पूर्व कथा:
राशि के निधन पर उसके पति के आगमन पर पड़ोसियों ने प्रश्न चिह्न पर विराम लगाती है उसकी बहन निधि। राशि २० साल पहले अपने ६ माह के बेटे को लेकर पिता के घर आ गयी थी और बेटा पिता शब्द के साथ जुड़ा ये न समझ पा रहा था कि उसके पिता क्यों उसके साथ नहीं रहते हें। माँ से झिड़की के अलावा कुछ न मिलता था तब उसने मौसी आ
से जाना कि उस के पिता बहुत अच्छे हें .........
आगे :
दिव्यम जब अपने पिता से मिला तो उसको लगा कि उसके पिता तो बहुत ही अच्छे व्यक्ति हैं , फिर मम्मा वहाँ से छोड़ कर क्यों चली आई? अब वह बच्चा भी नहीं रह गया था लेकिन इतना बड़ा भी नहीं था कि वह माता और पिता के निर्णयों पर प्रश्न कर सकें लेकिन दूसरे के घर में रहते हुए वह बहुत ही संवेदनशील हो चुका था । जैसे जैसे उसकी पढ़ाई बढ़ रही थी वह माँ और पापा के बारे में सोचना छोड़ चुका था क्योंकि उसको माँ और पापा दोनों का ही साथ मिल रहा था। अब वह छुट्टी होने पर कभी कभी पापा के पास भी जाने लगा था लेकिन घर में माँ के न होने से उसका मन कम लगता । दादी उसको बहुत प्यार करती लेकिन बचपन से वह कभी उनके साथ नहीं रहा था तो वह उस प्यार को स्वीकार नहीं कर पाता लेकिन वह ऐसा कुछ भी प्रकट न होने देता जिससे कि उनको कुछ लगे।
राशि को जब इस बात का पता चला कि दिव्यम अब अपने पापा के पास भी जाने लगा है तो वह क्रोध से आग बबूला हो गयी और एक दिन उसने दिव्यम से कह दिया कि इतने वर्षों तक मैंने तुझे पाला पोसा और अब तू अपने पिता के पास जाने लगा । दिव्यम बहुत धैर्य से काम लेने लगा था और वह ऐसा कुछ भी नहीं सोच सकता था कि जो उसने इतने दिन के बाद पाया है उसको फिर से खो दे। लेकिन माँ ने अगर अपने कहे अनुसार करना शुरू किया तो उसका पापा से मिलने का विकल्प ख़त्म हो जायेगा और वह माँ से झूठ भी नहीं बोलना चाहता था।
"मम्मा मुझे पापा की भी जरूरत है और तेरी भी। तेरे पास तो मैं बचपन से हूँ । पापा को तो कुछ ही दिन मिल पाता हूँ। मना मत करिए क्योंकि झूठ मैं बोलना नहीं चाहता और पापा का दिल भी मैं तोड़ना नहीं चाहता। मेरी अच्छी माँ मुझे दोनों के लिए जीना है और मुझे वैसे ही जीने दीजिये।'
दिव्यम की बातें सुनकर राशि ये समझ गयी कि यह अब दिव्यम है और मेरे वश में नहीं रह गया है, ये मानेगा भी नहीं, इसलिए अब उसने भी मना करना बंद कर दिया। राशि अब खुद को अकेला महसूस करने गई थी क्योंकि उसकी भाभी अपने पति और बच्चों में लगी रहती। बहनों की शादी हो चुकी थी। माँ भी अब अधिक समय पूजा पाठ में देने लगी थी। राशि स्कूल से आती और अपने कमरे में लेट कर अकेले शून्य में ताका करती । बस अब वह खाने की मेज पर ही सबसे मिलती और बैठती। दिव्यम के जाने के बाद से वह अपने को उपेक्षित भी महसूस करने लगी थी। वह इस सत्य को स्वीकार नहीं कर पा रही थी कि दिव्यम जैसे जैसे बड़ा हो रहा है , वह अपनी पढाई और बाकी दुनियाँ में भी रूचि लेने लगा है।
राशि की भूख धीरे धीरे कम होने लगी , घर वाले समझते रहे कि शायद वह दिव्यम के हॉस्टल चले जाने के कारण खाना कम खाती है। लेकिन वह धीरे धीरे किसी बीमारी का शिकार हो रही थी। ये बात उसने भी महसूस की, लेकिन उसने अपनी परेशानियों को किसी के साथ शेयर करना उचित नहीं समझा। वह अक्सर स्कूल से छुट्टी लेकर घर आ जाती और अपने कमरे में जाकर लेट जाती और सोचती रहती अपने अतीत और भविष्य को।
इसी बीच दिव्यम का सलेक्शन इंजीनिरिंग में हो गया। राशि जाने की स्थिति में नहीं थी या फिर उसने जानबूझ कर दिव्यम से कहा कि वह काउंसिलिंग के लिए अपने पापा के साथ चला जाय। फिर तो काउंसिलिंग से लेकर एडमिशन तक के सारे काम पापा ने ही किये। दिव्यम की पढ़ाई का पूरा खर्च उसके पापा ने उठाने में कोई भी एतराज नहीं किया। दिव्यम भी माँ के बदले हुए व्यवहार से बहुत ही खुश था कि आज माँ ने पापा की उसके जीवन में इतनी भागीदारी स्वीकार कर ली है तो शायद उसकी खातिर वह वापस पापा के पास आ जाये।
एक दिन अचानक राशि के पेट में बहुत जोर का दर्द उठा। उसे डॉक्टर को दिखाया गया किन्तु दवा लेने पर उसको कोई खास फायदा नहीं हो सका। सारी स्थिति को देखते हुए डॉक्टर ने उसकी इंडोस्कोपी करवाने के लिए सलाह दी। उससे पता चला कि राशि को आँत का कैंसर है। घर वालों ने राशि को कुछ नहीं बतलाया लेकिन वह इतनी पढ़ी लिखी थी कि कुछ न बताने पर भी वह सब कुछ समझ सकती थी। उसकी तबियत दवा लेने पर कभी ठीक और कभी ख़राब रहने लगी। उसने रोज रोज की छुट्टी लेने के स्थान पर नौकरी छोड़ देने का फैसला ले दिया और वह अब घर में ही रहने लगी थी। राशि की इस हालात ने घर वालों को चिंता में डाल दिया लेकिन उन लोगों ने दिव्यम को इस बारे में कुछ भी न बताने का फैसला राशि के सुझाव पर मान लिया ।
राशि अब कभी अकेले में सोचने लगी थी कि ये रोग उसको शायद समर जैसे देवता व्यक्ति को इतना कष्ट देने के कारण दंड के रूप में मिला है। लेकिन दूसरी ओर उसका अहंकार सिर उठा कर बोलने लगता -- वह अब तक नहीं झुकी तो अब क्यों झुके? अब तो उसका बेटा उसका सहारा बन रहा है। अगर समर को अपनी पत्नी से अपनी माँ अधिक प्रिय है तो यही सही।"
राशि के रोग के बढ़ने के साथ ही उसकी कीमोथेरेपी होने लगी थी, किन्तु उसका जर्जर होता शरीर उसको झेल नहीं पा रहा था। एक बार की कीमोथेरेपी उसको कई हफ्तों के लिए शिथिल कर देता था। स्वास्थ्य में भी कोई खास सुधार नजर नहीं आ रहा था, दिव्यम अब अपनी माँ के पास जल्दी जल्दी आ जाता था। उस समय मिड-सेम की छुट्टियाँ चल रही थीं और दिव्यम घर पर ही था। अचानक एक दिन राशि को पेट में बहुत तेज दर्द हुआ तो अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। डॉक्टर ने राशि के घर वालों को बता दिया कि "अब उसमें सुधार की कोई आशा न करें, उसका जीवन कुछ ही हफ्तों का शेष है।"
बेटा भी माँ को छोड़ कर अब कहीं नहीं जाता वह उनके पास ही बैठा कोई किताब पढ़ा करता था या फिर माँ से बातें करता। एक दिन वह किताब पढ़ रहा था कि राशि ने उससे अचानक कहा -"बेटा, अपने पापा को बुला दे।"
माँ की बात सुनकर उसे लगा कि उसको कुछ गलत सुनाई दिया है। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
"माँ क्या कहा अपने?"
"यही कि अपने पापा को बुला दे। अब मेरे पास वक़्त कम है। अपने गुनाहों के लिए माफी तो माँग लूँ ।"
"माँ यह बात अपने अगर दस साल पहले कही होती तो हम कहीं और होते।" दिव्यं के मुँह से एकदम से निकल ही गया।
"मगर कैसे ? मेरी नियति शायद ऐसी ही थी।" कहते हुए राशि के आँखों के दोनों कोर से आँसूँ लुढ़क गए।
(क्रमशः )
राशि के निधन पर उसके पति के आगमन पर पड़ोसियों ने प्रश्न चिह्न पर विराम लगाती है उसकी बहन निधि। राशि २० साल पहले अपने ६ माह के बेटे को लेकर पिता के घर आ गयी थी और बेटा पिता शब्द के साथ जुड़ा ये न समझ पा रहा था कि उसके पिता क्यों उसके साथ नहीं रहते हें। माँ से झिड़की के अलावा कुछ न मिलता था तब उसने मौसी आ
से जाना कि उस के पिता बहुत अच्छे हें .........
आगे :
दिव्यम जब अपने पिता से मिला तो उसको लगा कि उसके पिता तो बहुत ही अच्छे व्यक्ति हैं , फिर मम्मा वहाँ से छोड़ कर क्यों चली आई? अब वह बच्चा भी नहीं रह गया था लेकिन इतना बड़ा भी नहीं था कि वह माता और पिता के निर्णयों पर प्रश्न कर सकें लेकिन दूसरे के घर में रहते हुए वह बहुत ही संवेदनशील हो चुका था । जैसे जैसे उसकी पढ़ाई बढ़ रही थी वह माँ और पापा के बारे में सोचना छोड़ चुका था क्योंकि उसको माँ और पापा दोनों का ही साथ मिल रहा था। अब वह छुट्टी होने पर कभी कभी पापा के पास भी जाने लगा था लेकिन घर में माँ के न होने से उसका मन कम लगता । दादी उसको बहुत प्यार करती लेकिन बचपन से वह कभी उनके साथ नहीं रहा था तो वह उस प्यार को स्वीकार नहीं कर पाता लेकिन वह ऐसा कुछ भी प्रकट न होने देता जिससे कि उनको कुछ लगे।
राशि को जब इस बात का पता चला कि दिव्यम अब अपने पापा के पास भी जाने लगा है तो वह क्रोध से आग बबूला हो गयी और एक दिन उसने दिव्यम से कह दिया कि इतने वर्षों तक मैंने तुझे पाला पोसा और अब तू अपने पिता के पास जाने लगा । दिव्यम बहुत धैर्य से काम लेने लगा था और वह ऐसा कुछ भी नहीं सोच सकता था कि जो उसने इतने दिन के बाद पाया है उसको फिर से खो दे। लेकिन माँ ने अगर अपने कहे अनुसार करना शुरू किया तो उसका पापा से मिलने का विकल्प ख़त्म हो जायेगा और वह माँ से झूठ भी नहीं बोलना चाहता था।
"मम्मा मुझे पापा की भी जरूरत है और तेरी भी। तेरे पास तो मैं बचपन से हूँ । पापा को तो कुछ ही दिन मिल पाता हूँ। मना मत करिए क्योंकि झूठ मैं बोलना नहीं चाहता और पापा का दिल भी मैं तोड़ना नहीं चाहता। मेरी अच्छी माँ मुझे दोनों के लिए जीना है और मुझे वैसे ही जीने दीजिये।'
दिव्यम की बातें सुनकर राशि ये समझ गयी कि यह अब दिव्यम है और मेरे वश में नहीं रह गया है, ये मानेगा भी नहीं, इसलिए अब उसने भी मना करना बंद कर दिया। राशि अब खुद को अकेला महसूस करने गई थी क्योंकि उसकी भाभी अपने पति और बच्चों में लगी रहती। बहनों की शादी हो चुकी थी। माँ भी अब अधिक समय पूजा पाठ में देने लगी थी। राशि स्कूल से आती और अपने कमरे में लेट कर अकेले शून्य में ताका करती । बस अब वह खाने की मेज पर ही सबसे मिलती और बैठती। दिव्यम के जाने के बाद से वह अपने को उपेक्षित भी महसूस करने लगी थी। वह इस सत्य को स्वीकार नहीं कर पा रही थी कि दिव्यम जैसे जैसे बड़ा हो रहा है , वह अपनी पढाई और बाकी दुनियाँ में भी रूचि लेने लगा है।
राशि की भूख धीरे धीरे कम होने लगी , घर वाले समझते रहे कि शायद वह दिव्यम के हॉस्टल चले जाने के कारण खाना कम खाती है। लेकिन वह धीरे धीरे किसी बीमारी का शिकार हो रही थी। ये बात उसने भी महसूस की, लेकिन उसने अपनी परेशानियों को किसी के साथ शेयर करना उचित नहीं समझा। वह अक्सर स्कूल से छुट्टी लेकर घर आ जाती और अपने कमरे में जाकर लेट जाती और सोचती रहती अपने अतीत और भविष्य को।
इसी बीच दिव्यम का सलेक्शन इंजीनिरिंग में हो गया। राशि जाने की स्थिति में नहीं थी या फिर उसने जानबूझ कर दिव्यम से कहा कि वह काउंसिलिंग के लिए अपने पापा के साथ चला जाय। फिर तो काउंसिलिंग से लेकर एडमिशन तक के सारे काम पापा ने ही किये। दिव्यम की पढ़ाई का पूरा खर्च उसके पापा ने उठाने में कोई भी एतराज नहीं किया। दिव्यम भी माँ के बदले हुए व्यवहार से बहुत ही खुश था कि आज माँ ने पापा की उसके जीवन में इतनी भागीदारी स्वीकार कर ली है तो शायद उसकी खातिर वह वापस पापा के पास आ जाये।
एक दिन अचानक राशि के पेट में बहुत जोर का दर्द उठा। उसे डॉक्टर को दिखाया गया किन्तु दवा लेने पर उसको कोई खास फायदा नहीं हो सका। सारी स्थिति को देखते हुए डॉक्टर ने उसकी इंडोस्कोपी करवाने के लिए सलाह दी। उससे पता चला कि राशि को आँत का कैंसर है। घर वालों ने राशि को कुछ नहीं बतलाया लेकिन वह इतनी पढ़ी लिखी थी कि कुछ न बताने पर भी वह सब कुछ समझ सकती थी। उसकी तबियत दवा लेने पर कभी ठीक और कभी ख़राब रहने लगी। उसने रोज रोज की छुट्टी लेने के स्थान पर नौकरी छोड़ देने का फैसला ले दिया और वह अब घर में ही रहने लगी थी। राशि की इस हालात ने घर वालों को चिंता में डाल दिया लेकिन उन लोगों ने दिव्यम को इस बारे में कुछ भी न बताने का फैसला राशि के सुझाव पर मान लिया ।
राशि अब कभी अकेले में सोचने लगी थी कि ये रोग उसको शायद समर जैसे देवता व्यक्ति को इतना कष्ट देने के कारण दंड के रूप में मिला है। लेकिन दूसरी ओर उसका अहंकार सिर उठा कर बोलने लगता -- वह अब तक नहीं झुकी तो अब क्यों झुके? अब तो उसका बेटा उसका सहारा बन रहा है। अगर समर को अपनी पत्नी से अपनी माँ अधिक प्रिय है तो यही सही।"
राशि के रोग के बढ़ने के साथ ही उसकी कीमोथेरेपी होने लगी थी, किन्तु उसका जर्जर होता शरीर उसको झेल नहीं पा रहा था। एक बार की कीमोथेरेपी उसको कई हफ्तों के लिए शिथिल कर देता था। स्वास्थ्य में भी कोई खास सुधार नजर नहीं आ रहा था, दिव्यम अब अपनी माँ के पास जल्दी जल्दी आ जाता था। उस समय मिड-सेम की छुट्टियाँ चल रही थीं और दिव्यम घर पर ही था। अचानक एक दिन राशि को पेट में बहुत तेज दर्द हुआ तो अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। डॉक्टर ने राशि के घर वालों को बता दिया कि "अब उसमें सुधार की कोई आशा न करें, उसका जीवन कुछ ही हफ्तों का शेष है।"
बेटा भी माँ को छोड़ कर अब कहीं नहीं जाता वह उनके पास ही बैठा कोई किताब पढ़ा करता था या फिर माँ से बातें करता। एक दिन वह किताब पढ़ रहा था कि राशि ने उससे अचानक कहा -"बेटा, अपने पापा को बुला दे।"
माँ की बात सुनकर उसे लगा कि उसको कुछ गलत सुनाई दिया है। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
"माँ क्या कहा अपने?"
"यही कि अपने पापा को बुला दे। अब मेरे पास वक़्त कम है। अपने गुनाहों के लिए माफी तो माँग लूँ ।"
"माँ यह बात अपने अगर दस साल पहले कही होती तो हम कहीं और होते।" दिव्यं के मुँह से एकदम से निकल ही गया।
"मगर कैसे ? मेरी नियति शायद ऐसी ही थी।" कहते हुए राशि के आँखों के दोनों कोर से आँसूँ लुढ़क गए।
(क्रमशः )
कहानी का यह अंक पढ़ गया। अगले अंक की प्रतीक्षा है।
जवाब देंहटाएंप्रवाहमयी कथा!
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक कहानी चल रही है।
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