रानू जब से माँ बनने की ओर बढ़ी है , रोज ही कुछ न कुछ परेशानियां उसको लगी रहती थीं तो परेशान होकर नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और घर में रहने लगी। वह घर में अकेली ही रहती थी लेकिन ऋषिन को उसकी चिंता अपने ऑफिस में लगी रहती थी। वह दिन में कई बार फ़ोन करके उससे हाल चाल लेता रहता था।
रानू और ऋषिन का एक ही जगह जॉब होने के कारण और कोई परेशानी नहीं थी लेकिन समय पास आने के साथ साथ उनकी अलग तरह की चिंताएं बढती चली जा रही थीं। रानू स्वभाव से संवेदनशील थी लेकिन इस समय की परेशानियों के कारण वह गुस्सा भी जल्दी हो जाया करती थी। ऋषिन उसके स्वभाव से बहुत अच्छी तरह परिचित था और वह अच्छे से सामंजस्य बिठाये हुए था। ऐसा नहीं कि रानू सिर्फ ससुराल में ऐसा करती थी वह अपनी बहनों और माँ से भी जल्दी गुस्सा हो जाती थी और थोड़ी देर बाद सॉरी कह कर सामान्य हो जाती। लेकिन दूसरे परिवार में आकर ये आदत उसे सहज रूप से लेने वाली न थी। सास की बातों से वह खिन्न हो जाती थी और कभी कभी झुंझला भी जाती थी।
ऋषिन ने उसकी माँ को सहायता के लिए बुला लिया था लेकिन रानू महसूस कर रही थी कि माँ की बातों में अपने बेटे , बहू और पोते की चिंता ज्यादा झलकती थी। रानू ने महसूस किया कि माँ उसे कम प्यार नहीं करती लेकिन ज्यादा झुकाव उसका अपने बेटे और बहू के प्रति अधिक था। उसने माँ को जाने के लिए कह दिया।
ऋषिन ने सोचा था कि रानू को प्रसव के लिए उसकी माँ के पास भेज देगा और फिर अपने घर ले जाएगा। इस दौरान रानू को ये अच्छी तरह से अहसास हो चुका था कि एक बच्चे को जन्म देने में माँ कितना कष्ट उठाती है ? ये नौ महीने का समय वह एक एक सांस अपने बच्चे के साथ लेती है फिर वह अपने से दूर होने की बात कैसे स्वीकार कर सकती है और फिर अगर कोई और बीच में आकर दूर करना चाहे तो वह सहर्ष स्वीकार तो नहीं कर सकती। शायद वह भी नहीं कर पायेगी।
उसके घर जाने का समय करीब आ रहा था और उसने अपनी ससुराल जाने का टिकट बुक करा लिया। तैयारी कर ली तब पति को टिकट दिया तो उसने देखा और बोला -- "तुम्हें कहाँ चलना है। "
"मम्मी जी के पास। "
"क्यों मम्मी के पास नहीं जाना है ?"
"नहीं मम्मी ने जो कष्ट तुम्हारे लिए उठाये होंगे , उसका अहसास मुझे अब हुआ है। अब तो उनके पास ही जाकर डिलीवरी करुँगी , उनको बहुत ख़ुशी होगी और शायद मुझे भी। "
ऋषिन रानू की संवेदनशीलता को पहले से ही जानता था और आज उसको इस रूप में देखा तो अपने को खुशनसीब समझ रहा था।
रानू और ऋषिन का एक ही जगह जॉब होने के कारण और कोई परेशानी नहीं थी लेकिन समय पास आने के साथ साथ उनकी अलग तरह की चिंताएं बढती चली जा रही थीं। रानू स्वभाव से संवेदनशील थी लेकिन इस समय की परेशानियों के कारण वह गुस्सा भी जल्दी हो जाया करती थी। ऋषिन उसके स्वभाव से बहुत अच्छी तरह परिचित था और वह अच्छे से सामंजस्य बिठाये हुए था। ऐसा नहीं कि रानू सिर्फ ससुराल में ऐसा करती थी वह अपनी बहनों और माँ से भी जल्दी गुस्सा हो जाती थी और थोड़ी देर बाद सॉरी कह कर सामान्य हो जाती। लेकिन दूसरे परिवार में आकर ये आदत उसे सहज रूप से लेने वाली न थी। सास की बातों से वह खिन्न हो जाती थी और कभी कभी झुंझला भी जाती थी।
ऋषिन ने उसकी माँ को सहायता के लिए बुला लिया था लेकिन रानू महसूस कर रही थी कि माँ की बातों में अपने बेटे , बहू और पोते की चिंता ज्यादा झलकती थी। रानू ने महसूस किया कि माँ उसे कम प्यार नहीं करती लेकिन ज्यादा झुकाव उसका अपने बेटे और बहू के प्रति अधिक था। उसने माँ को जाने के लिए कह दिया।
ऋषिन ने सोचा था कि रानू को प्रसव के लिए उसकी माँ के पास भेज देगा और फिर अपने घर ले जाएगा। इस दौरान रानू को ये अच्छी तरह से अहसास हो चुका था कि एक बच्चे को जन्म देने में माँ कितना कष्ट उठाती है ? ये नौ महीने का समय वह एक एक सांस अपने बच्चे के साथ लेती है फिर वह अपने से दूर होने की बात कैसे स्वीकार कर सकती है और फिर अगर कोई और बीच में आकर दूर करना चाहे तो वह सहर्ष स्वीकार तो नहीं कर सकती। शायद वह भी नहीं कर पायेगी।
उसके घर जाने का समय करीब आ रहा था और उसने अपनी ससुराल जाने का टिकट बुक करा लिया। तैयारी कर ली तब पति को टिकट दिया तो उसने देखा और बोला -- "तुम्हें कहाँ चलना है। "
"मम्मी जी के पास। "
"क्यों मम्मी के पास नहीं जाना है ?"
"नहीं मम्मी ने जो कष्ट तुम्हारे लिए उठाये होंगे , उसका अहसास मुझे अब हुआ है। अब तो उनके पास ही जाकर डिलीवरी करुँगी , उनको बहुत ख़ुशी होगी और शायद मुझे भी। "
ऋषिन रानू की संवेदनशीलता को पहले से ही जानता था और आज उसको इस रूप में देखा तो अपने को खुशनसीब समझ रहा था।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (25-12-2016) को "हार नहीं मानूँगा रार नहीं ठानूँगा" (चर्चा अंक-2567) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'