रविवार, 1 दिसंबर 2024

हमारी जड़ें !

 हमारी जड़ें !

      मम्मी आपने तो गाँव देखा , मुझे भी देखना है । मेरी कुछ सहेलियों के गाँव हैं न। खूब किस्से सुनाती हैं ।

 
        "
हाँ बेटा अभी देखती चलो ।"
         

         मीता तो मामा के न रहने के बाद से आई ही नहीं । मामी है , उनके बेटे बहू हैं। आज उसने सुबह फोन कर दिया कि वह पहली बस से आ रही है और वह अचलपुरा जीप से नहीं बैलगाड़ी से जायेगी , जैसे बचपन में जाती थी।

 
       
बस से उतरी तो सुरेश सामने खड़ा मिला । उसने मीता के पैर छुए और ऋतु की तरफ बढ़ा तो वह - "नहीं, नहीं मामाजी मेरे नहीं।"  कहते हुए पीछे हट गई।

 
           "
ऐसे कैसे नईं , पहली दफे भांनेज मिली और हम पुन्न न कमायें।"  कहते हुए उसंने पैर छू ही लिए।
     
 
           मीता का बैग उठा कर उसने बैलगाड़ी में रखा। ऋतु की आँखें खुली रह गई कि बैल और बैलगाड़ी ऐसे सजे थे, जैसे फिल्मों में नजर आते हैं। बैलगाड़ी के अन्दर गद्दे बिछे थे और तकिए भी रखे थे । ऊपर से धूप न लगे तिरपाल लगी थी ।
         

            जैसे गाड़ी आगे बढ़ने लगी बड़ी निवरिया के नीचे बैठे लोग पूछने लगे -  "अरे भैया कौन घर के पाहुने हैं।"
 
            "
कक्का लम्बरदार की भांनेज और नातिन हैं।"  

            "लम्बरदार के पाहुने बैलगाड़ी में ?"


             
"अरे कक्का  जा जिजी की मौड़ी कौ मन रहे बैलगाड़ी में बैठन को, तासे निकारी है।"

 
            
"मम्मा यहाँ सब लोग इंट्रो लेने लगते हैं।"
 
             
गाँव में घुसते ही छोटे छोटे बच्चे बैलगाड़ी के पीछे पीछे दौड़ने लगे। दरवाजे पर बैठे लोग पूछने लगे -   "आ गई बिट्टो।"


            
मीता परदे से सिर निकाल सबसे मामा नमस्ते , नाना नमस्ते करती चल रही थी।

 
            
"मम्मा क्या आप सबको जानती हो?"  ऋतु पूछ रही थी।

    
            
हाँ बेटा, बचपन में रिजल्ट मिलते ही हम भाई यहाँ आ जाते और दो महीने यहीं गुजारते थे।"

 
             
तब तक पीछे से आवाज़ आई -  "महन्त महाराज आये हैं का?"

             "
हाँ नाना नमस्ते।"

 
           "
जुग जुग जिओ बेटा, नैक जा घरऊ हो जइओ नानी न आ पैहे, बीमार है।"

  
            "
ठीक है नाना आयेंगे।"

 
           
दरवाजे पर गाड़ी रुकी तो कई औरतें खड़ी थीं और मामी हाथ में शरबत का लोटा लिए खड़ी थीं । मीता और ऋतु के सिर सेशरबत उतार कर बाहर ही डाल दिया गया । एक औरत जो शायद  नाऊन थी, एक थाली में पैर रखवा कर पानी से पैर धोई तो मीता ने  उसे पचास का नया नोट दिया , उसने उलट पलट कर देखा - "बाई जा चूरन वालौ तो नइयाँ।"
 
           
"अरे न गढरवाली जा नऔ नोट है।"  मामी ने तसल्ली दी ।

 
           
बरामदे में खूब बड़ा निवाड़ का पलंग पड़ा था। उसी पर बिठाया गया। सबको पता था कि मीता आने वाली है , बच्चों ने दौड़ कर खबर कर दी और औरतों ने आना शुरु कर दिया -
 
              "
दद्दा का नहीं रहे, बाई अचलपुरई छोड़ गई।"

 
              "
बाई अब शहर में रहाती है , देहात में अब का धरो । अरे बाई तुमाए सब मामई चले गये , घरन में तारे डरे हैं। खेत जुता गये, फिर फसल उठानई आउत हैं। लरका सबके शहरन में पढन लगे , चाहे कछु न कर पायें लेकिन गाँव में न रहिऐं।"

 
        
"अब बखरी में कोई नहीं रहता ?"  मीता को बचपन याद आ गया ।

 
        
"कहाँ की बातें बाई , अब बखरी कौ नाव भर रह गयौ। सब घर वीरान हो गये। हाँ बिके नइयां सो पुरखन कौ नाव बनो है।"
         
                 
चलते समय औरतें ऋतु को रुपये पकड़ाती जायें तो वह मीता की ओर देखने लगे और मीता ने धीरे से इशारा किया कि ले ले ।

 
     
शाम होने पर मीता ऋतु को लेकर गाँव घुमाने ले गई । वहाँ तो मीता सबको मामा मामी ही कह रही थी ।
           
 

        ऋतु बोली - "मम्मा आपके कितने सारे मामा मामी हैं ?"

 
 
"बेटा यहाँ सिर्फ दिल के रिश्ते होते हैं , निश्छल लोग, जाति-पाति नहीं , यही संबोधन आदर और अपनत्व के सूचक होते हैं और  इसी में आज भी हमारी संस्कृति बसती है।"

"वाओ मम्मा, इंटरेस्टिंग।" 

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

बड़े बेआबरू होकर .....!

 बड़े बेआबरू होकर ......!


             बुक शेल्फ से किताबें उठा उठा कर जमीन पर पटकी जा रही थी।  कबाड़ियों को क्या सब धान बाइस पसेरी लेना है। घर वाले भी इस रद्दी से मुक्ति पाएंगे और सेल्फ उनके शो पीस रखने के काम आएगी या फिर क्रॉकरी।

              ऊपर से गिराई जा रही किताबों की पीड़ा किसी को समझ नहीं आ रही थी।

    -आह ,

    - ओ माँ ,

    - बस करो ,

    - रहने दो - की चीखों के साथ वे अपने में भी जीवन होने की दुहाई दे रही थीं।  लेकिन कौन समझेगा ? नीचे गिर कर सब एक दूसरे से जुड़ने लगीं और फिर सोचा कि अलग तो हो ही रहे हैं क्यों का नाम पता जान लें?

- 'सखी, कहाँ से आई थी तुम ?'

- 'मेरे लेखक ने अपनी पुस्तक के विमोचन के साथ एक लिफाफा रख कर मुझे भेंट किया था, लेकिन लिफाफा सबसे पहले खोल कर रूपये गिने गए और चले गए जेब में। मुझे अपने साथ वाले को पकड़ा दिया और उसने इस शेल्फ में रख दिया। मेरी पैकिंग खोलने की भी नौबत न आई , पढ़ने की बात तो दूर रही।'

- 'अरे सखी मेरी भी सुनों , मुझे तो रखे रखे दीमक ही खा गयी। मेरे दर्द को कौन समझेगा?'

- 'ये फूल और रिबन जिसने बांधें होंगे नहीं सोचा होगा कि अब ये खुलेंगे ही नहीं और सूख जायेंगे।'

- 'कोई कह गया कि सूखे हुई फूल किताबों में मिले , यहाँ तो बाहर ही बँधे बँधे सूख गए और बिखर गए।'

- 'मत रोओ, हमारी एक ही गति है और हमारा कद्रदान भी कोई न होगा।'

- 'अरे हमें किसी लाइब्रेरी में ही जीते जी दे जाते तो कोई तो उठाता, पढता न तो कम से कम उठा कर निहार तो लेता और हमारे होने का अर्थ सार्थक हो जाता।''

                 "चलो चलो उठाओ इनको और इस बोरी में भर लो।" कबाड़ी आदेश दिया।

                 "भैया अच्छी और दीमक वाली अलग अलग बंद कर दें  क्या ?" साथ आया लेबर पूछ रहा था।

                 "सब एक ही दाम लगेंगी , इकट्ठे भर लो। " कबाड़ी ने मूल्यांकन कर दिया।

"भैया जल्दी से यहाँ से हटाओ ये किताबें हमको सफाई भी करनी पड़ेगी।" माननीय के बेटे कबाड़ी पर चिल्ला रहे थे।

     जब किताबों को इकठ्ठा किया गया और बोरी में भरा जा रहा था तो सब आपस में गले मिल गयी और बोली - "बहन वैसे हम सब अलग भले रहे लेकिन आखिरी विदाई पर तो आपस में गले मिलकर रो लें।"


गुरुवार, 4 जुलाई 2024

सौतिया डाह!

 मोहिनी राशि के घर में आई तो उसकी आँखें लाल हो रहीं थी। राशि ने देखते ही पूछा - "मोहिनी कुछ हुआ क्या?"

    "नहीं मैम साब कुछ भी नहीँ।"

    "नहीं, कुछ छिपा रही हो, कुछ तो है।"

       थोड़ी सी सहानुभूति पाकर मोहिंनी रो पड़ी। राशि ने उसे रोने दिया कि दिल हल्का हो जायेगा।

     "अब बतलाओ कि हुआ क्या है?"

      "आज मैं कपूर मैम साब के यहाँ काम पर गई तो उन्होंने कहा -  "अब तुमको कल से काम पर आने की जरूरत नहीं है।"

        मुझे कुछ समझ में नहीं आया - "मैम साब मुझसे क्या गलती हो गई और गलती हो भी गई हो तो माफ कीजिएगा। मैं कितने वर्षों से आप के यहाँ काम कर रही हूँ।"

   "नहीं कोई बात नहीं, कोई भी गलती नहीं की तुमने लेकिन फिर भी मैं अब तुम्हें अपने घर में नहीं रख सकती।"

       "फिर भी कोई कारण तो बता ही दीजिए ताकि मैं भी अपने दिल में तसल्ली कर लूँ कि आपने मुझे क्यों निकाल दिया है?" 

       "इसका कारण तुम नहीं बल्कि इसका कारण है यह सिस्टम, जिसने हम जैसे लोगों से हजारों रुपए वसूल करने वाले स्कूलों को बनाया और फिर हर महीने अलग-अलग तरीके से रुपए वसूलते रहते हैं।" 

         "आज जो मैंने स्कूल में देखा तो मुझे लगा कि तुम्हें अपने बच्चों के कारण मुझसे ज्यादा महत्व मिल रहा है, तो फिर इससे अच्छा है मैं तुम्हें काम से अलग कर दूँ ताकि कल को सोसायटी वाले ये न कहें कि मेरा बच्चा मेरी ही नौकरानी के बच्चे से पीछे हो गया।" 

         "लेकिन मैम साब इसमें मेरा क्या दोष है? मैंने क्या किया है जबकि मेरे बच्चे को तो सरकार ने उस स्कूल के लिए चुना। मैं तो फीस भी नहीं भर सकती हूं और न ही मैं उसे स्कूल की किताबें खरीद सकती हूँ।" 

        "यही तो एक कारण है कि आज जब तुम्हारा बच्चा वहाँ पर ट्रॉफी ले रहा था और प्रिंसिपल ने तुमको वहाँ बुलाकर तुम्हारी तारीफ की और मेरे जैसे कितने पेरेंट्स जो इतना पैसा खर्च करते हैं, इतना डोनेशन देते हैं तब हमारा बच्चा उसे स्कूल में पहुँच पाता है। फिर फायदा क्या है कि मैं वहांँ जाकर तुम्हारे सामने अपने को छोटा महसूस करूँ, इससे बेहतर है कि तुम मेरे घर से छोड़ दो फिर तुम्हें जहाँ जी चाहे वहाँ करो। मुझे यह तो नहीं लगेगा कि मेरी कमाई पर ही पलने वाली एक नौकरानी का बेटा मेरे बेटे से आगे हो और वही नौकरानी वहाँ मंच पर खड़ी हो और मैं नीचे सीट पर बैठी होऊँ। इसलिए मैं आगे से ऐसी किसी भी स्थिति को सामना करने के लिए तैयार नहीं हूँ। और हां अब आगे से अपने बच्चे को मेरे पास पढ़ने के लिए भी मत भेजना।"

       "मैम आपको मैं ट्यूशन की फीस देती रहूँगी, आप मेरे बच्चे को पढ़ाती रहें।"

       "बिल्कुल नहीं मैं सारा समय अपने बच्चों को ही दूँँगी ताकि कल वह तुम्हारे बच्चे के जगह पर खड़ा हो और तुम्हारी जगह पर मैं।"  

     मोहिनी की बात सुनकर राशि ने मन में सोचा - ओह इतनी छोटी बात लेकिन मेधा पैसों से नहीं खरीदी जा सकती।

गुरुवार, 27 जून 2024

पार्टी!

 पार्टी!


ऑफिस में आकर  जैसे ही सुमन ने अपना सिस्टम खोला, मेल का नोटिस देखा, उस मेल में उसे एक कार्ड मिला, जो स्मृति और शशांक  की ओर से था ।  

  डिअर ऑल ,


                 यू आर कोआरर्डिली इन्वाइटेड टू ज्वाइन अस एट 5 pm.

                                          थैंक्स।

 स्मृति एन्ड शशांक  

वेन्यू : पामेला पार्टी लॉन्

 5 pm

      सुमन ने रवि की और मुखातिब होकर कहा - "रवि शशांक की कोई मेल आई है क्या ?"

    "हाँ आई है न , कल शाम पार्टी की। "

                  इन दोनों की बात सुनकर सब अपने केबिन से उठ उठ कर बोल उठे - "हाँ सबको बुलाया है , पूरा सेक्शन ही इन्वाइटिड है। "

      "अच्छा अच्छा अब चर्चा बंद और इस विषय में बात लंच टाइम में करेंगे।"  इंचार्ज ने सबको शांत करते हुए कहा।

         सब अपने अपने काम में लग गए।  किसी का सबको पार्टी में बुलाना कोई नई बात है क्या ? सब करते ही रहते हैं।

        इस बार तो बड़ी चर्चा हो रही है , खुसपुस बराबर जारी है , बराबर वाले केबिन से धीरे धीरे चर्चा चल रही थी। विषय क्या था बस यही कि कल ही कोर्ट से स्मृति और शशांक के बीच डाइवोर्स हुआ है।  आपसी सहमति से ही हुआ है और दोनों ही एक ही ऑफिस में लेकिन अलग अलग सेक्शन में है। दोनों में किसी के मन में कोई मलाल नहीं और मिलकर पार्टी देने का प्लान भी बहुत ही अलग तरीके से है।

                लंच के समय सब लोग जब हाल में इकट्ठे हुए तो सब अपने-अपने तरीके से विचार व्यक्त कर रहे थे।

-          "यार लोग तो मिलने से कतराते हैं और ऑफिस में भी आकर मुँह छिपाते हैं और ये तो पार्टी देने का प्लान बनाये बैठे हैं। "

          "ये तो लिव-इन जैसा हो गया कि नहीं पटी तो रास्ते अलग अलग , इसमें बस कोर्ट से जाकर मुहर लगवा ली।"

         "पर यार ये बता कि इसमें हम क्या लेकर जायेंगे और किसके लिए ?"

        "मेरे हिसाब से तो को चार बुके बनवा लेते हैं और हम भी ग्रुप में जाकर एक एक करके दोनों को ही पकड़ा देंगे। बधाई भी दे देंगे।"

       "बधाई किस बात की ?"

      "जिस बात की हमें पार्टी दी जा रही है। "

      "हाँ डाइवोर्स पार्टी , ये तो एक नया ही मौका बन गया, जिसे सेलिब्रेट करने की बात किसी ने सोची ही नहीं आजतक। "

                    शाम सब जब पामेला पार्टी लॉन  पहुँचे तो जैसे तीन.साल पहले इन दोनों शादी की पार्टी दी थी वैसे ही पूरी पार्टी रखी गयी थी।

               एक पार्टी साथ होने की और दूसरी अलग होने की। कितनी अजीब हो गयी है ये सोसाइटी कि इसके रीति रिवाज भी बदल गए हैं। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें बधाई देने के लिए किन शब्दों का प्रयोग करें। किस तरह से पेश आयें?


एक संबोधन!

           " देखो नानी अभी आई हैं, उन्हें आराम कर लेने देना।" निधि अपने सात साल और दो साल के बेटे को समझा रही थी।

    "फिर नानी खेलेंगी न हमारे साथ।" 

     "जरूर।"

        शानू ने अपने मित्रों को बता रखा था कि मेरी नानी आ रही हैं।

         शानू के दो मित्र आ गये। मानू नानी, नानी चिल्ला रहा था और नानी हर बार 'बेटू' कह कर उसे उत्तर दे रहीं थीं।।

        शानू का एक मित्र दीपू नानी के पास आकर खड़ा हो गया तो नानी ने पूछा -"कुछ चाहिए?"

         "जी।" 

         "बतलाइये।"

         "आप मुझे भी बेटू कहेंगी, मुझे कोई बेटू नहीं कहता। मम्मा तो भैया को ही कहती है।" उस बच्चे की आँखें भर आईं थी।

        "हाँ कहूँगी न।" बगैर पूछे नानी ने उसे अपने अंक में भर लिया।

सोमवार, 3 जून 2024

बस एक नाम!


बस एक नाम!

      "देखो नानी आज आई हैं, उन्हें आराम कर लेने देना।" निधि अपने सात साल के बेटे और दो साल की बेटी को समझा रही थी।

    "फिर नानी खेलेगी न हमारे साथ।" 

    "जरूर।"

   शानू ने अपने मित्रों को बता रखा था कि मेरी नानी आ रही हैं।

     शानू के दो दोस्त आ गए। मनु नानी, नानी चिल्ला रही थी और नानी हर बार 'बेटू' कह कर उसे उत्तर दे रही थीं।

     शानू की एक दोस्त दीपा नानी के पास आकर खड़ी हो गई तो नानी ने पूछा -"कुछ चाहिए?"

       "जी"  

        "बतलाइये।"

      "आप मुझसे भी बेटू कहेंगी, मुझे कोई बेटू नहीं कहता। मम्मा तो बस भैया को ही कहती है।" वह बच्ची की आँखें भर आईं थी।

     "हाँ कहूँगी न।" तुरन्त नानी ने उसे अपने अंक में भर लिया।


-- रेखा श्रीवास्तव

सोमवार, 20 मई 2024

घर की मुर्गी .....!

        सारी उम्र आरामतलबी भी गुजारने वाले गुप्ता जी रिटायरमेंट के बाद और ज्यादा सिरदर्द बन गए थे।  पहले तो लंच लेकर ऑफिस चले जाते तो उनकी पत्नी सारे दिन अपनी इच्छानुसार आराम और काम कर लेती, लेकिन अब तो वह भी भारी पड़ने लगा था।  वह अपने समय के अनुसार एक समर्पित  बहू , गृहणी, पत्नी और माँ बनी रहीं। वैसे यह समर्पण उनको जीवन भर कष्ट ही देता रहा और अब ?

"देखो अब मेरी उम्र हो चुकी है , जरा ज्यादा ध्यान दिया करो।"  गुप्ता जी की नसीहत होती। 

"पहले कौन सा तख्ता पलट रहे थे और आपकी उम्र हो रही है तो मम्मी जी की तो जैसे कम होती जा रही है। " बहू किचेन में सुन रही थी और मन ही मन बुदबुदाई. 

"हाँ देखती हूँ, मेरे भी पैरों में बहुत दर्द रहने लगा है , बैठ कर उठूँ  तो सीधे चल ही नहीं पाती हूँ। "  पत्नी बोली। 

"इतना कहता हूँ कि कैल्शियम लिया करो और हमें भी देती रहो , वह तो सुनती नहीं हो। छलनी में दूध दुहो और कर्मों को रोओ  " गुप्ता जी बड़बड़ाये। 

            कमरे से उठकर सुनीता जी चल दीं उनके पास और बहू ने वहीं उनका हाथ पकड़ लिया और बोली- " आप नहीं जायेंगी, अब तो घर  रहकर अपने कुछ काम करने दीजिये।  आपने ही आदतें ख़राब की हैं। "

"फिर वो चिल्लाना शुरु कर देंगे। " 

" करने दीजिये, अब मैं हूँ न। " बहू दृढ़ता से बोली. 

                    शाम को बेटे के ऑफिस से आते ही शुरू  हो गए - "रजत क्या मुझे समय से चाय-पानी भी नहीं मिलेगा ?"

"क्यों नहीं ? आप बोलिये सब समय से मिलेगा, रूचि किस लिए है ? लेकिन मम्मी को अब भी अब आराम की जरूरत है। " रजत  आदतों से वाकिफ था सो बोल दिया। 

  " ऐसा करो मेरे लिए किसी वृद्धाश्रम में एक सीट बुक करा दो , मैं अकेला रहना चाहता हूँ और मैं किसी पर आश्रित भी नहीं हूँ । " तैश में अगर गुप्ता जी बोले। 

"मुझे कोई परेशानी नहीं है , आप ही सोच लीजिये रह पाएंगे। "

"हाँ हाँ क्यों नहीं ? अभी इतनी दमखम है मुझमें। "

          रजत ने बिना बहस किये ही शहर के एक 'सांध्य जीवन' में पंद्रह दिन के लिए एक कमरा बुक करा दिया।  अगर अच्छा लगेगा तो और बढ़ा देंगे।  वैसे उसे पूरी उम्मीद थी कि इनका गुजारा कहीं नहीं होने वाला है।  

         पत्नी ने एक बैग तैयार कर दिया और अपनी दवा वगैरह उन्होंने खुद ही रख लीं। 

"क्या तुम नहीं चल रही हो?" गुप्ता जी ने एक बैग देखा तो तुनक पड़े। 

"नहीं मम्मीजी को कल से बुखार है , आप दो चार दिन रहकर वहाँ का माहौल वगैरह देख लीजिये फिर अगर इनका मन होता है तो आ जाएंगी नहीं तो कोई बात नहीं।"  अब की बार बहू बोली थी। 

"मैं अकेला जाकर क्या करूँगा?" 

"फिर ये तो निर्णय आपका ही था न , घर से अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता है।  हाँ घर में घर वालों का के सुख दुःख सब साथ रहता है और उसका ध्यान भी रखना पड़ता है।  वहां आपके ऊपर कोई दबाव नहीं होगा। "

       शाम  को जाने की बात कहकर गुप्ता जी घर से निकल गए और दो घंटे बाद वापस आकर चुपचाप लेट गए।  रजत ऑफिस आया - " पापा आप गए नहीं ?"

"नहीं और जाना भी नहीं है."

"क्यों क्या हुआ?"

"मैं उसे वृद्धाश्रम में होकर आया हूँ बहुत बढ़िया सुविधा है लेकिन सब समय पर होता है , ये नहीं कि हमें जब चाय चाहिए तब ही मिलेगी वह समय से ही मिलेगी। सुबह उठ कर योग का प्रोग्राम  भी होता है , जो अपने से उतने सबेरे होने से रहा।"

"आप पंद्रह दिन रहकर  ,कुछ बदलाव  हो जाएगा।  कुछ आदतें नई बन जाएँगी और पुरानी छूट जायेंगी ।"

"मैं घर में ही रहकर बदल लूँगा लेकिन घर छोड़ कर नहीं जाऊँगा।" 

                     रजत, रूचि और सुनीता जी मन ही मन खुश हो रहे थे।