शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

पैट !

          

         ऋषि ऑफिस से घर आया तो अंदर से डॉगी की आवाज आ रही थी। उसे कुछ आश्चर्य हुआ कि ये कहाँ से आवाज आ रही है। उसने डोरबेल बजाई और  ऋता ने आकर दरवाजा खोला। एक छोटा सा डॉगी उसके पीछे छिपा खड़ा था।  बस वह कूँ कूँ कर रहा था। 

"ऋता , ये क्या है ?"

"ऋषि ये मेरी फ्रेंड निवी हैं न उसके यहाँ दो डॉगी हुए तो एक मुझे दे गयी।  प्यारा है न।"

"ओह! ऋता मुझसे पूछा तो होता। "

"अंदर आइये न फिर बात करें। "

                        ऋता अपनी मैटरनिटी लीव पर थी, घर में वह बच्चे के साथ दिन भर उसकी देखभाल करती और खुश रहती थी। आज उसने सोचा था कि ऋषि इसको देख कर खुश हो जाएगा। 

                       ऋषि फ्रेश होकर आया तब तक ऋता कॉफी बनाकर ले आयी थी। ऋषि ने कॉफ़ी लेकर पत्नी की और मुखातिब होकर कहा - "ऋता , प्लीज मेरे घर में डॉगी नहीं , बिलकुल भी नहीं। "

"अरे ऋषि क्या हुआ ? थोड़े से दिन में वह तुम्हें भी मोह लेगा। ये पैट न बड़े लॉयल होते हैं।"

"हाँ होते हैं और रहेंगे भी, लेकिन मैं नहीं चाहता कि एक और ऋषि अपनी माँ की गोद और प्यार के लिए एक डॉगी के पीछे खड़ा अपनी बारी का इन्तजार करें। "

"क्या कह रहे हो ?"

"मुझे क्या इतना ही समझा है तुमने ? ये बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे ?"

"कैसे आई ? ऋता इसको मैंने जिया है तभी तो मुझे घर में पैट रहने से सख्त नफ़रत है। "

"क्या ?"

"हाँ ऋता , मेरे जन्म से पहले मेरे घर में एक पैट था। मेरी मॉम और डैड का बेटा। फिर दो साल बाद मैं आया , जब तक नहीं समझ सकता था तब तक कुछ भी चला हो लेकिन फिर मॉम ऑफिस से आती तो फ्लॉपी उनसे लिपट जाता और जब तक उसका मन न भरता मॉम से अलग न होता और फिर मॉम मेरे पास आती। मैं उनका बेटा अपनी बारी का इन्तजार कर रहा होता। "

"क्या?" ऋता ने आश्चर्य से लगभग चीखते हुए पूछा। 

"हाँ, यही सच है। "

"लेकिन मेरे बेटे के साथ ऐसा न हो तब मैं इसको वापस कर देती हूँ। " 

"सच!"



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कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है. कितना न्याय हुआ है ये आपको निर्णय करना है क्योंकि आपकी राय ही मुझे सही दिशा निर्देश ले सकती है.