विजय बहुत दिनों के बाद अपने कस्बे वापस आया था क्योंकि अब उसके पिता या और घर वाले यहाँ पर नहीं रह गए थे। बंचपन की गलियाँ, खेल के मैदान और स्कूल भी नहीं रह गये थे।
बस एक दोस्त था और उसकी माँ थी , जिसने अपनी माँ के बचपन में ही चले जाने पर उसे दीपक की तरह ही प्यार दिया था। स्टेशन पर लेने के लिए विजय को दीपक ही आया था क्योंकि उसे विजय से मिले हुए बहुत वर्ष बीत गए थे।
अब दोनों ही रिटायर्ड हो चुके हैं। विजय ने ट्रेन से उतरते ही दोनों हाथ फैला दिए गले लगाने के लिए और यह भूल गया कि दीपक का एक हाथ कटे हुए तो वर्षों बीत चुके हैं। एक पल में दीपक की कमीज की झूलती हुई आस्तीन ने उसको जमीन कर लेकर खड़ा कर दिया।
बीस साल से पहले की बात है दीपक ट्रेन से गिरा और उसका हाथ कट गया। तब छोटी जगह में बहुत अधिक सुविधाएँ नहीं हुआ करती थीं और न ही हर आदमी में इतनी जागरूकता थी। वह कई महीने अस्पताल में पड़ा रहा और उसका इलाज चलता रहा घाव भर नहीं रहा था । फिर पता चला कि सेप्टिक हो गया है। तब जाकर डॉक्टर सचेत हुए लेकिन उस कस्बे में वह इंजेक्शन नहीं मिल रहा था बल्कि कहो पास के शहर में भी उपलब्ध नहीं था। उस समय फ़ोन अधिक नहीं होते थे। विजय दूर कहीं चीफ इंजीनियर था , खबर उसके पास ट्रंक कॉल बुक करके भेजी गयी शायद वह वहाँ से कुछ कर सके। बस वही एक आशा बची थी।
विजय ने खबर सुनते ही अपने एक मित्र को बम्बई में फ़ोन करके उस इंजेक्शन को हवाई जहाज से भेजने को कहा। जैसे ही उसे इंजेक्शन मिला वह अपनी गाड़ी और एक ड्राइवर लेकर निकल पड़ा। सफर बहुत लम्बा था इसलिए एक ड्राइवर साथ लिया था। १४ घंटे की सफर के बाद विजय दीपक के पास पहुंचा था।
"डॉक्टर इसको कुछ नहीं होना चाहिए। अगर आप कुछ न कर सकें तो अभी बताएं मैं इसको बाहर ले जाता हूँ।"
"नहीं, इस इंजेक्शन से हम कंट्रोल कर लेंगे। अगर ये अभी भी न मिलता तो हम नहीं बचा पाते।"
दीपक बेहोशी में जा चुका था। दो दिन बाद वह होश में आया तब खतरे से बाहर घोषित किया गया। होश में आने पर उसने विजय को देखा -
"अरे तू कब आया।"
'दो दिन पहले, तू अब ठीक है न?"
"अरे मैं तो तुझे आज ही देख रहा हूँ।"
"तूने इससे पहले आँखें कब खोली थीं।" विजय उसका हाथ पकड़ कर बैठ गया था।
विजय को दीपक की पत्नी , बच्चे और माँ ने दिल से दुआएं दी कि अगर उसने इतना न किया होता तो शायद दीपक????????।
एक सच घटना है और कटु सत्य कि मित्र वही है, जो अपनी मित्रता को धन और स्तर से न आँके।
अच्छी मार्मिक कहानी...दोस्ती का रिश्ता अपनेआप में एक मुकम्मल रिश्ता है।
जवाब देंहटाएंमित्र वही है, जो अपनी मित्रता को धन और स्तर से न आँके ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही...
बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी कहानी ।
मित्र वही है, जो अपनी मित्रता को धन और स्तर से न आँके।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संदेश ।
ऐसे मित्र मिलना बड़े सौभाग्य की बात होती है। मर्मस्पर्शी कहानी।
जवाब देंहटाएंसुख-दुख को साझा करने वाले सच्चे मित्र अगर साथ हो तो उससे बेशकीमती खज़ाना और कुछ नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कहानी।
सादर।