गौरव आज गांव आया हुआ था पिताजी ने गांव में एक मंदिर का निर्माण कराया है उसी का रुद्राभिषेक का कार्यक्रम है।पूजा में उसने भी श्रध्दापूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम के समापन पर भण्डारे का आयोजन था।
मंदिर के विशाल प्रांगण में भोजन करने वालों के दो ग्रुप थे उन्हें एक दूसरे से अलग बैठाया गया था तो गौरव को कुछ अजीब सा लगा लेकिन एक तरफ के लोग खाने के बाद पापा के पास आकर दूर से जमीन के पैर छू कर जा रहे थे । यह देखकर उससे रहा नहीं गया - "पापा ये क्या कर रहे हैं ये लोग ?"
"ये अछूत लोग है तो हमें न छूकर दूर से पैर छूते हैं ।"
"लेकिन इतने बुजुर्ग लोग भी ।"
"हाँ हाँ इसीलिए तो अन्नदाता कहते है ।"
"पापा आप भी ये मानते चले आ रहे हैं । "
"ये परंपराएं तो बाप दादाओं के जमाने से चली आ रही हैं । इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ।"
"लेकिन मैं कर सकता हूँ , समय के हिसाब से परंपराएं बदली भी जा सकती हैं।और उसने बढ़कर एक अछूत बुजुर्ग के पैर छू लिए ।"
"ये क्या किया मालिक ?आप हमें पाप में डालेंगे ।"
मंदिर के विशाल प्रांगण में भोजन करने वालों के दो ग्रुप थे उन्हें एक दूसरे से अलग बैठाया गया था तो गौरव को कुछ अजीब सा लगा लेकिन एक तरफ के लोग खाने के बाद पापा के पास आकर दूर से जमीन के पैर छू कर जा रहे थे । यह देखकर उससे रहा नहीं गया - "पापा ये क्या कर रहे हैं ये लोग ?"
"ये अछूत लोग है तो हमें न छूकर दूर से पैर छूते हैं ।"
"लेकिन इतने बुजुर्ग लोग भी ।"
"हाँ हाँ इसीलिए तो अन्नदाता कहते है ।"
"पापा आप भी ये मानते चले आ रहे हैं । "
"ये परंपराएं तो बाप दादाओं के जमाने से चली आ रही हैं । इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ।"
"लेकिन मैं कर सकता हूँ , समय के हिसाब से परंपराएं बदली भी जा सकती हैं।और उसने बढ़कर एक अछूत बुजुर्ग के पैर छू लिए ।"
"ये क्या किया मालिक ?आप हमें पाप में डालेंगे ।"
- "नहीं दादा अपने पूर्वजों के पाप का प्रायश्चित कर रहा हूँ ।"