वक्त वक्त की बात !
"माँ मैं मेंहदी लगवाने के लिए जा रही हूँ।" बहू ने अपनी सहेलियों के आते ही अपनी सास से कहा और अपना बैग उठाकर वह बाहर निकल गई।
जीवन के सफर में कितने फूल और उनके साथ काँटों का सुख भी मिलता है. उनको चुन लिया और फिर कहीं फूलों के साथ और कहीं काँटों के बीच फूल की कोमलता सब को पिरो लिया और थमा दिया . सारे अहसास अपने होते हैं, चाहे वे दूसरों ने किये हों. उनको महसूस करने की जरूरत होती है और कभी तो कोई अपने अहसासों को थमा कर चल देता है और उनको रूप कोई और देता है. फिर महसूस सब करते हैं.कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है.
वक्त वक्त की बात !
"माँ मैं मेंहदी लगवाने के लिए जा रही हूँ।" बहू ने अपनी सहेलियों के आते ही अपनी सास से कहा और अपना बैग उठाकर वह बाहर निकल गई।
नाम का सवाल !