर में कितने फूल और उनके साथ काँटों का सुख भी मिलता है. उनको चुन लिया और फिर कहीं फूलों के साथ और कहीं काँटों के बीच फूल की कोमलता सब को पिरो लिया और थमा दिया . सारे अहसास अपने होते हैं, चाहे वे दूसरों ने किये हों. उनको महसूस करने की जरूरत होती है और कभी तो कोई अपने अहसासों को थमा कर चल देता है और उनको रूप कोई और देता है. फिर महसूस सब करते हैं.कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है.रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-83007978470116942532023-08-25T07:22:00.003-07:002023-09-25T01:28:30.309-07:00पति का फर्ज़ !<p> <br /></p><p><b>पति का फर्ज़ !</b><br /></p><p> सरोज अकेले रहते रहते बुरी तरह त्रस्त हो चुकी थी, सिर्फ बेटियां ही उसकी आशा का केंद्र बिंदु थीं। आधी रात को उसने दर्द से तड़पते हुए शरीर छोड़ दिया। उसके पास बेटी ही थी। <br /></p><p> पत्नी के न रहने की खबर सुनकर सोचा कि पति होने का फर्ज पूरा नहीं किया चलो अंतिम समय दुनिया के दिखावे के लिए ही चला जाय, जब तक देव आया तैयारी हो चुकी थी। <br /></p><p> "ऋतु इनका पूरा श्रृंगार करवा दो, सधवा औरतों की अर्थी ऐसे नहीं उठाई जाती है। सिन्दूर लाओ मैं इसकी माँग भर दूँ। "</p><p> "रहने दीजिये , अब चली गयीं और माँग भरना तो उन्होंने वर्षों पहले छोड़ दिया था , फिर ये दिखावा क्यों ?"</p><p> "मेरे रहते तो ऐसे नहीं ही जायेगी।"</p><p> "वह जा कहाँ रहीं हैं ?"</p><p> "अंत्येष्टि के लिए, वह तो मेरे होते कोई नहीं कर सकता।"</p><p> "वह अपनी देह दान कर चुकी हैं , अभी मेडिकल कॉलेज की टीम आती ही होगी। "</p><p> "बगैर मेरे पूछे ये निर्णय लिया कैसे गया ?"</p><p> "जैसे आपने उनके रहते दूसरा घर बसने का लिया था।"<br /></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-20547007066785190992023-08-25T07:22:00.002-07:002023-08-25T07:22:30.475-07:00पैट !<p> </p><p> ऋषि ऑफिस से घर आया तो अंदर से डॉगी की आवाज आ रही थी। उसे कुछ आश्चर्य हुआ कि ये कहाँ से आवाज आ रही है। उसने डोरबेल बजाई और ऋता ने आकर दरवाजा खोला। एक छोटा सा डॉगी उसके पीछे छिपा खड़ा था। बस वह कूँ कूँ कर रहा था। </p><p>"ऋता , ये क्या है ?"</p><p>"ऋषि ये मेरी फ्रेंड निवी हैं न उसके यहाँ दो डॉगी हुए तो एक मुझे दे गयी। प्यारा है न।"</p><p>"ओह! ऋता मुझसे पूछा तो होता। "</p><p>"अंदर आइये न फिर बात करें। "</p><p> ऋता अपनी मैटरनिटी लीव पर थी, घर में वह बच्चे के साथ दिन भर उसकी देखभाल करती और खुश रहती थी। आज उसने सोचा था कि ऋषि इसको देख कर खुश हो जाएगा। </p><p> ऋषि फ्रेश होकर आया तब तक ऋता कॉफी बनाकर ले आयी थी। ऋषि ने कॉफ़ी लेकर पत्नी की और मुखातिब होकर कहा - "ऋता , प्लीज मेरे घर में डॉगी नहीं , बिलकुल भी नहीं। "</p><p>"अरे ऋषि क्या हुआ ? थोड़े से दिन में वह तुम्हें भी मोह लेगा। ये पैट न बड़े लॉयल होते हैं।"</p><p>"हाँ होते हैं और रहेंगे भी, लेकिन मैं नहीं चाहता कि एक और ऋषि अपनी माँ की गोद और प्यार के लिए एक डॉगी के पीछे खड़ा अपनी बारी का इन्तजार करें। "</p><p>"क्या कह रहे हो ?"</p><p>"मुझे क्या इतना ही समझा है तुमने ? ये बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे ?"</p><p>"कैसे आई ? ऋता इसको मैंने जिया है तभी तो मुझे घर में पैट रहने से सख्त नफ़रत है। "</p><p>"क्या ?"</p><p>"हाँ ऋता , मेरे जन्म से पहले मेरे घर में एक पैट था। मेरी मॉम और डैड का बेटा। फिर दो साल बाद मैं आया , जब तक नहीं समझ सकता था तब तक कुछ भी चला हो लेकिन फिर मॉम ऑफिस से आती तो फ्लॉपी उनसे लिपट जाता और जब तक उसका मन न भरता मॉम से अलग न होता और फिर मॉम मेरे पास आती। मैं उनका बेटा अपनी बारी का इन्तजार कर रहा होता। "</p><p>"क्या?" ऋता ने आश्चर्य से लगभग चीखते हुए पूछा। </p><p>"हाँ, यही सच है। "</p><p>"लेकिन मेरे बेटे के साथ ऐसा न हो तब मैं इसको वापस कर देती हूँ। " </p><p>"सच!"</p><p><br /></p><p><br /></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-31562002699616416202023-01-26T02:37:00.007-08:002023-07-06T02:32:25.120-07:00अपने हिस्से का दुःख!<p> <span style="font-size: medium;"> <span>रे</span><span>ड लाइट पर गाड़ियाँ खड़ी थीं कि शमिता की नजर बगल वाली गाड़ी पर चली गई और फिर दोनों की नज़रें एक साथ टकराईं। एक गाड़ी में कुछ बड़े बच्चे को लेकर महिला बैठी थी और दूसरी गाड़ी में एक बच्चे को लिए पुरुष। </span></span></p><p><span style="font-size: medium;"> तभी ग्रीनलाइट हुई और दोनों ने अपनी अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी । 2 घंटे बाद शमिता के पास एक फोन आया - "क्या हम आज शाम साथ में कॉफी पी सकते हैं?"</span></p><p><span style="font-size: medium;">"क्यों अभी भी कुछ शेष है?" शमिता ने झुँझलाकर कहा।</span></p><p><span style="font-size: medium;">"हाँ कुछ बातें करनी है , जो आज तुम्हें देखकर करने का मन कर आया।" आशीष ने संयत स्वर में कहा।</span></p><p><span style="font-size: medium;">" कुछ खास बात?" शमिता ने जानना चाहा।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> आशीष का 5 साल बाद इस तरह बात करना उसकी कुछ समझ नहीं आया, पर पता नहीं क्यों उस बच्चे का उसके साथ होना एक प्रश्न चिह्न तो खड़ा करता ही है। लेकिन क्या? यह वह ना समझ सकी और फिर वह अपने अतीत में ही डूबती चली गई । विवेक के आने के करीब 1 साल बाद उसको पता चला कि विवेक स्पेशल चाइल्ड है। बहुत मेहनत से खोज कर उसने ऐसे बच्चों के सेंटर के बारे में पता किया और उसमें उसको भेजने की सोची। फिर वहाँ से डे केयर में रखना शुरू कर दिया। बैंक से निकलने के बाद विवेक को ले कर घर आ जाती। जब सुधार नहीं हुआ और शमिता को आशीष से ज्यादा विवेक को समय देना पड़ता था। एक और साल गुजरा कि आशीष ने दो टूक कह दिया - "मैं 1 साल का समय दे सकता हूँ चाहे तुम छुट्टी लो या फिर कुछ भी करो उसको ठीक होना चाहिए नहीं तो मैं इस मैरिड लाइफ को और नहीं झेल पाऊँगा।" </span></p><p><span style="font-size: medium;"> और फिर वही हुआ उन्होंने सहमति से तलाक ले लिया। सोचते सोचते उसके आँसू गालों पर लुढक गये। बीच में विवेक ने उठकर उसके आँसू पोंछे और बोला - " माँ क्या हुआ"</span></p><p><span style="font-size: medium;">" कुछ नहीं।" कह कर उसने उसको अपने से चिपका लिया। यादें पीछा कब छोड़ती है, यादों के भँवर में डूबती तैरती हुई वह कब सो गई पता ही नहीं चला। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> वीकेंड पर समय निश्चित किया गया कि वे कॉफी हाउस में मिल सकते हैं । उसका बेटा 8 साल की हो चुका था और आशीष का बेटा 3 साल का था। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> आशीष पहले से ही कॉफी हाउस में आकर बैठा था, शमिता जैसे ही आई आशीष ने उठ कर वैलकम किया। </span></p><p><span style="font-size: medium;">"कहिए क्या बात है?" शमिता ने बैठते हुए सवाल किया।</span></p><p><span style="font-size: medium;">" क्या न हाल पूछा न चाल और तुमने तो सीधे से सवाल दाग दिया।" आशीष ने विनम्र होते हुए कहा।</span></p><p><span style="font-size: medium;">"क्या हमारे बीच ऐसा कुछ शेष है?" शमिता के स्वर में तल्खी थी। </span></p><p><span style="font-size: medium;">"यार, मैं चाहता था कि हम एक दूसरे के जीवन में झाँके।" आशीष सीधे बात पर आ गया।</span></p><p><span style="font-size: medium;">शमिता ने कहा - "वैसा ही जैसा पहले था कुछ बदलने जैसा है ही नहीं।" </span></p><p><span style="font-size: medium;">"लेकिन मेरे कहने का या इस सवाल का मतलब है कि तुम विवेक को कैसे पढ़ा लिखा रही हो? वह तुम्हारे पीछे कहाँ रहता है और तुम्हारे काम के दौरान कहाँ रहता है?" आशीष ने स्पष्ट कर दिया। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> "मैं नहीं समझती इन बातों का कोई मतलब है, यह बताओ तुमने मुझको बुलाया क्यों?"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> "क्या हम फिर से एक साथ नहीं रह सकते हैं?" </span></p><p><span style="font-size: medium;">"क्या कहा? विवेक अभी वैसा ही है।"</span></p><p><span style="font-size: medium;">" जानता हूँ, लेकिन जब से हम अलग हुए हैं, उसके बाद की कहानी बहुत अलग है। मैंने अपनी कलीग से शादी कर ली हमारी लाइफ सही चल रही थी, इस बीच दिविक का हमारे जीवन में आना हुआ लेकिन होने से 1 साल बाद पता चला कि वह भी 'स्पेशल चाइल्ड' है और उसके बाद उसने मेरा साथ छोड़ दिया । यह कहकर कि तुम्हारे अंदर ही कुछ तो कमी है, पहला बच्चा भी स्पेशल चाइल्ड हुआ और दूसरा भी, जबकि माँएँ अलग-अलग है। मैं ऐसे नहीं रह सकती और तब से दिविक को मेरे पास छोड़ कर चली गई।" कहकर आशीष ने गहरी साँस ली।</span></p><p><span style="font-size: medium;">" मुझसे क्या चाहते हैं?" शमिता ने जानना चाहा।</span></p><p><span style="font-size: medium;">"मैंने तुमसे यही कहा था और शायद उसी का दंड मुझको मिला है।. क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि हम लोग से एक साथ रहने लगें। उससे दोनों बच्चे एक साथ रहेंगे तो उन्हें अच्छी कंपनी मिलेगी तो अच्छी तरह डेवलपमेंट हो सकेगा।" </span></p><p><span style="font-size: medium;">"नो, नेवर तुमने सोच कैसे लिया कि मैं इस बात के लिए राजी हो जाऊँगी । हमें अपने अपने हिस्से का जीवन जीना है, फिर मैं तुम्हारा दुख और तुम मेरे दुख क्यों जिओगे? तुमने यही कहा था ना।" शमिता ने अपना पर्स उठाया और तेजी से बाहर निकल गई।</span></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-64565086374742526022023-01-21T23:07:00.003-08:002023-01-21T23:07:41.209-08:00ये दोस्त और दोस्ती !<p> विजय बहुत दिनों के बाद अपने कस्बे वापस आया था क्योंकि अब उसके पिता या और घर वाले यहाँ पर नहीं रह गए थे। बंचपन की गलियाँ, खेल के मैदान और स्कूल भी नहीं रह गये थे। </p><p> बस एक दोस्त था और उसकी माँ थी , जिसने अपनी माँ के बचपन में ही चले जाने पर उसे दीपक की तरह ही प्यार दिया था। स्टेशन पर लेने के लिए विजय को दीपक ही आया था क्योंकि उसे विजय से मिले हुए बहुत वर्ष बीत गए थे।</p><p> अब दोनों ही रिटायर्ड हो चुके हैं। विजय ने ट्रेन से उतरते ही दोनों हाथ फैला दिए गले लगाने के लिए और यह भूल गया कि दीपक का एक हाथ कटे हुए तो वर्षों बीत चुके हैं। एक पल में दीपक की कमीज की झूलती हुई आस्तीन ने उसको जमीन कर लेकर खड़ा कर दिया।</p><p> बीस साल से पहले की बात है दीपक ट्रेन से गिरा और उसका हाथ कट गया। तब छोटी जगह में बहुत अधिक सुविधाएँ नहीं हुआ करती थीं और न ही हर आदमी में इतनी जागरूकता थी। वह कई महीने अस्पताल में पड़ा रहा और उसका इलाज चलता रहा घाव भर नहीं रहा था । फिर पता चला कि सेप्टिक हो गया है। तब जाकर डॉक्टर सचेत हुए लेकिन उस कस्बे में वह इंजेक्शन नहीं मिल रहा था बल्कि कहो पास के शहर में भी उपलब्ध नहीं था। उस समय फ़ोन अधिक नहीं होते थे। विजय दूर कहीं चीफ इंजीनियर था , खबर उसके पास ट्रंक कॉल बुक करके भेजी गयी शायद वह वहाँ से कुछ कर सके। बस वही एक आशा बची थी।</p><p> विजय ने खबर सुनते ही अपने एक मित्र को बम्बई में फ़ोन करके उस इंजेक्शन को हवाई जहाज से भेजने को कहा। जैसे ही उसे इंजेक्शन मिला वह अपनी गाड़ी और एक ड्राइवर लेकर निकल पड़ा। सफर बहुत लम्बा था इसलिए एक ड्राइवर साथ लिया था। १४ घंटे की सफर के बाद विजय दीपक के पास पहुंचा था।</p><p> "डॉक्टर इसको कुछ नहीं होना चाहिए। अगर आप कुछ न कर सकें तो अभी बताएं मैं इसको बाहर ले जाता हूँ।"</p><p> "नहीं, इस इंजेक्शन से हम कंट्रोल कर लेंगे। अगर ये अभी भी न मिलता तो हम नहीं बचा पाते।"</p><p> दीपक बेहोशी में जा चुका था। दो दिन बाद वह होश में आया तब खतरे से बाहर घोषित किया गया। होश में आने पर उसने विजय को देखा - </p><p>"अरे तू कब आया।"</p><p>'दो दिन पहले, तू अब ठीक है न?"</p><p>"अरे मैं तो तुझे आज ही देख रहा हूँ।"</p><p>"तूने इससे पहले आँखें कब खोली थीं।" विजय उसका हाथ पकड़ कर बैठ गया था।</p><p> विजय को दीपक की पत्नी , बच्चे और माँ ने दिल से दुआएं दी कि अगर उसने इतना न किया होता तो शायद दीपक????????।</p><p> एक सच घटना है और कटु सत्य कि मित्र वही है, जो अपनी मित्रता को धन और स्तर से न आँके।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-27667372456197251572022-08-24T08:16:00.000-07:002022-08-24T08:16:04.661-07:00सामंजस्य!<p> बेटा बहू विदेश से आ रहे थे तो मीनू ने पूरी व्यवस्था कर ली कि यहाँ परेशानी हुई तो पास के होटल में कमरा बुक भी रहेगा, आराम से रहेंगे।</p><p> रचित और रचना के आने से रौनक आ जाती है। मीनू को भी बहुत इंतज़ार रहता है। बच्चे आ गये तो रचना ने अपना सामान अपने पुराने कमरे में जमा लिया। जब सब लोग नाश्ते के लिए बैठे तो मीनू ने ही कहा -</p><p> "तुम लोगों को यहाँ जरा सी भी तकलीफ हो तो मैंने दूसरी व्यवस्था भी कर रखी है, पास के होटल में कमरा बुक है, वहाँ जाकर सो सकते हो।"</p><p> "क्यों ऐसा क्यों?" बहू-बेटा एक साथ बोले।</p><p>"वैसे ही कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।"</p><p>"माँ हम यहीं वर्षों रहे हैं, कुछ भी बदला नहीं है।"</p><p>"ठीक ठीक है।"</p><p> "माँ दीदी को भी बुला लें, कुछ दिन सब साथ रह लेंगे।"</p><p>"बुला ले, खुश हो जायेगी।" </p><p> एक हफ्ते सब साथ रहेंगे और पुराने दिन याद करते हुए मस्ती करेंगे।</p><p>"एक ही हफ्ते क्यों? तुम्हें एक महीने रहना है न इंडिया में।" माँ कुछ तीखे स्वर में बोली।</p><p> रचना ने चौंक कर माँ को देखा और फिर रचित को।</p><p> "एक हफ्ते बाद रचना अपनी मम्मी के पास जायेगी और अपने भाई, बहनों के साथ एंजॉय करेगी।" रचित ने स्पष्ट किया</p><p>" और तू ?"</p><p>"मैं यहीं आपके साथ रहने वाला हूँ और चाचा बुआ से भी मिल लूगाँ।"</p><p>"ये कब आने वाली है?"</p><p>"दो वीक वहाँ रह लेगी और मै एक वीक वहाँ जाकर रहूँगा फिर इसको लेकर वापस आ जाऊँगा।"</p><p>"ये मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।"</p><p>"सीधी सी बात है, रचना दो वीक आपके साथ और दो वीक अपनी मम्मी के साथ रहेगी। मैं एक वीक रचना के घर और तीन वीक आपके साथ रहूँगा।"</p><p>"ये क्या बात हुई? ये बराबर दोनों जगह रहेगी , अपने घर में रहना चाहिए, मैं कितनी बेसब्री से इंतजार कर रही थी तुम लोगों के आने की और साथ कितना मिल रहा है।" माँ की आवाज़ के तीखेपन से उनकी गुस्सा समझ आ रही थी।</p><p>"बराबर मिल रहा है, उसे भी अपनी माँ के साथ रहने का समय चाहिए। मै तो तीन वीक आपके साथ रहूँगा न।"</p><p> "नहीं ये एक वीक रहकर वापस आ जायेगी, बुआ वगैरह भी आ जायेंगी तो रह लेंगी।" मम्मी ने सुझाव रखा।</p><p> "सारे रिश्ते उसके भी है और वह भी सबके साथ रहना चाहेगी, इसलिये यही सही है, जो मैंने कहा है।"</p><p> रचित उठकर चला गया।</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-78496736149879494572022-08-19T23:12:00.002-07:002022-08-19T23:12:53.639-07:00इंतजार!<p> रचित छुट्टियाँ खत्म करके अपनी सेना की सेवा में वापस जा रहा था और रीमा उसको दरवाजे तक छोड़ने आई तो --</p><p> "तुम अब अंदर जाओ रीमा, मेरे पैरों में हमारा अंश बेड़ियाँ बन रहा है।" रचित तिरछी नजर से देखता हुआ मन ही मन सोच रहा था।</p><p> रीमा मन ही मन आश्वासन दे रही थी - "जाओ रचित मैं तुम्हारी आने वाली पीढ़ी को सहेज कर रखूँगी और आने पर तुम्हें सौंप दूँगी।"</p><p> "तुम नहीं जानती रीमा, सीमा पर जाना मेरे वश में है, लेकिन वहाँ से वापस आना तुम्हारे भाग्य से होगा।" मन में एक द्वन्द्व लिए रचित भारी कदमों से आगे बढ़ रहा था।</p><p> "तुम बेफिक्र होकर जाओ, मेरी साधना और तुम्हारा राष्ट्र समर्पण सदैव कवच बन कर रहेगा।"</p><p> एक मूक संवाद करते दोनों आपस में दूर विपरीत दिशाओं में बढ़ गये।</p><p><br /></p><p>रेखा श्रीवास्तव</p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-42895267470116219222022-08-19T23:10:00.002-07:002023-04-11T04:49:41.829-07:00सावन के झूले!<p> <span style="font-size: medium;">सावन के झूले!</span></p><p><span style="font-size: medium;"><br /></span></p><p><span style="font-size: medium;"> बगीचे में पड़ा झूला भी सावन का इंतजार करता है कि कब उस पर झूलने बच्चे आयेंगे पार्क खिलखिलाहटों से गूँजने लगेगा। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> हरियाली तीज को तो झूला खाली नहीं रहता है। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> पर ये क्या सारा दिन गुजरा जा रहा है, बच्चियाँ न आईं झूलने। सारे पेड़ प्रश्नवाचक दृष्टि से एक दूसरे को देख रहे थे।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> "क्यों भाई सावन आधा निकल गया और झूले खाली पड़े है।" शीशम का पेड़ बोला।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> "क्यों भाई जमाने से बेखबर हो क्या?" नीम के पेड़ ने समझाया।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> झूला झूलने की ललक ललक ही रह जाती हैं, लेकिन माँ-बाप डर के मारे न भेजते है। समाज के वहशी दरिंदों का डर समाया है।"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> "बात तो सही है, पता नहीं क्यों भटक गया इंसान, न उम्र, न रिश्ते और न ही पास पड़ोस का लिहाज रह गया है।"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> "अब तो ऐसा ही होना है कि मेले, झूले सब सूने ही रहेंगे और वे जंगली कुत्ते ही मंडराया करेंगे।"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> "बस कर भाई अब सुना नहीं जाता है।"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> "देख और सुन सब रहे हैं, बस बच्चों का नैसर्गिक विकास छीन कर उन्हें नेट से बाँध दिया है।"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> अब इन झूलों के दिन गये, कहो कल म्यूजियम में दिखलाये जायें ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"><br /></span></p><p><span style="font-size: medium;">-- रेखा श्रीवास्तव</span></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-59021606054503538412021-12-28T01:01:00.001-08:002023-04-09T21:24:22.628-07:00 कलम का ईमान !<p> <span style="font-size: medium;">कलम का ईमान !</span></p><p><span style="font-size: medium;"> अख़बारों में निकल रहे लेखों और शोध रिपोर्टों के चलते वह कई सम्पादकों की निगाह में चढ़ गया था। अपनी कलम की बेबाक गति के चलते लोगों में लोकप्रिय भी हो रहा था। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> एक दिन उसके पास फ़ोन आया , एक अखबार के संपादक की तरफ से था - </span></p><p><span style="font-size: medium;">"जी मयंक जी बोल रहे हैं। "</span></p><p><span style="font-size: medium;">"जी, बोल रहा हूँ, कहिये आप कौन?"</span></p><p><span style="font-size: medium;">"मैं युवाजंग पत्र का ओनर बोल रहा हूँ।"</span></p><p><span style="font-size: medium;">"कहिए मैं आपके किस काम आ सकता हूँ?"</span></p><p><span style="font-size: medium;">"कल आप मेरे ऑफिस आने का कष्ट करेंगे? गाड़ी मैं भेज दूँगा, बस आप लोकेशन बता दें।" </span></p><p><span style="font-size: medium;">"आप बतलाइये, मैं खुद आता हूँ।"</span></p><p><span style="font-size: medium;">"जी धन्यवाद!"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> मयंक पत्र के कार्यालय पहुँचा तो उसका बड़ा स्वागत हुआ। फिर वह मुद्दे की बात पर आये तो कहा गया कि आप पत्र का संपादन सँभाल लें। वर्तमान संपादक की कलम उतनी दमदार नहीं है कि...। </span></p><p><span style="font-size: medium;">"लेकिन मैं किसी की जगह कैसे ले सकता हूँ?"</span></p><p><span style="font-size: medium;">"मैं आपको दुगुना वेतन दे सकता हूँ।"</span></p><p><span style="font-size: medium;">"सोच कर बताऊँगा। "</span></p><p><span style="font-size: medium;"> यह कहकर मयंक घर आ गया। पत्र के वर्तमान संपादक को ये बात पता चल गयी, लेकिन वह विवश था फिर भी उसने एक बार मयंक से बात करने की हिम्मत की - "भाई मेरे पेट पर लात मत मारिएगा। जीवन भर उनकी सेवा की और अब चंद सालों के लिए न शहर छोड़ सकता हूँ और न परिवार।"</span></p><p><span style="font-size: medium;">"भाई बेफिक्र रहो मैं वहाँ नहीं जा रहा हूँ।"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> एक हफ़्ते बाद मालिक का फ़ोन आया कि आपने क्या सोचा ?</span></p><p><span style="font-size: medium;">"सर आपको मेरी कलम पसंद है और वह सच्चाई और बेबाकी मेरी अपने कलम का ईमान है, लेकिन वो किसी और की रोटी नहीं छीन सकती।"</span><br /></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-50243804105852405092021-11-20T09:43:00.006-08:002023-04-09T21:25:29.304-07:00अहम् !<p><span style="font-size: medium;">अहम् !</span></p><p><span style="font-size: medium;"> शानू हमेशा गुमसुम रहता था । किसी के साथ रहना या खेलना उसको पसंद नहीं था ।उसकी टीचर और वार्डन ने बहुत कोशिश की, लेकिन शानू क्लास के बाद अकेले रहना पसंद करता । <br /></span></p><p><span style="font-size: medium;"> मम्मी-पापा के बीच बढ़ती दूरियाँ कहीं उसे न छू लें क्योंकि बच्चे संवेदनशील होते हैं वह अपने आस पास की आहटों को पहचान लेते हैं । इसीलिए उसे हॉस्टल में रखा गया था। वह एक भावनात्मक चक्रव्यूह में फंसा हुआ था। </span></p><p><span style="font-size: medium;"> वार्डन ने उससे उसकी खामोशी का कारण जानना चाहा, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला । हॉस्टल में कभी पापा मिलने आते तो कभी मम्मी , दोनों एक साथ कभी न आये । वार्डेन इसको दोनों के कामकाजी होने को इसका कारण मानने को तैयार न थी ।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> वह हॉस्टल जरूर आ गया था लेकिन वह मम्मी पापा की लड़ाई में ख़ुद को कहीं नहीं पाता था । उनकी अपने अहं की लड़ाई थी और जब उनके कमरे से गलत शब्दों की आवाज़ें कान में पड़ती तो वह कान में अँगुली ठूँस कर लेटा रहता । उस बाल मन को कोई रास्ता न सूझ रहा था । वह इस लायक था भी नहीं।</span></p><p><span style="font-size: medium;"> स्कूल की काउंसलर ने शानू के पास आकर बात की और फिर उसको बताये बिना ही उसके माता पिता को बुलाकर काउंसलिंग की और कहा - "इसके बचपन को अपने अहं की बलि न चढ़ायें । साथ रहें या न रहें लेकिन इसके जीवन सँवरने तक यहाँ साथ आयें और मिलें । उसके समझदार होने तक छुट्टियों में उसके घर होने पर साथ जरूर रहें । बस किशोर वय निकलने तक ।"</span></p><p><span style="font-size: medium;"> इस बार मम्मी पापा को साथ आया देख कर उसकी आँखों में चमक दिखाई दी , जो एक नयी आशा से भरी थीं । वह अपने मन के चक्रव्यूह को भेदने से खुश था.</span></p>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-89273825028858732802021-11-07T06:29:00.000-08:002021-11-07T06:29:38.485-08:00आठ हाथ !<p> नीना की लापरवाही से उसकी तबियत बिगड़ गयी और स्थानीय डॉक्टर्स ने हाथ
खड़े कर दिए, तब ललित ने अपनी बहन को फ़ोन किया - "दीपा तेरी भाभी की तबियत
कुछ समझ नहीं आ रही है , क्या करें ? भैयाजी से पूछ कर कुछ राय दे। "</p><p>- " भैया आप ऐसा करें कि भाभी तो यहाँ मेरे पास ले आइये। "</p><p>
नीना को बहुत भयंकर पीलिया हुआ था, जिसे डॉक्टर समझ नहीं पाए और वह दवा
लेते ही लेते और बढ़ गया। ललित की बाकी तीनों बहनें भी बारी बारी से देखने
के लिए आ रही थीं और अपने भाई को सांत्वना देती कि भाभी ठीक हो जाएंगी।
उसे भी अपनी बहनों पर बहुत भरोसा था , कैसी भी परेशानी हो वे चारों और उनके
पति कंधे से कन्धा मिला कर खड़े होते। इसी लिए वह आश्वस्त था कि नीना
यहाँ से ठीक होकर ही घर जायेगी। </p><p> ललित अस्पताल में
नीना के सिरहाने बैठा था और उसका हाथ में हाथ लेकर बोला - " तुम्हें अपने
तीन भाइयों पर फ़ख्र हो न हो लेकिन मुझे अपनी चारों बहनों पर फ़ख्र है। कभी
जिन्हें मैं जिम्मेदारी समझता था, उन्हीं के आठ हाथ आज तुम्हारे लिए दुआ कर
रहे हैं। "</p> नीना आँखें नहीं मिला पा रही थी क्योंकि एक दिन उसी ने कहा था - "इन चार चार ननदों को कहाँ तक निभाऊंगी ?"रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-33353430661689777762021-10-29T07:43:00.005-07:002023-09-26T06:55:31.525-07:00मुर्दों का त्यौहार !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जब तक नितिन रहे नीलिमा ने श्राद्ध के दिनों में रोज ही कुछ नहीं तो दुकान के लिए निकलते हुए एक पैकेट जरूर देती और कहती इसे किसी गरीब को देते जाना।</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
नितिन को पता था कि श्राद्ध तो माँ और बाबूजी की तिथि पर ही कराती है, लेकिन ये पंद्रह दिन तक रोज ही इस तरह से सीधा निकाल कर और पाँच रुपये किसी न किसी गरीब को भेजती रहती है। वह चुपचाप लेकर चला जाता। उसको इन सब से ज्यादा मतलब नहीं था, ये काम महिलाओं के हैं कि क्या क्या करना है?</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
अचानक नितिन के चले जाने पर नीलिमा ने सब बंद कर दिया क्योंकि श्राद्ध बहू बेटे के वश की बात नहीं है और वह किसी को यहाँ जानती नहीं तो किसको देगी ? गाँव में होती तो और बात होती। फिर भी संस्कार कहाँ जाते हैं ? नितिन की तिथि उसको याद हमेशा रहती है और इस बार उसने सोचा कि तीसरी साल है , बेटा - बहू कुछ करने वाले नहीं है तो वह ही कुछ नितिन की पसंद की चीज बना कर बाहर निकल कर किसी गरीब को दे आएगी।<br />
सुबह बहू बेटे के ऑफिस निकलने के पहले ही उसने कहा कि - "बेटा कुछ पैसे चाहिए , आज तेरे पापा की पुण्य तिथि है तो मैं किसी गरीब को कुछ फल दान करना चाहती हूँ। "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br /> "क्या माँ आप कब तक इस को मानती रहेंगी ? इंसान मरने के बाद भी खाने आता है क्या ?" बेटे ने पलट कर कहा। <br /></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
इससे पहले कि नीलिमा कुछ कहती बहूरानी बोल उठी - "हम दिन भर मेहनत करते इस लिए नहीं कमाते कि इसे मुर्दों के नाम पर खर्च किया जाय। सो इसे तो आप भूल ही जाइये कि जो आप अब तक पापा की कमाई से उड़ाती रही हैं , हम भी आप को उड़ाने देंगे। "</div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
बहू - बेटा के जाने के बाद नीलिमा के कानों में नितिन के लिए "मुर्दा" शब्द देर तक गूंजता रहा। <br /></div>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-2200384038574847752020-05-27T00:53:00.000-07:002020-05-27T00:53:33.607-07:00जमीर जागेगा !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
गाँव में प्रवासी मजदूरों को गाँव के बाहर स्कूल में रखा गया था। वही स्कूल जहाँ वे पढ़े थे । ग्राम प्रधान अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर रहा था ।<br />
. उस स्कूल के हैड मास्टर को पता चला तो वे दूसरे गाँव के थे लेकिन किसी की चिंता बगैर वे स्कूल आ गये । अचानक लॉकडाउन से मिड डे मील का सामान जो भी था । उन्होने रसोई चालू करवाई और बड़े बड़े घड़े निकलवा कर पानी भरवा कर रखवाया । ताकि इस भीषण गर्मी में ठंडा पानी तो मिल सके।<br />
शुभचिन्तकों ने कहा - " मास्साब काहे जान जोखिम में डारत हौ। ग्राम प्रधान को करन देब।,"<br />
<br />
"ये मेरे ही पढ़ाए बच्चे हैं और आज इनके घर वाले दूर भाग रहे हैं , लेकिन मैं नहीं भाग सकता ।"<br />
<br />
"अरे अपनी उमर देखो , लग गवा कुरोना तो कौनो पास न जइहै। "<br />
<br />
"कोई बात नहीं , मैं तो उम्र जी चुका , इन्हें अभी जीना है , ये कल हैं तो कोई भूख प्यास से न तड़पे ।"<br />
<br />
"फिर तो हम का कम हैं , मीठे कुआँ का पानी लावे का जिम्मा हमार ।" सरजू बोला।<br />
<br />
"खाने खातिर पत्तल हम देब, पीबे को सकोरा बैनी देब।" राजू ने जिम्मेदारी ली।<br />
<br />
"मास्साब हैंड पंप चला कर सबन के हाथ हम धुलाब।" कीरत भी साथ हो लिया ।<br />
<br />
अब गाँव की एक टोली मास्टर साहब के पीछे खड़ी थी, एक सार्थक पहल के लिए ...।</div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-9332508296218031832020-05-24T10:31:00.001-07:002020-07-11T07:29:38.881-07:00दया।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दया<br />
<br />
बीमारी के चलते सबने संध्या को काम पर जाने से मना कर दिया था । वह बाजार से सामान भी लाकर नहीं रख पाई थी ।<br />
. छत के खोखे में बने घोंसले में मनु चूजों के लिए रोज ही रोटी लेकर जाता था ।<br />
. उस दिन माँ ने कहा - " मनु अब आटा खत्म होने वाला है , तो चूजों के लिए चिड़िया दाना ले ही आयेगी , तुम अपनी रोटी खा लेना।"<br />
<br />
"ठीक है माँ ।" मनु ने सिर हिला दिया।<br />
<br />
खाना खाते समय मनु ने आधी रोटी जेब में रख ली। माँ के सोने के बाद रोटी के छोटे छोटे टुकड़े करके ऊपर चला गया । मनु को देख चूजे चूँ चूँ करने लगे । उसने आधी रोटी उनको खिला दी।रोज यही करता रहा।<br />
<br />
आज सिर्फ एक रोटी मनु के लिए थी । उसके लिए कुछ नहीं था । उसे नींद नहीं आई , करवट ली तो मनु को वहां न देख वह ऊपर गयी तो देखा मनु रोटी के टुकड़े पानी में भिगो कर चूजों को खिला रहा था।<br />
वह चुपचाप नीचे आ गई मनु के मन में जीवों के लिए दया देख उसकी आंखों में आंसू भर आए। </div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-57801303636957605322020-04-09T11:12:00.000-07:002020-04-20T01:55:07.094-07:00लॉक डाउन !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लॉक डाउन !<br />
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<br />
"माँ इस लॉक डाउन ने तो लोगों के जीवन को पंगु बना दिया है । ये निर्णय पूर्णतया गलत है , जहाँ पर कोई कोरोना वाला नहीं है , वहाँ पर तो ये जनता पर अत्याचार हो गया।" किशोर बोला ।<br />
"नहीं बेटा ऐसा नहीं है, अगर इटली,चीन और अमेरिका जैसे विकसित देशों में इसकी जरूरत समय पर समझी होती तो इस मानव क्षति पर अंकुश लगाया जा सकता था।" सुधा ने उसको समझाया। <br />
<br />
"पर माँ देश की इकॉनमी कहाँ जायेगी? हम बहुत पीछे चले जायेंगे, पढाई लिखाई बंद , काम बंद , बाजार बंद , उत्पादन बंद , कल हम एक एक चीज को तरस जाएंगे ।" किशोर अपनी उम्र के अनुसार सोच रहा था ।<br />
<br />
" किशोर अगर देशवासी सुरक्षित और ठीक रहेंगे तो हम फिर सँभल जायेंगे । ये प्रकृति का एक कहर ही है और वह क्रोधित होती है तो सारी सृष्टि को तहस नहस कर देती है। लातूर का भूकंप , बद्रीनाथ की त्रासदी , सुनामी जैसे कहर हम भूल कैसे सकते हैं ? "<br />
<br />
"लेकिन माँ कितनी बोरिंग लाइफ हो गई है । पढ़ा भी कितना जाय ? न कहीं बाहर जा सकते हैं और न कोई मनोरंजन। "<br />
<br />
" ये सोचो संक्रमण फैलने से कितना बच रहा है। नहीं तो हमारे देश का ग्राफ भी इटली की तरह बढ़ गया होता देश की सरकार एक एक कदम फूँक फूँक कर रख रही है।"<br />
<br />
" ये तो है माँ ।" किशोर समझने लगा था ।<br />
<br />
"और सबसे बड़ी बात उस वर्ग को अपने हाथ से काम करना आ गया , जो सिर्फ व्यक्तिगत कार्यों के लिए ही हाथ चलाता था।" माँ ने तिरछी निगाह से पापा की ओर देखा। किशोर मुस्कराने लगा ।<br />
<br />
"लेकिन लोग तब भी फॉलो नहीं कर रहे हैं और दूरी भी नहीं बना कर रख रहे हैं । विदेश से आने वाले भी क्वारंटाइन का पालन नहीं कर रहे हैं।" अब पापा की बारी थी ।<br />
<br />
"लॉक डाउन इसी लिए लागू किया गया है कि कोरोना के फैलने की आशंका कम हो । जिस त्रासदी को विश्व के अन्य देश झेल रहे है , हम समय से पहले सतर्क हो सकें । "<br />
<br />
"आज हमारे देश में अगर अन्य देशों से बीमारी का औसत कम है तो सिर्फ इसी लॉक डाउन के कारण । वायु प्रदूषण कितना कम हो गया है ? अंधाधुंध गाड़ियों की रफ़्तार से बढ़ता ध्वनि प्रदूषण भी अब नहीं रहा है। हाँ कुछ असुविधाओं का सामना कर रहे हैं, लेकिन जीवन की कीमत के लिए वह कुछ भी नहीं है ।"<br />
<br />
"हम कब मना कर रहे हैं कि लॉक डाउन गलत है बल्कि एक बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय है ।" किशोर और पापा एक साथ बोल पड़े । अब सुधा के मुस्कराने की बारी थी। <br />
<br />
<br /></div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-17461806999897323202019-08-28T01:39:00.000-07:002019-09-13T23:48:22.425-07:00इंतजार !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मिश्रा जी की माताजी का सुबह निधन हो गया । बिजली की तरह खबर फैल गई ।
लोगों का आना जाना शुरू हो गया । अभी मिश्रा की बहनें नहीं आईं थीं , इसलिए
उनका इंतजार हो रहा था ।<br />
घर का बरामदा औरतों से भरा था । पार्थिव शरीर भी वहीं रखा था । औरतें यहाँ भी पंचायत कर रहीं थी -<br />
" देखना अब मिश्रा जी भी यहाँ नहीं रहेंगे । दोनों आदमी बीमार रहते हैं
, बेटे के पास चले जायेंगे ।" सामने घर वाली तिवारिन बोली ।<br />
" और ये इत्ता बड़ा मकान , इसका क्या करेंगे ?" बगल वाली गुप्ताइन ने.पूछा ।<br />
" अब तो बिकेगा ही , अभी तक तो माताजी के कारण यहाँ थे । अब तो बेटे के पास जायेंगे न । "<br />
" सुना है बेटे ने वहाँ फ्लैट खरीद लिया है ।" <br />
" हम बात करेंगे भाभी से हमें दे दें तो दोनों बेटों का आमने सामने हो जायेगा ।" तिवारिन ने अपना दाँव फेंका ।<br />
" तुम क्यों हम न ले लेंगे , अगल बगल बने रहेंगे हमारे देवर और हम बीच से दरवाजा फोड़ लेंगे ।" गुप्ताइन ने जरा तेज आवाज में कहा ।<br />
मिश्राजी के मित्र की पत्नी ये सब सुन रहीं थी , उनसे रहा न गया
तो दबी आवाज में बोली - " इस मिट्टी का तो लिहाज करो , माँ अभी गईं भी नहीं
और आप लोग तो मकान भी खरीदने के लिए लड़े जा रहे हैं । क्या इसी दिन का
इंतजार कर रहीं थी ?" <br />
सन्नाटे के साथ दोनों के मुँह पर हवाइयाँ उड़ने लगीं ।</div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-21846745993247593692019-06-23T09:57:00.002-07:002023-04-12T19:51:24.789-07:00प्रायश्चित !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;">गौरव आज गांव आया हुआ था पिताजी ने गांव में एक मंदिर का निर्माण कराया है उसी का रुद्राभिषेक का कार्यक्रम है।पूजा में उसने भी श्रध्दापूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम के समापन पर भण्डारे का आयोजन था।<br /></span>
<span style="font-size: large;"><br />
मंदिर के विशाल प्रांगण में भोजन करने वालों के दो ग्रुप थे उन्हें एक दूसरे से अलग बैठाया गया था तो गौरव को कुछ अजीब सा लगा लेकिन एक तरफ के लोग खाने के बाद पापा के पास आकर दूर से जमीन के पैर छू कर जा रहे थे । यह देखकर उससे रहा नहीं गया - "पापा ये क्या कर रहे हैं ये लोग ?"<br />
"ये अछूत लोग है तो हमें न छूकर दूर से पैर छूते हैं ।"<br />
"लेकिन इतने बुजुर्ग लोग भी ।"<br />
"हाँ हाँ इसीलिए तो अन्नदाता कहते है ।"<br />
"पापा आप भी ये मानते चले आ रहे हैं । "<br />
"ये परंपराएं तो बाप दादाओं के जमाने से चली आ रही हैं । इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ।"<br />
"लेकिन मैं कर सकता हूँ , समय के हिसाब से परंपराएं बदली भी जा सकती हैं।और उसने बढ़कर एक अछूत बुजुर्ग के पैर छू लिए ।"<br />
"ये क्या किया मालिक ?आप हमें पाप में डालेंगे ।"<br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span>
<ul style="text-align: left;">
<li><span style="font-size: large;">"नहीं दादा अपने पूर्वजों के पाप का प्रायश्चित कर रहा हूँ ।"</span></li>
</ul>
</div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-76899476804954918552019-06-21T10:45:00.000-07:002019-06-21T10:49:50.409-07:00पहले मेरी माँ है @<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रानू जब सोकर उठा तो माँ वहाँ नहीं थी । आज माँ उसको जगाने भी नहीं आई । वह खोजता हुआ गया तो बाहर बरामदे में माँ लेटी थी और वहाँ सब लोग इकट्ठे थे । वो दादी जो कभी माँ से सीधे मुँह बात नहीं करती थी , माँ के सिर पर हाथ फिरा रहीं थी । बुआ माँ को सुंदर साड़ी पहना चुकी थी । लाल-लाल चूड़ियाँ , बाल भी अच्छे से बँधे थे ।<br />
रानू को समझ न आया कि आज माँ को ये लोग क्या कर रहीं हैं । कभी अच्छी साड़ी नानी के यहाँ से लाईं तो बुआ ने छीन ली । रात दिन काम में लगी रहने वाली माँ आज लेटी क्यों है?<br />
पापा को लोग घेर कर बैठे थे । हर बात में माँ को झिड़कने वाले पापा चुप कैसे हैं ? वह माँ के पास जाकर हिलाने लगा - "उठो माँ तुम सोई क्यों हो?"<br />
बुआ ने हाथ पकड़ कर खींच लिया - "दूर रहो , तेरी माँ भगवान के घर चली गई है ।"<br />
"किसने भेजा है? पापा ने , दादी ने या आपने ?"<br />
"बेटा कोई भेजता नहीं , अपने आप चला जाता है आदमी ।"<br />
"झूठ , झूठ , सब झूठ कह रहे हो ।" वह आठ साल का बच्चा अपनी माँ को तिरस्कृत ही देखता आ रहा था । माँ कुछ कहती तो पापा कहते -"पहले मेरी माँ है , उनके विषय में कुछ न सुनूँगा ।"<br />
वह दौड़कर पापा के पास गया और झकझोरते हुए बोला - " पापा आपने मेरी माँ को क्यों भगवान के पास भेज दिया ? माँ से हमेशा कहते थे कि पहले मेरी माँ है , तो अपनी माँ को पहले क्यों नहीं भेजा ?"<br />
वापस दौड़कर माँ के पास आया और शव के ऊपर गिर कर चीख चीख कर रोने लगा ।</div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-45902875874214860932016-12-31T09:44:00.000-08:002016-12-31T09:45:02.445-08:00नया साल !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
समर घर से निकला तो पत्नी और बच्चों के लिए गिफ्ट पहले ही खरीदता हुआ होटल पहुंचा था। रात में प्रोग्राम ख़त्म करके सीधे घर भागेगा क्योंकि कई साल से वह बच्चों के साथ नए साल का स्वागत नहीं कर पाया है। आज उसने बच्चों से वादा किया है कि वे नए साल का केक साथ ही काटेंगे।<br />
आज साल का आखिरी दिन है और होटल में बहुत चहल पहल रहती है , देर रात तक पार्टी चलती रहती है , इसलिए उसने मैनेजर से दो दिन पहले ही बोल दिया था कि वह आज के दिन जल्दी जाएगा और उसकी जगह किसी और को बुला लें। यहाँ वालों के लिए तो आज का दिन मौज मस्ती और पानी की तरह पैसे बहाने का दिन होता है और होटल के काम करने वालों का तो साल का पहला दिन बैल की तरह काम करते हुए शुरू होता है। दूसरों के लिए ही तो वो यहाँ काम करते हैं। साज़कारों की उंगलियां अपने अपने साजों पर होती हैं लेकिन आँखें घडी पर होती है कि कब उन्हें यहाँ से जाने को मिलेगा। <br />
जब घडी ने ग्यारह बजाये तो उसकी धड़कने तेज होने लगी , कहीं कोई और न आया तो वह फिर बच्चों के सामने झूठ साबित हो जाएगा और बच्चे भी तो निराश हो जाते हैं। वह धीरे से उठकर मैनेजर के कमरे में गया - 'सर मैंने कहा था कि आज मुझे जल्दी जाना है , दूसरा आदमी कब आएगा ? '<br />
'रुको तुम अपने काम पर लगे रहो , मैं अभी व्यवस्था करता हूँ। '<br />
उसने वापस आकर आपने साज संभाल लिया। घडी की सुइयां अपनी चाल से चल रही थी और उसकी आत्मा उतनी ही तेजी से उसे धिक्कार रही थी। उसकी नज़रें मैनजर को खोज रही थीं लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया। न ही उसको अपनी जगह लेने वाला कोई आता दिख रहा था। वह गुस्से से उठा और फिर मैनेजर के केबिन में जाकर खड़ा हो गया -- ' सर मैंने आपसे पहले ही कहा था कि मुझे जल्दी जाना है , मेरी जगह आने वाला क्यों नहीं आया ?'<br />
'समर मैंने बुलाया तो था उसको लेकिन वह नहीं आया और जब तक साहब लोग फ्लोर पर हैं साज बंद नहीं होंगे। यही तो हमारे लिए कमाई का मौका होता है। जाओ अपना काम देखो। '<br />
इसके आगे वह कुछ कह नहीं सकता था और शायद इसी को दूसरे के इशारों पर नाचना कहते हैं। वह फिर आकर अपने साज पर बैठ गया। उंगलियां साज पर चल रही थीं लेकिन उसका मन उनकी आवाज को संगीत नहीं बल्कि कानों में पड़ने वाले गर्म शीशे की तरह महसूस कर रहा था। रोज वह झूम झूम कर यही साज बजाता था लेकिन आज नहीं हो पा रहा था। <br />
सुबह तीन बजे कार्यक्रम ख़त्म हुआ और वह भी लड़खड़ाते पैरों से गिफ्ट उठा कर घर की तरफ निकला। जब उसने दरवाजा खोल तो टी वी चल रहा था। मेज पर केक रखा था और पत्नी और बच्चे सोफे लुढ़के हुए थे और उनकी रजाई ऊपर से खिसक कर जमीन पर गिरी हुई थी।<br />
उसने धीरे से रजाई उठा कर बच्चों पर डालनी चाही तो बच्चे जाग गए , उसकी विवशता आँखों से लेकर चेहरे तक उत्तर चुकी थी कि बच्चे उठा कर खड़े हो गए और वह कुछ कहता उससे पहले ही बोल उठे -- ' कोई बात नहीं पापा मम्मा कह रही थी कि ये वाला अपना न्यू इयर थोड़े ही होता है , ये तो बड़े लोगों का होता है। अपना तो जब होता है , तब हम पूजा करके मनाते हैं। '<br />
समर कृतज्ञता से पत्नी को देखा और गर्व से बच्चों को सीने से लगा चुका था। <br />
</div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-27251675000969926022016-12-29T03:08:00.002-08:002023-04-14T19:56:18.936-07:00हस्तांतरण !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: small;"> </span><span style="font-size: large;"> माँ तीन दिनों से बेटी के फ़ोन का इन्तजार कर रही थी और फ़ोन नहीं आ रहा था। नवजात के साथ व्यस्त होगी सोचकर वह खुद भी संकोचवश फ़ोन नहीं कर पा रह थी। एक दिन उससे नहीं रहा गया और बेटी को फ़ोन किया -</span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"> </span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"> "बेटा कई दिन हो गए तेरी आवाज नहीं सुनी , कैसी हो ?"</span><span style="font-size: large;"></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"><br /></span> <span style="font-size: large;">"माँ तेरी जगह संभाली है न, तो उस पर खरी उतरने का प्रयास कर रही हूँ। इसके सोने और जागने का कोई समय नहीं होता और ये ही मेरे लिए मुश्किल है। लेकिन फिक्र न करना, विदा करते समय जैसे दायित्वों की डोर थमाई थी न , वैसे ही उसको थामे हूँ। बेटी बन उस घर में जन्मी लेकिन इस घर में बहू बन आयी और बेटी बनने का पूरा प्रयास करती रही।"</span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"> </span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"> "ये तो मैं अपनी बेटी को जानती हूँ।"</span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"> </span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"> "अब माँ बनी तो जो जो आपने किया और दिया, वही दे रही हूँ माँ। कुछ सुविधाएँ बढ़ गयीं है लेकिन माँ के दायित्वों में कोई कमी न हो वह कोशिश कर रही हूँ।" </span><span style="font-size: large;"></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"> "तुम्हारी बेटी बाँट गयी है माँ - एक बेटी और माँ के रिश्तों में पर चिंता मत करिए , मैं आपकी बेटी पहले हूँ और बहू और माँ बाद में। सारे रिश्तों को बखूबी निभा लूंगी। आखिर आपकी बेटी हूँ न।' </span><span style="font-size: large;"><br /></span>
<span style="font-size: large;"><br /></span><span style="font-size: large;">
</span><span style="font-size: large;"><span> माँ के आँखों में आंसू बह निकले , माँ बनते ही बेटी बड़ी हो जाती है।</span></span><span style="font-size: x-large;"> </span><br />
<span style="font-size: x-large;"> </span></div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-22133256477492189722016-12-23T01:11:00.003-08:002020-04-03T05:58:08.701-07:00अहसास !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: large;"> रानू जब से माँ बनने की ओर बढ़ी है , रोज ही कुछ न कुछ परेशानियां उसको लगी रहती थीं तो परेशान होकर नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और घर में रहने लगी। वह घर में अकेली ही रहती थी लेकिन ऋषिन को उसकी चिंता अपने ऑफिस में लगी रहती थी। वह दिन में कई बार फ़ोन करके उससे हाल चाल लेता रहता था। </span><br />
<span style="font-size: large;"> रानू और ऋषिन का एक ही जगह जॉब होने के कारण और कोई परेशानी नहीं थी लेकिन समय पास आने के साथ साथ उनकी अलग तरह की चिंताएं बढती चली जा रही थीं। रानू स्वभाव से संवेदनशील थी लेकिन इस समय की परेशानियों के कारण वह गुस्सा भी जल्दी हो जाया करती थी। ऋषिन उसके स्वभाव से बहुत अच्छी तरह परिचित था और वह अच्छे से सामंजस्य बिठाये हुए था। ऐसा नहीं कि रानू सिर्फ ससुराल में ऐसा करती थी वह अपनी बहनों और माँ से भी जल्दी गुस्सा हो जाती थी और थोड़ी देर बाद सॉरी कह कर सामान्य हो जाती। लेकिन दूसरे परिवार में आकर ये आदत उसे सहज रूप से लेने वाली न थी। सास की बातों से वह खिन्न हो जाती थी और कभी कभी झुंझला भी जाती थी। </span><br />
<span style="font-size: large;"> ऋषिन ने उसकी माँ को सहायता के लिए बुला लिया था लेकिन रानू महसूस कर रही थी कि माँ की बातों में अपने बेटे , बहू और पोते की चिंता ज्यादा झलकती थी। रानू ने महसूस किया कि माँ उसे कम प्यार नहीं करती लेकिन ज्यादा झुकाव उसका अपने बेटे और बहू के प्रति अधिक था। उसने माँ को जाने के लिए कह दिया। </span><br />
<span style="font-size: large;"> ऋषिन ने सोचा था कि रानू को प्रसव के लिए उसकी माँ के पास भेज देगा और फिर अपने घर ले जाएगा। इस दौरान रानू को ये अच्छी तरह से अहसास हो चुका था कि एक बच्चे को जन्म देने में माँ कितना कष्ट उठाती है ? ये नौ महीने का समय वह एक एक सांस अपने बच्चे के साथ लेती है फिर वह अपने से दूर होने की बात कैसे स्वीकार कर सकती है और फिर अगर कोई और बीच में आकर दूर करना चाहे तो वह सहर्ष स्वीकार तो नहीं कर सकती। शायद वह भी नहीं कर पायेगी। </span><br />
<span style="font-size: large;"> उसके घर जाने का समय करीब आ रहा था और उसने अपनी ससुराल जाने का टिकट बुक करा लिया। तैयारी कर ली तब पति को टिकट दिया तो उसने देखा और बोला -- "तुम्हें कहाँ चलना है। " </span><br />
<span style="font-size: large;">"मम्मी जी के पास। "</span><br />
<span style="font-size: large;">"क्यों मम्मी के पास नहीं जाना है ?"</span><br />
<span style="font-size: large;">"नहीं मम्मी ने जो कष्ट तुम्हारे लिए उठाये होंगे , उसका अहसास मुझे अब हुआ है। अब तो उनके पास ही जाकर डिलीवरी करुँगी , उनको बहुत ख़ुशी होगी और शायद मुझे भी। "</span><br />
<span style="font-size: large;"> ऋषिन रानू की संवेदनशीलता को पहले से ही जानता था और आज उसको इस रूप में देखा तो अपने को खुशनसीब समझ रहा था। </span><br />
</div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-86098289259849479232012-07-02T03:50:00.005-07:002023-04-13T03:40:51.259-07:00भवितव्यता (४)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पूर्व कथा :<br />
<br />
<b><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: x-small;">सावित्री
अपने मइके या ससुराल दोनों में दुलारी थी। घर में लक्ष्मी मानी जाती।
उसका पति समझदार और जिम्मेदार युवक था। छोटे भाई की संगती के बिगड़ने से
चिंतित रहता और उसके इसा बात के लिए रोकने पर उसके साथ कुछ ऐसा बुरा हुआ की
कई जिन्दगी इसमें पिसने ला। शशिधर का दोस्त गिरीश ने अंतिम समय उसे वचन
दिया की वह उसकी पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय नहीं होने देगा और इसके लिए
उसने स्कूल में पूरी भूमिका बना दी। चाचा बच्चों को करने लगा और साथ ही सावित्री को भी। बच्चों को कसबे में के लिए ले जाने के सवाल पर गिरीश और शशि के घर वालों के बीच कहा सुनी हो गयी और उसी बीच गिरीश ने कह दिया की शशि को मारने वाले उसके देवर के साथ ही थे ...........</span></span></b><br />
<b><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: x-small;"><br /></span></span></b><br />
गतांक से आगे :<br />
<br />
<span style="font-size: large;"> <span>गिरीश की बात सुनकर उसके ससुर और सावित्री अवाक् रह गए। लेकिन उनके मुँह से कोई बात निकल ही नहीं सकती थी। उन दोनों के मन में क्या चल रहा था इसको कोई और नहीं जान सकता था। इस बात को सुनकर उसका देवर भी सन्न रह गया लेकिन गिरीश को हर बात कहाँ तक पता है? इस बारे में उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा क्योंकि अब आगे से उसे गिरीश से पंगा नहीं लेना है ये तो पक्का है लेकिन फिर क्या इसके लिए वह सावित्री और बच्चों को घर से जाने देगा फिर तो भैया का सारा पैसा यही लोग हड़प कर जायेंगे और खेती में हिस्सा तो बना ही रहेगा। उसके हिस्से में क्या आने वाला है? वह ऐसा होने ही नहीं देगा? इसके लिए उसे चाहे गिरीश को भी धमकाना क्यों न पड़े ? मेरे पास तो मेरे सारे साथी हैं और गिरीश अकेला है डर ही जाएगा। </span></span><span style="font-size: large;"><br />
<span><br /></span><br />
<span> ***** **** ***** </span><br />
<span><br /></span><br />
<span> आखिर गिरीश ने घर जाकर ये निर्णय लिया कि वह इस बार बच्चों का नाम कस्बे में ही लिखायेगा। छोटा अभी छोटा है इसलिए वह बाकी दोनों बच्चों नाम ही लिखायेगा। यद्यपि उसको ये विश्वास ही नहीं कि शशि का छोटा भाई इस बात के लिए राजी होगा और बच्चों को कस्बे में पढ़ने देगा। कहीं ऐसा न हो कि वह मेरे साथ साथ इन बच्चों का भी दुश्मन न बन बैठे, सावित्री क्या करेगी?</span><br />
<span> </span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"><span> शशिधर के पिता की भी जान सांसत में पड़ गयी कि ये नालायक बेटा कहीं उसकी पूरी जमीन- जायदाद कुसंगत में पड़ कर जुए और शराब की भेंट न चढ़ा दे। इन बच्चों को कहीं सड़क पर लाकर खड़ा न कर दे, फिर वे क्या करेंगे? जो अपने देवतुल्य भाई को मरवा सकता है ,वह कुछ भी कर सकता है। वे भी बच्चों को बचाने और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उन्हें अपने से दूर करने के लिए खुद को तैयार करने लगे और इसके लिए वे अपने दिल पर पत्थर रखने के लिए राजी थे। उन्हें इस बात पर शर्म आने लगी थी कि कहाँ एक बेटा कितना सज्जन और चरित्रवान और दूसरा निकम्मा और बिगडैल। उन्होंने पत्नी से भी विचार इस बारे में किया। एक माँ वैसे भी चोट खाए बैठी थी, उसकी जितनी आत्मा आहत थी और वह उससे ज्यादा नहीं सोचना चाहती थी। अब वे दोनों ही बेटे को खोकर पोतों को खोने की कल्पना से भी उनकी आत्मा काँप जाती थी। इसलिए उन लोगों ने गिरीश के प्रस्ताव को स्वीकार कर का मन बना लिया ।</span><br />
<span> स्कूल खुलने का समय धीरे धीरे पास आता जा रहा था, सावित्री को इस बारे में अभी नहीं बताया गया था। गिरीश ने भी सोच लिया था कि वह बच्चों का नाम बगैर उन्हें ले जाए पहले ही एडमीशन करवा लेगा और एक दो महीने के बाद वह ले जाएगा। लेकिन उसको ये नहीं मालूम था कि बच्चों को यहाँ से ले जाना तो आसान होगा लेकिन उनकी परवरिश नहीं। गिरीश बच्चों को ले तो गया लेकिन उनके लिए एक कमरा लेकर रहना भी उसको वहीं पड़ेगा लेकिन मित्र की खातिर उसको कुछ न कुछ तो कष्ट उठाना ही पड़ेगा, इस बात से वह पूरी तरह से वाकिफ था और मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार भी था। बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था, उनके कपड़े धोना , उनके लिए सारी सुविधाएँ जुटाना आसान न था। सिर्फ कुछ ही दिनों में गिरीश को लगने लगा कि वह ये सब नहीं कर पायेगा। वह तो घर से आकर यहाँ पर पढ़ा कर चला जाता था। कभी घर में दाल नहीं और कभी आटा नहीं। फिर रसोई के तमाम झंझट, बच्चों को क्या खाना खिलाना है और क्या नहीं" ये सब बातें कभी पुरुष भी जान सके हैं? लेकिन वह जिस आग में कूदा था उससे पीछे नहीं हटना था।</span><br />
<span> फिर एक दिन बड़ा बेटा मयंक बीमार पड़ा , उसको बहुत तेज बुखार था और वह बुखार के कारण बड़बड़ा भी रहा था। वह बुखार में माँ माँ की रट लगाये था। अब गिरीश के हाथ पैर फूलने लगे कि अगर बच्चे की हालत और बिगड़ती है तो वह क्या करेगा? वह अकेला दोनों बच्चों को कैसे संभाल सकता है? तीन दिन तक उसके बुखार रहने के बाद वह ठीक हो पाया लेकिन इस बीच गिरीश जिस अग्निपरीक्षा से गुजरा था उसने उसे अन्दर तक हिला दिया था।</span><br /> <span>उसने रविवार की छुट्टी के दिन बच्चों को लेकर गाँव जाने की सोची , बच्चे अपने घर वालों से मिल भी आयेंगे और वह उनके बाबा से माँ को साथ भेजने के लिए बात भी करेगा. उसे इस बात का पूरा पूरा अहसास हो चुका था कि बगैर माँ के बच्चों को रखना आसान नहीं था। एक माँ तो अपने बच्चों को बाप के बिना पाल सकती है लेकिन एक बाप बिना माँ के बच्चों को नहीं पाल सकता। घर में गृहणी का रहना कितना जरूरी है इस बात को वह अच्छी तरह से जान चुका था और इसी लिए वह शशिधर के पिता से बात करने के लिए तैयार हो चुका था।</span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"><span> </span><br />
<span> घर पहुँच कर उसने शशिधर के पिता से बात की --</span><span><br /></span><br /> <span>"बाबूजी बच्चों की खातिर उनके साथ उनकी माँ का रहना बहुत ही जरूरी है, अतः आप उनकी माँ को उनके साथ रहने की अनुमति दें। 10 और 8 साल के बच्चे इतने बड़े नहीं होते कि वे अपनी माँ के बिना रह सकें।"</span><span><br /></span><br />
<span>"लेकिन ये तो मुश्किल है , घर में क्या होगा? शशि की माय भी अकेली रह जायेगी।"</span><span><br /></span> </span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"> <span>"बाबूजी बच्चों के खाने पीने की व्यवस्था करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है।"</span><span><br /></span><br />
<span>"बेटा तुमने कहा किबच्चों को भेज दें, मैंने वैसे ही किया लेकिन बहू को भेजना मुश्किल है।"</span><span><br /></span><br />
<span>"बाबूजी बच्चों के भविष्य आपको कुछ तो सोचना ही पड़ेगा।"</span><span><br /></span><br />
<span>"अच्छा बेटा तुम थोड़े दिन रुक जाओ मैं इस बारे में घर में बात करता हूँ ।</span><br />
<span> </span><br />
<span> गाँव का मामला था , वहाँ इतना आसन नहीं होता कि कोई विधवा स्त्री अकेले कस्बे में रहने चली जाए वह भी एक गैर मर्द के कहने पर। शशिधर के पिता इस बात को महसूस कर रहे थे कि इस समय हालत ऐसे ही हैं कि सावित्री को बच्चों के भविष्य के लिए बाहर निकलना ही पड़ेगा। इस बात को घर में उठाया गया कि छोटे अपनी पत्नी को गौना करा कर ले आये ताकि सावित्री बच्चों के साथ जा सके। जब ये बात देवर को पता चली तो वह आग बबूला हो गया और उसने गाँव के सरपंच को बुलाने की सोची और वह इस बात के लिए बिलकुल तैयार नहीं था। जिस दिन गिरीश आया छोटे पहले से ही सरपंच को बुला लाया था कि पराया मर्द उसके भाई के बच्चों को लेकर चला जायेगा फिर हम कुछ न कर पायेगे। सावित्री भी अगर एक बार घर से बाहर निकली तो फिर घर लौट कर उसको रहना मुश्किल हो जायेगा। कस्बे की जिन्दगी सबको लुभाती है और जब पैसा उसके हाथ में होगा तो फिर वह किसी को क्यों घास डालेगी? </span><br />
<span> </span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: large;"><span>सरपंच काफी बुजुर्ग अनुभवी और सुलझे हुए व्यक्ति थे। उन्होंने गिरीश से बात की --</span><br />
<br />
<span>"तुम बहू को शहर ले जाओगे तो लोग क्या कहेंगे?"</span><br />
<br />
<span>"कुछ भी कहें, वह अपने बच्चों के साथ रहेंगी, नहीं तो बच्चों का वहाँ पढ़ पाना मुश्किल हो जायेगा। वहाँ अभी बच्चों को रखने के लिए हॉस्टल भी नहीं है कि उनको वहाँ डाला जा सके।"</span><br />
<br />
<span>"वहाँ किसी आदमी की भी जरूरत होगी, एक गाँव की औरत कस्बे में सब कुछ कैसे कर पाएगी?"</span><span><br /></span><br />
<span>"इस बारे में इनके भाइयों को बुला कर बात कर लीजिए , शायद वे कुछ व्यवस्था कर सकें।"</span><span><br /></span><br />
<span>"इस बात को आप लोगों ने क्यों नहीं सोचा कि बच्चों और बहू के बारे में कुछ निर्णय लेने के पहले उसके मायके वालों की राय लेना भी तो उतना ही जरूरी है।" सरपंच को गिरीश की बात जँच गयी। </span><br />
<br />
(क्रमशः) <br />
<br />
</span><br /></div>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-38635850428766757872012-06-10T01:24:00.003-07:002022-02-08T05:41:34.625-08:00भवितव्यता !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody">
पूरे मोहल्ले में यह खबर बिजली की तरह से फैल गयी कि बनारस में नीतू के फूफाजी का अचानक निधन हो गया। मोहल्ले के बड़े बुजुर्गों ने तो उनका बचपन भी देखा था और फिर व्याह, बच्चे सभी कुछ तो सबके सामने हुआ, किन्तु सावित्री जैसा भाग्य किसी ने किसी का नहीं देखा और न सुना था। </div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"> एक विधवा के लिए कितना कठिन होता है वैधव्य ढोना और सावित्री फिर एक बार विधवा हो गयी। विपत्तियों के पहाड़ तो उसने जीवन भर टूटते देखे और उनके तले दब कर जीवन जिया। कभी रोई, सिसकी, घुटी और फिर कभी चेहरे के मुस्कराहट से भरी भी नजर <span style="font-size: small;">आई लेकिन इतने <span>उतार</span> -चढाव शायद किसी ने अपनी जिन्दगी में देखे होंगे। एक कोमल से पांच भाइयों की दुलारी बहन। किसी ने उससे जोर से बोलै तक नहीं था और वैसी ही वह भोली भाली भी थी। </span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"> गाँव के हिसाब से बचपन में उसकी पास के ही गाँव में भरे पूरे परिवार में</span><span style="font-size: small;"><span style="font-size: small;"> शादी कर दी गयी थी</span>। इकलौती बेटी और सात भाइयों की इकलौती बहन, बड़ी दुलारी प्यारी - कौन सी सुविधा थी जो उसे नहीं मिली। हर कोई इसी फिराक में रहता कि कौन सी खुशियाँ अपनी बहन और बेटी के आँचल में डाल दें। वह पाँचवे में पढ़ रही थी तभी उसकी शादी कर दी गयी थी। ससुराल में भी उसको खूब सम्मान मिला। खूब सारा दहेज़ लेकर जो आई थी और फिर सबकी आँख का तारा बन कर रही। पति तब पढ़ ही रहा था - घर में अच्छी खेती बाड़ी थी। धन धान्य की कमी न थी। घर में सम्पन्न परिवारों की निशानी ट्रैक्टर और जीप दोनों ही थे। उसका पति पढ़ने में होशियार था तो उससे पिता को भी बहुत उम्मीदें थी कि वह घर में पढ़ लिख जाएगा तो फिर बाकी भाई भी पढ़ लिख जायेंगे और खेती के बारे में भी वह सब देख सकेंगे।<br /> पढ़ने के बाद शशिधर की नौकरी पास के कस्बे में लग गयी, यद्यपि पिता की इच्छा न थी कि वह नौकरी करे लेकिन उसका कहना था कि घर से अधिक दूर नहीं है , घर से रोज आया और जाया जा सकता है तो फिर कोई बुराई नहीं है। इस शर्त पर कि वह घर से ही आया जाया करेगा उसके पिता मान गए।<br /> सावित्री के एक एक करके तीन बेटे हुए। एक तो बड़ी बहू फिर घर में बेटे ही बेटे पलकों पर बिठाया जाता। वह अधिक दिन ससुराल में न रहती कभी मायके और कभी ससुराल में बनी रहती । मन से एकदम भोली और साफ थी। पति की कमाई से कोई मतलब न था। जो पैसे दे देता बहुत था। फिर उसे पिता के घर से इतना मिलता रहता था कि खाली हाथ तो उसका कभी रहता ही न था। सास तो उसे साक्षात लक्ष्मी ही मानती थी। उसकी तरह से देवरों की शादी भी जल्दी ही कर दी गयी लेकिन अभी सास गौना लेने को तैयार न थी क्योंकि सावित्री तो बड़ी बहू थी सो शौक के मारे जल्दी ही गौना ले लिया था। उसके देवर शशिधर की तरह से पढ़ने लिखने वाले न थे। उनकी संगति बिगड़ चुकी थी। वे न तो बड़े भाई की तरह से कर्मठ और व्यवहारकुशल थे और न ही जिम्मेदार । सभी खेती के काम में लगे रहते और जो हाथ में आता उससे उनकी संगति बिगड़ने लगी। घर का पैसा जुएँ और शराब में उड़ाना शुरू कर दिया। चापलूस दोस्तों की कमी न थी । उसको घर के खिलाफ भड़का कर पैसे खर्च करवाने में किसी को बुरा न लगता था। मौज मस्ती उसके दम पर ही चल रही थी। बाकी बड़े भैया तो बने ही थे, छोटे भाइयों की फरमाइश पूरी करने के लिए। </span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"> शशिधर ने एक दिन भाइयों को ट्यूबबेल पर आवारा लड़के के साथ मस्ती करते देखा तो उसके कानखड़े हो गए कि ये तो बर्बादी के ओर बढ़ रहे हैं । उसने उनको वही जाकर लताड़ा -- "यहाँ क्या तमाशा मचा रखा है।"<br /> </span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;">"कुछ नहीं - ये लोग आ गए तो ताश खेल रहे थे।" जुएँ के ताश समेट रहे दोस्तों को उसने कसकर थप्पड़ लगाये और भाई को तो घसीटते हुए घर लाकर पिता के सामने खड़ा कर दिया । पिता ने भी उसको दो चार तमाचे जड़ दिए। शशिधर का ये कदम घर को बर्बादी से बचाने के लिए था लेकिन उसकी अपनी जिन्दगी और परिवार के लिए आगे मँहगा पड़ेगा ये किसी ने नहीं सोचा था।<br /> </span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"> घर में ही महाभारत होने लगी। बड़े भाई की कमाई पर ऐश करना बंद हो गया। पिता ने भी अब पैसे देने के बारे में सोचना शुरू कर दिया। शायद भाई सुधर भी जाते लेकिन उनके आवारा यार दोस्तों ने तो अपनी मौज मस्ती में खलल पड़ते हुए देखी तो वे उसको भड़काने लगे -</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"><br /> "तुम भी तो इस खेती के बराबर के हिस्सेदार हो और अभी तुम्हारा खर्चा ही क्या है? सारी गृहस्थी तो तुम्हारे भाई की है। सारा हिस्सा तो उसके बीबी बच्चों पर खर्च होता है। तुम अपनी खेती बंटवा लो , फिर कोई रोकने टोकने वाला नहीं होगा।"</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"><br /> उन मूढ़ मगज को बरगलाना आसान था क्योंकि पढ़ाई लिखाई से उनको कोई मतलब नहीं था और फिर घर से भी अधिक उन्हें अपने दोस्तों पर भरोसा जो था कि वे सही राय देंगे। उनकी समझ आने लगा कि दोस्त सही कह रहे हैं। उसने घर में बंटवारे की बात की तो और भी धुनाई हुई। अब घर वालों को समझ आ गया था कि इसके मक्कार दोस्त ही इसको भड़का रहे हैं। मुफ्त में खाना पीना किसे बुरा लगता है? सब के सब ऐसे ही छोटे घरों के थे, चापलूसी करने में कोई पैसे खर्च तो होते नहीं है।</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"><br /> शशिधर को अब पूरे घर की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही थी। उसने अपने बचपन के दोस्त जो उसके साथ ही स्कूल में टीचर था, उसके गाँव से होकर रास्ता जाता था, वह रोज मोटर साइकिल से आता-जाता था. अब शशिधर ने उसके साथ घर लौटना शुरू कर दिया। इससे वह घर जल्दी आने लगा क्योंकि साइकिल से जाते आते देर जो जाती थी। दोस्त भी उसका बचपन का दोस्त ही नहीं बल्कि अन्तरंग भी था। अंतरंगता के चलते वे आपस में अपने सारे सुख दुःख बाँट लिया करते थे।</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"><br /> छोटे भाइयों को हथियार बनाकर उसके कंधे पर बन्दूक रख कर चलाने वाले और भी पैदा होने लगे क्योंकि गाँव में उनकी समृद्धि और खुशहाली से जलने वालों की कमी न थी। किसके मन में क्या पल रहा है ये सब कुछ तो जाना नहीं जा सकता है। वैसे भी ऐसे में घर और कुनबे के लोग भी दुश्मन बन जाते हैं। घर में कुछ न कहने वाले शशिधर को इस बात का अहसास होने लगा था। कई बार उसने अपने मित्र से कहा भी - "मुझे अपने और अपने परिवार के लिए डर लगने लगा है।"</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"><br />"ऐसा क्यों?"</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"><br />"पता नहीं क्यों ये मेरी आत्मा को लगने लगा है, कि कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए ?"</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"><br />"ऐसा विचार मन में मत लाया करो, उस ईश्वर पर भरोसा रखो।" मित्र उसको दिलासा दिया करता था।</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"> </span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;">"उसका सहारा तो रह ही जाता है, हम कर भी क्या सकते हैं?" वह हताश स्वर में कभी कभी बोल जाता था।</span></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-5174947256743771781" itemprop="articleBody"><span style="font-size: small;"><br /></span><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-size: small;"> कोई नहीं जानता था की शशिधर की ये शंका इतनी जल्दी ही सत्य सिद्ध हो जाएगी और सब कुछ ऐसे बिखर जाएगा जैसे कि कभी कुछ था ही नहीं। वह सावित्री जो अभी भी एकदम भोली थी , अपने बच्चों और पति के अलावा उसकी कोई दुनियाँ थी ही नहीं। </span></li></ol><span style="font-size: small;">
(क्रमशः )
</span></div>
</div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-42835031991900651762011-05-23T00:06:00.003-07:002023-03-16T03:50:55.326-07:00अग्नि-परीक्षा !whole<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-size: 130%;"> </span><span style="font-size: medium;"><span> कुछ ही दिन पहले वह मुझे नर्सिंग होम कि लिफ्ट में टकरा गयी। एक लम्बे अरसे बाद मिली । सारी चीजें वही लेकिन बस चेहरे से उम्र झलकने लगी थी और हो भी क्यों न करीब १९ वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद वह मुझे मिली थी।<br /> इस बीच कभी उसकी कोई सहेली मिल गयी और जिक्र हुआ तो कुछ समाचार उसका मिलता रहा , बस इतना जानती थी कि निमिषा बेंगलोरे में किसी संस्थान में प्रोफेसर है।<br />"निमिषा" मैं तो उसको देख कर चीख ही पडी थी।<br />"हाय दीदी, आप यहाँ कहाँ?"<br />"यहाँ मेरा भांजा एडमिट है - उन्हीं के साथ हूँ और तुम?"<br />"सासू माँ एडमिट है - उनसे पास हूँ।" उसकी मंजिल आ गयी और वह रूम नं बता कर आगे बढ़ गयी और मैं ऊपरचली गयी।<br /> लिफ्ट तो ऊपर जा रही थी और मैं अतीत के सागर में गोते लगाने लगी। हम भूल जाते हैं कभी कभी ऐसे लोगों को जिनको कुछ कहा जा सकता है और ऐसी ही निमिषा थी। ३ वर्षों तक वह मुझसे बराबर मिलती रही थी जिसमें से एक साल तो हम साथ ही बैठते थे और हर बात भी शेयर करते थे लेकिन तब वह सिर्फ एक पढ़ने वाली लड़की ही थी।<br /> आज से २४ साल पहले कि बात है तब मैंने अपनी नौकरी नई नई ज्वाइन की थी। आई आई टी के मानविकी विभाग में मेरी पहली नियुक्ति हुई थी। निमिषा वहीं पर मनोविज्ञान में पी एच डी कर रही थी । उसके गाइड का कमरा मेरे कमरे के ठीक सामने था और वह अक्सर आती और वहाँ से निकल कर हमारे कमरे में बैठ जाती और कभी अपना काम करती और कभी बातें करने लगती।<br /> इस दुनियाँ में उपहास करने वाले बहुत होते हैं और उसकी फिजिक कुछ ऐसी थी कि अक्सर लड़के कम लड़कियाँ यहाँ तक की उसके साथ ही पढ़ने वाली उसकी हंसी उड़ाया करती थीं। मैं सुनती सब रहती लेकिन मेरी बोलने की आदत कम ही है तो उनके प्रति मेरे भाव कभी अच्छे न रहे। वह सामान्य से कुछ अलग थी । चेहरा में उसके भोलापन और छोटा सा चेहरा लेकिन कंधे से लेकर नीचे तक उसका शरीर काफी बेडौल और मोटा था। कंधे पर बैग टांग कर वह अक्सर आकर बैठ जाती। धीरे धीरे वह कब इतनी करीब आ गयी पता नहीं लगा। फिर उसने ही बताया कि बचपन में एक बार उसे रीढ़ की हड्डी में कोई समस्या हुई थी और डॉक्टर ने आपरेशन किया जिसमें कोई गड़बड़ी आ गयी और फिर उसका शरीर इस तरह से बेडौल हो गया। वह अच्छे सम्पन्न घर की लड़की तीन बहनों में सबसे छोटी थी और भाई उससे भी छोटा। सोच और व्यवहार से बड़ी समझदार और सहृदय थी। भगवान ने उसे सोने सा दिल दिया था , तभी उसे किसी से कोई शिकायत नहीं होती और अगर किसी ने कह दिया तो उसने कभी उसका काम करने से इनकार नहीं किया। संस्थान के नियमानुसार उसने हॉस्टल में ही कमरा लिया था और छुट्टी में वह घर चली जाती ।<br /> मैं घर से लंच बना कर ले जाती और गर्मियों में वह इतनी धूप में पैदल हॉस्टल जाने के डर से अपना खाना पैक करवाकर वहीं मंगवा लेती थी। फिर हम लोग साथ बैठ कर खाना खाते। अपनी कमी पर विजय पाने के लिए ही उसने आईआईटी से पीएचडी करने का संकल्प लिया और उसमें सफल भी हुई। आलोचना करने वालों कि कहीं भी कमी नहीं होती है और ऐसे ही मेरे ही साथ काम करने वाली और भी लड़कियाँ और महिलायें थी। जिनकी चर्चा का विषय कभी कभी निमिषा ही होती थी।<br />"कौन करेगा इससे शादी? अच्छे अच्छों का तो ठिकाना नहीं है।"<br />"कोई दुहाजू या फिर तलाकशुदा मिल जायेगा। कुंवारा तो मिलने से रहा और न कोई करेगा। "<br />"इसकी शादी हो ही नहीं सकती है।"<br />"बाकी बहनों की हो जायेगी और ये उनके घर में बच्चे सँभालेगी।"<br /> इस तरह से जुमले मेरे ही कमरे में उछाले जाते थे और जब वह न होती तो हमारे कमरे में बैठने वाली लड़कियाँ ही ऐसा करती । मेरी सोच शुरू से ही ऐसी ही रही , किसी की आलोचना या फिर उसकी कमी पर कमेन्ट करना मुझे कभी भी अच्छा नहीं लगा। प्रपंच और गाशिप भी मुझे कभी पसंद नहीं रही। मैं सोचती कि भगवान ने उसके लिए भी तो कुछ सोचा होगा , ईश्वर करे इसको भी मनचाहा वर मिले आख़िर उसके भी तो सपने होंगे। फिर ये ईश्वर के दिए यह दंड उसके जीवन का अभिशाप क्यों बने?<br /> सारे लोग लंच में घर या फिर हॉस्टल चले जाते मैं ही कमरे में अकेली रहती थी और निमिषा आ जाती क्योंकि वह साइकिल नहीं चला पाती और हॉस्टल विभाग से बहुत दूर था। वह अकेले में बैठ कर बातें करने लगती।<br /> "मम्मी पापा को मेरी ही चिंता है, दीदी की शादी हो गयी , दूसरी की भी हो जाएगी। मुझसे कौन करेगा?"<br />"ऐसा नहीं होता है, कोई तो वर तेरे लिए भी रचा गया होगा।"<br />"हाँ है न, पर मम्मी पापा पता नहीं माने या न माने?"<br />"क्यों?"<br />"वह हमारे दूर का रिश्ते का है, उसकी एक्सीडेंट में एक हाथ कट गया था और उसने नकली लगवाया हुआ है। वैसे सब अच्छा है।<br />"फिर"<br />":नहीं लगता कि घर वाले राजी होंगे, घर आता जाता है, एक दिन उसने ही प्रस्ताव रखा - "निमिषा, हम लोगों को कोई सामान्य तो समझता नहीं है , फिर क्यों न हम लोग एक दूसरे का हाथ थाम लें।" मैंने उससे सोचने का समय माँगा और उससे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए कहा है।<br />"फिर परेशानी क्या है?"<br />"मेरे और उसके घर वाले कभी राजी नहीं होंगे। मेरी शादी न हो ये तो घर वालों को मंजूर है लेकिन कुमार से नहीं।"<br />"कभी पूछा तुमने इस बारे में?"<br />"पूछना क्या है? मैं जानती हूँ न, अभी तो अपनी डिग्री पर ध्यान देना है फिर कुछ और सोचूंगी।"<br /> ये बात आई गयी हो गयी। उसने एक बार कुमार से मुझे मिलवाया भी था। उसके हॉस्टल की कुछ लड़कियों ने बताया भी कि इसके पास कोई इसका रिश्तेदार आता है, शायद दोनों में कुछ चल रहा है। एक साल तक मैं उस विभाग में रही और फिर मशीन अनुवाद में कंप्यूटर साइंस में आ गयी। रोज का मिलना बंद हो गया और फिर वह कभी कभी आ जाती। उसकी पढ़ाई पूरी हो गयी तो फिर कभी बहुत दिनों तक उससे मुलाकात नहीं हुई।</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span>वह</span><span> </span><span>यहाँ</span><span> </span><span>रही</span><span> </span><span>समय</span><span> </span><span>मिलने</span><span> </span><span>पर</span><span> </span><span>मिलने</span><span> </span><span>के</span><span> </span><span>लिए</span><span> </span><span>आ</span><span> </span><span>जाती</span><span> </span><span>थी</span><span> </span><span>लेकिन</span><span> </span><span>मेरा</span><span> </span><span>विभाग</span><span> </span><span>दूसरा</span><span> </span><span>और</span><span> </span><span>साथ</span><span> </span><span>के</span><span> </span><span>लोग</span><span> </span><span>भी</span><span> </span><span>दूसरे</span><span> </span><span>तो</span><span> </span><span>वह</span><span> </span><span>उतने</span><span> </span><span>खुल</span><span> </span><span>कर</span><span> </span><span>बात</span><span> </span><span>नहीं</span><span> </span><span>कर</span><span> </span><span>पाती</span><span> </span><span>थी</span><span>। </span><span>फिर</span><span> </span><span>एक</span><span> </span><span>दिन</span><span> </span><span>वह</span><span> </span><span>अपनी</span><span> </span><span>थीसिस</span><span> जमा </span><span></span><span>करके</span><span> </span><span>चली</span><span> </span><span>गयी</span><span> । </span><span>महीनों</span><span> </span><span>के</span><span> </span><span>बाद</span><span> </span><span>जब</span><span> </span><span>उसका</span><span> </span><span>डिफेंस</span><span> </span><span>हुआ</span><span> </span><span>तब</span><span> </span><span>आई</span><span> </span><span>थी</span><span> । </span><span>उसमें</span><span> </span><span>उसने</span><span> </span><span>लंच</span><span> </span><span>पर</span><span> </span><span>मुझे</span><span> </span><span>भी</span><span> </span><span>बुलाया</span><span> </span><span>था</span><span>। </span><span>लंच</span><span> </span><span>में</span><span> </span><span>कुमार</span><span> </span><span>भी</span><span> </span><span>था</span><span> </span><span>किन्तु</span><span> </span><span>आगे</span><span> </span><span>के</span><span> </span><span>विषय</span><span> </span><span>में</span><span> </span><span>न</span><span> </span><span>मैंने</span><span> </span><span>कुछ</span><span> </span><span>पूछना</span><span> </span><span>ठीक</span><span> </span><span>समझा </span><span></span><span>और</span><span> </span><span>न</span><span> </span><span>इतने</span><span> </span><span>लोगों</span><span> </span><span>के</span><span> </span><span>बीच</span><span> </span><span>कुछ</span><span> </span><span>बताना</span><span> </span><span>उसने</span><span> </span><span>सही</span><span> </span><span>समझा</span><span> </span><span>होगा</span><span>।</span><span> </span><span>उसके</span><span> </span><span>बाद</span><span> </span><span>बहुत</span><span> </span><span>लम्बे</span><span> </span><span>समय</span><span> </span><span>तक</span><span> </span><span>उससे</span><span> </span><span>मुलाकात</span><span> </span><span>नहीं</span><span> </span><span>हुई</span><span> </span><span>और</span><span> </span><span>न</span><span> </span><span>कोई</span><span> </span><span>समाचार</span><span> </span><span>ही</span><span> </span><span>मिला</span><span>। </span><span>उन</span><span> </span><span>दिनों</span><span> </span><span>मोबाइल</span><span> </span><span>भी</span><span> </span><span>न</span><span> </span><span>थे</span><span> </span><span>कि</span><span> </span><span>एक</span><span> </span><span>दूसरे</span><span> </span><span>से</span><span> </span><span>संपर्क</span><span> </span><span>कर</span><span> </span><span>पाते</span><span> </span><span>और</span><span> </span><span>नहीं</span><span> </span><span>नेट</span><span> </span><span>कि</span><span> </span><span>सुविधा</span><span> </span><span>इतनी</span><span> </span><span>अच्छी</span><span> </span><span>थी</span><span>। </span><span>सफर</span><span> </span><span>के </span><span></span><span>मुसाफिर</span><span> </span><span>की</span><span> </span><span>तरह</span><span> </span><span>से</span><span> </span><span>हम</span><span> </span><span>बिछुड़</span><span> </span><span>चुके</span><span> </span><span>थे</span><span>।</span> <br /> <span>कई</span><span> </span><span>वर्ष</span><span> </span><span>के</span><span> </span><span>बाद</span><span> </span><span>मुझे</span><span> </span><span>उसकी</span><span> </span><span>एक</span><span> </span><span>सहेली</span><span> </span><span>मिली</span><span> </span><span>तो</span><span> </span><span>उसने</span><span> </span><span>बताया</span><span> </span><span>कि</span><span> </span><span>निमिषा</span><span> </span><span>और</span><span> </span><span>कुमार</span><span> </span><span>ने</span><span> </span><span>कोर्ट</span><span> </span><span>मैरिज</span><span> </span><span>कर</span><span> </span><span>ली</span><span> </span><span>और</span><span> </span><span>दोनों</span><span> </span><span>घरों</span><span> </span><span>के</span><span> </span><span>दरवाजे</span><span> </span><span>दोनों</span><span> </span><span>के</span><span> </span><span>लिए</span><span> </span><span>बंद</span><span> </span><span>हो</span><span> </span><span>गए</span><span>। </span><span>शादी</span><span> </span><span>करके</span><span> </span><span>वह</span><span> </span><span>सीधे</span><span> </span><span>मेरे</span><span> </span><span>ही</span><span> </span><span>घर</span><span> </span><span>आई</span><span> </span><span>थी</span><span> </span><span>और</span><span> </span><span>फिर</span><span> </span><span>मेरी</span><span> </span><span>मम्मी</span><span> </span><span>ने</span><span> </span><span>उसका</span><span> </span><span>बेटी</span><span> </span><span>कि</span><span> </span><span>तरह</span><span> </span><span>से</span><span> </span><span>स्वागत</span><span> </span><span>किया</span><span> </span><span>और</span><span> </span><span>विदाई</span><span> </span><span>की</span><span>। सुनकर बहुत अच्छा लगा कि उसको मंजिल तो मिली लेकिन वह मन्जिल थी या फिर अग्नि परीक्षा देना अभी बाकी था ये तो मुझे पता ही नहीं था।<br /> फिर एक लम्बा अंतराल और कोई खोज खबर नहीं। उसकी अपनी व्यक्तिगत बातों को तो उसके अलावा और कोई नहीं बता सकता था और मैं उससे बिल्कुल ही अनभिज्ञ थी। फिर एक बार दुबारा उसकी मित्र से मुलाकात हुई क्योंकि वह कैम्पस की ही रहने वाली थी तो कभी जब भी आती तो आ जाती थी। उससे ही पता चला कि निमिषा की जॉब लग गयी बेंगलोरे में और उसके एक बेटी भी है। कुमार ने भी वही पर जॉब कर ली है। उसका फ़ोन नंबर तो मैंने लिए लेकिन फिर भूल गयी ।<br />इधर कुछ महीने पहले ही फेसबुक पर</span><span> <span>उसका</span></span><span> </span><span>कमेन्ट</span><span> </span><span>देखा</span><span> - </span><span>हाय</span><span> </span><span>दी</span><span> </span><span>मैंने</span><span> </span><span>आपको</span><span> </span><span>खोज</span><span> <span>ही</span><span> </span><span>लिया</span><span>। </span></span><span>उसमें ही उसके परिवार के फोटो भी देखे और एक दो बातें हुई लेकिन फिर सब अपने अपने में।<br /><br /> हम लोगों को कई दिन तक नर्सिंग होम में रहना पड़ा लेकिन अधिक मुलाकात नहीं हो सकी। एक दिन वह आ गयी कि चलिए कहीं बैठते हैं। उसे शायद कहने के लिए बहुत कुछ था और मुझे उससे सुनने के लिए भी। नहीं तो शायद ये कहानी भी न लिखी जाती। हम सामने एक कैफेटेरिया में जाकर बैठ गए।<br />"और सुनाओ कैसे कट रही है? "<br />"अब तो सब ठीक हो चुका है, लेकिन बहुत झेला है मैंने।"<br />"वही तो सुनने कि इच्छा है, कहाँ तो दोनों के परिवार इतने खिलाफ थे और कहाँ सब ठीक ।"<br />"आप सुनेंगी तो कहेंगी कि तुमने इतना सारा किया कैसे?"<br />"ये तो मैं जानती थी कि निमिषा तेरे में बहुत सहनशक्ति है और तू विपरीत धाराओं को भी मोड कर ला सकती है। "<br />"वो कैसे?"<br />"बस इंसान को परखने की समझ होनी चाहिए।"<br />"अब छोड़ ये सब बस मुझे शॉर्ट में बता दे कि कैसे ये सब हुआ?"<br />"दी , मैंने अपनी पीएचडी पूरे होते ही, सबसे पहले अपने घर में कहा, लेकिन घर में तो कोई सवाल ही नहीं था। मैंने घर छोड़ कर कुछ महीने हॉस्टल में ही बिताये। मैं इस चक्कर में थी कि यहीं कोई प्रोजेक्ट में मुझे जॉब मिल जाय तो मैं फिर अपनी बात के लिए इन्तजार कर सकती हूँ लेकिन जॉब नहीं मिली और फिर एक दिन मैंने कुमार से कहा कि अब हमें निर्णय लेना ही पड़ेगा नहीं तो कब तक हम सबके मुँह को देख कर बैठे रहेंगे।<br /> कुमार ने भी खुद को तैयार कर रखा था , उसने अपनी माँ से पहले ही बात कर ली थी और वे कतई राजी नहीं थीं। वे नौकरी करती थी और बहुत ही तेज तर्रार थीं। हम दोनों ने कोर्ट में शादी कर ली और शादी करके मैं शुभ्रा के घर सीधे आई थी। आंटी ने मुझे सपोर्ट दिया था और उन्होंने मुझे माँ की तरह से ही लिया। उन्होंने कहा भी कि तुम कुछ दिन यहाँ रह सकती हो लेकिन मैंने इसके लिए मना कर दिया ।<br />हम यहाँ से बाहर जाकर रह नहीं सकते थे क्योंकि कुमार की जॉब यही पर थी लेकिन हमने अपने घरों से दूर एक घर लेकर रहना शुरू कर दिया। कुमार की माँ का कहना था कि वह रोज वहाँ आएगा। कुमार अपने घर दिन में एक बार जरूर जाते। कुछ महीने के बाद उनकी माँ ने कहा कि तुम उसको ला सकते हो लेकिन मैं उससे कुछ भी कहूं या करूँ तुम बोलोगे नहीं। कुमार को ये मंजूर नहीं था। उन्होंने मना कर दिया और मेरे पास आकर ये बात बतलाई। मैंने कुमार से कहा कि क्यों नहीं मान लेते उनकी बात।<br />"इस लिए कि मैं जानता हूँ कि मेरी माँ कितनी जिद्दी और कड़क स्वभाव की है। उसने अगर दुर्व्यवहार किया तो मैं सहन नहीं कर पाऊंगा और फिर जो लिहाज के पर्दा बना हुआ था वह उठ जाएगा। "<br />"ऐसा कुछ भी नहीं होगा, मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूँ कि मैं सब कुछ सह लूंगी।"<br />"तुम सह लोगी ये मैं जानता हूँ लेकिन शायद मैं सहन नहीं कर पाऊँगा। हमने शादी की है कोई गुनाह नहीं किया, जिसकी सजा तुमको मिले। मैं भी तो बराबर का हकदार हूँ। फिर वही मेरे लिए होना चाहिए।"<br /> "कुमार, एक बार उन्हें मौका दो, घर छोड़ कर हम भी तो सुख से नहीं रह पा रहे हैं, उनकी आत्मा भी मुझे कोसती होंगी कि मेरे बेटे को छीन लिया।"<br />"अगर मुझसे सहन नहीं हुआ तो फिर मैं उस घर को जीवन भर के लिए त्याग दूँगा। अगर इस बात पर तुम राजी होतो मैं तुम्हें वहाँ ले जा सकता हूँ। "<br />"ठीक है, मुझे मंजूर है."<br />"दी हम लोग उस घर में चले गए लेकिन लगता ऐसा था कि वे मुझसे कोई बदला लेने की सोच रखी थी। उन्होंने सारे काम वाले निकाल कर बाहर कर दिए। मैं अपने शरीर के कारण नीचे बैठ कर कोई काम नहीं कर पाती थी. फिर मैंने अपने को इसके लिए तैयार किया। वह जल्दी अपने ऑफिस चली जाती थी और फिर कुमार भी मेरे साथ काम करवा लेते । इस जंग में कुमार ने जिस तरह से मेरा साथ दिया है तभी मैं उनकी माँ की परीक्षा में सफल हो पाई नहीं तो शायद मैं कब की टूट जाती?"<br /> " मैंने दो साल उस घर में नौकरानी से भी बदतर स्थिति में गुजारे और मैं अकेले मैं खूब रोती कि क्या मैं इतनी पढ़ाई करके यही करती रहूंगी। मेरे पास जो डिग्री थी उसकी बहुत कीमत थी लेकिन जब तक कुछ नहीं तो बेकार ही थी। फिर शायद ईश्वर को मेरे ऊपर तरस आ गया और मुझे बेंगलोर से इंटरव्यू के लिए कॉल आ गयी। घर में मचा बवंडर कि इतनी दूर क्यों जाएगी यही कहीं कॉलेज में मिले तो कर लेना। लेकिन नहीं मुझे यहाँ से निकलने का मौका मिल रहा था और मैं उसको छोड़ना नहीं चाहती थी। ईश्वर ने भी साथ दिया और मुझे वहाँ जॉब मिल गयी। मैं वहाँ से वापस ही नहीं लौटी , पहले वहीं पर गेस्ट हाउस में रहने की जगह मिल गयी। कुमार ने यहाँ आकर सबको बता दिया। घर में कुहराम मच गया कि क्या जरूरत थी इतनी दूर जाने की। मैं तुमको तो वहाँ जाने नहीं दूँगी। कुमार तुरंत ही आने को तैयार थे कि वहीं कोई जॉब देख लूँगा लेकिन मैंने उसको मना किया कि मुझे कन्फर्म हो जाने दो फिर कोई कदम उठना । मैं कन्फर्म हो गयी और फिर कुमार भी यहीं आ गए। यही क्षिति का जन्म हुआ। लोगों को ये था कि मेरे शरीर के वजह से मैं कभी माँ नहीं बन पाऊँगी लेकिन ईश्वर ने वह भी रास्ता खोल दिया।<br /> </span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span> क्षिति के जन्म के बाद सासु माँ ने वहाँ बुलाना चाहा लेकिन मैं ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया - "वे यहाँ आकर रह सकती हैं लेकिन मैं वापस नहीं आऊँगी।"<br />"तेरे मम्मी पापा का क्या रूख रहा।"<br />"मेरे मम्मी पापा भी सालों तक माफ नहीं कर सके लेकिन जब पापा को कैंसर हुआ तो भाई तो बाहर जाकर बस गया था। दीदी लोग भी बाहर ही थी लेकिन उनको भरोसा था अपनी बच्ची पर सो मेरे पास खबर भेजी - "क्या आखिरी समय भी नहीं आएगी?" </span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span> </span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span> "मैं वहाँ रहती थी तो छुट्टी नहीं लेती थी इसलिए मैं लम्बी छुट्टी लेकर आई और फिर पापा की बहुत सेवा की किन्तु वह उनका आखिरी समय था और वे भी चले गए । "<br /> </span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span> "बहनें मेरी पहले भी मेरी बहुत विरोधी न थी , सबके साथ औपचारिक सम्बन्ध बने हुए थे और आज भी बने हुए हैं।"</span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span><br /> फिर हम लोग उठ कर जब नर्सिंग होम आये तो मैंने सोचा कि निमिषा की सासू माँ से मिलती ही चलूँ। और मैं उसके साथ उसकी सास के पास चली गई। उनसे मेरा परिचय करवाया - "मम्मी जी, ये कीर्ति दी है, आईआईटी में ही काम करती थी, ये तो अभी भी वहीं है। ऊपर इनका कोई घर वाला भर्ती है तो मिल गयी औरआपसे मिलने के लिए आयीं है।"</span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span><br /> उनसे नमस्ते करके मैं वहीं बैठ गयी। चेहरे से बड़ी ही खुर्राट लग रही थी, इस उम्र में भी उनके चेहरे पर चमक थी। मैं इतना कुछ इनके बारे में सुन चुकी थी कि मुझे लग रहा था कि निमिषा कैसे इनके साथ रह रही है?</span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span><br />"आप की तबियत कैसी है?"</span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span><br />"हाँ अब तो ठीक हूँ, काफी आराम हो रहा है।"</span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span><br />"ये आपकी सेवा करती है या फिर ऐसे ही।"</span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span><br />"नहीं, ये मेरी बेटी है तो और बहू है तो इसने मेरी बहुत सेवा की है। मुझे उम्मीद नहीं थी कि ये मेरी इतनी सेवा करेगी।"<br /> </span></span></div><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="font-size: medium;"><span> उनके इन्हीं शब्दों के साथ मुझे लगा कि निमिषा ने वाकई अग्नि परीक्षा पास ही नहीं की बल्कि उसमें तपकर खरा सोना बन कर निकली।</span></span><span style="font-size: 31.3048px;"> <br /></span></div>
रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-29035588899090754622011-02-09T06:20:00.001-08:002011-02-25T01:45:18.852-08:00कौन कहाँ से कहाँ (१६)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> पूर्वकथा: आशु एक डी एम का बेटा , जो अपनी माँ के निधन के बाद नाना नानी के यहाँ रहा। अपनी पहली पोस्टिंग वाली जगह पर सौतेले भाई से मिला , खून के रिश्ते ने उसको मजबूर कर दिया कि वह उसके लिए कुछ करे , नितिन का भविष्य बनने के लिए अपनी ओर से प्रयास किये और अपनी दूसरी पोस्टिंग वाली जगह पर सौतेली बहन के दुर्भाग्य से भी अवगत हो गया। एक डी एम के बच्चों की इस छोटी उम्र में होती हुई दुर्गति और अपने पापा से जुड़े भावों एन उसको मजबूर कर दिया कि पापा की सभी चीजें वह उन दोनों के लिए वापस दिलवाए । और फिर उसी के लिए नितिन को पापा के ऑफिस में नौकरी और शामली को उस नरक से वापस लाने के लिए प्रतिबद्ध आशु की आगे की कहानी.............।<br /><br /> <span style="font-size:130%;"><span>सोचा</span> <span>तो</span> <span>ये</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>नितिन</span> <span>और</span> <span>शामली</span> <span>के</span> <span>जीवन</span> <span>को</span> <span>इस</span> <span>काबिल</span> <span>बना</span> <span>दूं</span> <span>कि</span> <span>वे</span> <span>फिर</span> <span>से</span> <span>एक</span> <span>नया</span> <span>जीवन</span> <span>जी</span><span>सकें</span>. <span>उन्हें</span> <span>भाग्य</span> <span>ने</span> <span>धोखा</span> <span>तो</span> <span>दिया</span> <span>लेकिन</span> <span>उनके</span> <span>लिए</span> <span>इतना</span> <span>कुछ</span> <span>शेष</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>वे</span> <span>उसके</span> <span>सहारे</span> <span>ही</span> <span>एक</span> <span>बहुत</span> <span>अच्छा</span><span>जीवन</span> <span>जी</span> <span>सकते</span> <span>हैं</span>. <span>इसके</span> <span>लिए</span> <span>मैं</span> <span>कहाँ</span> <span>से</span> <span>शुरू</span> <span>करूँ</span> <span>ये</span> <span>मुझको</span> <span>सोचना</span> <span>था</span>. <span>अभी</span> <span>एक</span> <span>महीने</span> <span>का</span> <span>समय</span> <span>था</span> <span>कि</span> <span>नितिन</span><span>को</span> <span>नौकरी</span> <span>मिल</span> <span>जाएगी</span> <span>और</span> <span>मैं</span> <span>इतनी</span> <span>जल्दी</span> <span>सब</span> <span>कुछ</span> <span>करना</span> <span>चाह</span> <span>रहा</span> <span>हूँ</span> <span>कि</span> <span>वे</span> <span>अब</span> <span>और</span> <span>इस</span> <span>दल</span> <span>दल</span> <span>में</span> <span>न</span> <span>जियें</span>.<br /> <span>मेरा</span> <span>पहला</span> <span>पड़ाव</span> <span>पापा</span> <span>के</span> <span>घर</span> <span>पर</span> <span>ही</span> <span>हुआ</span>, <span>मुझे</span> <span>सबसे</span> <span>पहले</span> <span>उसको</span> <span>खाली</span> <span>करवा</span> <span>कर</span> <span>उसके</span> <span>हक़</span> <span>को</span><span>दिलवाना</span> <span>था</span>. <span>यद्यपि</span> <span>यह</span> <span>काम</span> <span>इतना</span> <span>आसान</span> <span>न</span> <span>था</span>. <span>जो</span> <span>लोग</span> <span>इस</span> <span>घर</span> <span>में</span> <span>वर्षों</span> <span>से</span> <span>रह</span> <span>रहे</span> <span>हों</span> <span>वे</span> <span>उसको</span> <span>छोड़ेंगे</span> <span>तो</span> <span>नहीं</span><span>बल्कि</span> <span>उसके</span> <span>लिए</span> <span>साम</span> <span>दाम</span> <span>दंड</span> <span>भेद</span> <span>सब</span> <span>अपना</span> <span>लेंगे</span>. <span>मैंने</span> <span>भी</span> <span>ठान</span> <span>लिया</span> <span>था</span> <span>कि</span> <span>इन</span> <span>लोगों</span> <span>ने</span> <span>जैसे</span> <span>पापा</span> <span>के</span> <span>न</span> <span>रहने</span> <span>पर</span><span>मुझे</span> <span>डराया</span> <span>था</span> <span>उसका</span> <span>मजा</span> <span>तो</span> <span>उनको</span> <span>मिलना</span> <span>ही</span> <span>चाहिए</span>. <span>मुझे</span> <span>वहाँ</span> <span>से</span> <span>निकाल</span> <span>दिया</span> <span>था</span> <span>लेकिन</span> <span>कम</span> <span>से</span> <span>कम</span> <span>इन</span> <span>बच्चों</span><span>को</span> <span>तो</span> <span>वहाँ</span> <span>रहने</span> <span>दिया</span> <span>होता</span>. <span>लेकिन</span> <span>उनके</span> <span>लिए</span> <span>रिश्ते</span> <span>थे</span> <span>ही</span> <span>कहाँ</span>? <span>जो</span> <span>अपनी</span> <span>बहन</span> <span>को</span> <span>विधवा</span> <span>बना</span> <span>कर</span> <span>संपत्ति</span> <span>को</span><span>कब्ज़ा</span> <span>करने</span> <span>केलिए</span> <span>तैयार</span> <span>थे</span> <span>उससे</span> <span>अधिक</span> <span>नीचता</span> <span>और</span> <span>संवेदनहीनता</span> <span>और</span> <span>क्या</span> <span>हो</span> <span>सकती</span> <span>है</span>? <span>उन</span> <span>लोगों</span> <span>को</span> <span>बहन</span> <span>या</span><span>उसके</span> <span>बच्चों</span> <span>के</span> <span>प्रति</span> <span>कोई</span> <span>भाव</span> <span>हो</span> <span>ही</span> <span>नहीं</span> <span>सकता</span> <span>है</span>.<br /> <span>मैंने</span> <span>पापा</span> <span>के</span> <span>मकान</span> <span>के</span> <span>सारे</span> <span>कागजों</span> <span>के</span> <span>डुप्लीकेट</span> <span>लाने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>अपने</span> <span>सारे</span> <span>स्रोत</span> <span>प्रयोग</span> <span>किये</span> <span>क्योंकि</span> <span>मैं</span><span>सारे</span> <span>प्रमाण</span> <span>के</span> <span>साथ</span> <span>सिर्फ</span> <span>और</span> <span>सिर्फ</span> <span>एक</span> <span>बार</span> <span>उनके</span> <span>सामने</span> <span>जाकर</span> <span>उस</span> <span>मकान</span> <span>को</span> <span>खाली</span> <span>करवाना</span> <span>चाहता</span> <span>था</span>. '<span>भगवती</span> ' <span>नाम</span> <span>था</span> <span>उसका</span> <span>जिसने</span> <span>मुझे</span> <span>उस</span> <span>दिन</span> <span>फ़ोन</span> <span>किया</span> <span>था</span>.<br /> <span>मैंने</span> <span>पुलिस</span> <span>का</span> <span>सहारा</span> <span>लेकर</span> <span>मकान</span> <span>खाली</span> <span>करने</span> <span>का</span> <span>नोटिस</span> <span>उस</span> <span>तक</span> <span>भेजा</span> <span>लेकिन</span> <span>वो</span> <span>लोग</span> <span>उनमें</span> <span>से</span> <span>तो</span><span>थे</span> <span>नहीं</span> <span>कि</span> <span>इतनी</span> <span>आसानी</span> <span>से</span> <span>खाली</span> <span>कर</span> <span>देते</span> <span>और</span> <span>फिर</span> <span>कोर्ट</span> <span>का</span> <span>आदेश</span> <span>लेकर</span> <span>उस</span> <span>मकान</span> <span>पर</span> <span>कब्ज़ा</span> <span>करके</span> <span>ताला</span> <span>लगवा</span><span>दिया</span>. <span>लेकिन</span> <span>वे</span> <span>यह</span> <span>पता</span> <span>नहीं</span> <span>लगा</span> <span>सके</span> <span>कि</span> <span>ये</span> <span>काम</span> <span>किसने</span> <span>किया</span> <span>है</span>? <span>मुझे</span> <span>तो</span> <span>अब</span> <span>तक</span> <span>भूल</span> <span>भी</span> <span>चुके</span> <span>होंगे</span>. <span>नितिन</span> <span>के</span><span>बारे</span> <span>में</span> <span>उनको</span> <span>कोई</span> <span>सूचना</span> <span>थी</span> <span>ही</span> <span>नहीं</span>. <span>शामली</span> <span>जिन्दा</span> <span>है</span> <span>या</span> <span>मुर्दा</span> <span>इससे</span> <span>उनको</span> <span>कोई</span> <span>मतलब</span> <span>नहीं</span> <span>था</span>. <span>मकान</span> <span>में</span> <span>ताला</span><span>लगाने</span> <span>साथ</span> <span>ही</span> <span>उसको</span> <span>तोड़ने</span> <span>पर</span> <span>कानूनी</span> <span>कार्यवाही</span> <span>का</span> <span>नोटिस</span> <span>भी</span> <span>वहाँ</span> <span>चस्पा</span> <span>करवा</span> <span>दिया</span> <span>था</span>.<br /> <span>मेरे</span> <span>दिल</span> <span>में</span> <span>उस</span> <span>घर</span> <span>में</span> <span>रहकर</span> <span>पापा</span> <span>के</span> <span>अहसास</span> <span>को</span> <span>जीने</span> <span>का</span> <span>मन</span> <span>कर</span> <span>रहा</span> <span>था</span> <span>लेकिन</span> <span>उस</span> <span>घर</span> <span>में</span> <span>कैसे</span> <span>और</span><span>कब</span> <span>रह</span> <span>सकता</span> <span>हूँ</span>. <span>सारे</span> <span>अधिकार</span> <span>मेरे</span> <span>कब्जे</span> <span>में</span> <span>थे</span> <span>फिर</span> <span>भी</span> <span>मुझे</span> <span>लगा</span> <span>रहा</span> <span>था</span> <span>कि</span> <span>उस</span> <span>पर</span> <span>नितिन</span> <span>का</span> <span>ही</span> <span>हक़</span> <span>है</span> <span>उसमें</span> <span>मैं</span><span>कैसे</span> <span>रहूँगा</span>.?<br /> <span>उस</span> <span>घर</span> <span>के</span> <span>हर</span> <span>कमरे</span> <span>में</span> <span>जाकर</span> <span>पापा</span> <span>पापा</span> <span>कह</span> <span>कर</span> <span>चिल्लाने</span> <span>का</span> <span>मन</span> <span>भी</span> <span>कर</span> <span>रहा</span> <span>था</span>. <span>एक</span> <span>बचपने</span> <span>जैसे</span> <span>ख्वाहिश</span><span>पता</span> <span>नहीं</span> <span>क्यों</span> <span>मन</span> <span>में</span> <span>उमड़ने</span> <span>लगी</span> <span>थी</span>. <span>वो</span> <span>मेरे</span> <span>पापा</span> <span>का</span> <span>घर</span> <span>था</span> <span>शायद</span> <span>इसी</span> <span>लिए</span>. <span>मैं</span> <span>अपने</span> <span>आपको</span> <span>काबू</span> <span>नहीं</span> <span>रख</span> <span>सका</span><span>और</span> <span>फिर</span> <span>अगले</span> <span>ही</span> <span>सन्डे</span> <span>को</span> <span>मैं</span> <span>वहाँ</span> <span>जा</span> <span>पहुंचा</span>. <span>चाबी</span> <span>मेरे</span> <span>पास</span> <span>थी</span>. <span>माली</span> <span>को</span> <span>मैंने</span> <span>वहाँ</span> <span>से</span> <span>नहीं</span> <span>हटाया</span> <span>था</span>. <span>जैसे</span> <span>ही</span> <span>मैं</span> <span>वहाँ</span><span>पहुंचा</span> <span>और</span> <span>गाड़ी</span> <span>से</span> <span>उतरा</span> <span>तो</span> <span>माली</span> <span>दौड़</span> <span>कर</span> <span>आया</span>.<br />'<span>साब</span> , <span>नमस्ते</span>.' <span>उसने</span> <span>पूरी</span> <span>तरह</span> <span>से</span> <span>झुक</span> <span>कर</span> <span>नमस्ते</span> <span>किया</span>.<br />'<span>कहो</span> <span>कैसे</span> <span>हो</span>?' <span>तुम्हारे</span> <span>मालिक</span> <span>कहाँ</span> <span>गए</span>?'<br />'<span>साब</span> , <span>एक</span> <span>दिन</span> <span>पुलिस</span> <span>आई</span> <span>थी</span> <span>तो</span> <span>सब</span> <span>को</span> <span>बाहर</span> <span>करके</span> <span>ताला</span> <span>डाल</span> <span>कर</span> <span>चली</span> <span>गयी</span>.'<br />'<span>फिर</span> <span>वो</span> <span>लोग</span> <span>नहीं</span> <span>आये</span> <span>क्या</span>?'<br />'<span>आए</span> <span>थे</span> <span>न</span>, <span>लेकिन</span> <span>ये</span> <span>कागज</span> <span>पढ़</span> <span>कर</span> <span>लौट</span> <span>गए</span> , <span>कह</span> <span>गए</span> <span>थे</span> <span>कि</span> <span>फिर</span> <span>आयेंगे</span>.'<br />'<span>अच्छा</span> <span>इस</span> <span>मकान</span> <span>की</span> <span>अच्छी</span> <span>तरह</span> <span>से</span> <span>सफाई</span> <span>करनी</span> <span>होगी</span> <span>तुम्हें</span>, <span>मैं</span> <span>शाम</span> <span>को</span> <span>फिर</span> <span>से</span> <span>आता</span> <span>हूँ</span>. ' <span>और</span> <span>मैंने</span> <span>उसको</span> <span>मकान</span><span>की</span> <span>चाबी</span> <span>पकड़ा</span> <span>दी</span>.<br /> <span>दिन</span> <span>में</span> <span>मुझे</span> <span>और</span> <span>भी</span> <span>काम</span> <span>करने</span> <span>थे</span>, <span>मुझे</span> <span>पापा</span> <span>के</span> <span>बैंक</span> <span>के</span> <span>अकाउंट</span> <span>भी</span> <span>देखने</span> <span>थे</span>. <span>उनके</span> <span>लिए</span> <span>जरूरी</span> <span>कागज</span><span>भी</span> <span>जुटाने</span> <span>थे</span>. <span>शामली</span> <span>का</span> <span>भविष्य</span> <span>शायद</span> <span>इससे</span> <span>सुरक्षित</span> <span>किया</span> <span>जा</span> <span>सके</span>. <span>शाम</span> <span>तक</span> <span>घर</span> <span>साफ</span> <span>हो</span> <span>चुका</span> <span>था</span> <span>और</span> <span>मैं</span> <span>उसको</span><span>बंद</span> <span>करके</span> <span>फिर</span> <span>से</span> <span>वापस</span> <span>फतेहपुर</span> <span>आ</span> <span>गया</span> .<br /><br /> * * * * *<br /> <span>एक</span> <span>महीने</span> <span>के</span> <span>बाद</span> <span>नितिन</span> <span>को</span> <span>मैंने</span> <span>नौकरी</span> <span>दिलवा</span> <span>दी</span> <span>और</span> <span>अभी</span> <span>उसकी</span> <span>सुरक्षा</span> <span>की</span> <span>दृष्टि</span> <span>से</span> <span>उसको</span> <span>मकान</span><span>कहीं</span> <span>और</span> <span>लेकर</span> <span>लेने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>बोला</span> <span>था</span>. <span>क्योंकि</span> <span>उसके</span> <span>मामा</span> <span>लोगों</span> <span>को</span> <span>उसके</span> <span>लखनऊ</span> <span>आने</span> <span>और</span> <span>नौकरी</span> <span>ले</span> <span>लेने</span> <span>के</span> <span>बारे</span><span>में</span> <span>प़ता</span> <span>चल</span> <span>चुका</span> <span>था</span> . <span>उस</span> <span>घर</span> <span>में</span> <span>रहने</span> <span>पर</span> <span>वे</span> <span>उसके</span> <span>लिए</span> <span>कुछ</span> <span>बुरा</span> <span>कर</span> <span>और</span> <span>करवा</span> <span>भी</span> <span>सकते</span> <span>थे</span>. <span>इस</span> <span>लिए</span> <span>मुझे</span> <span>उसको</span><span>फिलहाल</span> <span>उस</span> <span>घर</span> <span>से</span> <span>दूर</span> <span>ही</span> <span>रखना</span> <span>था</span>. <span>पापा</span> <span>के</span> <span>एकाउंट</span> <span>का</span> <span>काम</span> <span>होना</span> <span>इतना</span> <span>आसान</span> <span>नहीं</span> <span>था</span> <span>लेकिन</span> <span>मुझे</span> <span>करवाना</span> <span>तो</span><span>था</span> <span>ही</span> <span>और</span> <span>फिर</span> <span>वो</span> <span>सारा</span> <span>पैसा</span> <span>शामली</span> <span>के</span> <span>नाम</span> <span>भी</span> <span>कर</span> <span>देना</span> <span>था</span> . <span>जब</span> <span>मैं</span> <span>बैंक</span> <span>मेनेजर</span> <span>के</span> <span>सामने</span> <span>अधिकार</span> <span>के</span> <span>दावे</span> <span>को</span><span>लेकर</span> <span>पहुंचा</span> <span>तो</span> <span>उसने</span> <span>मुझे</span> <span>जलील</span> <span>करते</span> <span>हुए</span> <span>यही</span> <span>कहा</span> - <span>मि</span>. <span>माथुर</span> <span>की</span> <span>इस</span> <span>संपत्ति</span> <span>के</span> <span>कितने</span> <span>और</span> <span>दावेदार</span> <span>सामने</span><span>आयेंगे</span>. <span>अब</span> <span>तक</span> <span>मैंने</span> <span>दो</span> <span>दावेदारों</span> <span>से</span> <span>मिल</span> <span>चुका</span> <span>हूँ</span> <span>और</span> <span>उनमें</span> <span>से</span> <span>कोई</span> <span>भी</span> <span>दावेदारी</span> <span>के</span> <span>पुख्ता</span> <span>सबूत</span> <span>पेश</span> <span>नहीं</span> <span>कर</span> <span>सका</span><span>है</span>. <span>अब</span> <span>आप</span> <span>एक</span> <span>नए</span> <span>दावेदार</span> <span>बन</span> <span>कर</span> <span>आ</span> <span>रहे</span> <span>हैं</span>."<br />"<span>मि</span>. <span>शुक्ल</span>, <span>मैं</span> <span>उन</span> <span>दावेदारों</span> <span>से</span> <span>नहीं</span> <span>हूँ</span> <span>और</span> <span>इसका</span> <span>दावेदार</span> <span>होते</span> <span>हुए</span> <span>भी</span> <span>मुझे</span> <span>इसमें</span> <span>से</span> <span>कुछ</span> <span>भी</span> <span>नहीं</span> <span>चाहिए</span> <span>है</span> <span>लेकिन</span><span>इसके</span> <span>हक़दार</span> <span>होने</span> <span>के</span> <span>नाते</span> <span>आखिरी</span> <span>बार</span> <span>ये</span> <span>दावा</span> <span>आपके</span> <span>सामने</span> <span>आया</span> <span>है</span>." <span>मुझे</span> <span>कुछ</span> <span>गुस्सा</span> <span>तो</span> <span>आया</span> <span>लेकिन</span> <span>फिर</span> <span>याद</span><span>आया</span> <span>कि</span> <span>वे</span> <span>भी</span> <span>गलत</span> <span>नहीं</span> <span>है</span> . <span>पहले</span> <span>नितिन</span> <span>के</span> <span>मामा</span> <span>आये</span> <span>होंगे</span> <span>और</span> <span>उसके</span> <span>बाद</span> <span>शामली</span> <span>का</span> <span>पति</span> <span>संदीप</span>. <span>मैंने</span> <span>अपना</span><span>विजिटिंग </span> <span>कार्ड</span> <span>मैनेजर </span> <span>को</span> <span>दिया</span> <span>तो</span> <span>वह</span> <span>मेरा</span> <span>चेहरा</span> <span>देखता</span> <span>रह</span> <span>गया</span>। <span>उसके</span> <span>बाद</span> <span>उसने</span> <span>मुझे</span> <span>इज्जत</span> <span>से</span> <span>बिठाया</span> <span>और</span><span>मेरी</span> <span>पूरी</span> <span>बात</span> <span>भी</span> <span>सुनी</span>। <span>मैंने</span> <span>उसको</span> <span>स्पष्ट</span> <span>कर</span> <span>दिया</span> <span>की</span> <span>मुझे</span> <span>पापा</span> <span>की</span> <span>संपत्ति</span> <span>का</span> <span>क्या</span> <span>करना</span> <span>है</span>? <span>वह</span> <span>संतुष्ट</span> <span>हो</span> <span>गया</span> <span>और</span><span>उसने</span> <span>आगे</span> <span>की</span> <span>कार्यवाही</span> <span>देखने</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>आश्वासन</span> <span>दिया</span>।<br /> <span> मुझे</span> <span>शामली</span> <span>के</span> <span>बारे</span> <span>में</span> <span>भी</span> <span>कुछ</span> <span>सोचना</span> <span>था</span> <span>लेकिन</span> <span>उससे</span> <span>पहले</span> <span>उसको</span> <span>उस</span> <span>विवाह</span> <span>से</span> <span>कानूनी</span> <span>रूप</span> <span>से</span> <span>मुक्त</span> <span>भी</span><span>करवाने</span> <span>कि</span> <span>प्रक्रिया</span> <span>शुरू</span> <span>करनी</span> <span>थी</span> <span>और</span> <span>उससे</span> <span>पहले</span> <span>उसको</span> <span>उस</span> <span>घर</span> <span>से</span> <span>भी</span> <span>निकलना</span> <span>था</span>. <span>उसको</span> <span>पुख्ता</span> <span>कानूनी</span> <span>तरीके</span><span>से</span> <span>ही</span> <span>उस</span> <span>घर</span> <span>से</span> <span>निकलना</span> <span>होगा</span> <span>और</span> <span>फिर</span> <span>उस</span> <span>विवाह</span> <span>से</span> <span>मुक्ति</span> ।<br /> <span>अब</span> <span>उसके</span> <span>लिए</span> <span>वह</span> <span>घर</span> <span>सिर्फ</span> <span>यातना</span> <span>घर</span> <span>बन</span> <span>चुका</span> <span>था</span>. <span>चारों</span> <span>तरफ</span> <span>से</span> <span>बंद</span> <span>मकान</span> <span>में</span> <span>वह</span> <span>कैसे</span> <span>रहती</span> <span>होगी</span>? <span>लेकिन</span> <span>उस</span> <span>घर</span> <span>के</span> <span>लिए</span> <span>एक</span> <span>बेपैसे</span> <span>कि</span> <span>नौकरानी</span> <span>भी</span> <span>तो</span> <span>बहुत</span> <span>जरूरी</span> <span>थी</span>. <span>अपने</span> <span>नाना</span> <span>के</span> <span>गैर</span> <span>जिम्मेदाराना</span> <span>निर्णय</span> <span>का</span><span>खामियाजा</span> <span>वह</span> <span>भुगत</span> <span>रही</span> <span>थी</span> <span>या</span> <span>क्या</span> <span>कहा</span> <span>जा</span> <span>सकता</span> <span>है</span> <span>कि</span> <span>नाना</span> <span>ने</span> <span>अपने</span> <span>जीते</span> <span>जी</span> <span>उस</span> <span>लड़की</span> <span>को</span> <span>ये</span> <span>सोच</span> <span>कर</span> <span>शादी</span><span>की</span> <span>होगी</span> <span>कि</span> <span>वह</span> <span>एक</span> <span>न</span> <span>एक</span> <span>दिन</span> <span>अपना</span> <span>अधिकार</span> <span>पा</span> <span>लेगी</span> <span>तो</span> <span>सुखी</span> <span>रहेगी</span> <span>क्या</span> <span>प़ता</span> <span>उसके</span> <span>बेटे</span> <span>उसके</span> <span>साथ</span> <span>कैसा</span><span>सलूक</span> <span>करें</span> ? <span>ऐसे</span> <span>लोगों</span> <span>का</span> <span>कोई</span> <span>भी</span> <span>ठिकाना</span> <span>नहीं</span> <span>होता</span> <span>है</span>. <span>जिनके</span> <span>लिए</span> <span>न</span> <span>रिश्ते</span> <span>की</span> <span>कोई</span> <span>कीमत</span> <span>होती</span> <span>है</span> <span>और</span> <span>न</span> <span>ही</span> <span>खून</span><span>का</span> <span>मोल</span>.<br /><br /></span> <br /></div>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-5361226634589283341.post-20592420783425370412011-01-31T07:24:00.000-08:002011-01-31T07:24:40.944-08:00कौन कहाँ से कहाँ (१५)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b> </b></span><span class="Apple-style-span" style="color: #003366; font-family: Georgia, serif; font-weight: bold; line-height: 22px;"><b>पूर्वकथा : </b> आशु एक डी एम का बेटा जो अपनी माँ की मौत के बाद नाना नानी के घर पला . पिता और सौतेली माँ के एक्सीडेंट में निधन के बाद उसने खुद पापा की तरह आई ए एस बनने का संकल्प लिया पहली पोस्टिंग वाले बंगले में मिला उसे अपना सौतेला भाई, ट्रान्सफर होने के बाद वह वहाँ आ पहुंचा जहाँ के पास के गाँव में उसकी सौतेली बहन की शादी हुई थी. ये शादी उसके ससुराल वालों ने पापा की संपत्ति के लालच में आकर की थी और फिर पापा की संपत्ति पर कब्जे के लिए उसके वैरिफिकेशन का दायित्व उस पर आया. आशु ने नितिन को शामली के वैरिफिकेशन के लिए उन्नाव से बुलवा लिया था. आशु ने बातों हइ बातों में ये जान लिया कि क्या शामली वह घर छोड़ सकती है.. उसके बाद आशु ने अपने , अपनी दीदी और नितिन के नाम से आब्जेक्शन लगा कर सारे कागज़ भेज दिए , जिससे की शामली के पति को कुछ मिल न सके लेकिन वह संदीप के तरफ से किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार था. उसकी पत्नी से आकर धमकाया और बताया की शामली से शादी उसकी सहमति से और जायदाद के लिए ही की गयी है. इसके बाद आशु ने पापा के मकान के लिए कोशिश शुरू की की उस मकान को नई माँ के भाइयों के हाथों से लेकर उसका कब्ज़ा नितिन और शामली को दिलवा दिया जाय. ..............</span><br />
<span class="Apple-style-span" style="color: #003366; font-family: Georgia, serif; line-height: 22px;"><b style="font-weight: bold;">गतांक से आगे...<span style="font-size: xx-small;"> </span></b></span><span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b><br />
</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b><br />
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<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b><br />
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<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b> अब मेरी समझ में ये बात पूरी तरह से आ चुकी थी कि ये जंग लम्बी तो है लेकिन अजेय नहीं है. इसके कई मुकाबले होने थे. इसमें लखनऊ से नितिन को मकान दिलाने की मुहिम, शामली को उस घर से निकालने की मुहिम और फिर नितिन को पापा के स्थान पर कोई नौकरी दिलाने की मुहिम. इन सब में कितना समय लगने वाला है ये तो मैं नहीं जानता था लेकिन अब जब जंग शुरू कर दी है तो पीछे हटाने का कोई सवाल नहीं था. मैं अब इस काबिल था कि इन सब जंगों को एक साथ लड़ सकता हूँ.</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b> मेरी पहली लड़ाई नितिन को पापा के बदले में कोई नौकरी दिलानी थी. उसको स्थापित करके ही तो शामली को बाहर ला सकता हूँ ताकि वह आगे की जिन्दगी के लिए एक मजबूत सहारे के साथ कुछ अलग सोच सके. इसके लिए मुझे बार बार लखनऊ के चक्कर लगाने पड़ेंगे. नितिन की ग्रेजुएशन की आखिरी साल है . अब सही मौका है जब कि उसको नौकरी के लिए आगे बढ़ाना होगा . पापा की मौत के इतने साल बाद यह काम आसान नहीं था फिर भी असंभव तो कुछ भी नहीं है </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b> * * * *</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b> नितिन के सारे कागजों के साथ पापा के उत्तराधिकारी होने का दवा मैंने पापा के नौकरी से सम्बंधित ऑफिस में जमा कर दिए. ये बात मैंने नितिन और दीदी को भी बता दी थी. इस प्रक्रिया में कई महीने लग गए. इस काम में मुझे पापा के कई समकालीन अफसरों का पूरा सहयोग मिला. मुझे उनको अपना असली परिचय भी देना पड़ा कि मैं भी उनका ही बेटा हूँ लेकिन ये नौकरी मैं अपने छोटे भाई के लिए चाहता हूँ. वैसे तो इस पर बड़े बेटे का हक़ होता है लेकिन मैं स्वयं समर्थ था और मुझे इसकी कोई जरूरत भी नहीं थी. मेरी बात से सभी सहमत हो गए और इस विषय में जो भी सहायता वे कर सकते थे उसके लिए उन्होंने मुझे आश्वासन दिया. नितिन के सारे काम के लिए मैंने अपने द्वारा ही सारा पत्र व्यवहार किया था और इससे सम्बंधित सारी कार्यवाही मेरे द्वारा ही हो रही थी इसलिए मैंने हर जगह पर उसके समुचित प्रमाण और कागज़ उपलब्ध करा रहा था. </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b> दस महीने तक मेरी मेहनत के बाद नितिन को लखनऊ में डी एम ऑफिस में क्लर्क की पोस्ट मिलने की सूचना मेरे पास आई. उस कागज को पढ़ कर मेरी आँखों में आँसू आ गए कि कभी मेरे बंगले में मैंने अपने उस भाई को मिट्टी में सने हाथ देख कर ऐसा कुछ नहीं सोचा था कि मुझे ऐसा कुछ करना है लेकिन आज जो परिणाम मेरे सामने है . वह मेरी सबसे बड़ी सफलता है. मैंने नितिन को फ़ोन करके बुलाया. नितिन दूसरे दिन सुबह मेरे पास तक पहुँच गया. </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"जी, आपने मुझे बुलाया था."</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"हाँ, नितिन अब तुमको वहाँ नौकरी करने कि जरूरत नहीं है.." </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"क्या मुझे यहाँ पर नौकरी मिल जायेगी?" उसने उत्सुकता से मुझसे सवाल किया.</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"नहीं."</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"फिर ?" </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"तुम्हें नई नौकरी लखनऊ में मिल रही है और वह भी तुम्हारे पापा के ऑफिस में. वहाँ पर तुम्हें उनके वारिस होने के नाते नौकरी दी जा रही है."</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"पर ये हुआ कैसे?" उसके चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित भाव उभर आये थे. </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>".क्या कैसे हुआ? इसको मत जानो. बस इतना है कि तुमको अगले महीने की १७ तरीक से लखनऊ आकर अपनी नौकरी ज्वाइन करनी है." </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"फिर उन्नाव से कैसे आऊंगा?" </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"वो मैं देख लूँगा, तुम १६ को मेरे पास आओगे और मैं तुमको लेकर लखनऊ चलूँगा. वहाँ पर तुम्हारी जोइनिंग करवा कर मैं वापस आ जाऊँगा." मैंने संक्षेप में उसको सब कुछ बता दिया.</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"मैं अब वापस उन्नाव जाऊं क्या?"</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"नहीं , तुम शामली के घर जाकर उससे मिल कर आओ और उसको अपनी नौकरी की खबर भी सुना कर आना." मेरा ये विचार था कि शामली नितिन की नौकरी के बारे में सुनकर खुश होगी और उसको अपने अँधेरे जीवन में एक मजबूत सहारे के आशा का दीपक जलता हुआ दिखाई देगा. </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"और हाँ , वहाँ से लौटकर तुम यहाँ मेरे पास आओगे और उसके बाद ही उन्नाव जाओगे. "</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"जी ठीक है." </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b> दूसरे दिन जब नितिन मेरे पास आया तो उसका चेहरा उतारा हुआ था. उसके चेहरे पर निराशा झलक रही थी. </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"क्या हुआ नितिन, शामली से मुलाकात हुई कि नहीं.? " </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"नहीं?"</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"क्यों?"</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"उनके घर में बाहर से ताला लगा हुआ था, जो कई महीनों से लगा हुआ है"</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"क्या ? वे लोग वहाँ से कहाँ गए?"</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"वे कहीं नहीं गए? उन्होंने किन्ही कारणों से बाहर ताला डाल दिया और पीछे के दरवाजे से ही निकलते है और बाहर भी कम ही निकलते हैं. "</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>ये तुम्हें पता कैसे चला?" </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"जब मैंने ताला देखा तो आस पास लोगों से पूछा तो सबने यही बताया और मैं पीछे कि ओर वाले दरवाले से अन्दर गया , उस हिस्से में सिर्फ जानवर रहते हैं और उसमें उन लोगों ने एक खिड़की जैसे बना कर उस रास्ते से निकलने लगे हैं."</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"फिर शामली से मुलाकात क्यों नहीं हुई?"</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"उसके ससुर ने मुझे मिलने ही नहीं दिया कि वह तो अपने पति के साथ चली गयी है और मुझे बाहर गाँव वालों से पता चला कि वो घर में ही रहती है." </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"ओह तो ये बात है, छोडो फिर कोई दूसरा रास्ता निकालते हैं उससे मिलने का. अभी तुम उन्नाव जाओ, मुझे कुछ इसी बात का अंदेशा था और इसी लिए मैंने तुम्हें वहाँ भेजा था."</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"फिर दीदी कैसे मिलेगी हम लोगों को?" </b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b>"मिलेगी , तुम परेशान मत हो. "</b></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-size: small;"><b> इसके बाद नितिन वापस उन्नाव चला गया और मुझे आगे के बारे में सोचने का </b></span>समय मिल गया.</div>रेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com7