अहम् !
शानू हमेशा गुमसुम रहता था । किसी के साथ रहना या खेलना उसको पसंद नहीं था ।उसकी टीचर और वार्डन ने बहुत कोशिश की, लेकिन शानू क्लास के बाद अकेले रहना पसंद करता ।
मम्मी-पापा के बीच बढ़ती दूरियाँ कहीं उसे न छू लें क्योंकि बच्चे संवेदनशील होते हैं वह अपने आस पास की आहटों को पहचान लेते हैं । इसीलिए उसे हॉस्टल में रखा गया था। वह एक भावनात्मक चक्रव्यूह में फंसा हुआ था।
वार्डन ने उससे उसकी खामोशी का कारण जानना चाहा, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला । हॉस्टल में कभी पापा मिलने आते तो कभी मम्मी , दोनों एक साथ कभी न आये । वार्डेन इसको दोनों के कामकाजी होने को इसका कारण मानने को तैयार न थी ।
वह हॉस्टल जरूर आ गया था लेकिन वह मम्मी पापा की लड़ाई में ख़ुद को कहीं नहीं पाता था । उनकी अपने अहं की लड़ाई थी और जब उनके कमरे से गलत शब्दों की आवाज़ें कान में पड़ती तो वह कान में अँगुली ठूँस कर लेटा रहता । उस बाल मन को कोई रास्ता न सूझ रहा था । वह इस लायक था भी नहीं।
स्कूल की काउंसलर ने शानू के पास आकर बात की और फिर उसको बताये बिना ही उसके माता पिता को बुलाकर काउंसलिंग की और कहा - "इसके बचपन को अपने अहं की बलि न चढ़ायें । साथ रहें या न रहें लेकिन इसके जीवन सँवरने तक यहाँ साथ आयें और मिलें । उसके समझदार होने तक छुट्टियों में उसके घर होने पर साथ जरूर रहें । बस किशोर वय निकलने तक ।"
इस बार मम्मी पापा को साथ आया देख कर उसकी आँखों में चमक दिखाई दी , जो एक नयी आशा से भरी थीं । वह अपने मन के चक्रव्यूह को भेदने से खुश था.