शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

इंतजार!

 रचित छुट्टियाँ खत्म करके अपनी सेना की सेवा में वापस जा रहा था और रीमा उसको दरवाजे तक छोड़ने आई तो --

    "तुम अब अंदर जाओ रीमा, मेरे पैरों में हमारा अंश बेड़ियाँ बन रहा है।"   रचित तिरछी नजर से देखता हुआ मन ही मन सोच रहा था।

      रीमा मन ही मन आश्वासन दे रही थी - "जाओ रचित मैं तुम्हारी आने वाली पीढ़ी को सहेज कर रखूँगी और आने पर तुम्हें सौंप दूँगी।"

       "तुम नहीं जानती रीमा, सीमा पर जाना मेरे वश में है, लेकिन वहाँ से वापस आना तुम्हारे भाग्य से होगा।" मन में एक द्वन्द्व लिए रचित भारी कदमों से आगे बढ़ रहा था।

      "तुम बेफिक्र होकर जाओ, मेरी साधना और तुम्हारा राष्ट्र समर्पण सदैव कवच बन कर रहेगा।"

         एक मूक संवाद करते दोनों आपस में दूर विपरीत दिशाओं में बढ़ गये।


रेखा श्रीवास्तव

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कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है. कितना न्याय हुआ है ये आपको निर्णय करना है क्योंकि आपकी राय ही मुझे सही दिशा निर्देश ले सकती है.