रेड लाइट पर गाड़ियाँ खड़ी थीं कि शमिता की नजर बगल वाली गाड़ी पर चली गई और फिर दोनों की नज़रें एक साथ टकराईं। एक गाड़ी में कुछ बड़े बच्चे को लेकर महिला बैठी थी और दूसरी गाड़ी में एक बच्चे को लिए पुरुष।
तभी ग्रीनलाइट हुई और दोनों ने अपनी अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी । 2 घंटे बाद शमिता के पास एक फोन आया - "क्या हम आज शाम साथ में कॉफी पी सकते हैं?"
"क्यों अभी भी कुछ शेष है?" शमिता ने झुँझलाकर कहा।
"हाँ कुछ बातें करनी है , जो आज तुम्हें देखकर करने का मन कर आया।" आशीष ने संयत स्वर में कहा।
" कुछ खास बात?" शमिता ने जानना चाहा।
आशीष का 5 साल बाद इस तरह बात करना उसकी कुछ समझ नहीं आया, पर पता नहीं क्यों उस बच्चे का उसके साथ होना एक प्रश्न चिह्न तो खड़ा करता ही है। लेकिन क्या? यह वह ना समझ सकी और फिर वह अपने अतीत में ही डूबती चली गई । विवेक के आने के करीब 1 साल बाद उसको पता चला कि विवेक स्पेशल चाइल्ड है। बहुत मेहनत से खोज कर उसने ऐसे बच्चों के सेंटर के बारे में पता किया और उसमें उसको भेजने की सोची। फिर वहाँ से डे केयर में रखना शुरू कर दिया। बैंक से निकलने के बाद विवेक को ले कर घर आ जाती। जब सुधार नहीं हुआ और शमिता को आशीष से ज्यादा विवेक को समय देना पड़ता था। एक और साल गुजरा कि आशीष ने दो टूक कह दिया - "मैं 1 साल का समय दे सकता हूँ चाहे तुम छुट्टी लो या फिर कुछ भी करो उसको ठीक होना चाहिए नहीं तो मैं इस मैरिड लाइफ को और नहीं झेल पाऊँगा।"
और फिर वही हुआ उन्होंने सहमति से तलाक ले लिया। सोचते सोचते उसके आँसू गालों पर लुढक गये। बीच में विवेक ने उठकर उसके आँसू पोंछे और बोला - " माँ क्या हुआ"
" कुछ नहीं।" कह कर उसने उसको अपने से चिपका लिया। यादें पीछा कब छोड़ती है, यादों के भँवर में डूबती तैरती हुई वह कब सो गई पता ही नहीं चला।
वीकेंड पर समय निश्चित किया गया कि वे कॉफी हाउस में मिल सकते हैं । उसका बेटा 8 साल की हो चुका था और आशीष का बेटा 3 साल का था।
आशीष पहले से ही कॉफी हाउस में आकर बैठा था, शमिता जैसे ही आई आशीष ने उठ कर वैलकम किया।
"कहिए क्या बात है?" शमिता ने बैठते हुए सवाल किया।
" क्या न हाल पूछा न चाल और तुमने तो सीधे से सवाल दाग दिया।" आशीष ने विनम्र होते हुए कहा।
"क्या हमारे बीच ऐसा कुछ शेष है?" शमिता के स्वर में तल्खी थी।
"यार, मैं चाहता था कि हम एक दूसरे के जीवन में झाँके।" आशीष सीधे बात पर आ गया।
शमिता ने कहा - "वैसा ही जैसा पहले था कुछ बदलने जैसा है ही नहीं।"
"लेकिन मेरे कहने का या इस सवाल का मतलब है कि तुम विवेक को कैसे पढ़ा लिखा रही हो? वह तुम्हारे पीछे कहाँ रहता है और तुम्हारे काम के दौरान कहाँ रहता है?" आशीष ने स्पष्ट कर दिया।
"मैं नहीं समझती इन बातों का कोई मतलब है, यह बताओ तुमने मुझको बुलाया क्यों?"
"क्या हम फिर से एक साथ नहीं रह सकते हैं?"
"क्या कहा? विवेक अभी वैसा ही है।"
" जानता हूँ, लेकिन जब से हम अलग हुए हैं, उसके बाद की कहानी बहुत अलग है। मैंने अपनी कलीग से शादी कर ली हमारी लाइफ सही चल रही थी, इस बीच दिविक का हमारे जीवन में आना हुआ लेकिन होने से 1 साल बाद पता चला कि वह भी 'स्पेशल चाइल्ड' है और उसके बाद उसने मेरा साथ छोड़ दिया । यह कहकर कि तुम्हारे अंदर ही कुछ तो कमी है, पहला बच्चा भी स्पेशल चाइल्ड हुआ और दूसरा भी, जबकि माँएँ अलग-अलग है। मैं ऐसे नहीं रह सकती और तब से दिविक को मेरे पास छोड़ कर चली गई।" कहकर आशीष ने गहरी साँस ली।
" मुझसे क्या चाहते हैं?" शमिता ने जानना चाहा।
"मैंने तुमसे यही कहा था और शायद उसी का दंड मुझको मिला है।. क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि हम लोग से एक साथ रहने लगें। उससे दोनों बच्चे एक साथ रहेंगे तो उन्हें अच्छी कंपनी मिलेगी तो अच्छी तरह डेवलपमेंट हो सकेगा।"
"नो, नेवर तुमने सोच कैसे लिया कि मैं इस बात के लिए राजी हो जाऊँगी । हमें अपने अपने हिस्से का जीवन जीना है, फिर मैं तुम्हारा दुख और तुम मेरे दुख क्यों जिओगे? तुमने यही कहा था ना।" शमिता ने अपना पर्स उठाया और तेजी से बाहर निकल गई।