कथा-सागर

जीवन के सफर में कितने फूल और उनके साथ काँटों का सुख भी मिलता है. उनको चुन लिया और फिर कहीं फूलों के साथ और कहीं काँटों के बीच फूल की कोमलता सब को पिरो लिया और थमा दिया . सारे अहसास अपने होते हैं, चाहे वे दूसरों ने किये हों. उनको महसूस करने की जरूरत होती है और कभी तो कोई अपने अहसासों को थमा कर चल देता है और उनको रूप कोई और देता है. फिर महसूस सब करते हैं.कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है.

रविवार, 1 दिसंबर 2024

हमारी जड़ें !

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 हमारी जड़ें !       मम्मी आपने तो गाँव देखा , मुझे भी देखना है । मेरी कुछ सहेलियों के गाँव हैं न। खूब किस्से सुनाती हैं ।           ...
मंगलवार, 16 जुलाई 2024

बड़े बेआबरू होकर .....!

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  बड़े बेआबरू होकर ......!               बुक शेल्फ से किताबें उठा उठा कर जमीन पर पटकी जा रही थी।  कबाड़ियों को क्या सब धान बाइस पसेरी लेना है।...
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गुरुवार, 4 जुलाई 2024

सौतिया डाह!

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  मोहिनी राशि के घर में आई तो उसकी आँखें लाल हो रहीं थी। राशि ने देखते ही पूछा - "मोहिनी कुछ हुआ क्या?"     "नहीं मैम साब कुछ...
गुरुवार, 27 जून 2024

पार्टी!

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 पार्टी! ऑफिस में आकर  जैसे ही सुमन ने अपना सिस्टम खोला, मेल का नोटिस देखा, उस मेल में उसे एक कार्ड मिला, जो स्मृति और शशांक  की ओर से था । ...
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एक संबोधन!

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           " देखो नानी अभी आई हैं, उन्हें आराम कर लेने देना।" निधि अपने सात साल और दो साल के बेटे को समझा रही थी।     "फिर ना...
सोमवार, 3 जून 2024

बस एक नाम!

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बस एक नाम!       "देखो नानी आज आई हैं, उन्हें आराम कर लेने देना।" निधि अपने सात साल के बेटे और दो साल की बेटी को समझा रही थी।     ...
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सोमवार, 20 मई 2024

घर की मुर्गी .....!

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         सारी उम्र आरामतलबी भी गुजारने वाले गुप्ता जी रिटायरमेंट के बाद और ज्यादा सिरदर्द बन गए थे।  पहले तो लंच लेकर ऑफिस चले जाते तो उनकी ...
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मेरे बारे में

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रेखा श्रीवास्तव
मैं अपने बारे में सिर्फ इतना ही कहूँगी कि २५ साल तक आई आई टी कानपुर में कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रोजेक्ट एसोसिएट के पद पर रहते हुए हिंदी भाषा ही नहीं बल्कि लगभग सभी भारतीय भाषाओं को मशीन अनुवाद के द्वारा जन सामान्य के समक्ष लाने के उद्देश्य से कार्य करते हुए . अब सामाजिक कार्य, काउंसलिंग और लेखन कार्य ही मुख्य कार्य बन चुका है. मेरे लिए जीवन में सिद्धांत का बहुत बड़ी भूमिका रही है, अपने आदर्शों और सिद्धांतों के साथ कभी कोई समझौता नहीं किया. अगर हो सका तो किसी सही और गलत का भान कराती रही यह बात और है कि उसको मेरी बात समझ आई या नहीं.
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