पिछला कथा सारांश --
आशु एक डी एम का बेटा जो अपनी माँ की मौत के बाद नाना नानी के घर पला और फिर पिता की दूसरी शादी ने उससे उसके पिता को भी दूर कर दिया. अपने पापा को बहुत मिस करता था. जीवन के एक मोड़ पर एक एक्सीडेंट में उसके पापा और नई माँ दोनों स्वर्गवासी हो गए . उस खबर को सुन कर आशु अपने नाना के साथ लखनऊ भागा लेकिन उसकी नई माँ के भाइयों ने उसको पापा की अंतिम क्रिया भी नहीं करने दी और दुबारा वहाँ न आने कि हिदायत भी दी. वह अपने पापा के तरह से बनने के लिए आई ए एस की तैयारी करने लगा और फिर उसकी पहली पोस्टिंग उसी जगह हुई जहाँ वह पैदा हुआ था. उसी बंगले में मिला उसे अपना सौतेला भाई, एक माली के रूप में काम करता हुआ. उसके भविष्य के लिए उसको पढ़ने की व्यवस्था की. ट्रान्सफर होने के बाद वह वहाँ आ पहुंचा जहाँ के पास के गाँव में उसकी सौतेली बहन की शादी हुई थी. ये शादी उसके ससुराल वालों ने पापा की संपत्ति के लालच में आकर की थी और फिर पापा की संपत्ति पर कब्जे के लिए उसके वैरिफिकेशन का दायित्व उस पर आया ..................
इसके आगे.
मैंने घर आकर उन्नाव के डी एम को फ़ोन किया कि मुझे सन्डे को नितिन से कुछ काम है इसलिए वह उसको सन्डे को यहाँ भेज दें. इस विषय में मैंने किसी को भी नहीं बताया दी को भी नहीं कि मेरा अगला कदम क्या होगा? और मैं क्या निर्णय लेने वाला हूँ. मुझे तो ये किसी फिल्मी कहानी की तरह लगने लगा था . क्या वास्तविक जीवन में भी ऐसा होता है? जिन्दगी में ऐसे मोड़ और ऐसे कठिन परीक्षा के क्षण- जिसमें इंसान खुद ही दब कर रह जाए.
क्या ईश्वर किसी की जिन्दगी इस तरह से पूरी तरह से तहस नहस कर देता है कि महलों से उठा कर इंसान को सड़क पर खड़ा कर दे और कहे कि अब अपने हाथ से सब कुछ कर. मैंने इसी लिए शामली को भी सन्डे को ही बुलाया था कि उस दिन नितिन के यहाँ होने पर उससे वेरीफाई तो करवा ही सकता हूँ और फिर ये भी देखना होगा कि ये लोग जायदाद के लिए उसको किस तरह से रखे हुए हैं. गलत तो वह कर ही रहे हैं और इसके लिए वे अपराध भी कर रहे हैं कि पापा के तीन और वारिस होते हुए भी सबको नकार रहे हैं. हम दो न सही नितिन को तो उसका हक मिलना ही चाहिए. बहन तो उससे छीन ही ली है और वह दरवाजा भी जहाँ वह कभी जाकर अपनी बहन से सुख दुःख तो बाँट सकता. सोचते ये हैं कि सारी संपत्ति उनको मिल जाये और फिर शामली से तो उनके पास आ ही जाएगी.
दूसरे दिन जब मैं ऑफिस पहुंचा तो संदीप बाहर ही खड़ा था. मैं अन्दर चला गया , मुझे अब यकीन होने लगा था कि ये लोग शामली को सिर्फ पैसे हथियाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं तभी तो उसको लाने में इसने इतनी आनाकानी की और जब बात नहीं बनती लगी तो लाने के लिए तैयार हुआ और आज आकर फिर खड़ा हो गया. मैंने बैठते ही सबसे पहले चपरासी को बुलाया और कहा की बाहर जो खड़ा है उसको अन्दर भेज दे.
संदीप जब अन्दर आया तो उसके चेहरे पर कुछ घबडाहट दिख रही थी. मैंने उसको इग्नोर करते हुए खुद को व्यस्त दिखाने लगा.
"साहब, आपने परसों बुलाया है और उस दिन तो इतवार है."
"हाँ , उस दिन सन्डे है, फिर आने में कोई परेशानी." मैंने बिना सिर उठाये ही उससे प्रश्न किया.
"नहीं , साहब उस दिन तो आपका ऑफिस बंद रहेगा."
"हाँ , ऑफिस बंद रहेगा लेकिन मैं आपके केस को घर पर ही देखूँगा. ये काम इतना आसन नहीं है जितना कि आप समझ रहे हैं. आप जिसके वारिस के लिए मुझसे वेरीफाई करवाना चाह रहे हैं वह मेरे ही कैडर का इंसान था. इस लिए मुझे उस लड़की से विस्तार से पूछताछ करनी पड़ेगी. आप सन्डे को ही लेकर मेरे बंगले पर आ रहे हैं." मैंने उसको स्पष्ट कर दिया कि वह जितना आसन इस काम को समझ रहा है , उतना वह है नहीं.
"जी , साहब बहुत अच्छा." कहते हुए वह बाहर निकल गया.
* * * * *
सन्डे का मुझे भी इन्तजार बहुत था. पता नहीं मन में कितनी सारी बातें उमड़ रही थी कि कहीं इन लोगों ने शामली मार न दिया हो क्योंकि ये तो जल्दी दौलत हासिल करने के चक्कर में तभी से थे. तभी तो नितिन से इन लोगों ने उसी वक्त लिखवा लिया था कि वह पापा की संपत्ति में कोई दावा नहीं करेगा. ये सब तो जायदाद के लिए होता है लेकिन एक वह जिस बच्चे का कोई न हो उसको इस तरह से बेघर और सब कुछ उससे छीन लेने की कोई सोच कैसे सकता है? अब मैं दी को पूरा निर्णय लेने के बाद ही बताऊंगा कि मैं भी उनका भाई हूँ और ऐसे ही नहीं पूरी डिस्ट्रिक्ट का काम संभाल रहा हूँ.
उस दिन पहले नितिन आ गया . उसको कुछ मालूम नहीं था लेकिन अब उसके चेहरे पर कुछ आत्मविश्वास आ गया था शायद ये उसके पढ़ने से या फिर उसको जो मालियों वाले माहौल से अलग माहौल मिलने लगा था उससे.
उसने आते ही पता नहीं क्यों मेरे पैर छुए? वैसे दिल से कहूं तो ये हक़ बनता है मेरा . बड़ा भाई जो हूँ और क्या पता कि इन दोनों नन्हे से बच्चों को हम दोनों को ही अपने छत्रछाया में न लेना पड़ जाय. अपने आप तो सभी जी लेते हैं लेकिन किसी सहारे से लता अधिक ऊपर चढ़ती है जमीन पर फैल कर वह अधिक फलवती नहीं हो पाती. बिल्कुल अनाथ समझने वाला जिसका न आगे कोई और न पीछे. , क्या करना है और क्या नहीं ? ये भी तो उसको बताने वाला कोई नहीं है.
"ठीक हो नितिन, वहाँ कोई परेशानी तो नहीं."
"नहीं सब ठीक है, नए साहब ने मुझे पढ़ने के लिए किताबे भी मंगवा कर दी हैं और काम कम ही करवाते हैं. " वह खुश होकर बता रहा था और मुझे लगा कि मेरे दिए दायित्व को उन्होंने ठीक से पूरा किया है.
"देखो नितिन , मेरे पास तुम्हारी बहन का शामली का केस वेरीफाई करने के लिए आया है और मैं शामली को नहीं पहचानता. उसका पति मेरे पास आया था. मैंने उसको आज ही बंगले पर बुलाया है और तुमको अन्दर ही रहना है . जब मैं तुमको बुलाऊंगा तभी तुम आना और अपनी बहन से मिलना. उससे बारे में सब कुछ तुम्हें उससे पूछना है. वे लोग तुम्हारे पापा की जायदाद के लिए ये सब कर रहे हैं ."
"क्या दीदी आएगी यहाँ?" नितिन बच्चे की तरह से चहक पड़ा.
"हाँ, उसे मैंने वेरीफाई करने के लिए बुलाया है."
"कौन उसको लेकर आने वाला है?"
"उसका पति संदीप."
"देखता हूँ, मुझे तो उन लोगों ने दरवाजे से भगा दिया था और दीदी से मिलने भी नहीं दिया था."
"कोई बात नहीं, इसी लिए तो मैंने तुमको बुलवाया है कि तुम उससे सारी बातें जान लोगे.मुझे सच पता चल जाना चाहिए और फिर सारी संपत्ति पर उन्हें हक़ कैसे मिल सकता है? तुम्हारा हक़ तो तुम्हें मिलेगा न."
"नहीं, वे पहले ही मुझसे लिखवा चुके हैं."
"कोई बात नहीं, ये कागज़ कोई मतलब नहीं रखते क्योंकि वे ये साबित कर रहे हैं कि शामली के अलावा और कोई वारिस है ही नहीं." मैंने बात उसके सामने स्पष्ट कर दी.
"वे लोग दीदी को परेशान न करें? " नितिन को अपनी बहन की बड़ी चिंता हो रही थी.
"नहीं, अभी तो हम यह भी नहीं कह सकते कि वे शामली को कैसे रखते हैं? उसकी उस घर में क्या हालत है? मुझे उसके ढंग से सही नहीं लगा क्योंकि वह शामली को लाना नहीं चाहता था."
"आज तो लायेंगे न, बहुत दिन हो गए शादी के बाद से उन लोगों ने उसको भेजा ही नहीं और न मुझे मिलने दिया." नितिन के स्वर में दुःख झलक रहा था क्योंकि उसके लिए तो अपने के नाम पर एक वही बहन ही थी नहीं तो एकदम से अनाथ.
"लायेंगे और जरूर लायेंगे. इसी लिए मैंने उन्हें सन्डे को बुलाया है कि घर पर हम उससे बहुत सी बातें जान सकते हैं. ऑफिस में ये संभव नहीं हो पाता. "
बाहर किसी गाड़ी के रुकने कि आवाज आई तो मैंने सोचा कि वही आई होगी. मैंने नितिन को पीछे जाने के लिए बोल दिया. घर में रहने वाले चपरासी ने आकर बताया कि कोई आपसे मिलने आया है. और मैंने उसको अन्दर भेज देने कि बात कही.
थोड़ी ही देर में संदीप एक दुबली पतली शरीर वाली लड़की के साथ मेरे सामने खड़ा था. वह लड़की तो लग रही थी मानो कि महीनों की बीमार हो.
"साहब मैं इसको ले आया हूँ और आप जो चाहें इससे पूछ लें." इतना कहने के बाद वह अपने साथ आई युवती के तरफ मुखातिब हुआ और बोला - "ये साहब जो भी पूछें ठीक से सोच समझ कर उत्तर देना. और अपनी तरफ से कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं है."
मैंने उन दोनों को वही बैठने का इशारा किया. फिर सोचने लगा कि क्या ये लड़की इस लड़के सामने वो सारे सवालों के जबाव दे पायेगी जिनका कि मुझे उत्तर चाहिए क्योंकि इसने उसको जो हिदायत दी है कि अपनी तरफ से कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं है. तब तो वह बोल ही नहीं पायेगी और इसके सामने तो बिल्कुल भी नहीं.
"आपका नाम क्या है?" मैंने शामली कि तरफ मुखातिब होकर पूछा.
"जी शामली माथुर."
"आपके पिताजी का नाम क्या है?"
"जी, स्व. प्रदीप कुमार माथुर."
"तुम अकेली ही हो कोई और भाई बहन." अब मैंने उसके उत्तर के साथ साथ उसके चेहरे को भी पढ़ने कि जरूरत समझी और उसके मनोभावों से ही बहुत कुछ जाना जा सकता था.
"जी, वो मेरे एक..." वो अटक अटक कर बोलने लगी .
तभी उसका पति तेज आवाज में बोला --"ठीक से जबाव दो कि कोई नहीं है."
"जी और कोई नहीं है." वह एक सांस में ही बोल गयी. मेरे शक के बादल घने होने लगे कि ये लड़की सिर्फ मोहरा बनाई जा रही है कि सिर्फ संपत्ति हासिल कर ली जाये.
"आप बाहर जाइये, मुझे इससे अकेले में पूछताछ करनी है." मैंने उसके पति से कहा.
"क्यों साहब , जो पूछना हो मेरे सामने ही पूछिए. अकेले मैं पता नहीं ये क्या बोल दे?"
"क्या बोल दे का मतलब ? क्या ये पागल है? या इसके बारे में जो मुझे पूछना है वो आप बताएँगे तभी ये बोलेगी."
"नहीं साहब गाँव की रहने वाली है अधिक जानकारी इसको नहीं है."
"ये गाँव कि रहने वाली कहाँ से है? ये लखनऊ में सिटी मांटेसरी स्कूल की पढ़ी हुई है. इसके कागज इस बात को साबित कर रहे हैं और ये बचपन से एक संभ्रांत परिवार में पैदा हुई और पली है." मुझे बहुत तेज गुस्सा आ रहा था. आप बाहर जाइये.
"मैं बाहर नहीं जाऊँगा , आप को जो भी पूछ्ना है मेरे सामने ही पूछिए. मुझे इसका भरोसा नहीं है." वह कहने के लिए तो कह गया लेकिन ये नहीं सोच पाया कि इसका अर्थ क्या हो सकता है?
"अगर आपको इस पर भरोसा नहीं है तो इसको आप पर भरोसा कैसे हो सकता है और मैं कैसे भरोसा करूँ कि आप इसकी जायदाद लेकर इसे ही दे देंगे."
"जी वो बात नहीं है, ऐसे ही मुँह से निकल गया."
"आप बाहर जाते हैं या फिर मैं खुद आपको बाहर करवाऊं."
"नहीं साहब, बाहर तो मैं नहीं जाऊँगा , मैं अपनी पत्नी को अकेले छोड़ कर कैसे जा सकता हूँ? "
मैं जो नहीं करना चाह रहा था वही करने को ये मजबूर कर रहा था. मैं नितिन को इसके सामने नहीं बुलाना चाह रहा था.
"ठीक है, आप इनको ले जाइए और वेरीफाई खुद ही कर लीजिये. मैं इस रिपोर्ट पर आब्जेक्शन लगा कर वापस कर रहा हूँ." मैंने किसी भी कीमत पर शामली से पूरी पूछताछ किये बगैर वेरीफाई नहीं कर सकता था. मैंने उस फाइल को बंद कर दिया और उठ खड़ा हुआ.
"अच्छा साहब जाता हूँ, ये काम आप ही कर सकते हैं नहीं तो फिर ये केस बंद कर दिया जाएगा." अब वह अपनी औकात पर आ गया और ये भी उसने दिखा दिया कि उसको इस संपत्ति का कितना लालच है.
"आप बाहर बने वेटिंग रूम में जाकर बैठिये, जब मैं पूछताछ कर लूँगा तो आपको बुला लूँगा." मैं वापस अपनी सीट पर बैठ गया.
वह पीछे मुड़ मुड़ कर देखता हुआ बाहर निकल गया.
( क्रमशः )
गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010
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dekhte hain, shamli ke saath kya hota hai, aur wo kya batati hai............:)
जवाब देंहटाएंकहानी बहुत ही रोचक मोड़ पर पहुँच गयी है....इन भाई-बहनों का उद्धार होता दिख रहा है...ईश्वर ने (कथाकार ही यहाँ उनका भाग्यनिर्माता है...) इसीलिए नितिन का ट्रांसफ़र इस क्षेत्र में करवाया...
जवाब देंहटाएंसुखद अंत की ओर बढती हुई कहानी बहुत अच्छा प्रवाह लिए हुए है.
आज के लोग ऎसे ही हे, पता नही क्यो पैसो के लिये सभी रिशते भी भुल जाते हे, ओर किसी गली के सुयर से भी ज्यादा गिर जाते हे, आप की कहानी ने बांधे रखा. देखे आगे क्या होता हे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति। जीवंत संवाद। मनोदशा का चित्रण। कथानक के अगले पड़ाव की प्रतीक्षा।
जवाब देंहटाएंise kahte hain sanskaar .... shamli, nitin ne jab jana tab khushi ki kaun si lahar aai... utsukta hai
जवाब देंहटाएंरोचक मोड पर आ कर कहानी छोड दी। देखते हैं शामली क्या जवाब देती है। अगले भाग का बेताबी से इन्तजार।
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