" देखो नानी अभी आई हैं, उन्हें आराम कर लेने देना।" निधि अपने सात साल और दो साल के बेटे को समझा रही थी।
"फिर नानी खेलेंगी न हमारे साथ।"
"जरूर।"
शानू ने अपने मित्रों को बता रखा था कि मेरी नानी आ रही हैं।
शानू के दो मित्र आ गये। मानू नानी, नानी चिल्ला रहा था और नानी हर बार 'बेटू' कह कर उसे उत्तर दे रहीं थीं।।
शानू का एक मित्र दीपू नानी के पास आकर खड़ा हो गया तो नानी ने पूछा -"कुछ चाहिए?"
"जी।"
"बतलाइये।"
"आप मुझे भी बेटू कहेंगी, मुझे कोई बेटू नहीं कहता। मम्मा तो भैया को ही कहती है।" उस बच्चे की आँखें भर आईं थी।
"हाँ कहूँगी न।" बगैर पूछे नानी ने उसे अपने अंक में भर लिया।
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कथानक इसी धरती पर हम इंसानों के जीवन से ही निकले होते हैं और अगर खोजा जाय तो उनमें कभी खुद कभी कोई परिचित चरित्रों में मिल ही जाता है. कितना न्याय हुआ है ये आपको निर्णय करना है क्योंकि आपकी राय ही मुझे सही दिशा निर्देश ले सकती है.