नीना की लापरवाही से उसकी तबियत बिगड़ गयी और स्थानीय डॉक्टर्स ने हाथ खड़े कर दिए, तब ललित ने अपनी बहन को फ़ोन किया - "दीपा तेरी भाभी की तबियत कुछ समझ नहीं आ रही है , क्या करें ? भैयाजी से पूछ कर कुछ राय दे। "
- " भैया आप ऐसा करें कि भाभी तो यहाँ मेरे पास ले आइये। "
नीना को बहुत भयंकर पीलिया हुआ था, जिसे डॉक्टर समझ नहीं पाए और वह दवा लेते ही लेते और बढ़ गया। ललित की बाकी तीनों बहनें भी बारी बारी से देखने के लिए आ रही थीं और अपने भाई को सांत्वना देती कि भाभी ठीक हो जाएंगी। उसे भी अपनी बहनों पर बहुत भरोसा था , कैसी भी परेशानी हो वे चारों और उनके पति कंधे से कन्धा मिला कर खड़े होते। इसी लिए वह आश्वस्त था कि नीना यहाँ से ठीक होकर ही घर जायेगी।
ललित अस्पताल में नीना के सिरहाने बैठा था और उसका हाथ में हाथ लेकर बोला - " तुम्हें अपने तीन भाइयों पर फ़ख्र हो न हो लेकिन मुझे अपनी चारों बहनों पर फ़ख्र है। कभी जिन्हें मैं जिम्मेदारी समझता था, उन्हीं के आठ हाथ आज तुम्हारे लिए दुआ कर रहे हैं। "
नीना आँखें नहीं मिला पा रही थी क्योंकि एक दिन उसी ने कहा था - "इन चार चार ननदों को कहाँ तक निभाऊंगी ?"
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कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है. कितना न्याय हुआ है ये आपको निर्णय करना है क्योंकि आपकी राय ही मुझे सही दिशा निर्देश ले सकती है.