पूर्वकथा : आशु एक डी एम का बेटा जो अपनी माँ की मौत के बाद नाना नानी के घर पला . पिता और सौतेली माँ के एक्सीडेंट में निधन के बाद उसने खुद पापा की तरह आई ए एस बनने का संकल्प लिया पहली पोस्टिंग वाले बंगले में मिला उसे अपना सौतेला भाई, ट्रान्सफर होने के बाद वह वहाँ आ पहुंचा जहाँ के पास के गाँव में उसकी सौतेली बहन की शादी हुई थी. ये शादी उसके ससुराल वालों ने पापा की संपत्ति के लालच में आकर की थी और फिर पापा की संपत्ति पर कब्जे के लिए उसके वैरिफिकेशन का दायित्व उस पर आया. उसने शामली के पति से उसको लाने के लिए कहा लेकिन वह आनाकानी करता रहा . आशु ने नितिन को शामली के वैरिफिकेशन के लिए उन्नाव से बुलवा लिया था. उसने शामली से सारी स्थिति जान ली. भाई को देखकर शामली बहुत खुश हुई. आशु ने बातों हइ बातों में ये जान लिया कि क्या शामली वह घर छोड़ सकती है.. उसके बाद आशु ने अपने , अपनी दीदी और नितिन के नाम से आब्जेक्शन लगा कर सारे कागज़ भेज दिए , जिससे की शामली के पति को कुछ मिल न सके ..............
गतांक से आगे...
मैंने सबके ऑब्जेक्शन लगा कर भेज दिए. इसके बाद मेरा काम ख़त्म हो चुका था. आगे के लिए जो भी करना था वह बैंक और बाकी लोगों के काम थे. संदीप का क्या होगा? इसकी मुझे कोई परवाह न थी. फिर भी वह आकर इस विषय में मुझसे सवाल जरूर करेगा इसके लिए मैं तैयार था.
फिर वही हुआ जिसकी मुझे आशंका थी. संदीप तो नहीं आया उसकी पत्नी आई मेरे पास.
"कहिये मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?" उस अनजान महिला को देख कर मैंने कहा.
"आप ये बतलाइये की आपने मेरे पति को फंसाने के लिए गलत पेपर कैसे भेजे हैं? " उसका स्वर मेरे प्रति कटु और आक्रामक था.
"आप कौन है? मैं आपको नहीं जानता फिर कैसे बता दूं कि मैंने कौन से पेपर और कहाँ भेजे हैं?
"आपने शामली के पेपर पर ऑब्जेक्शन लगाया है, वह मेरे पति से सम्बंधित पेपर थे. उसके बाद मेरे पति का वारंट कटा हुआ है और हम परेशान हैं." उसके तेवर आक्रामक लग रहे थे लेकिन मैं इस बात से पहले से ही वाकिफ था इसलिए मुझे कुछ अजीब नहीं लगा.
"आपको पता है कि आपके पति शामली से शादी कर चुके हैं." मैंने उससे प्रश्न किया.
"हाँ , पता है, उससे क्या होता है? मेरा पति मेरे साथ रहता है , ये मेरे लिए काफी है. घर में कौन रहता है इससे मुझे कुछ लेना देना नहीं." यह सच जानते हुए भी उसमें कोई अपराधबोध नहीं था.
"उस संपत्ति से भी नहीं जो उसको शामली के पिता से मिलने वाली है."
"उससे क्यों नहीं होगा? मुझसे पूछ कर उसने शादी की थी और इस लिए ही की थी. "
"आपको पता है कि ये अपराध है, दूसरी शादी करना और उससे बड़ा कि किसी की जायदाद के लिए शादी करने का ढोंग करना."
"सब पता है, मेरे घर वाले ऊँची पहुँच वाले है. फिर मुझे गाँव में रहना नहीं है, वह बनी रहेगी , उसके घर वालों की सेवा करने के लिए."
"आप एक औरत होकर ऐसी बात कर रही हैं, क्या ये उसके साथ अन्याय नहीं कर रही हैं."
"ये उसके घर वालों को सोचना चाहिए था, जो बिना पता किये शादी कर दी."
"ठीक है आप जाइए, आगे की कार्यवाही मेरी नहीं है, मैंने वेरीफाई करके भेज दिया. जो सच था वही लिख कर भेजा है. अब आप जाने या फिर वह संस्था जिसको इससे मतलब है या फिर जिसने वैरिफिकेशन माँगा था."
"आप ऐसे कैसे बच सकते हैं, सब आपका ही किया धरा है. मैं आपको यहाँ रहने नहीं दूँगी." वह गुस्से से पैर पटकती हुई चली गयी.
अब समझ आया कि कैसे संदीप ने दूसरी शादी कर ली है. संपत्ति का लालच ही उसको ही नहीं उसके पूरे परिवार के लिए इसका कारण बना और शामली का जीवन इसके बीच में बर्बाद हो गया. न नई माँ और पापा के साथ ये हादसा होता और न ही ये बच्चे इस तरह से अनाथ होकर भटक रहे होते. ये भी भाग्य का विधान है. अगला विधान क्या रचा गया है, ये तो नहीं जानता लेकिन ये जानता हूँ कि ये बच्चे इस नारकीय जीवन से मुक्त जरूर होंगे. लेकिन इसके लिए नितिन को पहले वहाँ से निकल कर कुछ और करना होगा तभी वह बहन को सहारा देकर वहाँ से निकल पायेगा. उसके लिए कुछ न कुछ तो जरूर ही करना पड़ेगा.
* * * * *
लखनऊ में जाकर मुझे ही सक्रिय भूमिका निभानी पड़े तो वह भी मैं करने के लिए तैयार था. इसी सिलसिले में मैं पापा के घर पहुंचा तो वहाँ पर एक नौकर था . उस घर में रहने वाले लोग कहीं और गए हुए थे. मेरी गाड़ी देख कर नौकर ने दरवाजा को खोल दिया लेकिन कुछ बताने से इनकार करने लगा.
"साहब , यहाँ जो साहब रहते हैं , वे अक्सर बाहर ही रहते हैं. यहाँ जब होते हैं तो हमें खाना बनाना पड़ता है और हम तो पीछे नौकरों के घर में रहते हैं."
"घर खोलो मुझे अन्दर देखना है." हम सरकार की तरफ से आये हैं ये जानकर उसने घर खोल दिया. जब मैं अन्दर गया तो घर का सारा समान बेतरतीब पड़ा था. मानों यहाँ पर सफाई न होती हो. पापा की तस्वीर तो अलमारी में रखी थी लेकिन उस पर ढेरों धूल चढ़ी हुई थी. अन्दर के कमरों में जाकर देखा तो लगा कि ये सारा सामान लगता था कि महीनों से इसकी सफाई न की गयी हो. कीमती टेबल पर गिलास लुढके हुए थे . मुझे ये पता है कि इस घर में नई माँ के भाई ही काबिज होंगे और इस घर को उनसे आसानी से नहीं लिया जा सकता है.
यह सब देख कर मन को बड़ी कोफ्त हुई अगर पापा न रहते सिर्फ नई माँ ही बच जाती तो इस घर और इस घर वालों का ये हाल न होता . उस कमरे में मेरे लिए खड़ा होना मुश्किल हो रहा था और मैं निकल कर बाहर आ गया तो सांस ले सका .
"अपने साहब से कह देना कि ये घर जिनका है वो लोग आये थे. उन्हें ये नंबर दे देना और कहना कि हम जल्दी फिर आयेंगे." मैंने उस नौकर को अपना नंबर दे दिया . जिससे कि वे लोग हमसे बात तो करें, और उन्हें ये पता चले कि इस मकान और धन के लिए रची गयी साजिश से उन्हें क्या मिला और क्या आगे मिलने वाला है.
लखनऊ आकर मैंने नितिन के सारे प्रमाण के साथ पापा के बदले उसे कहीं नौकरी मिलने के सम्बन्ध में लिखापढ़ी भी की , इससे सिर्फ जायदाद ही नहीं बल्कि उसको नौकरी मिल जाएगी तो वह शामली को वहाँ से निकालने के बाद रख कर अपनी जिन्दगी ठीक से गुजर तो सके . उसके बाद क्या होगा? इसके बारे में मुझे खुद नहीं पता था लेकिन ये जरूर था कि मैं उन बच्चों को ऐसे हालात देना चाहता था कि वे किसी के मुहताज न रहें और एक सामान्य जिन्दगी तो जी सकें.
* * * *
फिर एक दिन शाम को मेरे फ़ोन कि घंटी बजी , दूसरी तरफ से आवाज आई - "आप कौन साहब है?"
"ये बात मुझे पूछनी चाहिए, क्योंकि आप फ़ोन कर रहे हैं." मेरी अभी तक समझ नहीं आया था कि ये बोल कौन रहा है?
"मैं भगवती बोल रहा हूँ, आप लखनऊ में मेरे घर आये थे और मेरे नौकर को अपना नंबर दे कर कह गए हैं कि इस घर के मालिक हैं. आख़िर आप हैं कौन?"
"मैं कौन हूँ? ये तो बाद में बताऊंगा. पहले आप मुझे ये बताएं कि जिस मकान में आप रह रहे हैं वो किसका है?
"मेरा है और किसका है?"
"वो मकान प्रदीप कुमार माथुर के नाम है, वही उसके मालिक हुए फिर आप कौन है?"
"मैं उनका साला हूँ, मेरे जीजाजी और दीदी दोनों एक दुर्घटना में नहीं रहे तो तब से इस मकान का मालिक मैं ही हूँ."
"तब तो उस मकान के मालिक प्रदीप कुमार माथुर जी के बच्चे होंगे, आप कैसे हो सकते हैं?"
"उनके कोई बच्चा नहीं है, जो हैं उनका कोई अता पता नहीं है."
"फिर ठीक है, उनके बच्चों का पता चल गया है और वही उस मकान के मालिक हैं. आप अपना ठिकाना बदल लें कुछ ही दिनों में मैं फिर आऊंगा."
"इसकी मुझे परवाह नहीं , आप कभी भी आयें न आपको मकान खाली मिलेगा और न ही इसका कोई वारिस है."
"इसका जवाब तो आपको कुछ दिन बाद मिलेगा." कहकर मैंने फ़ोन बंद कर दिया.
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
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बहुत दिनों से अगली कड़ी का इंतज़ार था कहानी रोचक मोड ले रही है जल्दी जल्दी पूरी कीजिये.
जवाब देंहटाएंपहले की कहानी तो मुझसे पढने से रह गयी थी , लेकिन इस वाले अंक को पढने के बाद लगा की बहुत रोचक कथा है , जल्दी ही पिछले अंक भी पढता हूँ .
जवाब देंहटाएंab der mat kijiye ... kyonki is kahani me main ram gai hun
जवाब देंहटाएंab ek baar me hi daal do di..........bahut ho gaya...:)
जवाब देंहटाएंबीच की कुछ कड़ियाँ नहीं पढ़ पायी थी ..आज सारी पढ़ीं ...रोचक ...धन का लालच कितना बुरा होता है ..आगे की कड़ी का इंतज़ार है ..
जवाब देंहटाएंआप कैसी हैं? मैं आपकी सारी छूटी हुई पोस्ट्स इत्मीनान से पढ़ कर दोबारा आता हूँ...
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