गाँव में प्रवासी मजदूरों को गाँव के बाहर स्कूल में रखा गया था। वही स्कूल जहाँ वे पढ़े थे । ग्राम प्रधान अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर रहा था ।
. उस स्कूल के हैड मास्टर को पता चला तो वे दूसरे गाँव के थे लेकिन किसी की चिंता बगैर वे स्कूल आ गये । अचानक लॉकडाउन से मिड डे मील का सामान जो भी था । उन्होने रसोई चालू करवाई और बड़े बड़े घड़े निकलवा कर पानी भरवा कर रखवाया । ताकि इस भीषण गर्मी में ठंडा पानी तो मिल सके।
शुभचिन्तकों ने कहा - " मास्साब काहे जान जोखिम में डारत हौ। ग्राम प्रधान को करन देब।,"
"ये मेरे ही पढ़ाए बच्चे हैं और आज इनके घर वाले दूर भाग रहे हैं , लेकिन मैं नहीं भाग सकता ।"
"अरे अपनी उमर देखो , लग गवा कुरोना तो कौनो पास न जइहै। "
"कोई बात नहीं , मैं तो उम्र जी चुका , इन्हें अभी जीना है , ये कल हैं तो कोई भूख प्यास से न तड़पे ।"
"फिर तो हम का कम हैं , मीठे कुआँ का पानी लावे का जिम्मा हमार ।" सरजू बोला।
"खाने खातिर पत्तल हम देब, पीबे को सकोरा बैनी देब।" राजू ने जिम्मेदारी ली।
"मास्साब हैंड पंप चला कर सबन के हाथ हम धुलाब।" कीरत भी साथ हो लिया ।
अब गाँव की एक टोली मास्टर साहब के पीछे खड़ी थी, एक सार्थक पहल के लिए ...।
आज के हालातों का सटीक चित्रण करती सार्थक सन्देश देती पोस्ट के लिए बहुत बहुत आभार और शुक्रिया दीदी
जवाब देंहटाएंआभार भैया।
हटाएंवर्तमान परिवेश में लिखी गयी सार्थक लघु कथा।
जवाब देंहटाएंएक पहल की जरूरत होती है
जवाब देंहटाएंउनकी ही भाषा के साथ उनकी परिस्थितियों को दर्शाती हुई बहुत बढ़िया पोस्ट ,हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंकिसी को तो पहल करनी होती हेर फ़ोर महनत रंग लाती है ... सुंदर और सार्थक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंकिसी भी हालात से ऐसे ही निपटा जा सकता है. ध्यान रखना होगा कोरोना से बचने के लिए शारीरिक दूरी बनानी है न कि सामाजिक दूरी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सभी का आभार ।
जवाब देंहटाएंपुरज़ोर पहल हो तो सब संभव है। सार्थक कथा।
जवाब देंहटाएंushascreation.blogspot.com
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