कलम का ईमान !
अख़बारों में निकल रहे लेखों और शोध रिपोर्टों के चलते वह कई सम्पादकों की निगाह में चढ़ गया था। अपनी कलम की बेबाक गति के चलते लोगों में लोकप्रिय भी हो रहा था।
एक दिन उसके पास फ़ोन आया , एक अखबार के संपादक की तरफ से था -
"जी मयंक जी बोल रहे हैं। "
"जी, बोल रहा हूँ, कहिये आप कौन?"
"मैं युवाजंग पत्र का ओनर बोल रहा हूँ।"
"कहिए मैं आपके किस काम आ सकता हूँ?"
"कल आप मेरे ऑफिस आने का कष्ट करेंगे? गाड़ी मैं भेज दूँगा, बस आप लोकेशन बता दें।"
"आप बतलाइये, मैं खुद आता हूँ।"
"जी धन्यवाद!"
मयंक पत्र के कार्यालय पहुँचा तो उसका बड़ा स्वागत हुआ। फिर वह मुद्दे की बात पर आये तो कहा गया कि आप पत्र का संपादन सँभाल लें। वर्तमान संपादक की कलम उतनी दमदार नहीं है कि...।
"लेकिन मैं किसी की जगह कैसे ले सकता हूँ?"
"मैं आपको दुगुना वेतन दे सकता हूँ।"
"सोच कर बताऊँगा। "
यह कहकर मयंक घर आ गया। पत्र के वर्तमान संपादक को ये बात पता चल गयी, लेकिन वह विवश था फिर भी उसने एक बार मयंक से बात करने की हिम्मत की - "भाई मेरे पेट पर लात मत मारिएगा। जीवन भर उनकी सेवा की और अब चंद सालों के लिए न शहर छोड़ सकता हूँ और न परिवार।"
"भाई बेफिक्र रहो मैं वहाँ नहीं जा रहा हूँ।"
एक हफ़्ते बाद मालिक का फ़ोन आया कि आपने क्या सोचा ?
"सर आपको मेरी कलम पसंद है और वह सच्चाई और बेबाकी मेरी अपने कलम का ईमान है, लेकिन वो किसी और की रोटी नहीं छीन सकती।"
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कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है. कितना न्याय हुआ है ये आपको निर्णय करना है क्योंकि आपकी राय ही मुझे सही दिशा निर्देश ले सकती है.