मंगलवार, 14 मई 2024

वक्त वक्त की बात !

         

                                     वक्त वक्त की बात !           

                         

              "माँ मैं मेंहदी लगवाने के लिए जा रही हूँ।" बहू ने अपनी सहेलियों के आते ही अपनी सास से कहा और अपना बैग उठाकर वह बाहर निकल गई। 

            कल करवा चौथ है तो आज ही सारे काम निपटा कर कल घर में रहेगी। घर में ही बहुत काम हो जाते हैं। वह तो बताती भर जाती है। ऐसा नहीं उसने भी बहुत किया है। 
           
           बहू के जाते हैं तिवारी जी बोले- "अरे बहू कहाँ निकल गई अपनी सहेली के साथ?"

         "पार्लर गई है, मेंहदी लगवाने , कुछ शॉपिंग करना होगा। कल व्रत है न।"
        
         "तुमने तो कभी ना करवाया, न कभी मेंहदी लगाई, बस वही आलता लगा लिया और सिंदूर लगा लिया और शादी का लहँगा पहन कर ली पूजा। मुझे तो उसी में अच्छी लगती थी तुम, पर आजकल के बच्चे तो शौकीन है।"

        "क्यों ना हो उन्हें बराबर का साथ मिलता है, बेटा भी तो उसके हर काम में साथ खड़ा रहता है। यह तो नहीं छोड़ दिया अकेले और फिर मतलब नहीं सँभालो सारी घर गृहस्थी।"

        "तुम मुझे उसी में सुंदर लगती हो।"

       "क्यों नहीं? मेंहदी रचा कर बैठती तो काम कौन करता?"

        "छोड़ो भी पुरानी शिकायतें, कल मेरे लिए व्रत रहोगी।" कहकर तिवारी जी बाहर निकल गये। करीब आधा घंटे बाद आये। कुछ लाए थे जिसको उन्होंने छुपा के रख दिया। रात में खाना खाने के बाद उन्होंने निकाला और पत्नी से बोले -  "आज में तुम्हारे हाथ में मेहंदी लगाऊँगा।"  पत्नी की आंखें आश्चर्य से फटी रह गई । 

       "क्या?"

       "जी हाँ मैडम ।"

      "अरे! आपने आज ये नया चोचला क्यों? अभी तक तो कभी नहीं लगाई।"
 
       "लेकिन मैं इस बार लगाऊँगा।"

        इस पर पत्नी को बहुत तेज हँसी आई। 
 
      "अरे आज देख तो लो मैं भी कुछ कर सकता हूँ।"  

       तिवारी जी ने पत्नी के दोनों हाथों में सुंदर सी मेंहदी लगाई । कोन से मेंहदी लगाना कोई कठिन काम नहीं था। 

          बहू ससुरजी को चाय देने आई तो उसने सास के हाथों में मेंहदी देखकर आश्चर्य से कहा -  "मम्मी मेंहदी आपने कब लगवाई?"

         ये सुनकर सास के चेहरे पर लज्जा की लहर दौड़ गई।
 
रेखा श्रीवास्तव  वक्त वक्त की बात !

गुरुवार, 2 मई 2024

नाम का सवाल !amar ujala men

 

                                                      नाम का सवाल !

 

               सार्थक अपनी शादी का कार्ड लेकर अपने मित्र समर्थ के यहाँ गया और उसने अपनी शादी का कार्ड उसकी माँ को दिया। उसकी माँ ने जिज्ञासावश कार्ड खोलकर देखा और उसमें उसके पिता का नाम संजीव देखा।  संजीव तो सार्थक के चाचा थे, जो भाभी से शादी के बाद पिता बने। 
        
              उनको ये तो पता था कि सार्थक के पिता राजीव थे और उनकी आकस्मिक मौत के बाद दीक्षा की शादी देवर संजीव के साथ कर दी गई थी। उसने सार्थक को टोक दिया कि तुम्हारे पिता के नाम की जगह यह चाचा का नाम क्यों लिखा गया है क्योंकि तुम्हारे पिता का नाम तो राजीव था और इसमें संजीव लिखा हुआ है।
              
              सार्थक को अपनी आँखें खोलते ही पिता के रूप में संजीव ही मिला था, उसने पापा को बहुत संघर्ष करते हुए देखा और उसकी पढ़ाई के लिए हर संभव प्रयास किया ताकि उसका अच्छा भविष्य बन सके और वाकई उसका भविष्य उज्जवल हुआ। तब जाकर आज उसके घर में खुशी का यह मौका आया था । 
        
              सब बड़े खुश थे कि अचानक इस घर में उठाये गए प्रश्न से सार्थक के दिमाग में उथल-पुथल मच गई। उसने उन्हीं से पूछा कि यह बात आप कैसे कह सकती हैं? क्या कोई मुझे बता सकता हैं कि ऐसा क्यों है?"
 
             उन्होंने कहा - "हाँ अपने पापा की चाचीजी से पूछो, वही बता सकती हैं।"          
        
                सार्थक के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका था, वह दादी चाची के पास आया, जो कि एक डॉक्टर थी और उसने उनसे बगैर किसी भूमिका के पूछा - दादी जी क्या मेरे पापा मेरे पापा नहीं है मेरे पापा कोई और थे?" 
          
               चाची जी अकस्मात इस प्रश्न से चौंकी और बोली -  "यह बात तुमसे कही किसने?"
        
               उसने कहा -  "मैं कार्ड देने गया था तो मुझे एक आंटी ने बताया कि मैं राजीव का बेटा हूँ,  फिर यहाँ संजीव क्यों लिखा है? और उन्होंने ही कहा कि इसका कारण आप ही मुझे बता सकती हैं ।"
        
              "ठीक है अगर तुमको यह बात जाननी है तो एक बात मुझे बताओ कि तुमने अपने जीवन में कभी भी यह महसूस किया कि तुम्हारे पापा ने तुम्हारी परवरिश, तुम्हारी पढ़ाई लिखाई में, तुम्हारे प्यार में कभी कोई कमी की ? अगर नहीं तो फिर यह सवाल क्यों ?"
 
             "बस मैं जानना चाहता हूँ कि क्या वास्तव में ऐसा है।"
 
              "हां वास्तव में ऐसा ही है क्योंकि जब तुम 6 महीने के थे, तभी तुम्हारे पापा राजीव का एक एक्सीडेंट में निधन हो गया था। उस समय तुम्हारी माँ की उम्र 22 वर्ष थी , उनकी पूरी जिंदगी का और तुम्हारे भविष्य का सवाल था।  फिर तुम्हारी दादी ने यह निर्णय लिया कि माँ की शादी चाचा के साथ कर दी जाए ताकि दोनों का भविष्य सुरक्षित हो। उनकी सोच बहुत अच्छी थी और फिर माँ की शादी चाचा के साथ कर दी गई। उसके बाद तुम्हारी बहन का जन्म हुआ । जब तुमने स्कूल जाना शुरू किया तब यह प्रश्न उठा कि अगर तुम्हारे पिता के स्थान पर राजीव का नाम लिखा गया और बहन के पिता के स्थान पर संजीव का नाम लिखा जाएगा तो बड़े होने पर तुम्हारे मन में एक प्रश्न आएगा। सगे भाई बहन होने के बाद भी हमारे पिता के नाम अलग क्यों है? और उस समय तुम्हारे बाल मन पर क्या प्रभाव पड़ता यह कोई नहीं जानता था। इसीलिए यह निर्णय लिया गया कि जब परवरिश से लेकर हर चीज संजीव ही कर रहा है तो पिता के नाम पर भी संजीव का ही नाम होना चाहिए इसीलिए संजीव का नाम पिता की जगह पर है लेकिन एक वादा मैं तुमसे चाहूँगी कि तुम अब पूरी तरह मैच्योर हो और इस परिवर्तन से जीवन में तुम्हारी माँ ने भी बहुत संघर्ष और मानसिक यंत्रणा सहन की है तो तुम कभी इस बात को अपनी माँ से नहीं पूछोगे।"
 
                      " याद रखना कि तुम संजीव और दीक्षा के बेटे हो और वही रहोगे।"  


रेखा श्रीवास्तव