पूर्व कथा :
सावित्री अपने मइके या ससुराल दोनों में दुलारी थी। घर में लक्ष्मी मानी जाती। उसका पति समझदार और जिम्मेदार युवक था। छोटे भाई की संगती के बिगड़ने से चिंतित रहता और उसके इसा बात के लिए रोकने पर उसके साथ कुछ ऐसा बुरा हुआ की कई जिन्दगी इसमें पिसने ला। शशिधर का दोस्त गिरीश ने अंतिम समय उसे वचन दिया की वह उसकी पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय नहीं होने देगा और इसके लिए उसने स्कूल में पूरी भूमिका बना दी। चाचा बच्चों को करने लगा और साथ ही सावित्री को भी। बच्चों को कसबे में के लिए ले जाने के सवाल पर गिरीश और शशि के घर वालों के बीच कहा सुनी हो गयी और उसी बीच गिरीश ने कह दिया की शशि को मारने वाले उसके देवर के साथ ही थे ...........
गतांक से आगे :
गिरीश की बात सुनकर उसके ससुर और सावित्री अवाक् रह गए। लेकिन उनके मुँह से कोई बात निकल ही नहीं सकती थी। उन दोनों के मन में क्या चल रहा था इसको कोई और नहीं जान सकता था। इस बात को सुनकर उसका देवर भी सन्न रह गया, लेकिन गिरीश को हर बात कहाँ तक पता है? इस बारे में उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा क्योंकि अब आगे से उसे गिरीश से पंगा नहीं लेना है, ये तो पक्का है। उसकी मंशा कि सावित्री और बच्चों को वह यहाँ से जाने ही नहीं देगा ताकि भैया के पैसे का पूरा पूरा लाभ उसी को मिले और सारा पैसा उसके हाथ में ही आये और खेती में हिस्सा तो बना ही रहेगा। अगर सावित्री और बच्चे यहाँ से निकल गए तो उसके हिस्से में क्या आने वाला है? वह ऐसा होने ही नहीं देगा? इसके लिए उसे चाहे गिरीश को भी धमकाना क्यों न पड़े ? मेरे पास तो मेरे सारे साथी हैं और गिरीश अकेला है डर ही जाएगा।
***** **** *****
आखिर गिरीश ने घर जाकर ये निर्णय लिया कि वह इस बार बच्चों का नाम कस्बे में ही लिखायेगा। छोटा अभी छोटा है इसलिए वह बाकी दोनों बच्चों नाम ही लिखायेगा। यद्यपि उसको ये विश्वास ही नहीं कि शशि का छोटा भाई इस बात के लिए राजी होगा और बच्चों को कस्बे में पढ़ने देगा। कहीं ऐसा न हो कि वह मेरे साथ साथ इन बच्चों का भी दुश्मन न बन बैठे, सावित्री क्या करेगी?
सावित्री अपने मइके या ससुराल दोनों में दुलारी थी। घर में लक्ष्मी मानी जाती। उसका पति समझदार और जिम्मेदार युवक था। छोटे भाई की संगती के बिगड़ने से चिंतित रहता और उसके इसा बात के लिए रोकने पर उसके साथ कुछ ऐसा बुरा हुआ की कई जिन्दगी इसमें पिसने ला। शशिधर का दोस्त गिरीश ने अंतिम समय उसे वचन दिया की वह उसकी पत्नी और बच्चों के साथ अन्याय नहीं होने देगा और इसके लिए उसने स्कूल में पूरी भूमिका बना दी। चाचा बच्चों को करने लगा और साथ ही सावित्री को भी। बच्चों को कसबे में के लिए ले जाने के सवाल पर गिरीश और शशि के घर वालों के बीच कहा सुनी हो गयी और उसी बीच गिरीश ने कह दिया की शशि को मारने वाले उसके देवर के साथ ही थे ...........
गतांक से आगे :
गिरीश की बात सुनकर उसके ससुर और सावित्री अवाक् रह गए। लेकिन उनके मुँह से कोई बात निकल ही नहीं सकती थी। उन दोनों के मन में क्या चल रहा था इसको कोई और नहीं जान सकता था। इस बात को सुनकर उसका देवर भी सन्न रह गया, लेकिन गिरीश को हर बात कहाँ तक पता है? इस बारे में उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा क्योंकि अब आगे से उसे गिरीश से पंगा नहीं लेना है, ये तो पक्का है। उसकी मंशा कि सावित्री और बच्चों को वह यहाँ से जाने ही नहीं देगा ताकि भैया के पैसे का पूरा पूरा लाभ उसी को मिले और सारा पैसा उसके हाथ में ही आये और खेती में हिस्सा तो बना ही रहेगा। अगर सावित्री और बच्चे यहाँ से निकल गए तो उसके हिस्से में क्या आने वाला है? वह ऐसा होने ही नहीं देगा? इसके लिए उसे चाहे गिरीश को भी धमकाना क्यों न पड़े ? मेरे पास तो मेरे सारे साथी हैं और गिरीश अकेला है डर ही जाएगा।
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आखिर गिरीश ने घर जाकर ये निर्णय लिया कि वह इस बार बच्चों का नाम कस्बे में ही लिखायेगा। छोटा अभी छोटा है इसलिए वह बाकी दोनों बच्चों नाम ही लिखायेगा। यद्यपि उसको ये विश्वास ही नहीं कि शशि का छोटा भाई इस बात के लिए राजी होगा और बच्चों को कस्बे में पढ़ने देगा। कहीं ऐसा न हो कि वह मेरे साथ साथ इन बच्चों का भी दुश्मन न बन बैठे, सावित्री क्या करेगी?
शशिधर के पिता की भी जान सांसत में पड़ गयी कि ये नालायक बेटा कहीं उसकी पूरी जमीन- जायदाद कुसंगत में पड़ कर जुए और शराब की भेंट न चढ़ा दे। इन बच्चों को कहीं सड़क पर लाकर खड़ा न कर दे, फिर वे क्या करेंगे? जो अपने देवतुल्य भाई को मरवा सकता है ,वह कुछ भी कर सकता है। वे भी बच्चों को बचाने और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए उन्हें अपने से दूर करने के लिए खुद को तैयार करने लगे और इसके लिए वे अपने दिल पर पत्थर रखने के लिए राजी थे। उन्हें इस बात पर शर्म आने लगी थी कि कहाँ एक बेटा कितना सज्जन और चरित्रवान और दूसरा निकम्मा और बिगडैल। उन्होंने पत्नी से भी इस बारे में विचार किया। एक माँ वैसे भी चोट खाए बैठी थी, उसकी जितनी आत्मा आहत थी और वह उससे ज्यादा नहीं सोचना चाहती थी। अब वे दोनों ही बेटे को खोकर पोतों को खोने की कल्पना से भी उनकी आत्मा काँप जाती थी। इसलिए उन लोगों ने गिरीश के प्रस्ताव को स्वीकार कर का मन बना लिया ।
स्कूल खुलने का समय धीरे धीरे पास आता जा रहा था, सावित्री को इस बारे में अभी नहीं बताया गया था। गिरीश ने भी सोच लिया था कि वह बच्चों का नाम बगैर उन्हें ले जाए पहले ही एडमीशन करवा लेगा और एक दो महीने के बाद वह ले जाएगा। लेकिन उसको ये नहीं मालूम था कि बच्चों को यहाँ से ले जाना तो आसान होगा लेकिन उनकी परवरिश नहीं। गिरीश बच्चों को ले तो गया लेकिन उनके लिए एक कमरा लेकर रहना भी उसको वहीं पड़ेगा लेकिन मित्र की खातिर उसको कुछ न कुछ तो कष्ट उठाना ही पड़ेगा, इस बात से वह पूरी तरह से वाकिफ था और मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार भी था। बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था, उनके कपड़े धोना , उनके लिए सारी सुविधाएँ जुटाना आसान न था। सिर्फ कुछ ही दिनों में गिरीश को लगने लगा कि वह ये सब नहीं कर पायेगा। वह तो घर से आकर यहाँ पर पढ़ा कर चला जाता था। कभी घर में दाल नहीं और कभी आटा नहीं। फिर रसोई के तमाम झंझट, बच्चों को क्या खाना खिलाना है और क्या नहीं" ये सब बातें कभी पुरुष भी जान सके हैं? लेकिन वह जिस आग में कूदा था उससे पीछे नहीं हटना था।
फिर एक दिन बड़ा बेटा मयंक बीमार पड़ा , उसको बहुत तेज बुखार था और वह बुखार के कारण बड़बड़ा भी रहा था। वह बुखार में माँ माँ की रट लगाये था। अब गिरीश के हाथ पैर फूलने लगे कि अगर बच्चे की हालत और बिगड़ती है तो वह क्या करेगा? वह अकेला दोनों बच्चों को कैसे सँभाल पायेगा। तीन दिन तक उसके बुखार रहने के बाद वह ठीक हो पाया लेकिन इस बीच गिरीश जिस अग्निपरीक्षा से गुजरा था उसने उसे अन्दर तक हिला दिया था।
उसने रविवार की छुट्टी के दिन बच्चों को लेकर गाँव जाने की सोची , बच्चे अपने घर वालों से मिल भी आयेंगे और वह उनके बाबा से माँ को साथ भेजने के लिए बात भी करेगा। उसे इस बात का पूरा पूरा अहसास हो चुका था कि बगैर माँ के बच्चों को रखना आसान नहीं है। एक माँ तो अपने बच्चों को बाप के बिना पाल सकती है लेकिन एक बाप बिना माँ के बच्चों को नहीं पाल सकता। घर में गृहणी का रहना कितना जरूरी है इस बात को वह अच्छी तरह से जान चुका था और इसी लिए वह शशिधर के पिता से बात करने के लिए तैयार हो चुका था।
स्कूल खुलने का समय धीरे धीरे पास आता जा रहा था, सावित्री को इस बारे में अभी नहीं बताया गया था। गिरीश ने भी सोच लिया था कि वह बच्चों का नाम बगैर उन्हें ले जाए पहले ही एडमीशन करवा लेगा और एक दो महीने के बाद वह ले जाएगा। लेकिन उसको ये नहीं मालूम था कि बच्चों को यहाँ से ले जाना तो आसान होगा लेकिन उनकी परवरिश नहीं। गिरीश बच्चों को ले तो गया लेकिन उनके लिए एक कमरा लेकर रहना भी उसको वहीं पड़ेगा लेकिन मित्र की खातिर उसको कुछ न कुछ तो कष्ट उठाना ही पड़ेगा, इस बात से वह पूरी तरह से वाकिफ था और मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार भी था। बच्चों के लिए खाने की व्यवस्था, उनके कपड़े धोना , उनके लिए सारी सुविधाएँ जुटाना आसान न था। सिर्फ कुछ ही दिनों में गिरीश को लगने लगा कि वह ये सब नहीं कर पायेगा। वह तो घर से आकर यहाँ पर पढ़ा कर चला जाता था। कभी घर में दाल नहीं और कभी आटा नहीं। फिर रसोई के तमाम झंझट, बच्चों को क्या खाना खिलाना है और क्या नहीं" ये सब बातें कभी पुरुष भी जान सके हैं? लेकिन वह जिस आग में कूदा था उससे पीछे नहीं हटना था।
फिर एक दिन बड़ा बेटा मयंक बीमार पड़ा , उसको बहुत तेज बुखार था और वह बुखार के कारण बड़बड़ा भी रहा था। वह बुखार में माँ माँ की रट लगाये था। अब गिरीश के हाथ पैर फूलने लगे कि अगर बच्चे की हालत और बिगड़ती है तो वह क्या करेगा? वह अकेला दोनों बच्चों को कैसे सँभाल पायेगा। तीन दिन तक उसके बुखार रहने के बाद वह ठीक हो पाया लेकिन इस बीच गिरीश जिस अग्निपरीक्षा से गुजरा था उसने उसे अन्दर तक हिला दिया था।
उसने रविवार की छुट्टी के दिन बच्चों को लेकर गाँव जाने की सोची , बच्चे अपने घर वालों से मिल भी आयेंगे और वह उनके बाबा से माँ को साथ भेजने के लिए बात भी करेगा। उसे इस बात का पूरा पूरा अहसास हो चुका था कि बगैर माँ के बच्चों को रखना आसान नहीं है। एक माँ तो अपने बच्चों को बाप के बिना पाल सकती है लेकिन एक बाप बिना माँ के बच्चों को नहीं पाल सकता। घर में गृहणी का रहना कितना जरूरी है इस बात को वह अच्छी तरह से जान चुका था और इसी लिए वह शशिधर के पिता से बात करने के लिए तैयार हो चुका था।
घर पहुँच कर उसने शशिधर के पिता से बात की --
"बाबूजी बच्चों की खातिर उनके साथ उनकी माँ का रहना बहुत ही जरूरी है, अतः आप उनकी माँ को उनके साथ रहने की अनुमति दें। 10 और 8 साल के बच्चे इतने बड़े नहीं होते कि वे अपनी माँ के बिना रह सकें।"
"लेकिन ये तो मुश्किल है , घर में क्या होगा? शशि की माय भी अकेली रह जायेगी।"
"बाबूजी बच्चों के खाने पीने की व्यवस्था करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है।"
"बेटा तुमने कहा किबच्चों को भेज दें, मैंने वैसे ही किया लेकिन बहू को भेजना मुश्किल है।"
"बाबूजी बच्चों के भविष्य आपको कुछ तो सोचना ही पड़ेगा।"
"अच्छा बेटा तुम थोड़े दिन रुक जाओ मैं इस बारे में घर में बात करता हूँ ।
गाँव का मामला था, वहाँ इतना आसन नहीं होता कि कोई विधवा स्त्री अकेले कस्बे में रहने चली जाए वह भी एक गैर मर्द के कहने पर। शशिधर के पिता इस बात को महसूस कर रहे थे कि इस समय हालात ऐसे ही हैं कि सावित्री को बच्चों के भविष्य के लिए बाहर निकलना ही पड़ेगा। इस बात को घर में उठाया गया कि छोटे अपनी पत्नी को गौना करा कर ले आये ताकि सावित्री बच्चों के साथ जा सके। जब ये बात देवर को पता चली तो वह आग बबूला हो गया और उसने गाँव के पंचायत बुलाने की सोची क्योंकि वह इस बात के लिए बिलकुल तैयार नहीं था। जिस दिन गिरीश आया छोटे पहले से ही सरपंच को बुला लाया था कि पराया मर्द उसके भाई के बच्चों को लेकर चला जायेगा फिर हम कुछ न कर पायेंगे। सावित्री भी अगर एक बार घर से बाहर निकली तो फिर घर लौट कर उसको रहना मुश्किल हो जायेगा। कस्बे की जिन्दगी सबको लुभाती है और जब पैसा उसके हाथ में होगा तो फिर वह किसी को क्यों घास डालेगी?
"बेटा तुमने कहा किबच्चों को भेज दें, मैंने वैसे ही किया लेकिन बहू को भेजना मुश्किल है।"
"बाबूजी बच्चों के भविष्य आपको कुछ तो सोचना ही पड़ेगा।"
"अच्छा बेटा तुम थोड़े दिन रुक जाओ मैं इस बारे में घर में बात करता हूँ ।
गाँव का मामला था, वहाँ इतना आसन नहीं होता कि कोई विधवा स्त्री अकेले कस्बे में रहने चली जाए वह भी एक गैर मर्द के कहने पर। शशिधर के पिता इस बात को महसूस कर रहे थे कि इस समय हालात ऐसे ही हैं कि सावित्री को बच्चों के भविष्य के लिए बाहर निकलना ही पड़ेगा। इस बात को घर में उठाया गया कि छोटे अपनी पत्नी को गौना करा कर ले आये ताकि सावित्री बच्चों के साथ जा सके। जब ये बात देवर को पता चली तो वह आग बबूला हो गया और उसने गाँव के पंचायत बुलाने की सोची क्योंकि वह इस बात के लिए बिलकुल तैयार नहीं था। जिस दिन गिरीश आया छोटे पहले से ही सरपंच को बुला लाया था कि पराया मर्द उसके भाई के बच्चों को लेकर चला जायेगा फिर हम कुछ न कर पायेंगे। सावित्री भी अगर एक बार घर से बाहर निकली तो फिर घर लौट कर उसको रहना मुश्किल हो जायेगा। कस्बे की जिन्दगी सबको लुभाती है और जब पैसा उसके हाथ में होगा तो फिर वह किसी को क्यों घास डालेगी?
सरपंच काफी बुजुर्ग अनुभवी और सुलझे हुए व्यक्ति थे। उन्होंने गिरीश से बात की --
"तुम बहू को शहर ले जाओगे तो लोग क्या कहेंगे?"
"कुछ भी कहें, वह अपने बच्चों के साथ रहेंगी, नहीं तो बच्चों का वहाँ पढ़ पाना मुश्किल हो जायेगा। वहाँ अभी बच्चों को रखने के लिए हॉस्टल भी नहीं है कि उनको वहाँ डाला जा सके।"
"वहाँ किसी आदमी की भी जरूरत होगी, एक गाँव की औरत कस्बे में सब कुछ कैसे कर पाएगी?"
"इस बारे में इनके भाइयों को बुला कर बात कर लीजिए , शायद वे कुछ व्यवस्था कर सकें।"
"इस बात को आप लोगों ने क्यों नहीं सोचा कि बच्चों और बहू के बारे में कुछ निर्णय लेने के पहले उसके मायके वालों की राय लेना भी तो उतना ही जरूरी है।" सरपंच को गिरीश की बात जँच गयी।
(क्रमशः)
"तुम बहू को शहर ले जाओगे तो लोग क्या कहेंगे?"
"कुछ भी कहें, वह अपने बच्चों के साथ रहेंगी, नहीं तो बच्चों का वहाँ पढ़ पाना मुश्किल हो जायेगा। वहाँ अभी बच्चों को रखने के लिए हॉस्टल भी नहीं है कि उनको वहाँ डाला जा सके।"
"वहाँ किसी आदमी की भी जरूरत होगी, एक गाँव की औरत कस्बे में सब कुछ कैसे कर पाएगी?"
"इस बारे में इनके भाइयों को बुला कर बात कर लीजिए , शायद वे कुछ व्यवस्था कर सकें।"
"इस बात को आप लोगों ने क्यों नहीं सोचा कि बच्चों और बहू के बारे में कुछ निर्णय लेने के पहले उसके मायके वालों की राय लेना भी तो उतना ही जरूरी है।" सरपंच को गिरीश की बात जँच गयी।
(क्रमशः)
यह अंक भी पढ़ा। रोचकता बनी है।
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