शनिवार, 31 दिसंबर 2016

नया साल !

                        समर घर से निकला तो पत्नी और बच्चों के लिए गिफ्ट पहले ही खरीदता हुआ होटल पहुंचा था।  रात में प्रोग्राम ख़त्म करके सीधे घर भागेगा क्योंकि कई साल से वह बच्चों के साथ नए साल का स्वागत नहीं कर पाया है।  आज उसने बच्चों से वादा किया है कि वे नए साल का केक साथ ही काटेंगे।
                        आज साल का आखिरी दिन है और होटल में बहुत चहल पहल रहती है , देर रात तक पार्टी चलती रहती है , इसलिए उसने मैनेजर से दो दिन पहले ही बोल दिया था कि वह आज के दिन जल्दी जाएगा और उसकी जगह किसी और को बुला लें।  यहाँ  वालों के लिए तो आज का दिन मौज मस्ती और पानी की तरह पैसे बहाने का दिन होता है और होटल के काम करने वालों का तो साल का पहला दिन बैल की तरह काम करते हुए शुरू होता है।  दूसरों के लिए ही तो वो यहाँ काम करते हैं।  साज़कारों की उंगलियां अपने अपने साजों पर होती हैं लेकिन आँखें घडी पर होती है कि कब उन्हें यहाँ से जाने को मिलेगा।
                          जब घडी ने ग्यारह बजाये तो उसकी धड़कने तेज होने लगी , कहीं कोई और न आया तो वह फिर बच्चों के सामने झूठ साबित हो जाएगा और बच्चे भी तो निराश हो जाते हैं। वह धीरे से उठकर मैनेजर के कमरे में गया - 'सर मैंने कहा था कि आज मुझे जल्दी जाना है , दूसरा आदमी कब आएगा ? '
'रुको तुम अपने काम पर लगे रहो , मैं अभी व्यवस्था करता हूँ। '
                             उसने वापस आकर आपने साज संभाल लिया।  घडी की सुइयां अपनी चाल से चल रही थी और उसकी आत्मा उतनी ही तेजी से उसे धिक्कार रही थी।  उसकी नज़रें मैनजर को खोज रही थीं लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया। न ही उसको अपनी जगह लेने वाला कोई आता दिख रहा था।  वह गुस्से से उठा और फिर मैनेजर के केबिन में जाकर खड़ा हो गया -- ' सर मैंने आपसे पहले ही कहा था कि मुझे जल्दी जाना है , मेरी जगह आने वाला क्यों नहीं आया ?'
'समर मैंने बुलाया तो था उसको लेकिन वह नहीं आया और जब तक साहब लोग फ्लोर पर हैं साज बंद नहीं होंगे।  यही तो हमारे लिए कमाई का मौका होता है।  जाओ अपना काम देखो। '
          इसके आगे वह कुछ कह नहीं सकता था और शायद इसी को दूसरे के इशारों पर नाचना कहते हैं।  वह फिर आकर अपने साज पर बैठ गया।  उंगलियां साज पर चल रही थीं लेकिन उसका मन उनकी आवाज को संगीत नहीं बल्कि कानों में पड़ने वाले गर्म शीशे की तरह महसूस कर रहा था।  रोज वह झूम झूम कर यही साज बजाता था लेकिन आज नहीं हो पा  रहा था।
   सुबह तीन बजे कार्यक्रम ख़त्म हुआ और वह भी लड़खड़ाते पैरों  से गिफ्ट उठा कर घर की तरफ निकला।  जब उसने दरवाजा खोल तो टी वी चल रहा था।  मेज पर केक रखा था और पत्नी और बच्चे सोफे लुढ़के हुए थे और उनकी रजाई ऊपर से खिसक कर जमीन पर गिरी हुई थी।
                     उसने धीरे से रजाई उठा कर बच्चों पर डालनी चाही तो बच्चे जाग गए , उसकी विवशता आँखों से लेकर चेहरे तक उत्तर चुकी थी कि बच्चे उठा कर खड़े हो गए और वह कुछ कहता उससे पहले ही बोल उठे -- ' कोई बात नहीं पापा मम्मा कह रही थी कि ये वाला अपना न्यू इयर थोड़े ही होता है , ये तो बड़े लोगों का होता है।  अपना तो जब होता है , तब हम पूजा करके मनाते हैं। '
                      समर कृतज्ञता से पत्नी को देखा और गर्व से बच्चों को सीने से लगा चुका था।
              

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

हस्तांतरण !

                  माँ तीन दिनों से बेटी के फ़ोन का इन्तजार कर रही थी और फ़ोन नहीं आ रहा था।  नवजात के साथ व्यस्त होगी सोचकर वह खुद भी संकोचवश फ़ोन नहीं कर पा रह थी।  एक दिन उससे नहीं रहा गया और बेटी को फ़ोन किया  -
 
          "बेटा कई दिन हो गए तेरी आवाज नहीं सुनी , कैसी हो ?"

             "माँ तेरी जगह संभाली है न, तो उस पर खरी उतरने का प्रयास कर रही हूँ।  इसके सोने और जागने का कोई समय नहीं होता और ये ही मेरे लिए मुश्किल है।  लेकिन फिक्र न करना, विदा करते समय जैसे दायित्वों की डोर थमाई थी न , वैसे ही उसको थामे हूँ।  बेटी बन उस घर में जन्मी लेकिन इस घर में बहू बन आयी और बेटी बनने का पूरा प्रयास करती रही।"
  
         "ये तो मैं अपनी बेटी को जानती हूँ।"
 
         "अब माँ बनी तो जो जो आपने किया और दिया, वही दे रही हूँ माँ।  कुछ सुविधाएँ बढ़ गयीं है लेकिन माँ के दायित्वों में कोई कमी न हो वह कोशिश कर रही हूँ।"

         "तुम्हारी बेटी बाँट गयी है माँ - एक बेटी और माँ के रिश्तों में पर चिंता मत करिए , मैं आपकी बेटी पहले हूँ और बहू और माँ बाद में। सारे रिश्तों को बखूबी निभा लूंगी।  आखिर आपकी बेटी हूँ न।'  

                   माँ के आँखों में आंसू बह निकले , माँ बनते ही बेटी बड़ी हो जाती है।
             

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

अहसास !

                         रानू जब से माँ बनने की ओर बढ़ी है , रोज ही कुछ न कुछ परेशानियां उसको लगी रहती थीं तो परेशान होकर नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया और घर में रहने लगी।  वह घर में अकेली ही रहती थी लेकिन ऋषिन को उसकी चिंता अपने ऑफिस में लगी रहती थी।  वह दिन में कई बार फ़ोन करके उससे हाल चाल लेता रहता था।  
                       रानू और ऋषिन का एक ही जगह जॉब होने के कारण और कोई परेशानी नहीं थी लेकिन समय पास आने के साथ साथ उनकी अलग तरह की चिंताएं बढती चली जा रही थीं। रानू स्वभाव से संवेदनशील थी लेकिन इस समय की परेशानियों के कारण वह गुस्सा भी जल्दी हो जाया करती थी।  ऋषिन उसके स्वभाव से बहुत अच्छी तरह परिचित था और वह अच्छे से सामंजस्य बिठाये हुए था। ऐसा नहीं कि रानू सिर्फ ससुराल में ऐसा करती थी वह अपनी बहनों और माँ से भी जल्दी गुस्सा हो जाती थी और थोड़ी देर बाद सॉरी कह  कर सामान्य हो जाती। लेकिन दूसरे परिवार में आकर ये आदत उसे सहज रूप से लेने वाली न थी। सास की बातों से वह खिन्न हो जाती थी और कभी कभी झुंझला भी जाती थी। 
                      ऋषिन ने उसकी माँ को सहायता के लिए बुला लिया था लेकिन रानू महसूस कर रही थी कि  माँ की  बातों में अपने बेटे , बहू और पोते की चिंता ज्यादा झलकती थी।  रानू ने महसूस किया कि माँ उसे कम प्यार नहीं करती लेकिन ज्यादा झुकाव उसका अपने बेटे और बहू के प्रति अधिक था।  उसने माँ को जाने के लिए कह दिया। 
                         ऋषिन ने सोचा था कि रानू को प्रसव के लिए उसकी माँ के पास भेज देगा और फिर अपने घर ले जाएगा। इस दौरान रानू को ये अच्छी तरह से अहसास हो चुका था कि एक बच्चे को जन्म देने में माँ कितना कष्ट उठाती है ? ये नौ महीने का समय वह एक एक सांस अपने बच्चे के साथ लेती है फिर वह अपने से दूर होने की बात कैसे स्वीकार कर सकती है और फिर अगर कोई और बीच में आकर दूर करना चाहे तो वह सहर्ष स्वीकार तो नहीं कर सकती।  शायद वह भी नहीं कर पायेगी। 
                    उसके घर जाने का समय करीब आ रहा था और उसने अपनी ससुराल जाने का टिकट बुक करा लिया।  तैयारी कर ली तब पति को टिकट दिया तो उसने देखा और बोला -- "तुम्हें कहाँ चलना है। " 
"मम्मी जी के पास। "
"क्यों मम्मी के पास नहीं जाना है ?"
"नहीं मम्मी ने जो कष्ट तुम्हारे लिए उठाये होंगे , उसका अहसास मुझे अब हुआ है।  अब तो उनके पास ही जाकर डिलीवरी करुँगी , उनको बहुत ख़ुशी होगी और शायद मुझे भी। "
         ऋषिन रानू की संवेदनशीलता को पहले से ही जानता था और आज उसको इस रूप में देखा तो अपने को खुशनसीब समझ रहा था।