कैसा रिश्ता !
"मैं जो कहता हूँ , तुम सुनती क्यों नहीं?" पेड़ ने कहा।
"क्या सुनूँ?" चिड़िया ने बड़े शांत स्वर में कहा।
"उड़ जाओ यहाँ से, क्यों शहीद होना चाहती हो।"
"अपना घर छोड़ कौन जाता है?"
"आपातकाल में पहले परिवार बचाया जाता है, सो यहाँ से दूर उड़ जाओ।"
"कहाँ? बताओ न, कहाँ बचे हैं ऐसे पेड़, जहाँ सिर छिपा लूँ और लू, धूप न लगे।"
"जाओगी तो शरण भी मिल जायेगी। खोजना पड़ेगा।"
"बच्चों का जीवन तो देखो, उन्होंने अभी दुनिया नहीं देखी है।"
"उन्हें न रोकूँगी, सक्षम कर दिया जहाँ चाहे जा सकते है।"
"तो तुम मेरे साथ ही जलोगी। मेरे पास भागने का विकल्प होता भाग जाता, तुम तो जा सकती हो।"
"नहीं
दादा, जब से इस पेड़ पर हूँ, कितने अण्डे दिये, बच्चे हुए अपनी छाँव में
बचाकर रखा। इन्हीं डालियों और पत्तों पर विष्ठा करके मलिन किया। अब चली
जाऊँ और आप जल जायें। नहीं अब तो साथ ही जलेंगे।"
"अरी मूर्ख समझती क्यों नहीं? उड़ जा।"
"नहीं, नहीं, नहीं। " चिड़िया अपने घोंसले में चुपचाप लेट गयी !
-- रेखा श्रीवास्तव
व्वाहहह
जवाब देंहटाएंसाथ जिएंगे साथ मरेंगे
मानव को भी हरा दिया
सादर वंदन
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार, ब्लॉग की गरिमा को आप जैसे लोग ही अभी भी बनाये रखे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लघुकथा... आज के समय में यह प्रासंगिक है।
जवाब देंहटाएं